बसों में नेतागिरी ?

बसों में नेतागिरी:1400 करोड़ लगाकर सरकारी बसें चलाने का सुझाव था, 1600 करोड़ खर्च कर बंद कर दिया

मप्र में सरकारी बसों पर नेता​गिरी किस कदर हावी हुई, इसे बंद करने के फैसले से साफ पता चलता है। आर्थिक अनियमितताओं पर पर्दा डालने और परिवहन माफिया को फायदा पहुंचाने की ऐसी जल्दबाजी थी कि निगम को चलाने के कम खर्च वाले दो विकल्प होने के बावजूद सरकार ने 200 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च कर इस पर ताला लगाने के फैसले पर मुहर लगा दी। मप्र राज्य परिवहन निगम देश का पहला निगम था।

इसे बंद करने की कहानी की शुरुआत कांग्रेस के शासन में यानी 90 के दशक से तभी हो चुकी थी, जब सरकार ने नई बसों की खरीदी और अन्य खर्चों से हाथ खींच लिया था। 2002 तक यह पूरी तरह खस्ताहाल हो चुका था। 2005 में इसे बंद करने पर विचार हुआ। कैबिनेट बैठी। इसमें विभाग की तरफ से तीन विकल्प भी रखे गए। इनमें से दो विकल्प ऐसे थे कि 1400 करोड़ रुपए खर्च कर निगम को चलाया जा सकता था, लेकिन सरकार ने 1600 करोड़ खर्च कर इसे बंद करने पर मुहर लगाई। दैनिक भास्कर के पास इसके सभी दस्तावेज मौजूद हैं।

विभाग ने कैबिनेट को खुद बताई बदहाली की वजह

सड़क परिवहन निगम में 29.5 फीसदी केंद्र और 70.5 फीसदी पैसा राज्य सरकार का लगा था। केंद्र ने आखिरी बार 1994-95 में करीब 50 लाख रुपए दिए थे, जबकि राज्य सरकार ने 1995-96 में आखिरी बार 5.8 करोड़ रुपए दिए। इसके बाद पैसा नहीं मिलने की वजह से बसें नहीं खरीदी जा सकीं और इनका दायरा घटता गया। मैक्सीकैब को 50 किमी तक चलाने के परमिट दे दिए गए, जिससे बसों में सवारियां कम होने लगीं।

इधर, बसें कम होने से एक-एक बस के अनुपात में 12 तक कर्मचारी हो गए। कैबिनेट को बताया गया था कि समय-समय पर डीजल की कीमतें बढ़ीं, लेकिन मप्र में किराया नहीं बढ़ाया गया। इसके साथ ही नि:शुल्क और रियायती पास की वजह से भी निगम को काफी नुकसान हुआ। इन सभी बातों का जिक्र कैबिनेट के नोट में किया गया है।

बिहार में बंद होने के बाद दोबारा चालू हुआ

मप्र के बाद बिहार में सड़क परिवहन निगम बंद हुआ, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने इसे दोबारा चालू कर दिया। यूपी से टूटकर उत्तराखंड बना, वहां भी सड़क परिवहन निगम बना दिया, लेकिन मप्र से तोड़कर छत्तीसगढ़ बनाया, वहां आज तक सड़क परिवहन निगम गठित नहीं हुआ।

मप्र सड़क परिवहन मुख्यालय की जर्जर बिल्डिंग में कार्यालय। फोटो : शान बहादुर - Dainik Bhaskar
मप्र सड़क परिवहन मुख्यालय की जर्जर बिल्डिंग में कार्यालय।

बिहार में बंद होने के बाद दोबारा चालू हुआ

मप्र के बाद बिहार में सड़क परिवहन निगम बंद हुआ, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने इसे दोबारा चालू कर दिया। यूपी से टूटकर उत्तराखंड बना, वहां भी सड़क परिवहन निगम बना दिया, लेकिन मप्र से तोड़कर छत्तीसगढ़ बनाया, वहां आज तक सड़क परिवहन निगम गठित नहीं हुआ।

बंद करने के नाम पर भी लूट… 90 करोड़ रुपए प्रक्रिया के लिए ही रखे

जबकि… 500 नई बसें खरीदते तो 80 करोड़ रुपए ही खर्च करने पड़ते

दो विकल्प से निगम चल सकता था, सरकार ने तीसरा चुना

  • सुदृढ़ीकरण करना… देनदारी का भुगतान करने के लिए 854 करोड़ रुपए और केंद्र और राज्य की पूंजी पर ब्याज पर टैक्स भुगतान के लिए 547.84 करोड़ रुपए चाहिए थे। यानी कुल 1401 करोड़ रुपए की जरूरत थी।
  • सीमित मार्ग पर संचालन… 8500 कर्मचारियों को वीआरएस देने पर 364 करोड़ और 500 नई बसें खरीदने पर 80 करोड़, ब्याज और टैक्स के लिए 547.84 करोड़ का भुगतान। कुल 1398 करोड़।
  • पूर्णत: बंद करना… वीआरएस पर 450 करोड़, वेतन व अन्य पर 183.97 करोड़, राज्य-केंद्र की देनदारियां 547.84 करोड़, संस्थाओं की 198.87 करोड़, कोर्ट प्रकरण पर 103 और बंद करने की प्रक्रिया पर 60 करोड़ खर्च के अलावा आकस्मिक खर्च के नाम पर 31 करोड़ रखे गए। कुल 1600 करोड़।

2004 में प्रतिमाह 5 करोड़ रुपए का घाटा था…

सड़क परिवहन निगम को बंद करने से पहले कैबिनेट को विभाग ने बताया था कि उसे हर माह 5 करोड़ का नुकसान हो रहा है। बसों को 6 लाख किमी चलाने का लक्ष्य था, जबकि ये सिर्फ 2 लाख किमी रोजाना ही चल रही थीं। अवैध बसें बढ़ने की बात विभाग ने खुद स्वीकारी थी।

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