टाइगर स्टेट में … पांच साल में 89 को मारा

टाइगर स्टेट में 11 महीने में 14 बाघों का शिकार….पांच साल में 89 को मारा; कोरोना काल में शिकारी सबसे ज्यादा एक्टिव

बाघों के शिकार को लेकर मध्यप्रदेश का वन अमला डी-1 रिपोर्ट तैयार करता है। इसमें बाघों के शिकार का तरीका, मौत की वजह, यदि गिरफ्तारी हुई है तो आरोपियों का ब्योरा भी दर्ज किया जाता है। दैनिक भास्कर के पास डी-1 की ताजा रिपोर्ट है।

रिपोर्ट के अनुसार पांच साल में 89 बाघों में से 19 को करंट लगाकर मारा गया। दो को गोली और दो को जहर दिया गया था। वन अमला अब तक यह पता नहीं कर सका कि 63 बाघों का शिकार कैसे हुआ? साल 2023 के आंकड़ों पर नजर डाले तो 14 बाघों में से पांच को शिकारियों ने करंट लगाया और एक को गोली मार दी। बाकी आठ का शिकार कैसे किया गया? वन अफसर इसकी जांच कर रहे हैं।

मप्र में बाघों की संख्या 785 है। सात टाइगर रिजर्व कान्हा, बांधवगढ़, सतपुड़ा, पेंच, पन्ना, संजय-डुबरी के बाद एक नया टाइगर रिजर्व वीरांगना दुर्गावती भी बनाया है। रिपोर्ट बताती है कि सभी टाइगर रिजर्व में शिकारी अब भी सक्रिय है। 

बाघ के शिकार के ताजा तीन मामले

रातापानी सेंचुरी में बाघ का शिकार, न डेड बॉडी मिली न शिकारी
राजधानी भोपाल से महज 10 किलोमीटर दूर रातापानी अभयारण्य (सेंचुरी) में 17 अक्टूबर को बाघ के शिकार का केस दर्ज किया गया। वन अफसरों को पेट्रोलिंग के दौरान मादा बाघ का शिकार होने की सूचना मिली थी। हैरानी की बात यह है, बाघ की मौत के डेढ़ महीने बाद भी वन विभाग के अफसर बाघ का शव, नाखून, स्किन और मूंछ के बाल जब्त नहीं कर सके।

इतना ही नहीं, मादा बाघ के शिकार के मामले में अब तक किसी की गिरफ्तारी भी नहीं हो सकी है। रातापानी अभयारण्य के रेंज ऑफिसर के स्तर पर मामले की जांच जारी है।

सिवनी में करंट लगाकर बाघ का शिकार
सिवनी जिले के रुखहर इलाके में इसी साल जनवरी के दूसरे हफ्ते में शिकारियों ने बाघ का शिकार किया। वन अमले को 11 जनवरी 2023 को पेट्रोलिंग के दौरान बाघ का शव मिला। वन अमले ने मुखबिर से मिले इनपुट के आधार पर नागेश्वर कुमरे और संतोष कुमरे को हिरासत में लेकर पूछताछ की। दोनों ने करंट लगाकर बाघ का शिकार करना कबूला। दोनों के खिलाफ वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की अलग-अलग धाराओं में केस दर्ज कर गिरफ्तार किया गया।

शहडोल में बाघ को गोली मारी
शहडोल जिले के ब्योहारी की बेदरा बीट में इसी साल 17-18 मई को वन अमले को पेट्रोलिंग के दौरान एक वृद्ध बाघ का शव मिला। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला कि उसे गोली मारी गई थी। वन अमले ने अलग-अलग सूत्रों से मिले इनपुट के आधार पर सुजीत बैगा, सुग्रीव पनिका और दीवांशु सिंह बघेल को हिरासत में लेकर पूछताछ की।

तीनों संदेहियों ने शुरुआत में बाघ का शिकार करना कबूल नहीं किया, लेकिन वन अमले ने जब तीनों संदिग्धों को मृत बाघ के शरीर से मिली बंदूक की गोली के बारे में बताया, तो आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया। वन अफसरों ने तीनों आरोपियों के खिलाफ वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत केस दर्ज किया है।

शहडोल में इसी साल मई में बाघ का गोली मारकर शिकार किया गया था।
शहडोल में इसी साल मई में बाघ का गोली मारकर शिकार किया गया था।

करंट लगाकर शिकार करना सबसे कॉमन तरीका
वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया (WPSI) के सेंट्रल इंडिया डायरेक्टर नितिन देसाई कहते हैं कि केंद्रीय एजेंसी समय-समय पर शिकारियों के सक्रिय होने का रेड अलर्ट जारी करती है। इसी साल जून में असम में सेंट्रल एजेंसी ने बाघ के शिकारियों को पकड़ा था। उन्होंने पूछताछ में मप्र, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में मूवमेंट की जानकारी दी थी। इसके बाद सेंट्रल एजेंसी ने जुलाई में मप्र, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार और यूपी के लिए रेड अलर्ट जारी किया था। इसके बाद भी 27 सितंबर को सिवनी जिले की कुरई रेंज में जामरापानी इलाके में करंट लगाकर बाघ का शिकार किया गया।

बाघ की गर्दन और रीढ़ की हड्‌डी पर लाठी से हमला करना
नितिन देसाई ने बताया- शिकारी बाघ को मारने से पहले उसे ट्रैप (फंदा) में फंसाते हैं। फंदे में जब बाघ का एक पैर फंस जाता है, तब बाघ की गर्दन और रीढ़ की हड्‌डी पर लाठी से हमला करते हैं। इससे उसकी रीढ़ की हड्डी टूट जाती है, जिससे वो जवाबी हमला नहीं कर पाता। कुछ शिकारी बाघ के फंदे में फंसने पर उसके मुंह में भाला घुसा देते हैं। इससे बाघ के मुंह के अंदर गंभीर जख्म हो जाते हैं। ब्लीडिंग के बाद बाघ मर जाता है। ट्रैप में बाघ को फंसाकर शिकार केवल दो विशेष जाति के लोग करते हैं। ये लोग हरियाणा, पंजाब और मप्र के आदिवासी इलाकों में रहते हैं।

शिकारियों का नेटवर्क

तस्करों के बिचौलियों से ऑर्डर लेकर करते हैं शिकार
रिटायर्ड आईएफएस एके बड़ोनिया ने बताया कि कटनी और पन्ना जिले में पारदी समुदाय रहता है। इस समुदाय के लोग बाघ का शिकार करते हैं। यह लोग नेशनल और इंटरनेशनल तस्करों के बिचौलियों से बाघ की स्किन, नाखून, मूंछ के बाल और दांत का ऑर्डर मिलने पर शिकार करते हैं।

ये लोग बाघ को पहले फंदे में फंसाते हैं। इसके बाद बाघ की स्किन उसकी मौत से पहले निकाल लेते हैं। बाघ की मौत के बाद उसके नाखून, मूंछ के बाल, दांत निकालकर, शव को काटकर नदी, अनुपयोगी कुंओं में फेंक देते हैं। कुछ शिकारी बाघ के शव को जमीन में दफना देते हैं या जला देते हैं।

पंजाब का कल्ला बावरिया गिरोह था एमपी में एक्टिव
मप्र स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स (STSF) ने 18 अगस्त को विदिशा-सागर हाईवे पर इंटरनेशनल बाघ तस्कर आदिन सिंह उर्फ कल्ला बावरिया को गिरफ्तार किया था। वह पंजाब के होशियारपुर जिले के दसुआ गांव का रहने वाला था। गिरफ्तारी के वक्त कल्ला से बाघ की मूंछ के बाल और नाखून बरामद किए गए थे।

STSF को पूछताछ में कल्ला ने बताया कि वह विदिशा और सागर हाईवे पर डेरा लगाकर छिपा था। उसके खिलाफ देश के कई राज्यों में तस्करी के मामले दर्ज हैं। पड़ोसी देश नेपाल की नेपाल सेंट्रल इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो को कल्ला बावरिया की तलाश थी।

मप्र स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स के ओआईसी धीरज सिंह चौहान के मुताबिक कल्ला की गिरफ्तारी वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो नई दिल्ली से मिले इनपुट के आधार पर हुई थी। उसके गिरोह के तमाम सदस्यों की गिरफ्तारी तमिलनाडु, महाराष्ट्र, असम और मेघालय में वन विभाग, स्थानीय पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियां कर चुकी थीं। इन्हीं एजेंसियों से बचने के लिए आरोपी विदिशा और सागर में डेरा लगाकर रह रहा था। प्रदेश में शिकारियों का कोई संगठित गिरोह फिलहाल एक्टिव नहीं है। प्रदेश में इस साल जो शिकार के मामले सामने आए हैं, उनमें अधिकांश लोकल शिकारियों के हैं।

कल्ला बावरिया को STSF ने अगस्त में गिरफ्तार किया। उसकी तलाश नेपाल की एजेंसी को भी थी।
कल्ला बावरिया को STSF ने अगस्त में गिरफ्तार किया। उसकी तलाश नेपाल की एजेंसी को भी थी।

एमपी में शिकारी एक्टिव, क्योंकि यहां से फरार होना आसान
वन विभाग के सूत्र बताते हैं कि मप्र से टाइगर का शिकार कर फरार होना सबसे आसान है। मप्र में नोटिफाइड टाइगर रिजर्व के अलावा गैर संरक्षित क्षेत्र में भी टाइगर की संख्या अच्छी खासी है। वन ग्रामों से टाइगर रिजर्व में एंट्री लेना बेहद आसान है। ये वनग्राम टाइगर रिजर्व एरिया के बफर जोन में होते हैं। यहां से कोर एरिया में आसानी से पहुंचा जा सकता है। टाइगर का शिकार करने के बाद शिकारी वन ग्राम के आस पास छिप जाते हैं। जब तक वन अमले को शिकार के मामले की जानकारी मिलती है तब तक शिकारी अपना काम पूरा कर देते हैं।

दूसरे राज्यों तक पहुंचने के भी विकल्प
शिकारियों के पास मप्र से दूसरे राज्यों तक पहुंचने के कई सारे विकल्प हैं। जैसे इटारसी और कटनी जंक्शन से देश के किसी भी हिस्से में ट्रेन के जरिए पहुंचा जा सकता है। बॉर्डर पास के शहरों से दूसरे राज्यों में एंट्री भी आसान हो जाती है। कान्हा और पेंच टाइगर रिजर्व से छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की बॉर्डर पास है। बांधवगढ़, पन्ना, संजय-डुबरी टाइगर रिजर्व से यूपी की बॉर्डर लगती है। वन अमला भी कागजी कार्रवाई में ढिलाई बरतता है। प्रदेश में पांच साल में शिकारियों ने 89 बाघों का शिकार किया। डी-1 रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 25 बाघों के शिकार की जांच रिपोर्ट पेंडिंग है। जब कि बाघों का शिकार हुए 2 महीने से 3 साल का वक्त बीत चुका है।

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