राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी को पनौती मोदी कहा है …

बीजेपी या कांग्रेस, राहुल गांधी का बयान चुनाव में किसके लिए ‘पनौती’ बन सकता है?
राहुल गांधी के विवादित बयान को बीजेपी ने तुरंत लपक लिया. पत्रकारों से बात करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि यह अशोभनीय है और राहुल गांधी को माफी मांगनी चाहिए.
राजस्थान सियासत का रिवाज बदलने में जुटे राहुल गांधी के एक बयान ने बीजेपी को फ्रंटफुट पर ला दिया है. दरअसल, जालौर की एक रैली में राहुल गांधी ने नाम लिए बिना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पनौती बताया. राहुल के इस बयान को कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर शेयर किया है.

रैली में राहुल लोगों से बात करते हुए कहते हैं- हमारे लड़के मैच जीत रहे थे, लेकिन एक पनौती की वजह से मैच हार गए. 

कांग्रेस के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल से राहुल के बयान को लेकर एक वीडियो पोस्ट किया गया है, जिसके बैकग्राउंड में राहुल गांधी पनौती बोल रहे हैं और स्क्रीन पर स्टेडियम में बैठे नरेंद्र मोदी को दिखाया गया है.

राहुल के विवादित बयान को बीजेपी ने तुरंत लपक लिया. पत्रकारों से बात करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि यह अशोभनीय है और राहुल गांधी को माफी मांगनी चाहिए. अगर वो माफी नहीं मांगते हैं, तो देश की जनता उन्हें जवाब देगी. 

सोशल मीडिया पर लिखे एक पोस्ट में भाषाविद् सुरेश पंत कहते हैं- पनौती का आधार शब्द के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. इसलिए इसे 2 अर्थों से समझा जा सकता है. 

1. पन (जैसे- पनबिजली, पनचक्की, पनीला) + औती= पनौती यानी बाढ़, सैलाब.

2. पन- संस्कृत ‘पर्वन्’ से (अवस्था- जैसे बचपन; दशा) + औती, पनौती यानी शनि की बुरी दशा का समय. 

पंत के मुताबिक दोनों ही अर्थों में पनौती का मतलब कठिनाई या मुसीबत बढ़ाना ही है. वे कहते हैं- कई लोग तिरस्कार के रूप में ‘पनौती’ बोलते हैं. जैसे- सुबह-सुबह किस पनौती के दर्शन हो गए?

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के मुताबिक पनौती शब्द का इस्तेमाल उस व्यक्ति के लिए किया जाता है, जो अपने आस-पास के लोगों के लिए दुर्भाग्य या बुरी खबर लाता है. इसलिए इसे नकारात्मक शब्द भी कहते हैं.

पनौती वाला विवाद कहां से शुरू हुआ?
विश्वकप में अस्ट्रेलिया से भारत के हारने के बाद बीजेपी आईटी सेल के चीफ अमित मालवीय ने प्रियंका गांधी का वीडियो शेयर करते हुए एक पोस्ट किया. इस पोस्ट में मालवीय ने लिखा कि इंदिरा गांधी को अब लोग पनौती बोलेंगे. 

दरअसल, एक रैली में प्रियंका गांधी ने कहा था कि विश्वकप का मैच इंदिरा गांधी के जन्मदिन पर हो रहा है, इसलिए इस मैच में भारतीय टीम को जीत मिलेगी.

इसके बाद कांग्रेस के समर्थकों ने पनौती हैशटैग के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वीडियो पोस्ट करना शुरू कर दिया. ट्विटर डेटा अर्काइव के मुताबिक 19 नवंबर को शाम 6 बजे 5600 लोगों ने इस हैशटैग के साथ ट्वीट किया था. 

रात साढ़े 11 बजे तक यह संख्या 1 लाख 4 हजार पर पहुंच गई. अगले दिन भी लोगों ने जमकर पनौती हैशटैग के साथ पोस्ट शेयर किए.

पनौती बोलना नुकसान का सौदा होगा?
पहले भी कई चुनावों में विवादित बयानों की वजह से कांग्रेस अपना सियासी नुकसान करा चुकी है. 2017 में गुजरात चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री मोदी को नीच कह दिया था, जो करीबी मुकाबले में हार का एक अहम फैक्टर बन गया.

ऐसे में सियासी गलियारों में यह सवाल उठ रहा है कि क्या मोदी को पनौती कहना कांग्रेस के लिए राजस्थान में नुकसानदेह साबित होगा?

वरिष्ठ पत्रकार रास बिहारी कहते हैं- कांग्रेस अपनी गलती से सीख नहीं ले रही है. बीजेपी करीबी मुकाबले वाले चुनाव में विवादित बयान की ताक में रहती है, जिससे चुनावी सेंटिमेंट को प्रधानमंत्री मोदी पर ले जाया जाए. 

वे आगे कहते हैं- कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी को चाय वाला कहा, तो बीजेपी ने चाय पर चर्चा की रणनीति तैयार कर ली. वहीं जब उन्हें नीच कहा गया, तो इस शब्द को बीजेपी ने ओबीसी अपमान से जोड़ दिया. 

रास बिहारी के मुताबिक राजस्थान में भी बीजेपी का इसका फायदा लेने की कोशिश करेगी. यहां भी चुनाव करीबी मुकाबलों में फंसा हुआ है.

एबीपी- सी वोटर ने चुनाव से पहले ओपिनियन पोल जारी किया था. इस पोल में कांग्रेस को 42 प्रतिशत वोट मिलने की उम्मीद जताई गई थी. सर्वे में कहा गया था कि बीजेपी को 45 फीसदी और अन्य को 13 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं.

नुकसान के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार अभय दुबे कहते हैं- विवादित बयान तो प्रधानमंत्री मोदी ने भी दिए हैं. मोदी ने राहुल को मूर्खों का सरदार बताया, तो क्या इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा?

दुबे कहते हैं, ‘कर्नाटक चुनाव के वक्त प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस नेताओं से मिली गालियों को सार्वजनिक रैली में गिनवाया था, लेकिन बीजेपी तब भी हार गई.’

दुबे के मुताबिक किसी भी चुनाव में कई फैक्टर होते हैं, जिससे जीत-हार तय होती है.

वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह कहते हैं- यह मामला हार-जीत से आगे का है. राजनीति में इस तरह का बयान सुचिता के खिलाफ है. बड़े नेताओं को मजाकिया बयान देने से बचने चाहिए.

सिंह आगे कहते हैं- इस तरह के बयान से जनता को क्या मिलेगा? यह सिर्फ और सिर्फ मुद्दे को डायवर्ट करने के लिए है. इससे फायदा भले किसी पार्टी का हो, लेकिन नुकसान जनता का ही होगा. 

राजनीतिक विज्ञान के ‘प्रमुखता सिद्धांत’ के मुताबिक अपने वादों को ज्यादा लोकप्रिय बनाने के लिए राजनेता विवादित या मजाकिया बयान देते हैं. जानकारों का कहना है कि राजस्थान में मुख्य मुकाबला मोदी की गारंटी वर्सेज कांग्रेस की गारंटी है.

ऐसे में इस टिप्पणी को मोदी की छवि को कमजोर करने के रूप में भी देखा जा रहा है. 

जब जुबान फिसली और सत्ता गई…
विवादित बयान कई बार नेताओं और उनकी पार्टियों के लिए मुसीबत का कारण बन चुका है. 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार गलत बयान देने की वजह से अटल बिहारी वाजपेई को हार का सामना करना पड़ा था. 

दरअसल, 1962 के लोकसभा चुनाव में बलरामपुर सीट से कांग्रेस ने जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेई के सामने सुभद्रा जोशी को उतार दिया. चुनावी रैली में सुभद्रा बारहो मास छत्तीसो दिन (पूरे साल) लोगों के बीच रहकर सेवा करने की बात कह रही थीं.

इसी के विरोध में बोलते हुए अटल बिहारी वाजपेई की जुबान फिसल गई. उन्होंने यहां तक कह दिया कि महिलाएं महीने में 4 दिन सेवा करने लायक रहती ही नहीं हैं. बाद में उन्होंने अपने इस बयान पर खूब सफाई दी, लेकिन सुभद्रा इसे भुनाने में कामयाब रही. 

बलरामपुर से अटल बिहारी चुनाव हार गए. 2007 में गुजरात के चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच काफी करीबी मुकाबला था, लेकिन सोनिया गांधी के एक बयान ने कांग्रेस को सत्ता की रेस से बाहर कर दिया. 

चुनाव प्रचार के दौरान तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने भाषण में मौत का सौदागर शब्द का प्रयोग किया. सोनिया के इस बयान को बीजेपी में गुजरात अस्मिता से जोड़ा और मुद्दा बना दिया. सोनिया गांधी ने यह बयान गुजरात दंगे के संदर्भ में दिया था. 

2013 में बीजेपी ने गोवा अधिवेशन के बाद नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित किया. कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर ने इसपर त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मोदी चाय बेचने वाले का बेटा है और उन्हें चाय बेचना चाहिए.

अय्यर का बयान कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हुआ. बीजेपी लड़ाई को गांधी परिवार वर्सेज आम आदमी बनाने में कामयाब रही. कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट गई.

2015 में 2 बयान ने बीजेपी के विजयी रथ को रोकने में अहम भूमिका निभाई. बिहार चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार के डीएनए पर टिप्पणी की, जिसे जेडीयू ने बिहार का अपमान बताया और पूरे बिहार में डीएनए यात्रा निकाली गई.

इसी चुनाव से पहले आरएसएस प्रमुख ने आरक्षण की समीक्षा की बात कह दी, जिसे महागठबंधन ने मुद्दा बना दिया. महागठबंधन के नेता चुनाव में पिछड़े को गोलबंद करने में कामयाब रहे और बिहार में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा.

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