MSP की गारंटी के लिए 4 दिनों से हंगामा

MSP की गारंटी के लिए 4 दिनों से हंगामा …!

आखिर किसानों की फसल क्यों खरीदे सरकार; 8 सवालों के जवाब

‘सरकार और किसानों के बीच तीन राउंड की बातचीत हो चुकी है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। 4 दिन से किसान सड़कों पर हैं।’ ये कहते हुए रोहित ने अखबार मेज पर रख दिया।

‘लेकिन ये किसान चाहते क्या हैं?’ अमन ने पूछा।

रोहित- ‘किसान चाहते हैं कि सरकार उनकी फसल MSP पर खरीदने की गारंटी दे।’

अमन- ‘किसानों को अपनी फसल बाजार में बेचना चाहिए। आखिर सरकार ज्यादा पैसे देकर उनकी फसल क्यों खरीदे? ऐसे तो कोई भी कहने लगेगा कि सरकार हमारा प्रोडक्ट खरीदे क्योंकि मार्केट में कीमत कम है।’

अमन ने जैसा सवाल उठाया, किसान आंदोलन की सुर्खियों के बीच कई लोगों के मन में ऐसी बातें उठ रही होंगी।  …….ऐसे ही 8 जरूरी सवालों के जवाब जानेंगे…

सवाल 1: सरकार किसानों से MSP पर फसल क्यों खरीदती है, न खरीदे तो क्या हो जाएगा?
जवाब: किसानों से MSP पर फसल खरीदने की 5 बड़ी वजह हैं…

1. सरकारों के खरीदने से फसल की कीमत बढ़ती है: जब सरकार न्यूनतम मूल्य तय कर फसलों को खरीदने लगती है तो इससे बाजार में उस फसल की कीमत का भाव बढ़ता है। यही वजह है कि सरकार किसानों को फसलों की उचित कीमत दिलाने के लिए MSP पर फसलें खरीदती है। अमेरिका की पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी की रिसर्च में ये साबित हुआ है।

यूनिवर्सिटी की तरफ से 2020 में पंजाब, ओडिशा और बिहार समेत एक दर्जन से ज्यादा राज्यों में सर्वे किया गया था। इसमें 10 हजार किसान शामिल हुए थे। रिसर्च में पाया गया कि सरकारी एजेंसियों को उपज बेचने पर बिहार के किसानों को धान की कीमतों में 16%, ओडिशा के किसानों को 17.5% तक ज्यादा कीमत मिली।

2. फसलों के लिए कोल्ड स्टोरेज का अभाव: फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन यानी FAO की रिपोर्ट मुताबिक 2021 में देश में कुल फसल उत्पादन 311 MMT है, जबकि कुल स्टोरेज कैपेसिटी 145 MMT है। यानी 166 MMT फसल को रखने के लिए जगह ही नहीं है।

अगर किसानों की फसल सरकार नहीं खरीदती है तो कोल्ड स्टोरेज के अभाव में फसल खराब हो जाएगी या किसानों को कम कीमत में फसल बेचनी होगी।

3. फसल की उपज पर मौसम की पाबंदी: बाजार में किसी भी चीज की कीमत मांग और आपूर्ति के हिसाब से तय होती है। अब मान लीजिए कोई कंपनी गाड़ी बनाती है, अगर गाड़ी की मांग बाजार में बढ़ जाती है तो कंपनी मांग के मुताबिक उस गाड़ी का प्रोडक्शन और कीमत बढ़ाएगी या घटाएगी। लेकिन, किसानों के साथ ऐसा नहीं है। फसल हमेशा एक तय साइकिल में होती है।

इसे ऐसे समझें कि गेंहू की फसल की बुआई रबी के मौसम यानी अक्टूबर से नवंबर के बीच होगी। ये फसल मार्च से अप्रैल के बीच तैयार हो जाती है। ऐसे में किसान एकदम से फसल लेकर मार्केट पहुंचता है। ज्यादा क्वांटिटी होने के चलते इससे फसल की कीमत कम हो जाती है।

इसी समय कम कीमत में व्यापारी और प्राइवेट कंपनियां फसल खरीदकर स्टॉक कर लेती हैं। इस तरह कीमत कंट्रोल करना किसान के हाथ में नहीं रह जाता है और सरकार की दखल की जरूरत होती है।

4. किसानों के पास पूंजी का अभाव: भारतीय किसानों की प्रति परिवार औसत मासिक आय करीब 10 हजार रुपए है। ज्यादातर किसानों के पास एक फसल की बुआई के बाद पूंजी नहीं होती है। इसी वजह से फसल कटने के बाद दूसरी फसल की बुआई से पहले किसान कम दामों में भी फसल बेचने को मजबूर हो जाते हैं। सरकार अगर MSP पर फसल खरीदती है तो इससे किसानों के पास पूंजी की कमी दूर होती है।

5. किसानों की आय बढ़ाने के लिए सब्सिडी जरूरी: अमेरिका अपने किसानों की आय बढ़ाने के लिए हर किसान को सालाना 42 लाख रुपए से ज्यादा सब्सिडी देता है। भारतीय किसानों को सालाना सिर्फ 15 हजार रुपए सब्सिडी मिलती है। जब बाजार में फसलों की कीमतें गिर जाती हैं, तो सरकार कृषि सब्सिडी के जरिए फसलें खरीदती है, जिससे किसानों को आय की गारंटी मिलती है।

सवाल 2: क्या सरकार के फसल खरीदने से बाजार में किसानों की फसल की कीमत कंट्रोल होती है?
जवाब: हां, कृषि वैज्ञानिक देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि अगर किसी देश में MSP लागू नहीं हो, तो बिजनेसमैन बाजार के हिसाब से फसल की कीमत तय करते हैं। उन्हें इससे कोई लेना-देना नहीं है कि किसानों को फसलों के उत्पादन में कितनी पूंजी लगी है। वह सिर्फ यह देखते हैं कि अच्छी क्वालिटी की फसल सस्ते दामों में उन्हें कहां मिलेगी।

इस तरह जब सरकार किसी राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य में किसानों से फसल खरीदती है तो उस राज्य के व्यापारी न्यूनतम समर्थन मूल्य में फसल खरीदने के लिए बाध्य होते हैं। इससे किसानों को फसल की सही कीमत मिल पाती है।

सवाल 3: क्या है MSP कानून और देश को इसकी जरूरत कब और क्यों पड़ी?
जवाब: MSP कृषि उपज का न्यूनतम मूल्य है, जो किसानों को उनकी फसल पर मिलता है। भले ही बाजार में उस फसल की कीमत कम हो। इसके पीछे तर्क यह है कि बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का असर किसानों पर न पड़े। उन्हें न्यूनतम कीमत मिलती रहे।

सरकार हर फसल सीजन से पहले CACP यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेस की सिफारिश पर MSP तय करती है। अगर किसी फसल की बंपर पैदावार हुई है तो उसकी बाजार में कीमत कम होती है, तब MSP उसके लिए फिक्स एश्योर्ड प्राइस का काम करती है। यह एक तरह से कीमतों में गिरावट पर किसानों को बचाने वाली बीमा पॉलिसी की तरह काम करती है।

देश के किसानों को MSP की जरूरत की वजह…

1950 और 1960 के दशक की बात है। इस वक्त किसान परेशान थे। किसी फसल का बम्पर उत्पादन हो जाता था, तो उन्हें उसकी अच्छी कीमत नहीं मिल पाती थी। इस वजह से किसान आंदोलन करने लगे थे। लागत तक नहीं निकल पाती थी। ऐसे में फूड मैनेजमेंट एक बड़ा संकट बन गया था। किसानों के आंदोलन पर सरकार का कंट्रोल नहीं था।

1964 में एलके झा के नेतृत्व में फूड-ग्रेन्स प्राइस कमेटी बनाई गई। झा कमेटी के सुझावों पर ही 1965 में भारतीय खाद्य निगम यानी FCI की स्थापना हुई और एग्रीकल्चरल प्राइसेस कमीशन यानी APC बना।

इन दोनों संस्थाओं का काम देश में खाद्य सुरक्षा को लेकर कानून बनाने में मदद करना था। FCI वह एजेंसी है जो MSP पर फसल खरीदती है। उसे अपने गोदामों में स्टोर करती है। पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम यानी PDS के जरिए जनता तक फसल को रियायती दरों पर पहुंचाती है।

PDS के तहत देशभर में करीब पांच लाख उचित मूल्य की दुकानें हैं जहां से लोगों को रियायती दरों पर फसल बांटा जाता है। APC का नाम 1985 में बदलकर CAPC किया गया। यह कृषि वस्तुओं की कीमतों को तय करने की नीति बनाने में सरकार की मदद करती है।

सवाल 4: फसलों पर स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले से MSP लागू हो तो सरकार पर कितना बोझ पड़ेगा?
जवाब: क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस एंड एनालिटिक्स के रिसर्च डायरेक्टर पूषन शर्मा ने दैनिक भास्कर को बताया कि हमारे संस्थान की रिसर्च के अनुसार यदि सरकार MSP वाली सभी 23 फसलों का पूरा उत्पादन खरीद लेती है तो सरकारी खजाने पर इसका गहरा प्रभाव होगा। ये बहुत ही भारी खर्च होगा।

यदि ये भी मान लें कि सरकार केवल मंडियों से उन्हीं फसलों को खरीदेगी, जिनकी खरीदी MSP के नीचे होती है, तो भी सरकार को वित्तीय वर्ष 2023 के लिए लगभग 6 लाख करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी। एजेंसी के रिसर्च में MSP वाली 23 में से 16 फसलों को ही शामिल किया गया है।

ये वो फसलें हैं, जिनकी कुल उत्पादन में 90% हिस्सेदारी है। अगर MSP की गारंटी को लागू किया जाता है, तो हो सकता है सरकार को डिफेंस बजट कम करना होगा अथवा सरकार को टैक्स बहुत ज्यादा बढ़ाना पड़ेगा। यही कारण है कि सरकार इसे लागू करने से बच रही है।

सवाल 5: MSP लागू होने से सालाना 6 लाख करोड़ रुपए के अतिरिक्त खर्च पर एक्सपर्ट्स का क्या कहना है?
जवाब: इकोनॉमिस्ट प्रोफेसर अरुण कुमार के मुताबिक ये सिर्फ अफवाह है और डराने वाली बात है। 2024 में देश का कुल बजट 47 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रहा है। इसमें कृषि बजट सिर्फ 1.27 लाख करोड़ का है। अगर MSP के लिए 2 लाख करोड़ तक अतिरिक्त पैसा भी लगता है तो सरकार को नहीं हिचकना चाहिए।

सरकार किसानों से सारी फसल नहीं खरीद सकती है। MSP लागू होने पर सरकार को सिर्फ वही फसल खरीदनी होगी, जिसकी कीमत बाजार में MSP से कम मिल रही हो। अगर सरकार 10% फसल भी किसानों के पास से खरीदती है तो मार्केट में अचानक इनकी कमी हो जाएगी और बाजार में फसल की कीमत बढ़ जाएगी। सरकार को इस पर ज्यादा से ज्यादा 1.80 लाख करोड़ रुपए खर्च करना होगा। 10 लाख करोड़ रुपए खर्च होने की बात गलत है।

कृषि वैज्ञानिक देवेंद्र शर्मा के मुताबिक MSP लागू होने से कृषि से जुड़ी 50% आबादी को फायदा मिलेगा। 2016 में सरकार ने 7वां वेतन आयोग लागू किया तो 4.80 लाख करोड़ खर्च हुए। इससे सिर्फ 4% से 5% आबादी को फायदा हुआ था।

सरकार अभी चावल और गेहूं की सरप्लस, यानी जरूरत से ज्यादा खरीदारी कर रही है। नवंबर 2023 में सरकारी गोदाम FCI में चावल का स्टॉक 7.5 MT होना चाहिए था। जबकि, इस वक्त FCI में 40 MT है। मतलब जरूरत से 5 गुना ज्यादा चावल का स्टॉक भारत में है। अगर सभी फसलों पर MSP लागू होता है तो किसान चावल और गेहूं की बजाय दूसरी फसलों पर शिफ्ट करेंगे।

इससे FCI में तिलहन, दलहन की कमी दूर होगी। चावल और गेहूं का भी सरप्लस कम होगा। सरकार अभी करीब 1.50 लाख करोड़ रुपए तक इस अतिरिक्त फसल की खरीदारी में खर्च करती है। इतने ही पैसे में दूसरी फसल को सरकार MSP कीमत पर खरीद सकेगी। किसान 2004 के स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिश के मुताबिक फसलों की कीमत चाहते हैं।

सवाल 6: MSP लागू होने से देश को क्या फायदा होगा?
जवाब: MSP लागू होने पर एक दो साल समस्या बनी रहेगी। लोग चावल और गेहूं ज्यादा पैदा करने लगेंगे। हालांकि, धीरे-धीरे किसान दूसरी फसलों की तरफ शिफ्ट करेंगे। MSP लागू होने से देश को मुख्य रूप से दो फायदे होंगे….

1. पर्यावरण के लिहाज से: अभी देश में जिन फसलों पर MSP मिलती है, किसान सिर्फ वही फसल उपजाते हैं। अगर सारे फसलों पर MSP लागू हुआ तो जिन राज्यों में पानी कम है, जैसे पंजाब में धान और महाराष्ट्र में गन्ना की बुआई कम होगी। इन जगहों पर किसान तिलहन और दलहन उपजाने लगेंगे। इससे जलस्तर नीचे जाने से बचेगा।

2. भारत आत्मनिर्भर होगा और अनाज का आयात घटेगा: 2022-23 के मार्केटिंग सीजन (नवम्बर-अक्टूबर) के दौरान देश में तिलहन का आयात तेजी से बढ़कर 164.66 लाख टन हो गया। इस तरह भारत ने अब तक का सबसे ज्यादा तिलहन आयात किया है। अगर देशभर में MSP लागू हुआ तो किसान दलहन और तिलहन की उपज करेंगे। इससे ये फसल दूसरे देशों से आयात नहीं करनी पडे़गी।

सवाल 7: MSP लागू होने से देश की इकोनॉमी और भुखमरी-कुपोषण पर क्या असर पड़ेगा?
जवाब: प्रोफेस अरुण कुमार के मुताबिक MSP लागू होने से देश में मुख्य रूप से आम लोगों को दो तरह से फायदा होगा…

1. इकोनॉमी को रफ्तार मिलेगी: देश की 50% से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर है। अगर MSP लागू हुआ तो किसानों की आय बढ़ेगी। उनके खरीदने की क्षमता बढ़ेगी। महंगाई जरूर बढ़ेगी, लेकिन सरकार के पास सब्सिडी में खर्च होने वाला 2 लाख करोड़ रुपए तक बचेगा। सरकार इस पैसे को बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च करेगी।

2. भुखमरी और कुपोषण भी घटेगा: MSP लागू होता है तो देश के ज्यादातर खेती से जुड़े लोगों की इनकम बढ़ेगी। इससे वो फल, साग-सब्जी पर पैसा खर्च कर पाएंगे। इससे कुपोषण घटेगा। सरकार को फूड सिक्योरिटी योजना के लिए सिर्फ 25 मिलियन टन फसल चाहिए। इस तरह फसल के सरप्लस की समस्या कम हो जाएगी।

सवाल 8: MSP लागू होने से सरकार क्यों बचती है?
जवाब: प्रोफेसर अरुण कुमार के मुताबिक सरकार के MSP लागू करने से बचने की दो मुख्य वजह हैं। पहली वजह यह है कि सरकार किसानों पर 2 लाख रुपए तक खर्च होने वाली इस योजना को लागू करने से डर रही है। सरकार लगता है कि इससे बोझ बढ़ेगा, लेकिन ऐसा नहीं है।

इसके अलावा एक बड़ी वजह यह है कि देश में लेबर कॉस्ट यानी मजदूरी कम रखने के लिए खाने-पीने के चीजों की कीमत कम रखना जरूरी है। अगर सरकार MSP लागू करती है तो खाने पीने की चीजों की कीमत बढ़ेगी। इससे लेबर कॉस्ट बढ़ेगा। घरों में काम करने वाले ड्राइवर, लेबर की मजदूरी बढ़ेगी। सरकार ऐसा नहीं चाहती है।

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