कांग्रेस ने कमलनाथ और भूपेश बघेल को किया किनारे, क्या अब गहलोत की बारी?
BJP के फॉर्मूले से कांग्रेस ने कमलनाथ और भूपेश बघेल को किया किनारे, क्या अब गहलोत की बारी?
राजस्थान में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जिस तरह से कांग्रेस ने बदलाव किया है, उसके बाद अब लोगों की नजर राजस्थान पर टिकी है. पार्टी ने राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष के लिए किसी नेता को अभी नहीं चुना है, लेकिन लगता है कि अशोक गहलोत का पत्ता इस बार कट सकता है.
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सियासी जंग जीतकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सत्ता में लौटी तो तीनों ही राज्यों मे अपने पुराने क्षत्रपों की जगह नए चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने का दांव चला. कांग्रेस भले ही तीनों राज्यों में चुनाव हार गई हो, लेकिन बीजेपी के फॉर्मूले पर वो भी चलकर अपने पुराने क्षत्रपों को किनारे लगाना शुरू कर दिया है.
कांग्रेस ने एमपी में पार्टी की कमान कमलनाथ से लेकर जीतू पटवारी को सौंप दिया है तो नेता प्रतिपक्ष का जिम्मा उमंग सिंधार और उपनेता हेमंत कटारे को बनाया है. इसी तरह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस हाईकमान ने भूपेश बघेल की जगह चरणदास महंत को नेता प्रतिपक्ष बनाया है. राजस्थान में कांग्रेस ने अभी तक भले ही कोई फैसला नहीं किया, लेकिन माना जा रहा है कि कमलनाथ-बघेल की तरह अशोक गहलोत को भी किनारे लगाने का स्ट्रैटेजी है?
सियासत में ढाई दशक के दबदबे का अंत
पिछले ढाई दशक से राजस्थान में वसुंधरा राजे, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के इर्द-गिर्द बीजेपी की सियासत सिमटी रही, उसी तरह से कांग्रेस में भी तीन क्षत्रप काबिज थे. राजस्थान में अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव कांग्रेस के चेहरा थे. बीजेपी और कांग्रेस अपने-अपने इन्हीं क्षत्रपों को आगे रखकर चुनाव लड़ती रही है, जिसके चलते पार्टी की नई लीडरशिप खड़ी नहीं हो पा रही थी, लेकिन बीजेपी चुनावी जंग जीतकर और कांग्रेस ने हारकर पुराने चेहरों को किनारे किया.
बीजेपी ने इस बार सीएम का चेहरा किसी को घोषित नहीं किया था. पार्टी ने पीएम मोदी के नाम पर तीनों राज्य में चुनाव लड़ा. ऐसे में चुनावी जंग जीतने के साथ ही तीनों ही चेहरों को एक झटके में बाहर कर दिया और उनकी जगह एमपी में मोहन यादव, छत्तीसगढ़ विष्णुदेव साय और राजस्थान में भजनलाल शर्मा को सीएम बनाया है. वहीं, कांग्रेस ने चुनावी मात खाने के बाद अपने पुराने नेताओं की जगह नए नेताओं को सियासी तवज्जो देने का प्लान बनाया है. इसकी झलक मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बदलाव में साफ दिखा है.
कमलनाथ पर सबसे पहले गाज
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की हार की गाज सबसे पहले कमलनाथ पर गिरी. कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने प्रदेश अध्यक्ष की कमान कमलनाथ से लेकर जीतू पटवारी को सौंपी है. पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष का जिम्मा आदिवासी समुदाय से आने वाले उमंग सिंधार और उपनेता का पद ब्राह्मण समुदाय से आने वाले हेमंत कटारे को सौंपी गई है. जीतू पटवारी अपनी सीट से चुनाव हार गए थे, लेकिन उसके बाद भी पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया. बीजेपी ने जिस तरह से ओबीसी-ब्राह्मण-आदिवासी केमिस्ट्री बनाई है, उसी तरह से कांग्रेस ने ओबीसी-आदिवासी-ब्राह्मण समीकरण बनाने का दांव चला है. कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे क्षत्रपों को कांग्रेस ने पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया और तीनों ही युवा चेहरों को तवज्जे दी है.
जीतू पटवारी राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं तो उमंग सिंधार प्रियंका गांधी के करीबी नेताओं में गिने जाते हैं. चुनाव के दौरान जीतू पटवारी ने राहुल गांधी की अपने गढ़ में रैली कराई तो एक सप्ताह के बाद उमंग सिंधार ने प्रियंका गांधी की रैली कराकर अपनी सियासी पकड़ को दिखाया था. कांग्रेस अब इन्हीं तीनों नेताओं को आगे करके 2024 के चुनाव में बीजेपी से मुकाबला करेगी. कांग्रेस ने अपने युवा नेताओं के जरिए बीजेपी के तर्ज पर अपने सियासी समीकरण बनाए हैं.
वहीं, कांग्रेस हाईकमान ने छत्तीसगढ़ में प्रदेश अध्यक्ष नहीं बदला है, लेकिन नेता प्रतिपक्ष का जिम्मा चरणदास महंत को चुना है. विधानसभा में वो नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में होंगे. बीजेपी ने रमन सिंह की जगह पर आदिवासी समुदाय से आने वाले विष्णुदेव साय को सीएम बनाया है, जो आदिवासी समुदाय से आते हैं. इसी फॉर्मूले पर कांग्रेस भी चल रही है. बीजेपी ने आदिवासी समुदाय से सीएम बनाया तो कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष का जिम्मा आदिवासी समुदाय के दीपक बैज को दे रखा है. बीजेपी ओबीसी समुदाय से डिप्टी सीएम बनाया तो कांग्रेस ने ओबीसी समुदाय से आने वाले चरणदास महंत नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी सौंपी है. टीएस सिंहदेव भले ही चुनाव हार गए हों, लेकिन भूपेश बघेल तो अपनी सीट बचाए रखने में कामयाब रहे हैं. इसके बावजूद कांग्रेस ने चरणदास महंत को आगे बढ़ाने का फैसला किया है.
राजस्थान में किस पर गिरेगी गाज?
राजस्थान में भी कांग्रेस को सत्ता गवांनी पड़ी है. एमपी और छत्तीसगढ़ में जिस तरह से कांग्रेस ने बदलाव किया है, उसके बाद अब लोगों की नजर राजस्थान में लगी है. पार्टी ने राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष के लिए किसी नेता को अभी नहीं चुना जबकि पूर्व सीएम अशोक गहलोत से लेकर सचिन पायलट और गोविंद सिंह डोटासरा अपना-अपना चुनाव जीतने में सफल रहे हैं. बीजेपी की प्रदेश की सियासत में दो दशक से काबिज वसुंधरा राजे की जगह भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी है.
इस तरह वसुंधरा राजे की जगह बीजेपी अब नई लीडरशिप को आगे बढ़ा रही है, उसके चलते ही माना जा रहा है कि कांग्रेस भी अपने भविष्य की सियासत के लिहाज से बुजुर्ग नेताओं की जगह युवा नेताओं को आगे बढ़ा सकती है. इसके लिए नेता प्रतिपक्ष से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक में बदलाव किया जा सकता है.
सीएम गहलोत सत्ता की कमान संभालते हैं, लेकिन नेता प्रतिपक्ष की जगह पर कांग्रेस संगठन की राष्ट्रीय राजनीति में खुद को स्थापित कर लेते हैं. इसके चलते माना जा रहा है कि इस बार भी वो अपने पुराने फॉर्मूले पर रहेंगे, लेकिन इस बार नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर उनकी मर्जी का नहीं बल्कि राहुल गांधी की पसंद का नेता हो सकता है. इसी तरह से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष में भी किसी युवा चेहरों के हाथों में पार्टी की बागडोर सौंपी जा सकती है. राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में कांग्रेस के सचिन पायलट, गोविंद सिंह डोटासरा, हरीश चौधरी नेता रेस में है. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस क्या फैसला करती है?