पाकिस्तान में कब-कब किस जनरल ने संभाली सत्ता ?
अयूब खान से लेकर परवेज मुशर्रफ तक… पाकिस्तान में कब-कब किस जनरल ने संभाली सत्ता
पाकिस्तान में 1958 से लेकर 1971 तक, उसके बाद 1977 से लेकर 1988 और फिर 1999 से लेकर 2008 तक सेना के हाथ में सत्ता रही. इसके अलावा जब वहां जनता की चुनी हुई सरकार रही तब भी सेना का प्रभाव सरकार पर रहा. पाकिस्तान के कई सेना प्रमुखों ने तख्तापलट कर देश में अपना शासन चलाया है.
अगले महीने यानी 8 फरवरी को पाकिस्तान में आम चुनाव होने हैं. 2018 के बाद पाकिस्तान की जनता एक बार फिर अपनी सरकार और नया प्रधानमंत्री चुनेगी. जब भी पाकिस्तान में चुनाव की बात होती है तो वहां की सेना का जिक्र जरूर आता है. देखा जाता है कि चुनाव में वहां की सेना किस पार्टी या नेता का पर्दे के पीछे से समर्थन कर रही है. पाकिस्तान को लेकर ये माना जाता है कि वहां की राजनीति में सेना का दखल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से होता ही है. बिना सेना की भूमिका के वहां की राजनीति और चुनाव को देखा और समझा नहीं जा सकता है.
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पाकिस्तान में 1958 से 1971, 1977 से 1988 और 1999 से 2008 तक सेना का शासन रहा. इस दौरान तत्कालीन सेना प्रमुख राष्ट्रपति बने. पाकिस्तान को उसका संविधान 1956 में मिला. इसके बाद वहां आम चुनाव होने थे, लेकिन उससे पहले 1958 में सेना ने तख्तापलट कर दिया. तत्कालीन पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल मुहम्मद अयूब खान ने सत्ता संभाल ली. पाकिस्तान में मार्शल लॉ लग गया, संविधान को भंग कर दिया गया. अयूब खान 1969 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे. इन्हीं के कार्यकाल में 1962 में पाकिस्तान में नया संविधान लाया गया. इस संविधान के तहत अमेरिका की तरह राष्ट्रपति प्रणाली लागू की गई.
अयूब खान के शासन के दौरान ही 1965 में पाकिस्तान का भारत के साथ युद्ध हुआ. इस युद्ध में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी. बाद में धीरे-धीरे अयूब खान के खिलाफ माहौल बनने लगा और 1969 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
1971 में पाकिस्तान को लगा बड़ा झटका
अयूब खान के बाद जनरल याह्या खान ने पाकिस्तान की कमान संभाल ली. वो दिसंबर 1971 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे. याह्या खान के पास कुछ समय के लिए ही शासन रहा, लेकिन इसी दौरान पाकिस्तान को सबसे बड़ा झटका लगा. 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए और पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के रूप में एक नया देश बन गया. याह्या खान ने 1970 में आम चुनाव कराए लेकिन पूर्वी पाकिस्तान की आवामी लीग को जीत के बावजूद सत्ता नहीं सौंपी. जिससे पूर्वी पाकिस्तान में गुस्सा पनपा और विरोध-प्रदर्शन हो गए. हालात गृह युद्ध जैसे हो गए. बाद में याह्या खान ने वहां मिलिट्री ऑपरेशन चलाया, जिसके बाद पूर्वी पाकिस्तान में लगी आग शांत नहीं हो सकी और वो पाकिस्तान से अलग हो गया.
इस दौरान पाकिस्तान का भारत से 13 दिन का युद्ध भी हुआ, जिसमें उसे बेहद शर्मिंदगी झेलनी पड़ी. ढाका में पाकिस्तान की सेना को भारतीय सेना के आगे सरेंडर करना पड़ा और देश के भी दो टुकड़े हुए. इसके बाद याह्या खान को पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के नेता जुल्फिकार अली भुट्टो को सत्ता सौंपनी पड़ी. भुट्टो 1977 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे.
जिया-उल-हक ने भुट्टो को सत्ता से हटाया
1977 में पाकिस्तान में चुनाव हुए और भुट्टो ने फिर से सरकार बनाई, लेकिन इसी साल जुलाई में फिर से सेना ने तख्तापलट कर दिया. इस बार जनरल मुहम्मद जिया-उल-हक ने सत्ता कब्जा ली. जिया-उल-हक ने भुट्टो, उनके मंत्रियों और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान नेशनल अलायंस के नेताओं की गिरफ्तारी का आदेश दिया. उन्होंने पाकिस्तान की नेशनल असेंबली और सभी प्रांतीय विधानसभाओं को भंग कर दिया. संविधान को भी सस्पेंड कर दिया गया.
1988 में जिया-उल-हक का निधन हो गया और तब तक वो पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने रहे. इस दौरान पाकिस्तान में चुनाव नहीं हुए. इन्हीं के शासन के दौरान भुट्टो को मौत की सजा सुनाई गई. 4 अप्रैल 1979 को रावलपिंडी की सेंट्रल जेल में भुट्टो को फांसी दे दी गई. जिया-उल-हक के निधन के बाद पाकिस्तान में 1988 में फिर से चुनाव हुए.
मुशर्रफ ने शरीफ को सत्ता से बेदखल किया
इसके बाद 1999 में पाकिस्तान में एक बार फिर तख्तापलट हुआ. इस बार सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ थे और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ थे. मुशर्रफ 2001 से 2008 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे. 1999 में ही पाकिस्तान की भारत के साथ कारगिल में जंग होती है. इसमें भी पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ती है. इसका असर नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ के संबंधों पर पड़ता है. नवाज शरीफ सेना प्रमुख बदलने का फैसला करते हैं, ये ही बात परवेज मुशर्रफ का नागवार गुजरती है और वो तख्तापलट कर देते हैं.
मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान ही 2002 में पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर आम चुनाव होते हैं. मुशर्रफ चुनाव कराते हैं. वो इस बार जनता से बहुमत लेकर शासन करना चाहते हैं. इन चुनावों में मुशर्रफ समर्थक पीएमएल-क्यू ने जीत हासिल की, हालांकि बहुमत नहीं मिला था. पीएमएल-क्यू ने बाकी दलों के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई. मुशर्रफ राष्ट्रपति बने रहे. 2008 में जाकर सत्ता परिवर्तन हुआ और पीपीपी ने पीएमएल (एन) के साथ मिलकर गठबंधन वाली सरकार बनाई. पीपीपी के युसूफ रजा गिलानी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने.