रियल एस्टेट एजेंट की जवाबदेही तय हो ?
रियल एस्टेट एजेंट की जवाबदेही तय हो, धोखाधड़ी रोकने के लिए नए कानून की दरकार
इंसान हो या पक्षी या फिर जानवर, सभी शाम को लौटकर अपने घर आते हैं, लेकिन भारत में आज भी बहुत कम लोग अपने घर के सपने को पूरा कर पाते हैं। अधिकांश लोगों का जीवन किराये के मकान में गुजर जाता है या फिर बिना किसी छत के। भारत में घरों के स्वामित्व का राष्ट्रीय औसत 86.6 फीसदी है। राज्यों में, सिक्किम में घर का स्वामित्व सबसे कम 64.5 फीसदी है, जबकि केंद्र शासित प्रदेश, दमन और दीव में घर का स्वामित्व सबसे कम 38.3 फीसदी है।
नाबार्ड के आंकड़ों के अनुसार, देश की 58 फीसदी आबादी आज भी खेती-किसानी पर निर्भर है, लेकिन उनका ठीक से गुजर-बसर नहीं हो पा रहा है। इसलिए वे बेहतर रोजगार हासिल करने के लिए गांव से शहर की ओर पलायन कर रहे हैं। इस वजह से शहरों में आबादी का दबाव लगातार बढ़ रहा है। चूंकि जमीन सीमित है, इसलिए हर व्यक्ति के लिए खुद का मकान बनाना मुमकिन नहीं है। इस समस्या के समाधान हेतु शहरों और कस्बाई इलाकों में अपार्टमेंट संस्कृति का आगाज हुआ है।
आरंभ में छोटी पूंजी वाले डेवलपर एक साथ कई परियोजनाओं को शुरू कर देते थे, ताकि ज्यादा संख्या में खरीदारों से दो से तीन किस्तों की वसूली की जा सके। एक से अधिक परियोजनाओं को जीवित रखने के लिए वे फंड डाइवर्ट करते थे, अर्थात कभी ‘एक्स’ परियोजना का पैसा ‘वाई’ परियोजना में लगा देते थे, तो कभी ‘जेड’ परियोजना में। नतीजतन कोई भी परियोजना समय से पूरी नहीं हो पाती थी। अमूमन, एजेंट के जरिये वे प्रॉपर्टी की कीमत 50 से 70 फीसदी नकद में वसूलते थे, ताकि काले धन को सफेद बनाया जा सके।
कालांतर में, बड़ी कंपनियां डेवलपर्स बन गईं, जिससे फंड डाइवर्जन, काले धन को सफेद बनाने की प्रक्रिया, खरीदारों को समय पर पजेशन नहीं मिलने जैसी अनियमिताओं पर अंकुश लग गया। सरकार ने भी खरीदारों की परेशानियों को समझा और वर्ष 2016 में रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) कानून को अमली-जामा पहनाया।
यह अधिनियम राज्यसभा में 10 मार्च, 2016 को और लोकसभा में 15 मार्च, 2016 को पारित किया गया। रेरा अधिनियम को मूर्त रूप देने का मकसद था घरेलू खरीदारों के हितों की रक्षा करना। यह कानून डेवलपर को परियोजना के दो-तिहाई से अधिक खरीदारों की लिखित सहमति के बिना किसी फ्लैट, मकान, दुकान के लिए स्वीकृत योजना से अलग बदलाव करने से प्रतिबंधित करता है। इस कानून को अमली-जामा पहनाने के बाद से रियल एस्टेट में निवेश करने वाले ईमानदार निवेशकों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
कुछ राज्यों को छोड़कर, भारत के लगभग सभी राज्यों ने रियल एस्टेट क्षेत्र को विनियमित करने के लिए राज्य रेरा कानून को मूर्त रूप दिया। बेशक रेरा कानून रियल एस्टेट कारोबार में पारदर्शिता और जबावदेही लेकर आया, इसके बावजूद, यह रियल एस्टेट एजेंटों के काले कारनामों पर प्रभावी ढंग से लगाम नहीं लगा सका। आज भी रियल एस्टेट एजेंट मोटी कमीशन के लालच में भ्रम पैदा करने वाली सूचनाएं, गलत जानकारी आदि देकर खरीदारों को दोयम दर्जे की प्रॉपर्टी मुंहमांगी कीमत पर दिलवा रहे हैं। अमूमन, खरीदार को अपार्टमेंट के आसपास के क्षेत्रों के बारे में जानकारी नहीं होती है, जिसके कारण वे उपलब्ध कराई गई सूचनाओं को न तो स्वयं सत्यापित कर पाते हंै और न ही किसी दूसरे से उसका सत्यापन करवा पाते हैं। अंतत, वे एजेंट के झांसे में आकर ठगे जाते हैं।
साफ है कि रियल एस्टेट एजेंट और डेवलपर को तभी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जब उनकी धोखाधड़ी को साबित किया जा सके। लिहाजा, सरकार को रेरा कानून की तरह रियल एस्टेट एजेंट की जबावदेही तय करने के लिए एक ऐसे कानून को मूर्त रूप देना चाहिए, जिसमें केवल पंजीकृत व्यक्ति द्वारा रियल एस्टेट एजेंट का कार्य करने, रियल एस्टेट एजेंट को डेवलपर का कानूनी प्रतिनिधि बनाने, रियल एस्टेट एजेंट को नियुक्ति पत्र और कमीशन देने की शर्तों का उल्लेख ऑफर लेटर में करने आदि के प्रावधान होने चाहिए।
साथ ही, जमीन की खरीद-फरोख्त में विक्रेता को पैसे मिले या नहीं, यह सुनिश्चित करने के लिए विक्रेता को खाते का विवरण रजिस्ट्री कार्यालय में जमा करवाना अनिवार्य कर देना चाहिए। ऐसे प्रावधानों से काले धन के सर्कुलेशन पर लगाम लगेगी और रियल एस्टेट एजेंट खरीदार से अवांछित कीमत की वसूली नहीं कर सकेगा।