महिलाएं देश बनाती हैं !
महिलाएं देश बनाती हैं, इसलिए जरूरी है आधी आबादी का आर्थिक सशक्तीकरण
हाल के वर्षों में भारत की आर्थिक प्रगति ने महत्वपूर्ण गति पकड़ी है। वर्तमान में देश अपने 50 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के सपने की बुनियाद मजबूत कर रहा है, जल्द ही यह तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बनने वाला है और अंततः 2047 तक भारत पूर्ण विकसित राष्ट्र बन जाएगा। लेकिन इस सपने को साकार करने के लिए जरूरी है कि हम अपनी आधी आबादी यानी महिलाओं को सशक्त बनाने के महत्व को स्वीकार करें।
खेल, व्यवसाय से लेकर अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी तक, यानी जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं ने साबित किया है कि भारत की प्रगति में उनका योगदान बेहद महत्वपूर्ण है। उनकी पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिए उनका वित्तीय सशक्तीकरण आवश्यक है, ताकि वे देश के विकास को प्रगतिशील और समावेशी बनाने में बदलाव की वाहक बन सकें।
आज हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि महिला सशक्तीकरण महज एक नारा नहीं है, बल्कि इसे हासिल करने से विभिन्न आर्थिक-सामाजिक पहलुओं पर ठोस परिणाम सामने आते हैं। उदाहरण के लिए, श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर उन्हें सशक्त बनाने से न केवल जीडीपी में उल्लेखनीय वृद्धि होती है, बल्कि अर्थव्यवस्था मजबूत बनती है और समग्र कल्याण में सुधार होता है।
एक रिपोर्ट बताती है कि अधिकांश लैंगिक रूप से समान अर्थव्यवस्था वाले देशों में लैंगिक रूप से असमान अर्थव्यवस्था वाले देशों की तुलना में औसत वार्षिक जीडीपी वृद्धि दर 0.8 प्रतिशत अधिक है। विकास दर में यह अंतर 15 साल की अवधि में जीडीपी के अतिरिक्त 20 फीसदी के बराबर है। यहां तक कि मैकिंजे की एक रिपोर्ट भी इस बात पर प्रकाश डालती है कि महिलाओं को समान अवसर प्रदान करने से 2025 तक भारत की जीडीपी 770 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ सकती है। इसलिए मजबूत आर्थिक विकास करने वाले भारत द्वारा श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और उनका समर्थन करने से उसकी ताकत कई गुना बढ़ सकती है। इसे हासिल करने के लिए संगठनों को श्रमबल में विविधता लाने के महत्व और आवश्यकता को महसूस करने की जरूरत है। इसे सुनिश्चित करने से अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी बढ़ सकती है और विविध विचारों और दृष्टिकोण वाली कंपनियों को लाभ भी हो सकता है।
चूंकि महिलाएं कई भूमिकाएं निभाती हैं और व्यक्तिगत एवं पेशेवर स्तर पर विभिन्न तरह की जिम्मेदारियां संभालती हैं, इसलिए संगठनों को उन्हें काम एवं जीवन में बेहतर संतुलन बनाने में मदद करने के लिए आगे आना चाहिए, ताकि वित्तीय विकास के लिए उन्हें अपने निजी जीवन का त्याग न करना पड़े। लचीली कार्य-व्यवस्था प्रदान करने, प्रगतिशील अवकाश नीति अपनाने, बाल-देखभाल सहायता सुनिश्चित करने एवं उन्हें अन्य सुविधाएं देने से इसे आसानी से हासिल किया जा सकता है। ये प्रयास महिलाओं की भलाई और उन्हें बेहतर रोजगार संतुष्टि प्रदान कर कार्य में सार्थक योगदान देने में सक्षम बना सकते हैं। नेतृत्व में विविधता लाने के लिए संगठन के भीतर वरिष्ठ भूमिकाओं में महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए अवसर भी पैदा करने होंगे।
सीखने की पहल, कोचिंग एवं सलाह के माध्यम से महिला प्रतिभाओं की पहचान करने औरउन्हें नेतृत्वकारी भूमिका की खातिर तैयार करने से वे अपने कॅरिअर को कुशलता एवं आत्मविश्वास के साथ बढ़ाने में सक्षम हो सकती हैं और बेहतर समस्या समाधान, तेजी से निर्णय लेने और विकास एवं सफलता के लिए समग्र सुधार में संगठनों का समर्थन कर सकती हैं।
इस समय देश के आर्थिक विकास ने एक लहर पैदा कर दी है, जिससे महिलाओं के वित्तीय विकास की संभावनाएं पैदा हो रही हैं। ऐसे में, उन्हें मौजूदा और उभरते अवसरों का लाभ उठाने के लिए तैयार करने एवं समर्थन देने की जरूरत है। उदाहरण के लिए, भारत फिलहाल एक मजबूत डिजिटल अर्थव्यवस्था में परिवर्तन का प्रयास कर रहा है। इससे महिलाओं के डिजिटल समावेशन को बढ़ावा देना आवश्यक हो गया है, ताकि वे अपनी आय, रोजगार की संभावनाएं बढ़ा सकें और ज्ञान हासिल करके समग्र विकास कर सकें। यह सुनिश्चित करने के लिए वंचित क्षेत्रों में इंटरनेट कवरेज का विस्तार करना, किफायती इंटरनेट कनेक्शन प्रदान करना, महिलाओं के लिए डिजिटल कौशल का समर्थन करना और डिजिटल संसाधनों तक पहुंच में सुधार करना जरूरी है, जो बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था में उनकी भागीदारी बढ़ा सकता है और उन्हें सफलतापूर्वक आगे बढ़ने में मदद कर सकता है।
महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने से सिर्फ आर्थिक विकास ही हासिल नहीं होता, बल्कि यह सामाजिक बदलाव लाने के लिए एक सशक्त साधन के रूप में भी काम करता है। उनके लिए वित्तीय अवसर पैदा करने और उन्हें आय के नियमित स्रोत से जोड़ने से न केवल उनकी व्यक्तिगत समृद्धि बढ़ती है, बल्कि वे अपने परिवार का सहयोग करने में भी सक्षम होती हैं। वित्तीय सशक्तीकरण से उनके जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। यह उन्हें अपने बच्चों की स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में और ज्यादा निवेश करने तथा भविष्य के लिए स्वस्थ, शिक्षित और सशक्त पीढ़ियों के निर्माण में योगदान करने के लिए सशक्त बनाता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वित्तीय रूप से स्वतंत्र और सशक्त महिलाएं बदलाव का वाहक बनती हैं और समाज में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए प्रेरणा का काम करती हैं। वे पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं एवं मानदंडों को चुनौती देने, पुरुषों की बराबरी करने, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने और एक समावेशी समाज बनाने के लिए परिवार और समुदाय की अन्य महिलाओं के लिए रोल मॉडल के रूप में काम करती हैं।
कुल मिलाकर, महिलाओं को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें सशक्त बनाना जरूरी है, ताकि वे भारत को पूर्ण विकसित राष्ट्र बनाने में अग्रणी ताकत के रूप में उभर सकें। भारतीय अर्थव्यवस्था में उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए महिला सशक्तीकरण की चर्चा करना न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि जरूरी भी है। उन्हें जरूरी समर्थन, प्रोत्साहन और मान्यता देने से यह सुनिश्चित करना संभव होगा कि वे आगे बढ़ें और समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालती रहें।