विज्ञापन और नारों से सरकार चलाना सही नहीं ?

विज्ञापन और नारों से सरकार चलाना सही नहीं, चुनाव में दिल्ली की जनता सिखायेगी सबक

दिल्ली कांग्रेस के लिए पिछला कुछ समय कठिन रहा. किसी भी संगठन या पार्टी के साथ उतार-चढ़ाव होता रहता है, लेकिन पिछले 10 सालों में दिल्ली के लोगों ने बहुत कुछ खोया. केंद्र सरकार का सबसे उदासीन रवैया दिल्ली के साथ रहा है. दिल्ली के अंदर बेरोजगारी की समस्या बढ़ी है. वहीं दिल्ली में पॉल्यूशन इतना अधिक है कि दिल्ली वालों की उम्र कम हो रही है. यहां तक कि मां की कोख में जो बच्चे पल रहे हैं, उनके ऊपर भी प्रदूषण का खतरा बना हुआ है. शहरी विकास मंत्रालय दिल्ली सरकार के साथ मिलकर मेट्रो का काम देखती है, उसके प्रोजेक्ट समय के साथ पूरे होते थे और अब वहीं काम करने में काफी समय लग रहा है, जिसकी वजह से दिल्ली में धूल से हो रहे प्रदूषण की समस्या होती है. 

राहुल गांधी के साथ हैं लोग

राहुल गांधी अपनी न्याय यात्रा में लोगों से मिल रहे हैं और उनकी आवाज उठा रहे हैं. आज के समय में कोई भी नेता आम जनता से नहीं मिलता. इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य है लोगों के साथ सीधा संवाद करना. ये अपने आप में ही एक ऐतिहासिक कदम है कि कांग्रेस पार्टी के लीडर लोगों के पास जा रहे है. लोकतंत्र की सबसे बड़ी बात यही है कि लोगों को अपनी बात रखने का मौका दिया जाता है और इसी वजह से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत को कहा जाता है. सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है और कोई नया ‘मोड ऑफ ट्रांसपोर्टेशन’ को अभी तक दिल्ली में नहीं लाया गया है. शहर में लाल और हरे रंग की बसें चलती है, जो हम लाए थे. वही अब भी चल रही हैं और उनकी भी लाइफ अब खत्म हो चुकी है.

उसके बावजूद भी उसे दिल्ली के अंदर चलाया जा रहा है, जिससे पॉल्यूशन बढ़ रहा है. दुनिया में कई प्रकार के विकल्प हैं यातायात के, जैसे मोनो रेल है, कार पॉड है, दिल्ली में कुछ नहीं है. ये सारा काम केंद्र सरकार का है. उनके जो संसद सदस्य हैं, वे लोगों के लिए कभी भी उपलब्ध नहीं रहते है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि अनधिकृत कॉलोनी के लोग रजिस्ट्री करा लेंगे तो उन्हें मलिकाना हक मिलेगा जिसपर कोई काम नहीं किया गया. गांव के लोगों की समस्या वैसी ही है. दिल्ली के लोगों ने बहुत कुछ खोया है, अब समय आ गया है कि दिल्ली के लोग आने वाले चुनाव में इनको सबक सिखाएं.

दिल्ली में कांग्रेस की पूरी तैयारी

दिल्ली में कांग्रेस ने सात सीटों पर अपनी तैयारी की है, सातों सीटों पर कार्तकर्ताओं का सम्मेलन किया गया है. साथ ही सभी सीटों पर समस्याओं को आगे लाया जा रहा है. दिल्ली के लोगों ने कोविड के समय जो झेला वो सभी के सामने है. हाल ही में दिल्ली के हाईकोर्ट की टिप्पणी आई कि 3 करोड़ की आबादी वाले शहर में मात्र 3 हॉस्पिटल में 6 सीटी स्कैन मशीनें है. हेल्थ के मामले में दिल्ली पिछड़ी है, दिल्ली में स्कूल के नंबर अभी भी उसी प्रकार है, उसमें किसी प्रकार की बढ़ोतरी नहीं हुई है. दिल्ली की यूनिवर्सिटी केंद्र सरकार के अधीन है, उतने ही कॉलेज है लेकिन जब चुनाव का समय आता है तो कह दिया जाता है कि हम कॉलेज बढ़ा रहे है, उसके बाद स्थिति पहले की तरह ही बनी रहती है.

यमुना की स्थिति खराब है, जब छठ पूजा का समय आता है तब बीजेपी के एमपी किश्ती पर चढ़ जाते है. अगर हमारा AAP के साथ अलायंस होगा तो हाई कमीशन जो आदेश देगा वहीं किया जायेगा. कांग्रेस पांच बड़ी मीटिंग कर चुकी है, बवाना इंडस्ट्रियल एरिया, नॉर्थ ईस्ट के अंदर मुस्तफाबाद, करोल बाग और कई जगहों पर कांग्रेस सफल मीटिंग कर चुकी है, उसे अच्छी खासी कवरेज भी मिली है.

विज्ञापन और नारों से सरकार नहीं चलती

मेट्रो का प्रोजेक्ट, जो कि फेज-3 का इनर रिंग रोड और आउटर रिंग रोड कवर करता है, इसके खत्म होने की डेडलाइन 2015 थी, अब 2024 हो चुका है लेकिन उसका काम पूरा नहीं हुआ है. अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए ऐसी दिल्ली छोड़ कर नहीं जाना चाहेंगे जहां सांस लेनी भी मुश्किल हो जाए. सरकार ने वादा किया था कि लैंडफिल साइट को ठीक कराएंगे, लैंडफिल साइट से ऐसी मिथेन गैस निकलती है जो इंसान की जिंदगी के लिए खतरनाक है. दिल्ली के अंदर सीवेज सिस्टम जाम है, उनसे कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है, सड़कें टूटी हुई है, मेट्रो के काम में देरी हो रही है, डस्ट पार्टिकल बढ़ रहा है जिस वजह से पॉल्यूशन बढ़ रहा है. दिल्ली के लोगों को यह फैसला करना होगा कि हम कैसी दिल्ली छोड़ कर जाना चाहते है. लोगों को अब फैसला करना पड़ेगा कि वो किस प्रकार की सरकार को चुनते है, वो कहीं न कहीं सोचेंगे ही कि क्या हो रहा है. केवल एडवरटाइजिंग और नारों से सरकार चुनना न हमारे लिए अच्छा है और न ही आने वाली पीढ़ी के लिए.

[नोट- यह आर्टिकल अरविंदर सिंह लवली से हुई बातचीत का संक्षिप्त संस्करण है.]

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