जितने ताकतवर हों, इंसानियत भी उतनी ही होनी चाहिए
जितने ताकतवर हों, इंसानियत भी उतनी ही होनी चाहिए
“ऐसा कभी मत कहना कि जब पैसे होंगे तब दान करेंगे, इसके बजाय जब तुम दान करोगे तब अमीर बन जाओगे।’ मेरी मां ने बचपन से ही मुझे इस पर भरोसा करके इस राह पर चलने की प्रेरणा दी, वह उस चॉल में घर के सभी सदस्यों में से सबसे ज्यादा लोकप्रिय थीं।
वह कहती थीं कि यह नियम ताकतवर लोगों पर भी लागू होता है। अगर वे पीड़ितों के पक्ष में सही निर्णय लेने में अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करते तो उनकी पावर बेकार है। जब मुझे पहली नौकरी मिली तो मैंने इस सीख को लागू किया।
वह दिवाली का दिन था और इमरजेंसी ड्यूटी पर तैनात मेरी सहकर्मी एक अन्य वरिष्ठ कर्मी के साथ मेरी अनुमति लेने के लिए मेरे पास आईं। यह दशकों पुरानी बात है, जब मैं दक्षिण भारत में एक प्रोजेक्ट को हेड कर रहा था। उन्होंने कहा, सर मैं दो घंटे जल्दी जाना चाहती हूं क्योंकि मुझे घर पर दीए जलाने हैं। मैंने किसी को भी जाने से मना कर दिया था क्योंकि कंपनी में एक आपात स्थिति थी।
इसके अलावा मेरी दलील थी कि दीपावली बिना सूचना के नहीं आती है, इसलिए अगर त्योहार महत्वपूर्ण था तो उसे छुट्टी लेनी चाहिए थी। पर तीसरे दिन उसी महिला के ससुर बाथरूम में गिर पड़े और उनकी हड्डी टूट गई। और उनके घर से मुझे ही पहला फोन आया।
मैंने अपना वीटो पावर इस्तेमाल किया और ना सिर्फ अपनी निजी गाड़ी बल्कि ड्राइवर को उन महिला सहकर्मी के साथ भेजा, जो पूरे इलाज के दौरान उनके साथ रहा और यह भी सुनिश्चित किया कि इलाज का बड़ा खर्च(जो कि लाखों में था) चैरिटी संस्था उठाए, जिसे मैं जानता था। उन दिनों दुर्घटना बीमा शैशव काल में थे। जिन कर्मचारियों ने मेरे पहले के निर्णय पर मुझे कोसा, इस बार मेरी उदारता को सराहा और प्रोजेक्ट को समय से 45 दिन पहले खत्म करने में मदद की।
बचपन में दी गई ये सीख मुझे याद आ गई, जब मैंने सुना कि कैसे गुजरात हाई कोर्ट ने गुजरात लोक सेवा आयोग (जीपीएससी) को महिला के प्रति असंवेदनशीलता दिखाने के लिए के लिए फटकार लगाई है। क्योंकि आयोग ने एक उम्मीदवार के अनुरोध को ठुकरा दिया था, दरअसल बच्चे को जन्म देने के दो दिन बाद वह उपस्थित नहीं हो सकी थी और उसने साक्षात्कार स्थगित करने या विकल्प देने का अनुरोध किया था।
जस्टिस निखिल कारियल की अदालत ने कहा कि उम्मीदवार की ओर से दायर याचिका में दखल देने की जरूरत है। कोर्ट ने आयोग को सहायक प्रबंधक (वित्त और लेखा) श्रेणी -2 के पद के लिए इंटरव्यू के रिजल्ट घोषित नहीं करने का भी निर्देश दिया, जिसके लिए महिला ने आवेदन किया था।
याचिकाकर्ता ने जीपीएससी द्वारा 2020 में निकाले पद के लिए लिखित परीक्षा पास की थी। 18 दिसंबर 2023 को उसे बताया गया कि एक या दो जनवरी 2024 को इंटरव्यू होगा। उसी दिन उसने जीपीएससी को ईमेल करके बताया कि वह गर्भवती है और जनवरी के पहले सप्ताह में प्रसव हो सकता है और उस स्थिति में 300 किमी दूर गांधीनगर आना मुश्किल होगा।
उसने 31 दिसंबर 2023 को बच्चे को जन्म दिया और जीपीएससी से अनुरोध किया कि इंटरव्यू या तो टाल दें या वैकल्पिक समाधान दें। बावजूद इसके जीपीएससी ने उसे 2 जनवरी को इंटरव्यू में उपस्थित रहने के लिए कहा और बताया कि आगे समय नहीं दिया जाएगा। 9 जनवरी को दिए आदेश में अदालत ने कहा कि याचिका में दायर मामला सबसे पवित्र प्राकृतिक प्रक्रियाओं में से एक यानी बच्चे को जन्म देने की प्रक्रिया के प्रति प्रतिवादियों की लैंगिक असंवेदनशीलता दर्शाता है।
…..अगर आप पावरफुल हैं तो जरूरत पड़ने पर आपको इसका पूरा उपयोग करना चाहिए। इससे शक्ति और शक्तिशाली को ज्यादा सम्मान मिलेगा।