भारत में साइबर ठगी को रोकने के लिए किस तरह के कानून बनाने होंगे?

भारत में साइबर ठगी को रोकने के लिए किस तरह के कानून बनाने होंगे?
डीपफेक पहले भी कई बड़े हस्तियों की मुश्किलें बढ़ा चुका है. भारत के कई हिस्सों में डिपफेक द्वारा साइबर ठगी के मामले भी सामने आए हैं. आइए जानते हैं कि साइबर ठगी को कैसे कंट्रोल किया जा सकता है?
बॉलीवुड अभिनेत्री रश्मिका मंदाना के एक वायरल वीडियो ने भारत में डीपफेक को फिर से चर्चा में ला दिया है. अमिताभ बच्चन समेत कई हस्ती इस पर कठोर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं. रश्मिका मंदाना ने भी इस पर सख्त कानून बनाने की उम्मीद जताई है.

रश्मिका ने पोस्ट लिखकर कहा है कि एक समुदाय के तौर पर हमें इस पर ध्यान देने की जरूरत है. 

डीपफेक पहले भी दुनियाभर के कई बड़े हस्तियों की मुश्किलें बढ़ा चुका है. इनमें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और बराक ओबामा का नाम प्रमुख रूप से शामिल हैं.

भारत के कई हिस्सों में डिपफेक द्वारा साइबर ठगी के मामले भी सामने आए हैं. ऐसे में आइए इस स्टोरी में जानते हैं कि डीपफेक को लेकर किस तरह के कानून बनाए जा सकते हैं…

डीपफेक क्या है, आसान भाषा में समझिए…
डीपफेक एक डिजिटल पद्धति है, जिसमें किसी व्यक्ति के तस्वीर, ऑडियो या वीडियो को मैन्युपुलेट कर सर्कुलेट किया जाता है. यह तकनीक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आने के बाद और ज्यादा सुर्खियों में है. 

आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस कंप्यूटर साइंस का एक ब्रांच है और यह पूरी तरह से कंप्यूटिंग सिस्टम पर आधारित हैं. 

एक शोध के मुताबिक डीपफेक पद्धति में नकली घटनाओं को वास्तविक दिखलाने या बतलाने के लिए डीप लर्निंग नामक कृत्रिम बुद्धिमत्ता के रूप का प्रयोग किया जाता है. आम बोलचाल की भाषा में डीपफेक को डिजिटल फर्जीवाड़ा भी कहा जाता है. 

डीपफेक का इस्तेमाल गूगल, लिंक्डिन जैसे साइट्स पर हूबहू अकाउंट बनाने के लिए भी किया जा रहा है. डीपफेक का इस्तेमाल करने वाले लोगों  के निशाने पर दुनियाभर के मशहूर हस्तियों के अलावा सोशल मीडिया के कुछ चर्चित यूजर भी हैं.

संख्या से लेकर बनने तक… डीपफेक की पूरी कहानी
डीपफेक बनाने के लिए सबसे पहले संबंधित व्यक्ति की तस्वीर छांटा जाता है. यानी पहले यह तय किया जाता है कि किस व्यक्ति और किस परिस्थिति का डीपफेक आपको बनाना है? इसके बाद आगे की प्रक्रिया शुरु होती है. 

डीपफेक बनाने वाले एआई टूल पर जाकर सबसे पहले एनकोडर नामक एआई एल्गोरिदम के माध्यम से यह तय किया जाता है कि इसका चेहरा हूबहू किस हस्ती से मिलेगा. विशेषज्ञों का कहना है कि एनकोडर का काम दो चेहरों के बीच समानताएं ढूंढना है.

इसके बाद डिकोडर एआई एल्गोरिदम का इस्तेमाल किया जाता है. डिकोडर के जरिए जिस व्यक्ति का डीपफेक बनाना है, उसे फाइंड किया जाता है. इसके बाद फेस स्वैप की मदद से डीपफेक तस्वीर या वीडियो बनाया जाता है. 

इसे उदाहरण से समझिए-
किसी ए नामक व्यक्ति का डीपफेक बनाना है, तो सबसे पहले उस व्यक्ति का पूरा प्रोफाइल निकाला जाता है. फिर कहां उसकी तस्वीर को फिट करना है, यह एनकोडर के जरिए तय किया जाता है. 

जैसे ही एनकोडर के जरिए यह तय हो जाता है, वैसे ही फेस स्वाइप की मदद से डीकोडर द्वारा डीपफेक तस्वीर या वीडियो बना दिया जाता है. इस मामले में ए और बी दोनों व्यक्ति को नुकसान होने की संभावनाएं है. 

द गार्जियन के मुताबिक दुनियाभर में डीपफेक का पहला मामला साल 2017 में आया था. उस वक्त रेडिट पर कुछ मशहूर हस्तियों के क्लिप पोस्ट किए गए थे. इन हस्तियों में  गैल गैडोट, टेलर स्विफ्ट, स्कारलेट जोहानसन का नाम प्रमुख था. 

इसके बाद धीरे-धीरे डीपफेक का बाजार बढ़ता गया. सितंबर 2019 में एआई फर्म डीपट्रेस को 15,000 डीपफेक बनाने का निवेदन मिला था. इसमें से 96 प्रतिशत मामले अश्लीलता से जुड़ा हुआ था. 

डीपफेक का कैसे हो रहा है गलत इस्तेमाल?
अब तक जो मामले सामने आए हैं, उसके मुताबिक डीपफेक का इस्तेमाल सबसे ज्यादा पोर्न और पैसा एंठने के लिए किया जा रहा है. भारत में भी डीपफेक के जरिए पैसा एंठने के कई मामले सामने आ गए हैं.

भारत में अभी छोटे-छोटे स्तर पर डीपफेक के जरिए ठगी के केस सामने आए हैं. जैसे-

ठग को किसी ए नामक व्यक्ति से ठगी करना है, तो वो उसके परिचित बी नामक व्यक्ति का वॉयस किसी प्लेटफॉर्म से निकाल लेता है और उसके सहारे एक गुहार लगाने का ऑडियो रिकॉर्ड करता है. इसके लिए एआई टूल का उपयोग करता है. 

डीपफेक से तैयार इस वॉयस ओवर को फिर व्हाट्सऐप के माध्यम से भेजा जाता है. कई बार डीपफेक के इस्तेमाल से वीडियो कॉल करता है. यह कॉल अमूमन 30 से 40 सेकेंड का होता है.

पुलिस जानकारी में जो मामले सामने आए हैं, उसके मुताबिक इन वीडियो कॉल और वॉयस ओवर के साथ ही एक संदिग्ध अकाउंट नंबर भी रहता है, जिस पर तुरंत पैसे भेजने की अपील किया जाता है.

दुनिया के देश में डीपफेक रोकने के लिए क्या कानून है?
2019 में डीपफेक पर अमेरिका ने एक कानून बनाया था. हालांकि, वो कारगर साबित नहीं हो रहा है. 2019 के कानून के मुताबिक सुरक्षा एजेंसियों को यह देखने की जिम्मेदारी दी गई थी कि क्या अमेरिका को नुकसान पहुंचाने के लिए अन्य देश डीपफेक का इस्तेमाल कर रहे हैं. 

हाल ही में अमेरिका में डीपफेक कानून को लेकर एक प्रस्ताव तैयार किया गया है. इस प्रस्ताव में कहा गया है कि बिना अनुमति लिए किसी व्यक्ति का डीपफेक बनाया जाता है, तो वह अपराध की श्रेणी में आएगा. इस तरह के अपराध में जेल की सजा और जुर्माना का प्रावधान किया गया है.

साथ ही कहा गया है कि जिस व्यक्ति का डीपफेक बनाया जाता है, वो व्यक्ति भी मानहानि के तहत केस दर्ज करा सकते हैं.

चीन में बिना अनुमति डीपफेक बनाना गैरकानूनी है. इसका उल्लंघन करने पर कठोर दंड का प्रावधान किया गया है. चीन पहला देश है, जिसने डीपफेक को गैरकानूनी करार दिया है.

चीन और अमेरिका के अलावा दुनिया के किसी भी बड़े देश ने डीपफेक को लेकर कानून बनाने की पहल नहीं की है. हाल ही में यूरोपीय यूनियन ने डीपफेक पर बाहरी साजिश पर नजर रखने की हिदायत अपने सुरक्षा एजेंसियों को जरूर दी है. 

भारत में डीपफेक पर क्या है कानून?
डीपफेक पर भारत में कोई अलग कानून नहीं है. दिल्ली पुलिस ने रश्मिका मंदाना केस में जो एफआईआर दर्ज किया है, उसमें आईटी एक्ट के अलावा जालसाजी और प्रतिष्ठा की हानि से संबंधित धाराओं का उपयोग किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट के वकील ध्रुव गुप्ता कहते हैं,  “आईटी एक्ट की जो धाराएं भारत में है, वो बहुत ही कमजोर है. इसे मजबूत करने के लिए पुलिस कई बार आईपीसी की 465 और 469 जैसी धाराएं लगाती है. यह धाराएं जालसाजी और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा की हानि पहुंचाने से संबधित है.”

हालांकि, साइबर ठगी को रोकने के लिए यह धाराएं भी ज्यादा कारगर साबित नहीं हो पा रही है. इसकी वजह तुरंत जमानत मिल जाना है. देश के जामताड़ा और नूंह से इस तरह के कई मामले सामने भी आए हैं, जहां साइबर ठग जमानत मिलने के बाद फिर से उसी काम में सक्रिय हो जाता है.

ध्रुव गुप्ता कहते हैं- इन धाराओं में एफआईआर होने के 60-90 दिन के भीतर अगर चार्जशीट दाखिल नहीं होता है, तो आरोपितों को आसानी से जमानत मिल जाती है. 

साइबर एक्सपर्ट के मुताबिक भारत में साइबर फ्रॉड केस में अधिकतम 3 साल की सजा हो सकती है.

डीपफेक पर कंट्रोल के लिए किस तरह के कानून बनाने होंगे?

1. डीपफेक के लिए अलग से कानून- ध्रुव गुप्ता के मुताबिक डीपफेक से लड़ने के लिए आईटी एक्ट की जिन धाराओं का अभी उपयोग हो रहा है, वो इसे रोकने में ज्यादा सक्षम नहीं है. 

जानकारों का कहना है कि डीपफेक के लिए चीन की तरह ही भारत सरकार को भी अलग से कानून बनानी चाहिए. क्योंकि, इसमें साइबर ठगी के साथ-साथ पोर्नोग्राफी को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. 

भारत में दोनों तरह के मामलों में अलग-अलग कानून है. ऐसे में अगर डीपफेक पर कोई ठोस कानून नहीं बनता है, तो साइबर ठग इसका दुरुपयोग जारी रख सकते हैं.

2. यह सांगठनिक अपराध, केंद्र का दखल जरूरी- हाल ही में केंद्र ने आईटी एक्ट से जुड़े मामले को निपटाने पर एक जवाब लोकसभा में दिया था. केंद्र ने कहा था कि यह राज्य का मामला है और इसे पुलिस ही निपटाएं.

जानकारों का कहना है कि जिस तरह से डीपफेक और साइबर ठगी का दायरा अलग-अलग राज्यों में बढ़ता जा रहा है, उससे केंद्र का इस पर आंख मूंद लेना सही कदम नहीं है. 

जामताड़ा में पुलिस कप्तान रहे एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं- यह एक तरह से सांगठनिक अपराध है. इस काम में कई लोग शामिल रहते हैं. आप सीधे शब्दों में कहे, तो ठगों का पूरा नेक्सस है. 

वे कहते हैं- लेकिन कार्रवाई के नाम पर अधिकार सीमित है. आप जिसे पकड़ते हैं, उस पर ही कार्रवाई कर सकते हैं. इसे अगर सांगठनिक अपराध के दायरे में लाया गया, तो चीजें पुलिस के लिए आसान हो जाएगी.

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