कौन हैं भारत के दो नए चुनाव आयुक्त !

कौन हैं भारत के दो नए चुनाव आयुक्त
ज्ञानेश की राम मंदिर और आर्टिकल 370 में बड़ी भूमिका; संधू भी तेजतर्रार अफसर

अधीर ने चुनाव आयुक्तों के चयन की प्रक्रिया से असंतुष्टि जाहिर करते हुए कहा, ‘मुझे 212 नामों की लिस्ट दी गई थी। रात भर में कोई कैसे जांच-परख कर सकता है। दस मिनट पहले 6 नाम दिए गए। मैं चयन की इस प्रक्रिया से सहमत नहीं हूं।’

भारत के नए चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू और ज्ञानेश कुमार; ये कैसे चुने गए और विपक्ष क्या सवाल उठा रहा है…

14 फरवरी को अनूप चंद्र पांडे के रिटायरमेंट और 9 मार्च को अरुण गोयल के अचानक इस्तीफे से चुनाव आयुक्त के दोनों पद खाली हो गए थे। इन नियुक्तियों से पहले तक आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार अपने पद पर मौजूद थे।

खाली पदों पर नियुक्ति के लिए 14 मार्च को तीन सदस्यीय समिति की बैठक हुई। बैठक में प्रधानमंत्री मोदी, लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी के अलावा एक केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी शामिल हुए।

भारत के दो नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का नोटिफिकेशन
भारत के दो नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का नोटिफिकेशन

236 नाम लिस्ट में थे, 6 शॉर्टलिस्ट हुए, 2 लोगों का चयन
केंद्रीय चुनाव आयोग में आयुक्त के पद के लिए कैबिनेट सचिव स्तर के अधिकारियों को चुना जाता है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सर्च कमेटी ने 236 अधिकारियों के नाम लिस्ट में रखे थे।

इस सूची में 92 अधिकारी भारत सरकार में सचिव या इसके बराबर के पद से रिटायर हुए हैं। 93 अधिकारी मौजूदा समय में सचिव या इसके बराबर के पद पर काम कर रहे हैं। 15 ऐसे अधिकारी थे जो बीते एक साल में किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के मुख्य सचिव रह चुके हों और 28 अधिकारी राज्य में अभी मुख्य सचिव हों।

इन 236 में से कुल 6 लोगों को शॉर्टलिस्ट किया था। इनके नाम हैं- सुखबीर सिंह संधू, ज्ञानेश कुमार, उत्पल कुमार सिंह, प्रदीप कुमार त्रिपाठी, इंदीवर पांडे और सुधीर कुमार गंगाधर रहाटे। ये सभी ब्यूरोक्रेट रहे हैं। इनमें से सुखबीर सिंह संधू और ज्ञानेश कुमार को बतौर चुनाव आयुक्त चुन लिया गया है।

सुखबीर सिंह संधू: उत्तराखंड के मुख्य सचिव रहे, कई विभागों का लंबा अनुभव
सुखबीर सिंह संधू, 1988 बैच के उत्तराखंड कैडर के IAS ऑफिसर रहे हैं। वो मूल रूप से पंजाब से आते हैं। संधू का जन्म साल 1963 में हुआ था। अपनी शैक्षिक योग्यता से वो एक मेडिकल डॉक्टर, इतिहासकार और वकील हैं। उन्होंने अमृतसर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज से MBBS की पढ़ाई की।

इसके बाद उन्होंने गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी से इतिहास विषय के साथ मास्टर डिग्री ली। संधू, नानक देव यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. जसपाल सिंह के करीबी रिश्तेदार हैं। इसी यूनिवर्सिटी से संधू ने कानून की डिग्री भी ली है।

प्रशासनिक सेवा के अपने करियर में उन्होंने अविभाजित उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब जैसे राज्यों के अलावा केंद्र सरकार के कई विभागों में विभिन्न पदों पर काम किया है।
प्रशासनिक सेवा के अपने करियर में उन्होंने अविभाजित उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब जैसे राज्यों के अलावा केंद्र सरकार के कई विभागों में विभिन्न पदों पर काम किया है।

2021 में जब पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बने तो संधू को अपने पूर्ववर्ती ओम प्रकाश की जगह मुख्य सचिव नियुक्त किया गया था।

संधू ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के अध्यक्ष के बतौर भी काम किया है। इससे पहले वे मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत उच्च शिक्षा विभाग में अतिरिक्त सचिव रहे थे।

संधू ने शहरी सुधार और नगरपालिका के प्रबंधन जैसे विषयों पर रिसर्च प्रकाशित की हैं। वो मसूरी में प्रशासनिक अधिकारियों के ट्रेनिंग सेंटर लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अकादमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन (LBSNAA) में रेगुलर स्पीकर भी रहे हैं।

उन्हें पंजाब के लुधियाना में नगर निगम का आयुक्त रहने के दौरान, उनकी सेवाओं के लिए राष्ट्रपति पदक से भी सम्मानित किया जा चुका है। साल 2001 की जनगणना में अपनी भूमिका के लिए भी उन्हें राष्ट्रपति की ओर से मेडल मिला था।

ज्ञानेश कुमार: अयोध्या राम मंदिर और आर्टिकल 370 में बड़ी भूमिका निभाई
ज्ञानेश कुमार 1988 बैच के केरल कैडर के IAS अधिकारी हैं। वो इसी साल 31 जनवरी को रिटायर हुए हैं। उनकी आखिरी तैनाती सहकारिता मंत्रालय में सचिव के पद पर थी। मई 2022 में उन्हें केरल कैडर के IAS ऑफिसर देवेंद्र कुमार सिंह की जगह यह पदभार दिया गया था।

सहकारिता मंत्रालय के गठन से लेकर अब तक ज्ञानेश कुमार का इस विभाग में बड़ा योगदान रहा है। सहकारिता मंत्रालय में काम करने के दौरान ज्ञानेश ने बहु-राज्य सहकारी समिति संशोधन अधिनियम, 2023 यानी (मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटीज अमेंडमेंट एक्ट, 2023) का अधिनियमन किया।

इस दौरान उन्होंने तीन नई कोऑपरेटिव सोसाइटी बनाईं। इनके नाम हैं- भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड (BBSSL), नेशनल कोऑपरेटिव ऑर्गेनिक्स लिमिटेड (NCOL) और नेशनल कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट लिमिटेड (NCEL)।

सहारा समूह की चार मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटीज में पैसा जमा करने वाले लोगों को रिफंड दिलाने के लिए CRCS-सहारा रिफंड पोर्टल बनाया गया था। इस पोर्टल को समय से लॉन्च करने में ज्ञानेश कुमार की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।

सहकारिता मंत्रालय के सचिव बनाए जाने से पहले ज्ञानेश कुमार केंद्र में संसदीय कार्य मंत्रालय के सचिव रहे थे। इसके पहले जब साल 2019 में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई गई, उस दौरान ज्ञानेश कुमार गृह मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव के पद पर थे। समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार आर्टिकल 370 हटाने और जम्मू-कश्मीर के राज्य से केंद्र शासित प्रदेश में बदलने के दौरान ज्ञानेश कुमार ने अहम भूमिका निभाई थी।

जनवरी 2020 में अयोध्या के राम जन्मभूमि मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जुड़े मामलों को देखने के लिए एक तीन सदस्यीय टीम बनाई गई। ज्ञानेश कुमार इसके प्रमुख थे। इस टीम को राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने और सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन देने जैसे काम देखने थे।

इसके बाद फरवरी 2020 में प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के गठन की घोषणा की थी, इस ट्रस्ट में कुल 15 सदस्यों को नामित किया गया था। इनमें केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में ज्ञानेश कुमार को नामित किया गया था। वे ट्रस्ट के पदेन सदस्य हैं।

साल 2007 से 2012 तक ज्ञानेश कुमार रक्षा मंत्रालय के तहत रक्षा उत्पादन विभाग के संयुक्त सचिव भी रहे। इस दौरान देश में कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार थी।

चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में प्रधानमंत्री सबसे अहम
संविधान के अनुच्छेद-324 में चुनाव आयोग का जिक्र है। संस्था में सबसे बड़ा अधिकारी मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) होता है। उसके अधीन अन्य 2 चुनाव आयुक्त (EC) होते हैं।

नए कानून के आने से पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) भी चयन कमेटी में शामिल हुआ करते थे। अब उनकी जगह केंद्रीय मंत्री को रखा गया है। अगर लोकसभा में कोई विपक्ष का नेता नहीं है तो सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को विपक्ष का नेता माना जाएगा।

CEC और EC के पदों पर उनकी ही नियुक्ति की जा सकती है जो केंद्र सरकार में सचिव के पद के समकक्ष पद पर हैं या रह चुके हैं। CEC और EC के वेतन और भत्ते अब कैबिनेट सचिव के बराबर होंगे। उनका पद अब कैबिनेट सचिव के बराबर है। पहले ये पद सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर था।

वरीयता क्रम में CEC और EC का दर्जा अब राज्यमंत्री से भी नीचे होगा। चूंकि ये दोनों अब कैबिनेट सचिव के समकक्ष होंगे, इसलिए इन्हें नौकरशाह माना जा सकता है।

चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर क्या सवाल
बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि कमेटी में विपक्ष से वह अकेले थे। उन्होंने आरोप लगाया, ‘सरकार बहुमत में है। हम कुछ भी कहें, लेकिन जो सरकार चाहेगी वही होगा।’ अधीर रंजन ने ये भी बताया कि उन्होंने असहमति का नोट दिया है और चयन प्रक्रिया पर भी सवाल उठाया है।

अधीर रंजन का तर्क ये था कि उन्हें कानून मंत्रालय से शॉर्ट लिस्टेड नामों की सूची नहीं मिली। जो लिस्ट मिली उसमें 212 नाम थे। उन्होंने कहा कि वह ‘रात को दिल्ली पहुंचे और दोपहर में प्रधानमंत्री के साथ बैठक के लिए जाना था, ऐसे में 212 लोगों की जांच-परख कैसे करते।’

इधर NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने भी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर रोक लगाने की मांग की है। ADR ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। ADR का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले के मुताबिक चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति होनी चाहिए। इस पर 15 मार्च को जस्टिस संजीव खन्ना की अगुआई वाली बेंच सुनवाई करेगी।

इससे पहले अरुण गोयल की नियुक्ति को भी ADR ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। तब ADR ने याचिका में कहा था कि गोयल की नियुक्ति कानून के मुताबिक सही नहीं है। साथ ही यह निर्वाचन आयोग की संस्थागत स्वायत्तता का भी उल्लंघन है। ADR ने सरकार और इलेक्शन कमीशन पर खुद के फायदे के लिए अरुण गोयल की नियुक्ति करने का आरोप लगाया था। साथ ही गोयल की नियुक्ति को रद्द करने की मांग की थी।

इस मामले की सुनवाई से पहले ही दो जज जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। बाद में इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच द्वारा खारिज कर दिया गया था।

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