2050 तक भारत हो जाएगा बुजुर्गों का देश ?
26 साल बाद भारत नहीं रहेगा युवाओं का देशः दक्षिण टॉप पर; इन राज्यों का आंकड़ा सबसे चौंकाने वाला
नीति आयोग ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है. इसके अनुसार 2050 तक भारत की 30 करोड़ आबादी बूढ़ी हो जाएगी. ऐसी परिस्थिति से निकलने के लिए देश को क्या करना चाहिए, विस्तार से समझिए
भारत को युवाओं का देश कहा जाता है. ये इसलिए क्योंकि भारत में ज्यादातर आबादी युवा हैं. लेकिन क्या देश हमेशा ही युवाओं का देश बना रहेगा? नहीं. एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, भारत साल 2050 तक बुजुर्गों का देश बन जाएगा.
हाल ही में नीति आयोग ने ‘सीनियर केयर रिफॉर्म्स इन इंडिया’ नाम की एक रिपोर्ट जारी की है. इसी रिपोर्ट के माध्यम से आयोग ने सरकार को ये भी सुझाव दिया है कि उन्हें साल 2050 तक के लिए कैसे तैयार रहना चाहिए.
ऐसे में इस खबर में विस्तार से समझते हैं कि 2050 तक भारत क्यों बुजुर्गों का देश बन जाएगा और क्या भारत बुजुर्गों की आबादी को सेवा देने के लिए तैयार है?
सबसे पहले समझिए की सुपर एज्ड देश किसे कहते हैं
सुपर-एज्ड उन देशों को कहा जाता है जहां युवा आबादी तेजी से घट रही होती है और 20% से ज्यादा लोग 65 साल से ज्यादा उम्र के होते हैं. सीनियर्स पर अध्ययन करने वाली संस्था जेरोन्टोलॉजिकल सोसायटी ऑफ अमेरिका (GSA) के अनुसार दुनिया में कई देश हैं जो वर्तमान में सुपर-एज्ड हो चुके तो कुछ देशों में आने वाले कुछ सालों में ऐसी स्थिति हो सकती है.
उदाहरण के तौर पर जापान और जर्मनी को ही ले लीजिए. इन दोनों देशों में हर 5 में से 1 व्यक्ति 65 या इससे ज्यादा उम्र का है. वहीं साल 2030 तक अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और सिंगापुर भी इस श्रेणी में आ जाएंगे.
नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भारत को लेकर क्या कहा?
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल बुजुर्गों की आबादी में 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है और इस आंकलन के अनुसार साल 2050 तक भारत में बुजुर्गों की संख्या 30 करोड़ 19 लाख हो जाएगी.
भारत में वर्तमान में कुल जनसंख्या का 10 प्रतिशत हिस्सा वरिष्ठ नागरिकों का है. यानी फिलहाल भारत में कुछ 10 करोड़ 40 लाख बुजुर्ग हैं. लेकिन यही संख्या साल 2050 तक बढ़कर कुल जनसंख्या की 19.5% हो जाएगी.
किसी भी देश की युवा आबादी क्यों घटती है, 4 कारण
1. फर्टिलिटी रेटः किसी भी देश की युवा आबादी के कम होने का एक सबसे बड़ा कारण है इस देश की फर्टिलिटी रेट का गिर जाना. भारत में भी कुछ सालों से फर्टिलिटी रेट में गिरावट देखी जा रही है.
इसे आसान भाषा में कहें तो एक महिला औसतन कितने बच्चों को जन्म देती है उसे ही फर्टिलिटी रेट कहा जाता है. भारत के फर्टिलिटी रेट की बात की जाए तो NFHS-4 (2015-2016) में इस देश की फर्टिलिटी रेट जहां 2.2 थी, वहीं NFHS-5 (2019-2021) में ये घटकर 2.0 पहुंच गई.
2. जीवन प्रत्याशा बढ़ना: जीवन प्रत्याशा बढ़ने का आसान भाषा में कहें तो लाइफ एक्सपेक्टेंसी रेट बढ़ रही है. यानी पहले जिस व्यक्ति की मौत 60 से 65 सालों में हो जाती थी. अब बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं और जीवन मिलने का कारण उनके मौत की उम्र बढ़ गई है.
3. क्रूड डेथ रेटः हर एक हजार लोगों पर कितनी मौतें हो रहीं हैं. किसी भी देश की युवा आबादी के कम होने की एक वजह ये भी मानी जाती है.
4. इन्फेंट मोर्टेलिटी रेटः यानी किसी देश की नवजात मृत्यु दर कितनी है. इन्फेंट मोर्टेलिटी रेट से पता चलता है कि एक हजार जन्म पर कितने नवजातों की मौत हुई. भारत की बात की जाए तो इस देश में साल 2011 में हर 1000 जन्म पर 44 मौतें हो रही थी, जो की साल 2019 में घटकर 30 पर आ गई.
अब बुजुर्गों के लिए भारत को कैसे तैयार रहना है, इसे समझिए
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश को इस स्थिति में पहुंचने से पहले ही खुद को तैयार करने की जरूरत है. यानी भारत सरकार को अभी से कई तैयारियां करनी शुरू कर देनी चाहिए. भारत सरकार को आबादी के लिए टैक्स व्यवस्था में बदलाव, अनिवार्य बचत योजना, हाउसिंग प्लान जैसी योजना बनानी होगी.
ब्याज दरों में सुधार करने की जरूरत- नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्तमान में कोई ऐसी बड़ी पेंशन योजना नहीं है जो लोगों के रिटायर होने के बाद उनके काम आ सके, इसलिए आज के समय में ज्यादातर वरिष्ठ नागरिक अपनी सेविंग्स पर मिलने वाले ब्याज पर निर्भर रहते हैं. लेकिन क्योंकि ब्याज दरों में भी बदलाव होते रहते हैं इसलिए कई बार बुजुर्गों की आय में भी कमी आ जाती है. नीति आयोग ने सुझाव दिया कि देश के बुजुर्गों की जमा पर मिलने वाले ब्याज दरों को निर्धारित करने के लिए एक नियामक तंत्र की जरूरत है.”
जीएसटी व्यवस्था- इसके अलावा आयोग ने अपने सुझाव में कहा कि वरिष्ठ आबादी को फाइनेंशियल बोझ से बचाने बाजार में मिलने वाले उपकरणों और सामानों पर टैक्स और जीएसटी व्यवस्था में सुधार करना चाहिये.”
हेल्थ केयर- वर्तमान की बात करें तो देश की लगभग 75 प्रतिशत बुजुर्ग आबादी किसी पुरानी बीमारियों से पीड़ित हैं. इस आंकड़े से ये तो साफ है कि आने वाले समय में भारत में होम-बेस्ड केयर का बाजार बढ़ सकता है. नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि आने वाले समय में बुजुर्गों की संख्या बढ़ सकती है कि इसलिए जरूरी है कि भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था को कम खर्चीला और सुविधाओं को बेहतर बनाने पर काम किया जाए.
भारत में वरिष्ठ नागरिकों का राज्यवार स्थिति पर एक नजर
2011 के जनगणना के आंकड़ों के अनुसार साल 2036 तक केरल की 22.8% आबादी बुजुर्गों की हो जाएगी, हिमाचल प्रदेश की 19.6% आबादी वरिष्ठ नागरिकों की होगी. 2036 तक पंजाब में 18.3%, पश्चिम बंगाल में करीब 18.2%, महाराष्ट्र में 17.2%, कर्नाटक में 17.2%, ओडिशा में 17.1%, तमिलनाडु में 20.8, आंध्र प्रदेश में 19% और तेलंगाना में 17.1% नागरिक बुजुर्ग होंगे.
बिहार और यूपी का हाल भी जान लीजिए
2011 की जनगणना के मुताबिक बिहार में भी बुजुर्गों की आबादी 2036 तक 10.9 प्रतिशत से अधिक हो जाएगी. वर्तमान में यह संख्या महज 6.3 प्रतिशत है. वहीं यूपी की बात करें तो इस राज्य की जनसंख्या साल 1961 से लगातार बढ़ रही है और 2021 में यह 13.8 करोड़ पर पहुंच गई. जबकि बुजुर्गों की संख्या 8.1 प्रतिशत है.
आश्रित आबादी को किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है
किसी भी देश में जनसंख्या की उम्र बढ़ने की घटना समाज के सभी पहलुओं को प्रभावित करती है. इसमें स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक बदलाव शामिल है. भारत में वर्तमान में कुल जनसंख्या 66 प्रतिशत जनसंख्या आश्रित है.
- 0-14 साल और 60 साल से ज्यादा उम्र के व्यक्तियों को आश्रित जनसंख्या कहा जाता है.
- 2021 की लॉन्गिट्यूडिनल एजिंग स्टडी की एक रिपोर्ट के अनुसार देश की आश्रित आबादी में 75% पुरानी बीमारियों, कार्यात्मक सीमाओं, अवसादग्रस्त लक्षणों और जीवन की असंतुष्टी से पीड़ित हैं.
इन देशों में हैं सबसे ज्यादा बुजुर्ग
जापान- इस देश में बुजुर्गों की आबादी सबसे ज्यादा बताई गई है. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण बर्थ रेट का गिरना है. जापान की सरकार इसे बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. जापान को लेकर अनुमान लगाया जाता है कि साल 2040 तक इस देश में बुजुर्गों की आबादी 34.8 प्रतिशत हो जाएगी.
जर्मनी- जापान के बाद जर्मनी का नंबर आता है. साल 2019 के आंकड़े के अनुसार इस देश में 21.8% आबादी की उम्र 65 या इससे ज्यादा है. इसके साथ ही यहां की युवा आबादी भी तेजी से कम हो रही है. रिपोर्ट के अनुसार जर्मनी में लगभग 15 से 64 साल के लोगों की संख्या साल 2005 से 2015 के बीच लगभग 3 प्रतिशत घटी लेकिन अब ये प्रतिशत ऊपर जा रहा है. अनुमान है कि साल 2050 तक ये युवाओं में कमी का प्रतिशत 22.6 तक चला जाएगा.
चीन- कभी सबसे ज्यादा आबादी वाला देश चीन आने वाले समय में सुपर-एज्ड देशों की श्रेणी आ सकता है. वहां वन-चाइल्ड पॉलिसी का असर आबादी पर दिख रहा है. साल 2020 में चीन की हुए जनगणना के मुताबिक इस देश के 18.7% लोग 60 साल से ज्यादा उम्र के थे. ऐसे में जल्दी अगर इस देश में परिवार बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया गया तो यहां की बड़ी आबादी आने वाले समय में बुजुर्ग होगी.
सिंगापुर– 1999 में यहां केवल 7% लोग 65 से ज्यादा उम्र के थे लेकिन रिपोर्ट के अनुसार साल 2026 तक ये आबादी सीधे 20% हो जाएगी, यानी सिंगापुर भी सुपर-एज्ड देशों में शामिल होगा.