साफ-सुथरी विधायिका से होगा भविष्य बेहतर
सुप्रीम कोर्ट ने न्याय प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए प्रयास किए हैं। देश में अदालतें बढ़ी हैं तो जजों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। न्यायिक कार्यप्रणाली में सुधार के इन प्रयासों का असर कालांतर में नजर आएगा। सांसदों-विधायकों के खिलाफ मामलों को जल्दी निपटानेे की अहमियत इस दृष्टि से ज्यादा है कि विधायिका का संचालन सांसद-विधायक करते हैं। अगर सांसद-विधायक ही आपराधिक आरोपों से लदे होंगे, तो आमजन का विधायिका पर विश्वास कैसे रह पाएगा? जनप्रतिनिधियों के खिलाफ खास तौर से आपराधिक मामलों में फैसलेे या तो आ ही नहीं रहे या फिर देरी से आ रहे हैं। यह एडीआर की ही रिपोर्ट है कि 40 प्रतिशत सांसदों और 44 फीसदी विधायकों पर आपराधिक मामले हैं। इनमें हत्या, अपहरण जैसे गंभीर अपराध वाले जनप्रतिनिधियों का प्रतिशत भी अच्छा खासा है। आम और खास के बीच यह अंतर न्याय के प्रति भरोसा डिगाने का काम भी करता है। जिनके खिलाफ मामले दर्ज हैं उनमें जो वास्तविक अपराधी हैं, उन्हें तो जेल में होना ही चाहिए। भला ऐसे लोग हमारे जनप्रतिनिधि बनने के पात्र भी क्यों रहें? चिंता इसी बात की है कि जिन्हें जेल में होना चाहिए, न्याय प्रक्रिया की यही देरी उन्हें हमारा भविष्य निर्धारित करने दे रही है और वे ही विधायिका का संचालन कर रहे हैं। एक अपराधी और आपराधिक मानसिकता का व्यक्ति देश और देशवासियों का भविष्य अच्छा बनानेे के बारे में गंभीर भला कैसे हो सकता है।
विधायिका को साफ-सुथरा करने के प्रयास होंगे तो देश का भविष्य स्वत: ही उज्ज्वल होगा। जनप्रतिनिधियों के मामलों में तो फैसला आने में देरी होनी ही नहीं चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अधीनस्थ न्यायालयों के लिए जो दिशा-निर्देश जारी किए हैं, उनकी पालना कारगर तरीके से हो, इसके लिए सरकार के सहयोग की जरूरत भी होगी। यह इसलिए क्योंकि अधिक संख्या में विशेष कोर्ट बनाने और उनमें न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार के सहयोग के बिना नहीं हो पाएगी।