देश के कर्णधारों का साफ-सुथरी छवि का होना जरूरी ?

देश के कर्णधारों का साफ-सुथरी छवि का होना जरूरी

पूर्व सीएम-पूर्व डिप्टी सीएम हैं। इनका निर्देश है, सीबीआई बिना अनुमति उनके राज्यों में न घुसे। गुजरे दो माह की खबरों पर उड़ती नजर डालें। एक सांसद के घर से आयकर छापे में 314 करोड़ नकद बरामद। इंटर टॉपर घोटाले के सूत्रधार (बिहार) के यहां छापे में तीन करोड़ कैश मिले। जमीन से जुड़े 100 दस्तावेज भी।

एक सचिवालय (राजस्थान) में पोस्टेड वित्तीय सलाहकार ने दो दिनों में 26 फ्लैट खरीदे। इसी समय महादेव ऐप (छत्तीसगढ़) प्रकरण के और तथ्य आए। पांच हजार करोड़ का मनी लांड्रिंग। दुबई की एक शादी में 200 करोड़ खर्च।

एक दूसरे राज्य (झारखंड) में मनरेगा लूट, जमीन धांधली, खनन घोटाला, टेंडर लूट, बालू धांधली, शराब घोटाले, यानी जहां सरकारी काम, वहीं लूट नहीं, सार्वजनिक डकैती। और तो और घोटाले से सेना तक की जमीन बेचने का दुस्साहस।

ऐसे में कर्पूरी ठाकुर का सम्मान, सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी, प्रामाणिकता, शुचिता, मर्यादा का अभिनंदन है। उस राजनीतिक संस्कृति का यशोगान है, जिसमें शब्द-कर्म में एका थी। साधन-साध्य में फर्क नहीं था। कथनी-करनी एक होते थे।

कर्पूरी जी का एक अन्य प्रसंग देखें। पार्टी ने अंतिम क्षणों तक (1985) एक सीट (समस्तीपुर) का प्रत्याशी गोपनीय रखा। अंतिम बैठक में कर्पूरी जी ने रामजी बाबू (मंत्री रहे) से पूछा, समस्तीपुर के हर घर में हमने पानी पिया है। खाना खाया है।

कौन आदमी है, जिन्हें मैं नहीं जानता? आप नाम बताएं। पार्टी नेताओं ने चुपचाप रामनाथ ठाकुर का नाम तय कर रखा था। सुनते ही कर्पूरी ठाकुर ने नेताओं से पूछा कि क्या ‘इंदिरा जी का वंशवाद खराब और कर्पूरी ठाकुर का ठीक? यह कैसे सही है?’ साथी निरुत्तर। कर्पूरी जी ने कहा, ‘विधानसभा घर की पंचायत नहीं है कि पिता-पुत्र साथ बैठकर फैसला करेंगे। यह लोक रहनुमाओं का मंच है। इसकी गरिमा-सम्मान रखिए। वह चुनाव लड़ेंगे तो मैं नहीं लडूंगा।’

महावीर त्यागी ने लिखा है, खद्दर की पैबंद लगी गंजी पहनते थे सरदार पटेल। उनकी बेटी मणिबेन उनके कुर्ते पर पैबंद सिलती थीं। आजादी बाद सोशलिस्टों ने उन पर बड़े घरानों के पक्षधर होने का आरोप लगाया। एक भारी जनसभा में सरदार ने कहा, ‘मैंने फैसला किया था यदि पब्लिक लाइफ में काम करना हो, तो अपनी मिल्कियत नहीं रखनी चाहिए।

तब से आज तक मैंने अपनी कोई चीज नहीं रखी। न कोई मेरा बैंक अकाउंट है, न जमीन है और न ही अपना मकान है’। ऐसे ही नेताओं के तप-त्याग-चरित्र से भारत फला-फूला है। गांधी, पटेल, लोहिया, दीनदयाल, जयप्रकाश से कामराज, कर्पूरी तक, पुरानी पीढ़ी के अनेक महानायक इसी संस्कृति का विस्तार थे।

इतिहास का प्रसंग है। मेगस्थनीज चाणक्य से मिलने आए। देखा, काम में व्यस्त हैं। वहां जल रहा दीपक बुझाते हैं। दूसरा जलाते हैं, फिर मेगस्थनीज से संवाद करते हैं। मेगस्थनीज की जिज्ञासा है, एक दीपक बुझाकर, दूसरा क्यों जलाया आपने? चाणक्य का सहज जवाब था, ‘अब तक महामंत्री की हैसियत से राष्ट्र का काम कर रहा था, अब चाणक्य की हैसियत से आपसे बात कर रहा हूं।

उस दीपक में राष्ट्र का तेल है। निजी कार्य के लिए राष्ट्रीय सम्पति का उपयोग घोर अपराध है।’ यह है, इस मुल्क की तासीर। इसे बचाने के लिए सभी दलों में आम सहमति बने। 1967 (भ्रष्टाचार मिटाओ), 1974 (भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार आंदोलन), फिर 1988-89 (बोफोर्स प्रकरण) दौर की तरह, सार्वजनिक जीवन से भ्रष्टाचार की सफाई जन अभियान बने। आमजन का बेहतर भविष्य भ्रष्टाचारविहीन व्यवस्था में ही संभव है।

भारतीय संस्कृति की चेतावनी है, ‘महाजनो येन गतः स पन्थाः’। समाज के अगुआ जिस रास्ते जाते हैं, दूसरे उनका ही अनुसरण करते हैं। तब सार्वजनिक कोष की लूट से घिरे बड़े पदों पर बैठे लोग किस तरह की प्रेरणा दे रहे हैं?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *