लोकसभा चुनाव की तैयारी में कांग्रेस आगे ?

लोकसभा चुनाव की तैयारी में कांग्रेस आगे, परिणाम के बारे में राम जाने

अब लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए भी कांग्रेस पहले से ही आगे होने की बात कर रही है। प्रत्याशियों की सूचियाँ हर स्तर पर तैयार की जा रही हैं, लेकिन इससे होगा क्या? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भाजपा पूरी तरह भक्ति भाव से ओत प्रोत है। अयोध्या में राम मंदिर की तैयारी चल रही है और गाँव, शहर, क़स्बों में जगह- जगह मंदिरों की सफ़ाई की जा रही है। बड़े – बड़े भाजपा नेता हाथ में झाड़ू लिए मंदिरों में दिखाई दे रहे हैं। लेकिन कांग्रेस ने तो घोषणा कर रखी है कि हमें निमंत्रण मिला है, लेकिन हम अयोध्या जाने से विनम्रता पूर्वक इनकार कर रहे हैं। ऐसे में राजनीतिक प्रेक्षक कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए ज़्यादा संभावनाएँ दिखाई नहीं दे रही हैं।

अयोध्या के राम मंदिर के इसी चबूतरे पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी।
अयोध्या के राम मंदिर के इसी चबूतरे पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी।

मध्यप्रदेश में लोकसभा की सिर्फ़ एक सीट कांग्रेस के हाथ में है। उसके लिए सबसे बड़ी मशक़्क़त यही है कि ये एक सीट कैसे बचाई जाए या एक से दो सीट पर किस तरह जाया जाए! राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस के लिए कोई छप्पर फटने वाला नहीं है। गुजरात तो कांग्रेस को भूल ही जाना चाहिए।

दरअसल, राजनीति की पुरोधा मानी जाने वाली कांग्रेस अब शायद हवा के साथ चलना भूल गई है। उसकी निर्णय क्षमता, उसकी सोच को जाने क्या हो गया है कि वह ज़्यादातर मामलों में हवा के विपरीत ही निर्णय करती चली जा रही है। ख़म ठोककर उसके सामने खड़ी भाजपा के निर्णयों, कदमों से भी कांग्रेस कुछ सीखना नहीं चाहती। हालाँकि, राहुल गांधी अब एक और यात्रा पर निकल चुके हैं। न्याय यात्रा पर। हो सकता है इस यात्रा से ही कुछ निकले। जनाधार, मतदाता, वोट…!

भाजपा ने सोशल मीडिया पर ये पोस्टर जारी कर I.N.D.I अलायंस को सनातन विरोधी बताया है।
भाजपा ने सोशल मीडिया पर ये पोस्टर जारी कर I.N.D.I अलायंस को सनातन विरोधी बताया है।

कुल मिलाकर, अयोध्या और मंदिर की हवा में अब सब कुछ बहने वाला है। लोकसभा चुनाव की संभावनाओं में भाजपा के सिवाय दूर- दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा है। मार्च महीने में घोषित होने वाले चुनाव हो सकता है, कुछ और जल्दी कर दिए जाएँ। जहां तक विपक्षी गठबंधन का सवाल है, सीटों के बँटवारे को लेकर यहाँ महाभारत हो रहा है। भीतर ही भीतर कोई किसी से सहमत नहीं है। ऊपरी तौर पर एकता दिखाई जा रही है। भाजपा के सामने समूचे विपक्ष का अकेला प्रत्याशी खड़ा करना अब भी टेढ़ी खीर ही है। विपक्ष अगर एक प्रत्याशी को लड़ाने पर सहमत हो जाता है तो परिणाम कुछ और ही होंगे। हो सकता है राजनीति की दशा और दिशा में भी कुछ बदलाव आ जाए।

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