अन्नदाता ‘ और सरकार के बीच टकराव !

अन्नदाता ‘ और सरकार के बीच टकराव

भारत में किसानों को ‘ अन्नदाता ‘ कहा जाता है लेकिन उनकी दशा बेहद खराब है। किसानों को अपने अधिकार हासिल करने केलिए हर युग में सत्ता प्रतिष्ठान से लड़ाई लड़ना पड़ती है। भारत का किसान भले अन्नदाता कहलाता हो किन्तु उसने मुगलों से भी लड़ाई लड़ी ,अंग्रेजों से भी लड़ाई लड़ी और आज एक बार फिर रामराज चलाने वाली सरकार से उसका टकराव होता दिखाई दे रहा है। किसानों की लड़ाई अंतहीन हो गयी है।
देश को हर तरह की गारंटी देने वाले प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी किसानों से सीधे मुंह बात करने को राजी नहीं हैं और उनकी सरकार की और से किसानों से बातचीत करने वाले किसानों को मनाने में नाकाम रहे है। और तुर्रा ये है कि हमारी सरकार दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्तव्यवस्था बनना चाहती है। किसानों की उपेक्षा कर ये सब कैसे मुमकिन होगा ये केवल सरकार जानती है या भगवान। किसानों को तो इस वारे में कुछ आता नहीं है। दुर्भाग्य से देश का प्रधानमंत्री देश का सबसे बड़ा ओबीसी तो है किन्तु सबसे बड़ा किसान नहीं। किसान सरकार से वार्ता नाकाम होने के बाद 21 फरवरी से राजधानी की और कुछ कर सकते हैं। राजधानी में उनके साथ क्या होगा ये सोचकर ही रूह कांपने लगती है।

चार साल पहले आई नाबार्ड की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 10.07 करोड़ परिवार खेती पर निर्भर थे। यह संख्या देश के कुल परिवारों का 48 प्रतिशत है। सरकार की कृषि विरोधी नीतियों की वजह से चार साल में ये संख्या घटी या बढ़ी हमें नहीं पता। नाबार्ड की रिपोर्ट पर ही भरोसा किया जाए तो एक कृषि आधारित परिवार में वर्ष 2016-17 में औसतन सदस्य संख्या 4.9 थी। अगल-अलग राज्यों में इसकी संख्या भी अलग-अलग है । उदाहरण के लिए केरल में एक परिवार में 4 सदस्य हैं, तो वहीं उत्तर प्रदेश में सदस्य संख्या 6, मणिपुर में 6.4, पंजाब में 5.2, बिहार में 5.5, हरियाणा में 5.3 कर्नाटक और मध्य प्रदेश में 4.5 और महाराष्ट्र में 4.5 थी।
हमारा अन्नदाता किसान सरकार से ‘आसमान के तारे ‘ नहीं बल्कि अपनी फसलों का न्यूनतम दाम मांग रहा है। सरकार को ये दाम देना भी नहीं हैं केवल निर्धारित कर एक क़ानून बनाना है। दुर्भाग्य ये कि हमारी संप्रभु और प्रभु रामभक्त सरकार ये काम भी नहीं कर पा रही। करे भी तो कैसे ,उसे तो अपनी छवि और मंदिर बनाने और उनका उद्घाटन करने से ही फुरसत नहीं है। पहले अयोध्या में राम मंदिर बनवाया ,फिर यूएई में बनवाया। अभी कल्किधाम का शिलान्यास किया। किसानों के लिए सरकार के पास समय बचता ही कहाँ है ? किसान अपनी मांगों को लेकर दस दिन से दिल्ली की सीमा के बाहर डेरा डालकर बैठा है लेकिन सरकार बेफिक्र है। सरकार जानती है कि किसानों के अकेले वोटों से उसे तीसरी बार सत्ता में आने से नहीं रोका जा सकता ।

हमारी सरकार रामभक्त सरकार अवश्य है किन्तु किसान भक्त सरकार बिलकुल नहीं है । ये वो सरकार है जो दो साल पहले 700 से ज्यादा किसानों की शहादत के बाद भी झूठ बोलने से नहीं चूकी । सरकार ने किसानों के पुराने साल भर चले आंदोलन के बाद जिन तीन विवादित कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी उनके बाद किसानों के मन-माफिक कानून आजतक नहीं बनाये। सरकार की इस हठधर्मिता को क्या नाम दिया जाये ये आप खुद तय करें। ये वो ही सरकार है जो आजतक सुलग रहे मणिपुर के मुद्दे पर चर्चा करने से लगातार कतराती रही। इस सरकार ने किसानों की ही तरह देश की महिलाओं को ठगने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाकर ‘ नारीशक्ति वंदन विधेयक को क़ानून तो बनाया किन्तु वास्तव में नारी शक्ति की वंदना नहीं की । अभी पिछले साल ही हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में से चार राज्यों में जीत हासिल की किन्तु एक भी नारी को मुख्यमंत्री नहीं बनाया । उलटे देश की एकमात्र महिला मुख्यमंत्री बंगाल की ममता बनर्जी की सरकार को गिराने में लगी है ये सरकार।

हम आम लोग नहीं जानते कि किसानों की मांगे मानने से सरकार को क्या समस्या आने वाली है ,लेकिन सब कुछ मुमकिन करने का दावा करने वाली सरकार कहाँ कमजोर पड़ रही है ये सरकार को अपने श्वेतपत्र में बताना तो चाहिए था। सरकार की रामभक्ति पर लट्टू जनता को ये जानना भी जरूरी है कि राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 14 प्रतिशत से अधिक है। कोविड-19 की वजह से पैदा आर्थिक मंदी के बीच 2020-21 में भी किसानों की हिस्सेदारी कम नहीं हुई थी बल्कि बढ़ी थी और इसी वजह से सरकार आर्थिक संकट में फसने से बची थी। हमारी सरकार किसानों का अहसान मैंने कि बजाय उन्हें उत्पीड़ित करने में लगी है।

देश का दुर्भाग्य है कि देश जिस किसान वर्ग को ‘ अन्नदाता ‘ कहता है उसके लिए ही हमारी सरकार राजधानी कि रास्ते में लोहे की कीलें बिछवाती है । कांटेदार तारों की बाद खिंचवाती है । उनके ऊपर गोली -लाठी चलवाती है। ये वे ही किसान हैं जिनकी वजह से सत्तारूढ़ भाजपा को लोकसभा में 303 सीटें मिलीं थी । ये शक्ति किसी अडानी या अम्बानी ने नहीं दी थी ,फिर भी किसानों को सरकार अपना शत्रु मानकर व्यवहार कर रही है

किसानो के प्रति सरकार की दुर्भावना को इसी बात से समझा जा सकता है कि सरकार किसानों को एमएसपी की गारंटी देने कि बजाय उनकीमांगों को अनुचित बताने कि लिए वाट्सअप विश्वविद्यालय के जरिये ये प्रचारित करा रही है की यदि किसानों को एमएससपी दी गयी तो देश को सेना पर किये जाने वाले खर्च से भी ज्यादा खर्च करना पडेगा । सरकार और अन्धभक्तों का ये अजब तर्क है। इससे किसी को बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। हालांकि ऐसी कोशिश लगाता की जा रही है।

चूंकि मै माननीय प्रधानमंत्री जी की बातों को बहुत गौर से सुनता हूँ इसलिए मुझे 8 फरवरी 2021 का उनका राजयसभा में दिया गया वो भाषण अक्षरश याद है जिसमें उन्होंने हाल ही में भारतरत्न घोषित किये गए पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के कथन का ज़िक्र किया था और कहा था कि चौधरी चरण सिंह अक्सर 1970-71 एग्रीकल्चर सेंसेस का ज़िक्र किया करते थे । मोदी जी ने कहा,था कि “किसानों का सेंसस लिया गया,तो 33 फ़ीसदी किसान ऐसे थे जिनके पास दो बीघे से भी कम ज़मीन थी, 18 फ़ीसदी ऐसे जिनके पास दो से चार बीघे ज़मीन. ये 51 फ़ीसदी किसान कितनी भी मेहनत कर लें, अपनी ज़मीन पर इनकी गुज़र नहीं हो सकती। “
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि मौजूदा वक़्त में जिनके पास एक हेक्टेयर से कम ज़मीन है, वो आज 68 फ़ीसदी हैं. 86 फ़ीसदी किसानों के पास 2 हेक्टेअर से भी कम ज़मीन है. ऐसे किसानों की संख्या 12 करोड़ है। किन्तु दुर्भाग्य की अब मोदीजी को कुछ भी याद नहीं है। काश ! मोदी जी ने चाय बेचने के बजाय खेती –किसानी की होती । हल चलाया होता । खलिहानों में काम किया होता तो वे किसान की पीड़ा को ढंग से समझ पाते। अब चूंइक देश में राम राज है इसकलिये मैं भगवान राम से ही प्रार्थना करता हूँ कि आने वाले दिनों में देश के किसानों के साथ कोई अनहोनी न ह। उन्हें यथाशीघ्र न्याय मिले ।

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