सांसदों का निलंबन यानी लोगों की आवाज बंद कर देना!

सांसदों का निलंबन यानी लोगों की आवाज बंद कर देना!

इन पंक्तियों के लेखक को 14 दिसम्बर, 2023 को एक नोटिस प्रस्तुत करने, ‘संसद में राष्ट्रीय सुरक्षा के गंभीर उल्लंघन’ पर गृह मंत्री से एक बयान देने की मांग करने और चर्चा का आग्रह करने के लिए संसद से निलंबित कर दिया गया था! तब से यह स्तम्भकार ‘मौन व्रत’ (साइलेंट प्रोटेस्ट) पर है! 9 दिनों तक स्वयं पर थोपे गए इस मौन के बाद यह स्तम्भकार की ओर से पहला बयान है। कोई टिप्पणी नहीं, सिर्फ तथ्य!

14 दिसम्बर को दोपहर बारह बजे पहले सांसद को निलंबित कर दिया गया। इन पंक्तियों के प्रेस में जाने तक 145 और सांसदों को संसद के दोनों सदनों से प्रतिबंधित कर दिया गया है। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में इसे समझने के लिए इस पर विचार करें- कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए1 और यूपीए2) की सरकार के 10 वर्षों के समूचे कार्यकाल में लगभग कुल 50 सांसदों को ही संसद से निलंबित किया गया था।

एक त्वरित गणना से पता चलता है कि लोकसभा से निलंबित हुए 100 संसद सदस्य 15 करोड़ से भी अधिक लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहीं राज्यसभा से निलंबित किए गए 46 सांसद लगभग 19 करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे शब्दों में, 34 करोड़ लोगों (देश की लगभग 25 प्रतिशत आबादी) की आवाज दबा दी गई है!

146 निलंबित सांसदों की राज्यवार सूची और वे कितने मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसे देखने पर पता चलता है कि असम से तीन सांसदों को निलंबित किया गया है, जो 83 लाख मतदाताओं के जनप्रतिनिधि हैं। बिहार के 3.7 करोड़ मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसदों को प्रतिबंधित किया गया है।

गोवा और हिमाचल प्रदेश राज्यों से एक-एक सांसद सस्पेंड हुए, वे क्रमश: 6 और 13 लाख मतदाताओं के प्रतिनिधि हैं। गुजरात के 1.2 करोड़ मतदाताओं के प्रतिनिधि तीन सांसद भी निलंबित कर दिए गए हैं। जम्मू और कश्मीर से 40 लाख मतदाताओं के प्रतिनिधि तीन सांसद निलंबित हुए हैं।

इसी तरह झारखंड (50 लाख मतदाता), कर्नाटक (1.95 करोड़ मतदाता), केरल (4.4 करोड़ मतदाता), लक्षद्वीप (55 हजार मतदाता), मध्य प्रदेश (62 लाख मतदाता), महाराष्ट्र (2.3 करोड़ मतदाता), राजस्थान (2.2 करोड़ मतदाता) के सांसदों की आवाज भी अब खामोश करा दी गई है।

निलंबित होने वाले सांसदों में ओडिशा (14.3 लाख मतदाता), पुडुचेरी (9.7 लाख मतदाता), पंजाब (1.1 करोड़ मतदाता), तमिलनाडु (6 करोड़ मतदाता), उत्तर प्रदेश (1.5 करोड़ मतदाता), पश्चिम बंगाल (5.8 करोड़ मतदाता) के जनप्रतिनिधि भी शामिल हैं।

इन सबकी आवाज अब संसद के जरिए देशवासियों तक नहीं पहुंच सकेगी!
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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