भागकर भारत आने पर मजबूर हो रहे हैं म्यामांर के लोग …?

भागकर भारत आने पर मजबूर हो रहे हैं म्यामांर के लोग और मिजोरम में उन्हें क्यों मिल रही पनाह?
म्यांमार में लगातार चल रहे गृहयुद्ध के बीच कई विस्थापित लोग मिजोरम का रुख कर रहे हैं. जिसके लिए मिजोरम में 160 से अधिक राहत शिविर लगाए गए हैं.

भारत-म्यांमार सीमा पर चिंताजनक स्थिति बनी हुई है. पिछले दो महीने से म्यांमार से लगातार लोग भारत आ रहे हैं, जिसकी वजह देश में जुंटा आर्मी और मिलिशिया पीडीएफ के बीच बढ़ती तनाव की स्थिति है. इसके चलते वहां लगातार गोलीबारी हो रही है.

दरअसल म्यांमार में फरवरी 2021 में लोकतांत्रिक सरकार को हटाकर सेना ने कब्जा कर लिया था. उसी समय से म्यांमार में गृहयुद्ध छिड़ा हुआ है. जिससे देश के लाखों लोग प्रभावित हैं. इसी साल नवंबर में भारत से सटी म्यांमार सीमा पर हथियारबंद समूहों द्वारा हमले की खबरें आ रही हैं.

जिसके बाद सीमावर्ती भारतीय क्षेत्रों में हलचल काफी बढ़ चुकी है. वहीं गोलीबारी में कुछ नागरिकों की मौत भी हो चुकी है, इससे परेशान होकर म्यांमार की सीमा को पार कर कई लोग भारत में प्रवेश कर रहे हैं.

सीमा पार कर मिजोरम पहुंच रहे म्यांमार के लोग
म्यांमार के राज्य चिन और भारत के मिजोरम के बीच 510 किलोमीटर लंबी सरहद है. दोनों ही ओर दोनों देशों के लोगों को 25 किलोमीटर तक जाने पर कोई रोक नहीं है. वहीं म्यांमार के चिन और मिजोरम के मिजों लोगों के बीच मेलमिलाव बहुत अच्छा है. क्योंकि दोनों ही समूहों का मानना है कि उनके पूर्वज एक ही थे.

लिहाजा दोनों की संस्कृति और मान्यताएं भी एक जैसी ही हैं. ऐसे में दोनों समुदायों के बीच काफी अच्छे रिश्ते हैं. इस समुदाय के लोग आपस में एक-दूसरे को भाई-बहन मानते हैं और एक-दूसरे का समर्थन भी करते हैं.

इसी कारण म्यांमार के विस्थापितों को मिजोरम में पूरा सहयोग मिलता रहा है और दोनों देशों की सीमाओं को पार करना लोगों के लिए आसान रहा है. हाल फिलहाल की स्थिति में अनुमान है कि म्यांमार के 5 हजार विस्थापित लोग दोनों देशों के बीच की सीमा से प्रवेश करके मिजोरम पहुंचे हैं.

इसके अलावा 12 नवंबर की शाम को चिन नेशनल आर्मी और उसके समर्थित समूहों ने भारतीय सीमा के पास रिखाद्वार कैंप और खावमापी कैंप पर बड़ा हमला किया. जिसके चलते म्यांमार सेना के 43 सैनिक भागकर मिजोरम पहुंचे और भारतीय पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.

हाल ही में मिजोरम के नव-शपथ ग्रहण करने वाले मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने बयान दिया है कि उनकी सरकार म्यांमार से आए शरणार्थियों को सुरक्षित आश्रय प्रदान करना जारी रखेगी. 

लालदुहोमा के इस बयान से ये साफ हो गया है कि वो म्यांमार के शरणार्थियों को पूरी तरह सहयोग करने के लिए तैयार हैं. वहीं मिजोरम की सेंट्रल मिजों यूथ एसोसिएशन अपनी शाखाओं से दान लेकर म्यांमार के शरणार्थियों के कैंपों में दाल, चावल, सब्जी, कंबल और बर्तन जैसी जरूरी चीजें उपलब्ध करवा रहे हैं.

म्यांमार में 1948 से चल रहा गृहयुद्ध
म्यांमार में साल 1948 से गृहयुद्ध जारी है. वहीं 1962 से 2011 के बीच ये देश सैन्य शासन के अधीन था. इसके बाद साल देश में हुए चुनाव में आंग सान सू की नागरिक सरकार को जीत हासिल हुई, जिसे फरवरी 2021 में गिराकर सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया. तभी से दोनों के बीच हमले जारी हैं. 

साल 2023 के मार्च के आंकड़ों के अनुसार मिजोरम की राजधानी आइजॉल और अन्य जिलों में म्यांमार के चिन से आए लगभग 31,500 शरणार्थी रह रहे थे. मिजोरम के गृह विभाग के अनुसार मिजोरम के सभी जिलों में म्यांमार के शरणार्थी हैं.

जिनके लिए राज्य में 160 शिविर लगाए गए हैं. जिनमें लगभग 13 हजार शरणार्थी रह रहे हैं, वहीं बाकी शरणार्थी अन्य जगहों पर रह रहे हैं. वहीं हाल ही में हुई हिंसा के बाद 5 हजार और शरणार्थी मिजोरम पहुंचे हैं.

मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा भी म्यांमार से आए शरणार्थियों को अपनी मानवीय जिम्मेदारी मानते हैं. बीबीसी से हुई बातचीत में उन्होंने कहा कि भारत की आजादी के समय जब ब्रितानी साम्राज्य ने भारत का बंटवारा किया था, तब मिजो लोगों को बांग्लादेश (तब के पूर्वी पाकिस्तान), भारत और म्यांमार के बीच बांट दिया, लेकिन इनमें अभी भी भाई जैसा ही रिश्ता है और ये सभी अपने आप को एक बड़े समुदाय का हिस्सा मानते हैं. उन्होंने आगे कहा कि सहानुभूति दिखाना हमारी मानवीय जिम्मेदारी है. अगर लोग हमारे यहां आएंगे, तो हम उन्हें जबरदस्ती वापस नहीं भेजेंगे. म्यांमार से आ रहे लोग हमारे मिजो लोग ही हैं.

भारत म्यांमार के बीच रिश्तों पर पड़ेगा असर?
मिजोरम साढ़े तेरह लाख आबादी का एक छोटा सा प्रांत है. ऐसे में विश्लेषक मानते हैं कि म्यांमार से लगातार आ रहे शरणार्थियों की वजह से राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी इसका खासा असर पड़ेगा. वहीं अतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी म्यांमार के संकट पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है जिसके चलते इसका समाधान नहीं निकल रहा है.

इसके अलावा हाल ही में सीमा पर बढ़े हमलों के चलते जोखाथार में सीमा के पार होने वाला कारोबार रुक गया है. जिसकी वजह से बहुत से सामान का आयात नहीं हो रहा है. इसी के चलते स्थानीय स्तर पर सामान की कीमतें बढ़ रही हैं जिसका असर राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी बढ़ रहा है.

वहीं मिजोरम एक छोटा प्रांत है. जहां राजस्व के साधन सीमित हैं, ऐसे में बड़ी संख्या में म्यांमार से आए लोगों को संभालने से इसका असर राज्य के बजट पर देखने को मिल सकता है साथ ही इससे सुरक्षा व्यवस्था भी प्रभावित होने की संभावना है.

हालांकि तमाम चुनौतियों के बावजूद म्यांमार के विस्थापितों और मिजोरम के लोगों के बीच के रिश्तों में मजबूती आ रही है. लेकिन बड़े स्तर पर देखें तो म्यांमार की सैन्य सरकार से दोस्ती बढ़ाने की भारत की कोशिशों पर इस संकट का असर देखने को मिल सकता है.      

हालांकि ये अंदाजा फिलहाल किसी को नहीं है कि म्यांमार का ये गृहयुद्ध कब समाप्त होगा और वहां से आ रहे विस्थापितों का क्या होगा. फिलहाल की स्थिति देखते हुए ये अदांजा लगाया जा रहा है कि म्यांमार से आ रहे विस्थापितों की संख्या में आने वाले समय में बढ़ोतरी हो सकती है.

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