मोदी की वजह से सिमट रही राजघरानों की सियासत !

मोदी की वजह से सिमट रही राजघरानों की सियासत
सिंधिया-दिग्विजय और हिमाद्री चुनावी मैदान में; कांग्रेस से जुड़े राजघरानों की ताकत ज्यादा कमजोर

मध्यप्रदेश की सियासत में रियासतों का दखल कम हो रहा है। विधानसभा के बाद अब लोकसभा चुनाव में भी यही देखने को मिल रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाले 4 उम्मीदवार मैदान में थे, इस बार केवल तीन चुनाव लड़ रहे हैं। विधानसभा चुनाव के पिछले दो नतीजे देखें तो 2018 में राजपरिवारों से ताल्लुक रखने वाले 14 विधायक चुने गए थे। 2023 में केवल 9 विधायक बने हैं।

एमपी में राजपरिवारों की सिमट रही राजनीति को लेकर एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसा मोदी फैक्टर की वजह से हुआ है। उनके मुताबिक, 10 साल पहले दोनों ही दलों में राजघरानों की अच्छी पकड़ थी, लेकिन अब उनकी ताकत कमजोर हो गई है। कांग्रेस से जुड़े राजघरानों की ताकत तुलनात्मक रूप से ज्यादा कमजोर हो गई है। संडे स्टोरी में पढ़िए, किस तरह से एमपी की राजनीति में राजघरानों का प्रभाव कम हो रहा है।

लोकसभा में पूर्व रियासतों से ताल्लुक रखने वाले बीजेपी के 2 उम्मीदवार…

सिंधिया राजघराने से ज्योतिरादित्य सिंधिया मैदान में

ग्वालियर का सिंधिया राजघराना मध्यप्रदेश की राजनीति का लंबे समय से केंद्र रहा है। सिंधिया रियासत की स्थापना राणोजी सिंधिया ने 1731 में की थी। राजनीति में आने से पहले इस रियासत के आखिरी राजा जीवाजीराव सिंधिया थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया, इस राजपरिवार के प्रमुख सदस्य हैं।

सिंधिया से पहले उनकी दादी और पिता भी राजनीति में सक्रिय रहे हैं। सिंधिया की दादी विजयाराजे सिंधिया ने पहला चुनाव कांग्रेस से लड़ा था। इसके बाद वे जनसंघ में शामिल हुई और फिर बीजेपी से सांसद चुनी गईं। वे 8 बार सांसद रहीं। पिता माधवराव राव सिंधिया शुरुआत में जनसंघ में रहे, लेकिन बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए। वे 9 बार सांसद रहे हैं।

विजयाराजे सिंधिया 8 बार तो माधवराव सिंधिया 9 बार सांसद रहे हैं।
विजयाराजे सिंधिया 8 बार तो माधवराव सिंधिया 9 बार सांसद रहे हैं।

पिता के निधन के बाद ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस जॉइन की

पिता माधवराव सिंधिया के निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दादी की बजाय पिता की पार्टी जॉइन की थी। 2004 में वे गुना से पहला उप चुनाव जीते। इसके बाद कांग्रेस के टिकट पर 2004, 2009, 2014 में गुना से सांसद रहे। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस ने 5वीं बार गुना संसदीय क्षेत्र से मैदान में उतारा था।

उनका मुकाबला बीजेपी के उम्मीदवार के पी यादव से हुआ। 4 बार के सांसद रहे सिंधिया 5वीं बार ये चुनाव हार गए। यादव कभी सिंधिया के करीबी और उनके सांसद प्रतिनिधि हुआ करते थे। इसके बाद साल 2020 में सिंधिया ने भाजपा जॉइन कर ली और राज्यसभा सांसद बन गए। इस बार गुना सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी के टिकट पर चुनावी मैदान में है।

शहडोल से हिमाद्री सिंह की मां का राजघराने से कनेक्शन

शहडोल लोकसभा सीट से भाजपा ने मौजूदा सांसद हिमाद्री सिंह को टिकट दिया है। हिमाद्री सिंह की मां राज नंदिनी सिंह राजघराने से ताल्लुक रखती थीं। उनका जन्म छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के बिर्रा गांव में हुआ था। वह बिर्रा के जमींदार दीवान दुर्गेश्वर सिंह और अंबागढ़ चौकी के शाही घराने की राजकुमारी भानु कुमारी देवी की तीसरी संतान थीं।

हिमाद्री सिंह का पूरा परिवार कांग्रेस से जुड़ा रहा है। उनकी मां राज नंदिनी सिंह दो बार शहडोल से कांग्रेस के टिकट पर सांसद रह चुकी हैं तो पिता दलवीर सिंह केंद्रीय राज्यमंत्री थे।। मां के निधन के बाद बेटी हिमाद्री ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया।

हिमाद्री सिंह दूसरी बार बीजेपी से चुनावी मैदान में हैं। उनका मुकाबला कांग्रेस के फुंदेलाल मार्कों से है।
हिमाद्री सिंह दूसरी बार बीजेपी से चुनावी मैदान में हैं। उनका मुकाबला कांग्रेस के फुंदेलाल मार्कों से है।

पहला चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा, बीजेपी से सांसद बनीं

साल 2016 में हिमाद्री सिंह शहडोल लोकसभा के उप चुनाव कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में थी। वह ये चुनाव भाजपा के ज्ञान सिंह से हार गईं। 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले वह बीजेपी में शामिल हो गईं और उन्हें जीत मिली।

दरअसल, साल 2017 में हिमाद्री सिंह ने भाजपा नेता नरेंद्र मरावी से शादी की। हिमाद्रि ने विवाह के समय कहा था कि कुछ भी हो जाए, कांग्रेस नहीं छोड़ेंगी, राजनीति कभी भी वैवाहिक जिंदगी के बीच नहीं आएगी। मगर, कुछ समय बाद ही वे बीजेपी में शामिल हो गईं। अब हिमाद्री सिंह दूसरी बार शहडोल से बीजेपी की उम्मीदवार है।

कांग्रेस से राघौगढ़ रियासत के दिग्विजय सिंह मैदान में

राघौगढ़ राज्य की स्थापना 1673 में चौहान खिची वंश के राजपूत लाल सिंह ने की थी। उनके बाद इस रियासत में 12 महाराज रहे। 11वें राजा बालभद्र सिंह के बाद 12वें राजा उनके बेटे दिग्विजय सिंह बने। पढ़ाई पूरी करने के बाद दिग्विजय सिंह राजनीति में सक्रिय हुए। 1969 में वे राघौगढ़ नगरनिगम के अध्यक्ष बने।

दिग्विजय सिंह 1977 में चुनावी राजनीति में आए और विधायक बने। इसके बाद 1980 में वे दोबारा विधायक चुने गए। उन्होंने संगठन के पद भी अहम भूमिका निभाई। वे मप्र सरकार में राज्यमंत्री और कैबिनेट मंत्री भी रहे। प्रदेश की राजनीति के बाद दिग्विजय सिंह ने केंद्र की राजनीति का रुख किया। वे साल 1984 और 1991 में राजगढ़ से सांसद रहे। 1993 से 2003 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे।

दिग्विजय सिंह राजगढ़ से उम्मीदवार हैं। वे इसे अपना आखिरी चुनाव बता रहे हैं।
दिग्विजय सिंह राजगढ़ से उम्मीदवार हैं। वे इसे अपना आखिरी चुनाव बता रहे हैं।

2019 में भोपाल लोकसभा सीट से हारे

दिग्विजय सिंह ने 2019 का लोकसभा चुनाव भोपाल सीट से लड़ा था। उनके सामने बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को मैदान में उतारा। दिग्विजय ये चुनाव हार गए। अब वे एक बार फिर अपने गृह नगर राजगढ़ से कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं।

दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह और लक्ष्मण सिंह भी राजनीति में सक्रिय हैं। जयवर्धन राघोगढ़ सीट से 3 बार के विधायक हैं। वहीं उनके भाई लक्ष्मण सिंह चाचौड़ा सीट से विधायक रहे। लक्ष्मण सिंह 2023 के विधानसभा चुनाव में चाचौड़ा सीट से हार गए।

2019 के लोकसभा चुनाव में 4 उम्मीदवार मैदान में थे

2019 के लोकसभा चुनाव में राजघरानों से ताल्लुक रखने वाले 4 उम्मीदवार मैदान में थे। इनमें से तीन ज्योतिरादित्य सिंधिया, हिमाद्री सिंह और दिग्विजय सिंह फिर चुनाव लड़ रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिछला चुनाव कांग्रेस से लड़ा था अब वे बीजेपी से उम्मीदवार हैं।

पिछली बार कांग्रेस ने खजुराहो सीट से छतरपुर राजघराने से ताल्लुक रखने वाली कविता सिंह को टिकट दिया था। वे बीजेपी के वीडी शर्मा से ये चुनाव हार गईं। छतरपुर जिले की राजनगर सीट से चार बार के विधायक रह चुके विक्रम सिंह नातीराजा, कविता सिंह के पति हैं। इस बार वे विधानसभा चुनाव हार गए। कविता सिंह भी लगातार 2 बार से खजुराहो नगर परिषद् की अध्यक्ष है।

छतरपुर राजघराने से ताल्लुक रखने वाले विक्रम सिंह नाती राजा और पत्नी कविता सिंह भी चुनाव लड़ चुके हैं।
छतरपुर राजघराने से ताल्लुक रखने वाले विक्रम सिंह नाती राजा और पत्नी कविता सिंह भी चुनाव लड़ चुके हैं।

विधानसभा में राजपरिवारों से 9 विधायक, बीजेपी के 6 एमएलए दोबारा चुने गए

साल 2023 के विधानसभा चुनाव में 17 राजपरिवारों के सदस्य चुनावी मैदान में थे। इनमें से 9 चुनाव जीते और 8 को हार का सामना करना पड़ा। जीतने वाले 9 कैंडिडेट्स में से 6 दोबारा विधायक बने हैं। वहीं 3 कैंडिडेट्स में से दो पिछला चुनाव हार गए थे इस बार फिर जीते हैं। इस बार चुनाव जीतने वाले राज परिवारों में से 6 भाजपा और 3 कांग्रेस से हैं।

तीन विधायकों में से 1 नया चेहरा, बाकी दो 2018 का चुनाव हारे थे…

अलीपुरा रियासत के कामाख्या प्रताप सिंह पहली बार के विधायक

छतरपुर जिले में अलीपुरा रियासत के वंशज मानवेंद्र सिंह और उनके बेटे कामाख्या प्रताप सिंह राजनीति में सक्रिय हैं। मानवेंद्र 1993 से 2003 तक बिजावर से कांग्रेस विधायक रहे। 2008 में महाराजपुर सीट से निर्दलीय और 2013 में भाजपा की टिकट पर विधायक रहे। अब, मानवेंद्र के बेटे कामाख्या महाराजपुर से पहली बार विधायक का चुनाव जीते हैं।

मकड़ाई रियासत के अभिजीत ने अपने ही चाचा को मात दी

खंडवा जिले की इस रियासत के आखिरी राजा देवी शाह के 4 पुत्र थे। अजय, विजय, धनंजय और संजय शाह। अभिजीत सबसे बड़े बेटे अजय शाह के बेटे हैं। अभिजीत ने अपने चाचा संजय शाह को 2023 के चुनाव में 950 वोट से हराया है। इन दोनों का मुकाबला 2018 में भी हुआ था, तब अभिजीत 2213 वोट से चुनाव हार गए थे।

चुरहट राजघराने से अजय सिंह एक बार फिर चुनाव जीत गए

मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह 1985 में विधायक बने। दिग्विजय सरकार में मंत्री रहे। चुरहट से 6 बार विधायक रहे हैं। 2017 से 2018 तक नेता प्रतिपक्ष रहे हैं। 2018 का चुनाव हार गए थे। इस बार जीत मिली है।

2018 में चुनाव जीते राजपरिवारों के 8 विधायक इस बार विधानसभा चुनाव हार गए

राजपरिवारों से ताल्लुक रखने वाले 8 सदस्य इस बार विधानसभा चुनाव हार गए हैं। इनमें से बीजेपी और कांग्रेस से 4-4 सदस्य हैं। कांग्रेस के जो नेता चुनाव हारे उनमें खिलचीपुर सीट से प्रियव्रत सिंह, छतरपुर की राजनगर सीट से कुंवर विक्रम सिंह नातीराजा, चित्रकूट सीट से नीलांशु चतुर्वेदी और राघौगढ़ रियासत के लक्ष्मण सिंह, चाचौड़ा से चुनाव हारे हैं।

वहीं बीजेपी की बात करें तो हिंडोरिया राजघराने के कुंवर प्रद्युम्न सिंह लोधी मलहरा सीट से, अमझेरा रियासत के राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव बदनावर सीट से, मकड़ाई रियासत के संजय शाह टिमरनी सीट से तो सिंधिया राजघराने की माया सिंह ग्वालियर पूर्व सीट से चुनाव हार गईं।

हिंडोरिया रियासत के प्रद्युम्न लोधी को मलहरा सीट से कांग्रेस की रामसिया भारती ने मात दी है।
हिंडोरिया रियासत के प्रद्युम्न लोधी को मलहरा सीट से कांग्रेस की रामसिया भारती ने मात दी है।

एक्सपर्ट बोले- पिछले 10 साल में राजपरिवारों की ताकत कम हुई

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि आजादी के बाद राजघरानों का अपना दम खम था। उनकी विचारधारा के मुताबिक दोनों ही दल बीजेपी और कांग्रेस में पकड़ थी। लेकिन, पिछले 10 साल में उनकी ताकत खत्म हो गई है। इनमें भी कांग्रेस से जुड़े राजपरिवार राजनीतिक रूप से कमजोर हो रहे हैं। उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि सिंधिया परिवार कांग्रेस छोड़कर अब बीजेपी में शामिल हो गया है।

किदवई कहते हैं कि राजपरिवारों की कामयाबी की वजह उनकी क्षेत्र में लोकप्रियता और पार्टी हुआ करती थी। राजनीतिक दल भी उन्हें इसलिए टिकट देते थे क्योंकि उन्हें सभी लोग जानते थे। लेकिन, अब मोदी राज में उनकी चमक दमक फीकी पड़ी है। वे कहते हैं कि राजपरिवारों को मान सम्मान की चिंता रहती है। चुनाव में हार की वजह से सम्मान में कमी आती है। इसलिए वे सियासत से दूर होते जा रहे हैं।

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