झटका और हलाल की सियासत में हम !
झटका और हलाल की सियासत में हम
अंग्रेजों के जमाने में एक शब्द बहुत चर्चित होता था ‘ गिरमिटिया । आज की सियासत में एक दूसरा शब्द चर्चित है ‘गिरगिटिया । दोनों शब्दों में जमीन-आसमान का अंतर है । गिरमिटिया वे विवश भारतीय थे जिन्हें अंग्रेजों ने जबरन अपने नियंत्रण के देशों में मजदूर बनाकर भेजा था । लेकिन गिरगिटिया वे नेता हैं जो खुद बिकने को तैयार रहते हैं और मौसम के हिसाब से ,मंडी के हिसाब से अपने दाम मिलने पर फौरन बिक जाते हैं। इसी गिरगिटिया सियासत में अब एक नया शब्द अचानक चर्चित हो गया है उसे कहते हैं ‘ झटका ‘। ये हलाल और हराम के बीच का शब्द है। इसके अर्थ एकदम से समझ में नहीं आ सकते।
आजकल राजनीतिक दल एक -दूसरे को सियासी मुकाबले में झटके पर झटका देने में यकीन करने लगे हैं। कोई किसी का पार्षद तोड़कर झटका देता है तो कोई किसी का विधायक,सांसद तोड़कर। चंडीगढ़ में महापौर पद के चुनाव में जोड़-तोड़ और बेईमानी से जीती भाजपा ने देश की सबसे बड़ी अदालत का फैसला आने से पहले ही आम आदमी के तीन पार्षदों को तोड़कर अरविंद केजरीवाल को ‘ झटका दे दिया। भाजपा झटका विशेषज्ञ पार्टी है। ये दल जब चाहे तब किसी को भी झटका दे सकता है। पिछले दिनों बिहार में भाजपा ने राजद और कांग्रेस को साझा झटका देकर सत्ता से बाहर कर दिया । झारखंड में भाजपा खुद झटका खा गयी। उत्तर प्रदेश में भाजपा ने पांच बार के समाजवादी पार्टी के एक अल्पसंख्यक नेता जी को तोड़कर झटका दे दिया। इससे पहले कांग्रेस के प्रमोद कृष्णम को अपना बगलगीर बनाकर भाजपा कांग्रेस को झटका दे चुकी है।
भाजपा को झटका देने में महारत हासिल यही और विपक्ष को झटका खाने में। कांग्रेस मध्यप्रदेश में झटका खाते-खाते बची । इसके लिए भी कांग्रेस को भाजपा के ही नेताओं का एहसानमंद होना चाहिए जो उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ को उनके दल-बल के साथ भाजपा में लेने से इंकार कर दिया। अब नाथ पिता-पुत्र की दशा सांप-छछूंदर जैसी हो गयी है । बेचारे अब न घर के रहे और न घाट के।अब दोनों हारे हुए जुआरी की तरह सिर झुकाये बैठे दिखाई देंगे।
आपको बता दें कि इस्लाम में झटका वर्जित है और सनातन में इसको लेकर कोई ख़ास नियम नहीं है । झटका इस्लाम में आहार के लिए किसी जीव का सिर कलम करने की अपवित्र विधि है ,लेकिन सियासत में ये बहुत कारगर तरीका है। इस्लाम में सब कुछ हलाल किया हुआ पसंद किया जाता है। उत्तर प्रदेश में तो अनेक उत्पादों को लेकर इस्लामिक संस्थाएं हलाल प्रमाण पत्र देतीं थीं लेकिन यूपीए की डबल इंजन सरकार ने इस पर रोक लगा दी । शायद सरकार चाहती है कि सूबे में जो भी हो हलाल से नहीं झटके से हो। जैसा कि मैंने कहा कि झटका कम पीड़ादायक होता है। भाजपा अपने प्रतिद्वंदी को मारना तो चाहती है लेकिन कम से कम तकलीफ देकर । शायद इसीलिए उसे झटका विधि पसंद है।
झटके के इस दौर में आम आदमी कहीं नहीं है । उसे जोर के झटके भी धीरे से दिए जाते हैं ,इसलिए बेचारा समझ ही नहीं पाता कि उसे कोई झटका दिया भी गया है या नहीं। वैसे भी हिन्दुस्तान में आम आदमी झटका खाने के लिए बना है । किसी परम स्वतंत्र राजनीतिक दल या नेता को झटका देना तो आम आदमी जैसे भूल ही चुका है। आम आदमी झटका खाकर आह तक नहीं भरता । डरता है कि कहीं आह भरने पर उसे फिर कोई नया झटका न दे दिया जाये। हर सरकार आम आदमी को झटका देती है। सरकार का काम ही झटका देना है । सरकार यदि आपको झटका नहीं देगी तो सरकार को सरकार कौन कहेगा भला ?
देश की जनता पिछले दस साल में इतने झटके खा चुकी है कि अब उसे झटके खाने की आदत पड़ गयी है । अब यदि उसे सरकार की और से कुछ दिनों तक कोई झटका न लगे तो लगता है कि-‘ कहीं सरकार को कुछ हो तो नहीं गया ?। सरकार भी देशहित में जनता को सतत झटके देते रहती है। ये काम बहुत मुस्तैदी से किया जाता है । महंगाई तो झटका देने का घिसा-पिटा तरीका हो गया है। अब झटका देने के नए-नए तरिके ईजाद किये जाते हैं। कभी झटका संसद में दिया जाता है तो कभी संसद के बाहर। झटका कभी शालीनता से दिया जाता है तो कभी बेरुखी से। झटके के अनेक प्रकार हैं। झटके शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरीके के होते हैं। झटकों को किसी प्रमाणपत्र कोई आवश्यकता नहीं पड़ती ।
झटकों पर नजर रखते हुए मेरी सारी उम्र बीत गयी ,इसलिए मै साधिकार कह सकता हूँ कि झटका देने का कोई समय और महूर्त नहीं होता। झटका कभी भी,कहीं भी दिया जा सकता है । झटका कब और किसे दिया जाये ये हर सरकार की एक चांडाल चौकड़ी [ आप शालीन भाषा में उसे किचिन केबिनेट कह सकते हैं ] देती है। कांग्रेस की सरकार में आपातकाल के समय इस तरह कि एक घोषित चौकड़ी हुआ करती थी । भाजपा की सरकार में ये काम चार के बजाय दो लोगों की जोड़ी कर रही है। भाजपा कि सरकार चाहे एक इंजिन की हो या दो इंजिन की इसी जोड़ी की दम पर चलती है। ये जोड़ी कांग्रेस की बैल जोड़ी जैसी है जो दिन -रात काम करती है ,खासतौर पर झटकों पर इसका काम सरहनीय होता है।
चूंकि देश में आम चुनाव सिर पर हैं इसलिए आम आदमी को इन झटकेबाज राजनीतिक दलों और नेताओं के बारे में जगह करना मेरा परम् धर्म है। ‘ अहिंसा परमो धर्म ‘ की तरह। इसीलिए मै तमाम ज्वलंत मुद्दों को दरकिनार कर आज झटका विधा पर अपना ज्ञान बघार रहा हूँ। मुझे इसके एवज में कुछ उदारमना लोग एक रुपया देंगे तो बाक़ी गालियां। लेकिन राष्ट्रहित में मै अपना काम मुस्तैदी से करता हूँ। मुझे न रूपये का लालच है और न गालियों से परहेज। मै तो चाहता हूँ कि हमारा रुपया हमारे माननीय झटकेबाजों की उम्र के साथ तालमेल बैठा ले।। न बैठा पाए तो कम से कम स्थिर ही हो जाये। क्योंकि रुपया जब नीचे गिरता है तो हमारे झटकेबाजों की इमेज को झटका लगता है। रूपये की कीमत को नेताओं की इमेज से जोड़ने का काम भी इसी दशक में हुआ है। रुपया आज के प्रधानमंत्री के बजाय कल के प्रधानमंत्री की उम्र को छूने की कोशिश कर रहा है। हम चाहते हैं कि रुपया जाये भाड़ में लेकिन हमारे पूर्व और वर्तमान और भावी प्रधानमंत्री शतायु हों। झटका बाजार में दोनों की महती जरूरत है।
दुर्भाग्य देखिये कि हमारे देश में झटके की सियासत अधिकांश राजनीतिक दल करते हैं किन्तु हलाल की सियासत ले-देकर जनाब औबेसी ही करते हैं। जबकि सभी को हलाल की सियासत करना चाहिये । हलाल की सियासत में एक बूँद खून भी बर्बाद नहीं होता। लेकिन लोग और प्रमुख झटकेबाज इस हकीकत को समझते ही नहीं और सियासत को हमेशा खून-आलूदा बनाये रखना चाहते हैं। झटकेबाजों को इससे कोई मतलब नहीं कि सियासत को लाल करने वाला खून मर्द का है या औरत का । किसान का है या मजदूर का।बहरहाल मुझे उम्मीद है कि आम जनता झटके का मर्म समझ गयी होगी। आम चुनाव में फैसला लेने में ये ज्ञान बहुत काम आएगा। खुदा हाफिज।