OBC पर सियासत ?
OBC पर सियासत: कभी जनरल कैटेगरी में था ये वर्ग, फिर कैसे चुनाव में हुआ इतना जरूरी? आंकड़ों से समझिए
लोकसभा चुनाव में 100 दिन से भी कम समय बचा है. ऐसे में OBC पर सियासत शुरू हो गई है. इस स्पेशल स्टोरी में समझिए- कैसे अस्तित्व में ओबीसी वर्ग, कितनी जातियां ओबीसी में शामिल और चुनाव में कितना महत्व.
इसपर राहुल गांधी भी पीछे नहीं रहे. उन्होंने तुरंत पलटवार करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री अक्सर कहते हैं देश में सिर्फ दो जातियां हैं- अमीर और गरीब, मगर अब वह खुद को ‘सबसे बड़ा ओबीसी’ बता रहे हैं.
राहुल गांधी ने एक पोस्ट में लिखा, ‘किसी को छोटा और बड़ा समझने की मानसिकता बदलना जरूरी है. चाहें ओबीसी हों, दलित हों या आदिवासी, बिना गिनती के उन्हें आर्थिक और सामाजिक न्याय नहीं दिलाया जा सकता. मोदी जी इधर-उधर की इतनी बातें करते हैं, तो गिनती से क्यों डरते हैं?’
इससे पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने बड़ा दावा किया था कि पिछड़े वर्ग से आने वाले पीएम मोदी की उपस्थिति के कारण शंकराचार्य अयोध्या में ‘प्राण प्रतिष्ठा’ समारोह में शामिल नहीं हुए थे.
ये तो अभी शुरुआत है. चुनावी समय है तो नेताओं के अजीबों-गरीब बयान आते रहेंगे. खैर हम यहां स्पेशल स्टोरी आपको ओबीसी समुदाय की शुरुआत से लेकर आजतक की स्थिति के बारे में विस्तार से बता रहे हैं.
पहले समझिए OBC का मतलब
ओबीसी का मतलब है ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ (Other Backward Classes)
कौन होता है OBC
ओबीसी एक वर्ग है जो पहले कभी जनरल कैटेगरी के लोगों में ही शामिल हुआ करता था. इस वर्ग में आने वाली जातियां गरीब होती हैं. उन्हें शिक्षा और सामाजिक रूप से पिछड़ा माना जाता है. मतलब है कि उन्हें शिक्षा, नौकरियों और अन्य अवसरों तक समान पहुंच नहीं मिली है.
ओबीसी या अन्य पिछड़ा वर्ग एक सामाजिक समूह है जो शिक्षा और सामाजिक रूप से पिछड़ा माना जाता है. ऐसे लोगों को वर्गीकृत करने के लिए भारत सरकार ने एक अलग शब्द नाम दिया है. संविधान में भी उनका जिक्र होता है.
कैसे अस्तित्व में आया ओबीसी वर्ग
1980 के दशक में मंडल कमीशन की रिपोर्ट में सबसे पहले हिंदुओं में ओबीसी की पहचान की गई थी. रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि अनुसूचित जाति/जनजाति (एससी/एसटी) को छोड़कर भारत में ओबीसी की आबादी का लगभग 52 फीसदी हिस्सा है.
मंडल कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार, 1252 समुदायों की पहचान पिछड़े वर्ग के रूप में की गई है. आरक्षण कोटा 49.5% रखने का सुझाव दिया गया था. इसके बाद केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 16 (4) के तहत ओबीसी के लिए केंद्रीय सिविल सेवा में 27% सीटें आरक्षित करने की नीति लागू कर दी. यही नीति अनुच्छेद 15 (4)के तहत केंद्रीय शैक्षिक संस्थानों में भी लागू हुई. यह आरक्षण पदोन्नति कोटे पर भी लागू होता है.
साल 2018 में संविधान का 102वां संशोधन पारित किया गया जिसमें राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दे दिया गया. ये फैसला ओबीसी और पिछड़े वर्ग के हितों की रक्षा के लिए मील का पत्थर माना गया. ये आयोग सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत आता है.
किनको नहीं मिलता आरक्षण
हालांकि कुछ लोगों को ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है. जैसे
- उच्च पदों पर सरकारी अधिकारियों के बच्चे
- उच्च रैंक वाले सशस्त्र बल अधिकारी
- व्यापार में पेशेवर
- तथाकथित क्रीमी लेयर के व्यक्ति
क्रीमी लेयर किसे कहते हैं?
क्रीमी लेयर वे ओबीसी व्यक्ति हैं जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है. 2017 के एक आदेश के अनुसार, जिनकी सालाना आय 8 लाख रुपये या उससे अधिक है. उन्हें क्रीमी लेयर माना जाता है और उन्हें ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है.
‘क्रीमी लेयर’ की सीमा को 1993 में 1 लाख रुपये प्रति वर्ष से बढ़ाकर 2.5 लाख रुपये कर दिया गया था. इसके बाद फिर 4.5 लाख रुपये, 6 लाख रुपये और अब 8 लाख रुपये कर दिया गया है.
ओबीसी के लिए कितना आरक्षण
भारत सरकार की ओर से सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 फीसदी आरक्षण दिया जाता है. इसके अलावा अनुसूचित जातियों (SC) को 22.5 फीसदी और अनुसूचित जनजातियों (ST) को 7.5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है.
हाल ही में, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को भी 10% आरक्षण दिया गया है, हालांकि इसे अभी कई राज्यों में कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
कुछ राज्यों में आरक्षण का प्रतिशत अलग
ओबीसी की आबादी हर राज्य में अलग-अलग है. कुछ राज्यों में ओबीसी की आबादी 50% से ज्यादा है, जबकि कुछ राज्यों में यह 10% से भी कम है.
इसलिए राज्यों ने ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रतिशत अपनी आबादी के अनुपात में निर्धारित किया है. कुछ राज्यों ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े ओबीसी समुदायों के लिए उप-आरक्षण भी प्रदान किया है
दिल्ली, असम, गोवा, गुजरात, उत्तर प्रदेश समेत पर 9 राज्यों में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिया जाता है. जबकि सात राज्यों में ओबीसी को 27 फीसदी से अधिक आरक्षण दिया है. ये राज्य हैं- आंध्र प्रदेश (29%), बिहार (33%), कर्नाटक (32%), केरल (40%), तमिलनाडु (50%), अंडमान और निकोबार (38%), पुडुचेरी (34%).
कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां ओबीसी को 27% से कम आरक्षण दिया गया है. ये राज्य हैं- छत्तीसगढ़ (14%), हिमाचल प्रदेश (क्लास-1 पदों में 12% और क्लास-2 पदों में 18%), झारखंड (14%), मध्य प्रदेश (14%), मणिपुर (17%), पंजाब (12%), राजस्थान (21%), सिक्किम (21%), उत्तराखंड (14%), पश्चिम बंगाल (17%), दादरा और नगर हवेली (5%).
वहीं लक्षद्वीप, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश में ओबीसी समुदायों के लिए कोई आरक्षण नहीं है.
कहां कितनी जातियां ओबीसी
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) और अलग-अलग राज्य सरकारों ने ओबीसी की लिस्ट बना रखी है. 2023 तक महाराष्ट्र में ओबीसी की केंद्रीय सूची के तहत आने वाली ओबीसी जातियों की संख्या सबसे ज्यादा है. इसके बाद ओडिशा, कर्नाटक और तमिलनाडु हैं.
कुछ राज्यों में ओबीसी में 100 से अधिक जातियां शामिल हैं, जबकि कुछ राज्यों में यह 10 से भी कम है. महाराष्ट्र में ओबीसी की सूची में 364 जातियां शामिल हैं. तमिलनाडु में 100 से ज्यादा जातियां शामिल हैं.
ओबीसी में शामिल जातियों की संख्या समय-समय पर बदलती रहती है. राज्य सरकारें अपनी ओबीसी लिस्ट में जातियों को शामिल करने या हटाने के लिए स्वतंत्र हैं. ओबीसी सूची को लेकर अक्सर विवाद होते रहते हैं.
चुनाव में ओबीसी समुदाय का महत्व
भारत में शायद ही कोई चुनाव ऐसा हुआ होगा जब ओबीसी का जिक्र न हो. चुनाव में ओबीसी समुदाय का अहम स्थान है. उनकी आबादी, राजनीतिक प्रभाव और सामाजिक न्याय की मांग उन्हें एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति बनाती है. सभी प्रमुख राजनीतिक दल ओबीसी वोटों को लुभाने के लिए अपनी रणनीति बनाते हैं.
माना जाता है कि हिंदुत्व के मुद्दे पर अपनी पहचान बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी ओबीसी वोट बैंक में सेंधमारी कर चुकी है. कई चुनावी सर्वों में बीजेपी ज्यादा ओबीसी समर्थन हासिल करती नजर भी आई है.
हाल ही में मोदी सरकार ने बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान किया. कर्पूरी ठाकुर ने ही पिछड़े और अति पिछड़े समाज को आगे बढ़ाने का काम किया. उन्हें पिछड़ों का ‘जननायक’ के तौर पर जाना जाता है.
बीजेपी के साथ है ओबीसी?
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के ऐलान के बाद एबीपी न्यूज की ओर से सीवोटर ने एक सर्वे किया. सर्वे में सवाल पूछा गया कि बिहार में अति पिछड़े वोटर्स की पसंद कौनसी पार्टी है? सबसे ज्यादा लोगों ने बीजेपी का समर्थन किया. सर्वे के मुताबिक, बीजेपी को 40%, जेडीयू को 16%, आरजेडी को 27% और कांग्रेस को 6% वोट मिल सकते हैं. 11% ने पता नहीं में जवाब दिया.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, देश के ज्यादातर राज्यों में किसी राजनीतिक पार्टी और उनके उम्मीदवारों की किस्मत ओबीसी वोटर्स ही तय करते हैं. ऐसे में लोकसभा चुनाव 2024 से पहले किसी भी पार्टी के लिए ओबीसी समुदाय को नजरअंदाज करना मुश्किल है.
किस पार्टी के पास कितना OBC वोटबैंक?
लोकनीति सीएसडीएस के सर्वे के अनुसार, साल 2009 के बाद से ओबीसी समुदाय का झुकाव बीजेपी की ओर लगातार बढ़ रहा है. 2014 और 2019 चुनाव में ओबीसी ने जमकर बीजेपी का समर्थन किया. वहीं कांग्रेस का ओबीसी वोट बैंक लगातार घटता जा रहा है.
पिछले तीन लोकसभा चुनाव में ओबीसी वोट बैंक की बात करें तो 2009 में बीजेपी को सिर्फ 22% ओबीसी वोट मिला था. जबकि कांग्रेस के पास 27% ओबीसी वोट था. 2014 में बीजेपी का ओबीसी वोट प्रतिशत बढ़कर लगभग डबल हो गया और कांग्रेस का लगभग आधा. 2019 लोकसभा चुनाव में 48% ओबीसी ने बीजेपी वोट दिया, जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटकर 15% तक रह गया.