हमारे नेता या दल एआई के प्रभावों को समझ पा रहे हैं?

हमारे नेता या दल एआई के प्रभावों को समझ पा रहे हैं? 

अब तक सात ह्यूमनॉइड रोबोट दस्तक दे चुके हैं- सोफिया, एटलस, अमेका, नाडिन, एसियो, इरिका, और ओसिना (1)। एआई संचालित, अनेक भाषाओं में दक्ष सोफिया, सऊदी अरब की रोबोट नागरिक हैं। दुनिया सांसे रोके ओपन एआई के चैट जीपीटी, माइक्रोसॉफ्ट बिंग, गूगल बार्ड और एलन मस्क के नए प्लेटफॉर्म की प्रतीक्षा में है। कंप्यूटर और रोबोट विशेषज्ञों के आकलन के औसत अनुमानों को लें तो 9 से 21 महीनों के बीच (या बामुश्किल 2 से 5 वर्षों में) एजीआई (आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस) का दौर होगा।

एजीआई यानी मानव स्तर की बुद्धि। आइंस्टीन का आईक्यू 160 आंका गया था। चैट- जीपीटी 4 का आईक्यू 155 है। औसत इंसान से ज्यादा स्मार्ट। अगले दो-तीन वर्षों में पांच-छह चैट- जीपीटी आएंगे। कंप्यूटर वैज्ञानिक मानते हैं कि इनमें मानव से तीन हजार से पांच हजार गुना अधिक बुद्धिमत्ता होगी।

इसे जानने वालों का दावा है कि ग्राहक-सेवा, शिक्षा, कला, शोध, मनोरंजन, मेडिकल जांच वगैरह में एआई इंसान से बहुत आगे निकल जाएगा। बुजुर्गों, बच्चों की ये विश्वसनीय देखभाल करेंगे। मानव-भावनाओं से संपन्न इंसानों की तरह बर्ताव करेंगे। इन क्षेत्रों के रोजगार अंततः इनके पास ही जाएंगे।

वजह, ये सस्ते रहेंगे, दक्ष होंगे। 24 घंटे काम करेंगे। हर समय साथ होंगे। बिल गेट्स की ताजा भविष्यवाणी है कि दुनिया आगामी पांच सालों में पूरी तरह से बदल जाएगी। कारण, सस्ते दर पर रोबोट-एजेंट बाजार में मौजूद होंगे। निजी सहायक के रूप में ये इंसान की हर मदद करेंगे।

भारत में पांच राज्यों में चुनाव हुए । लेकिन इन चुनावों में दुनिया को बदल देने वाली इस महा आंधी की आहट थी क्या? आगामी पांच वर्षों में क्या अवसर और चुनौतियां हैं, क्या राजनीतिक दल इन सवालों के प्रति सचेत हैं? 2014 के बाद कई क्षेत्रों में, टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से भारत दुनिया को राह दिखा रहा है।

देश में तीन हजार से अधिक ‘डीप तकनीकी स्टार्टअप’ कार्यरत हैं। गुजरे दस वर्षों में इनकी विकास दर 53 प्रतिशत से ऊपर है। विशेषज्ञ बताते हैं कि 2025 तक इस क्षेत्र से भारत की अर्थव्यवस्था में 450 से 500 अरब डॉलर योगदान करने की क्षमता है। पर इसके लिए बहुत काम होने हैं।

लेकिन क्या भारत की क्षेत्रीय राजनीति में यह सवाल अहमियत रखता है? राज्यों की नियति तय करने वाले नेता या दल इस तकनीकी सुनामी के महत्व, भावी प्रभाव या गंभीरता को समझते हैं? समाज उग्र नारों, लुभावने वादों, बेमौसम भाषणों से बदलता है या टेक्नोलॉजी से? दो विचारकों- ग्रेग बरमन व ऑब्रे फॉक्स की किताब ‘ग्रैजुअल’ (2023) बहुत कुछ बताती है।

पिछले 250-300 वर्षों में संसार को किन चीजों ने बदला? क्रांतिकारी नारों और मोहक वायदों ने? या औद्योगिक क्रांति से शुरू तकनीकी बदलावों की शृंखला ने? निष्कर्ष है कि गुजरी दो-तीन सदियों में नारों और तकनीक की दौड़ में, खरगोश और कछुए की स्पर्धा रही है। मोहक नारों की उग्र राजनीति (खरगोश) और तकनीक बदलावों (कछुआ) की ऊर्जा के बीच।

1970 के दशक में, एल्विन टॉफ्लर की किताब आई थी- ‘फ्यूचर शॉक’। डेढ़ करोड़ प्रतियां बिकी थीं। तब संसार सूचना क्रांति की दहलीज पर था। लेकिन राजनीति को इसकी भनक तक नहीं थी। भविष्य की दुनिया की आहट पाकर दुनिया के राजनेताओं में टॉफ्लर से परामर्श की होड़ लग गई। अमेरिका के बड़े नेता, उद्योग जगत के बादशाह, ली क्या न्यू (सिंगापुर), जाहो जियांग (चीन), किम जोंग (नॉर्थ कोरिया) व मैक्सिको समेत दुनिया के शीर्ष स्टेट्समैन उनसे भविष्य समझने को आतुर थे।

चीन ने (1980) उनकी एक किताब ‘थर्ड वेव’ पूरे देश के स्कूली बच्चों में मुफ्त बांटी थी। मकसद था कि आने वाली पीढ़ियां भविष्य को जानें-समझें। खुद को बदलें। तब विचारक अलेक्जेंडर ने (1998) लिखा- चीन, कोरिया, वियतनाम के क्रांतिकारी, कार्ल मार्क्स के पेरिस कम्यून को साकार करना चाहते थे, पर उनके साम्यवादी उत्तराधिकारी अपने मुल्कों में टॉफ्लर प्रभाव में सिलिकॉन वैली को मूर्त रूप देने में लगे हैं।

मानव समाज के बदलाव में यह है, टेक्नोलॉजी की सुनामी का असर। एआई अविश्वसनीय रूप से दुनिया की जीवनशैली, प्रशासन, व्यवस्था समेत हर चीज पर असर डालने वाली है। राज्यों के विकास की असल कमान राज्यों के नेताओं के हाथ है। पर राज्यों के नेता या क्षेत्रीय दल दरवाजे पर दस्तक दे रही इस टेक्नोलॉजी के लिए कितने तैयार हैं ?

एआई अविश्वसनीय रूप से दुनिया की हर चीज पर असर डालने वाली है। राज्यों के विकास की असल कमान उनके नेताओं के हाथ है। पर राज्यों के नेता या क्षेत्रीय दल दरवाजे पर दस्तक दे रही इस टेक्नोलॉजी के लिए कितने तैयार हैं?

(ये लेखक के अपने विचार है।)

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