माओवादियों के अंत की तैयारी !
माओवादियों के अंत की तैयारी, 25 से अधिक मूलभूत सरकारी सुविधाएं; अब दूरी बनाने लगे हैं ग्रामीण
हाल ही में छत्तीसगढ़ के जंगलों में सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में हैरतअंगेज दृश्य सामने आया। कांकेर जिले में जबर्दस्त गोलीबारी में कुल 29 माओवादी मारे गए, जिनमें उनका सबसे बड़ा नेता 25 लाख रुपये का इनामी शंकर राव भी शामिल था। इस मुठभेड़ में माओवादी आधुनिक हथियारों जैसे, असॉल्ट राइफलों तथा ग्रेनेड लॉन्चरों से लैस थे। फिर भी सुरक्षा बलों ने बेहद आक्रामक ढंग से मुकाबला करते हुए उनका खात्मा किया।
छत्तीसगढ़, झारखंड के जंगलों के बड़े हिस्से में एक तरह से माओवादियों का राज था और वहां उनसे लड़ना आसान नहीं था। जिन लोगों ने छत्तीसगढ़ के घने और विस्तृत जंगल नहीं देखे हैं, उन्हें यह बताना जरूरी है कि वहां माओवादियों की चप्पे-चप्पे पर नजर रहती है और उनके कैडर हर जगह पहुंचे रहते हैं। उन्हें हथियारों का भी बेहतर प्रशिक्षण दिया जाता है और घात लगाकर हमला करने में उन्हें महारत हासिल है।
पिछले कुछ वर्षों से केंद्र सरकार ने माओवादियों पर लगाम कसनी शुरू कर दी है। गृह मंत्रालय ने इनसे निपटने के लिए सुरक्षा बलों को न केवल आधुनिकतम हथियार देना शुरू किया है, बल्कि अन्य संसाधन भी। माओवादियों से निपटने में सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि राज्य सरकारें पर्याप्त मदद नहीं करतीं। उन्हें लगता है कि ऐसी मुठभेड़ों से आम जनता भी चपेट में आ जाएगी, जो पूरी तरह से गलत भी नहीं है। लेकिन अब स्थिति बदलने लगी है और नागरिकों की सुरक्षा और कल्याण पर ध्यान दिया जाने लगा है। इससे सरकार के प्रति जनता में अब कटता का भाव नहीं रहा है। उनकी सहानुभूति अब माओवादियों के साथ न होकर सुरक्षा बलों के साथ है।
ताजा मामले में, गृह मंत्रालय ने इन उग्रवादियों की गतिविधियों पर अपने स्रोतों से नजर रखी और जब सूचना बिल्कुल पक्की हो गई, तो राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ मिलकर बीनागुंडा और आसपास के इलाकों में ऑपरेशन चलाया। दिन में चलाए गए इस ऑपरेशन का लाभ यह हुआ कि सुरक्षा बलों को सभी कुछ साफ दिख रहा था और वे उन पर हावी हो गये। और बड़ी संख्या में माओवादियों को जान से हाथ धोना पड़ा। सुरक्षा बलों की आक्रामकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब तक चार महीने में लगभग 80 माओवादी मारे गए हैं और 125 से अधिक गिरफ्तार हुए हैं तथा 150 से अधिक ने आत्मसमर्पण किया है। यह केंद्र तथा राज्य सरकार के बीच सामंजस्य से संभव हुआ है। गृह मंत्रालय इस मामले में दृढ़ संकल्पित है कि माओवादियों से सख्ती से निपटना है, लेकिन बातचीत के रास्ते खुले हुए हैं।
माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में 2019 के बाद से 250 से भी ज्यादा सुरक्षा शिविर स्थापित किए गए हैं। इन माओवादियों के कारण राज्य का विकास रुक रहा है और जन जीवन प्रभावित हो रहा है। बस्तर जिले के सीधे-सादे आदिवासियों को डराकर ये माओवादी उनके बच्चों तक को अपने साथ ले जाते हैं और उन्हें कम उम्र से ही हथियारों की ट्रेनिंग देते हैं।
साठ के दशक के उत्तरार्ध में बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से नक्सलवाद आंदोलन की शुरुआत हुई, जहां माओवादियों ने भूमिहीन किसानों के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर सशस्त्र आंदोलन किया, जिसका वहां की सरकार भी ठीक से जवाब नहीं दे पाई। इसी आंदोलन की तर्ज पर कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी लेनिन) ने छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओडिशा आदि में हिंसक आंदोलन किया। बंगाल के आंदोलन के विपरीत यहां सिद्धांतों की लड़ाई नहीं थी, बल्कि अपना वर्चस्व स्थापित करने की जिद है। इन माओवादियों के कैडर पैसे की वसूली करते हैं। खनन कार्य में लगी कंपनियों से मोटी रकम वसूली जा रही है। लेकिन अब समय बदलने लगा है और केंद्र सरकार माओवादियों से निपटने के लिए कमर कस चुकी है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्र के साथ मिलकर नक्सल प्रभावित जिलों के लिए नई योजनाएं भी बनाई हैं। इसके तहत उन्हें 25 से अधिक मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ग्रामीणों को आवास उपलब्ध कराने की बड़ी योजना पर काम हो रहा है। इस तरह के कल्याणकारी कार्यों से ग्रामीण माओवादियों से दूरी बनाने लगे हैं। हालांकि इस तरह के प्रयासों के कार्यान्वयन में वक्त लगेगा, लेकिन इस दिशा में यह एक बड़ी पहल है।