‘‘हमारा बच्चा तेज तो बहुत है, लेकिन पढ़ाई में इसका मन नहीं लगता।’’

च्चा तेज तो है, लेकिन पढ़ता नहीं …
कहीं ये मोटिवेशन की कमी तो नहीं, एक्सपेक्टेंसी थ्योरी से ऐसे बढ़ाएं प्रेरणा

पढ़ाई से कन्नी काटने वाले बच्चों के पेरेंट्स अक्सर ऐसे तर्क देते मिल जाएंगे। मनोविज्ञान की नजर से देखें तो ऊपर जो लक्षण बताया गया है, उसकी वजह नेग्लिजेंस और मोटिवेशन की कमी हो सकती है। इसका मतलब है कि बच्चे को पढ़ाई के लिए प्रॉपर मोटिवेशन नहीं मिल पा रहा है।

मां-बाप और टीचर बच्चे को यह तो बताते हैं कि पढ़ना अच्छी बात है। लेकिन कई बार वे यह समझा पाने में नाकाम होते हैं कि पढ़ना आखिर क्यों जरूरी है। ऐसी स्थिति में बच्चे तुरंत आनंद पहुंचाने वाले खेल या टीवी देखने को पढ़ाई से बेहतर मान सकते हैं। उनके मन में इन चीजों के लिए मोटिवेशन डेवलप हो सकता है।

ऐसे में तेज IQ वाले बच्चे भी पढ़ाई से दूरी बना लेते हैं और उनका प्रदर्शन कमतर होता जाता है। फिर वही जुमला आता है- ‘दिमाग तो तेज है, बस पढ़ता नहीं।’

 …..बात करेंगे पेरेंटिंग की। इसमें जानेंगे कि किस तरह मां-बाप मनोविज्ञान के सहारे बच्चों के मन में पढ़ाई के लिए उत्साह जगा सकते हैं।

क्या है मोटिवेशन की एक्सपेक्टेंसी थ्योरी, कैसे करती है काम

अब सवाल यह उठता है कि बच्चों को पढ़ाई के लिए मोटिवेट कैसे करें। ऑनलाइन सर्च करें तो 30 सेकेंड से लेकर घंटों लंबे वीडियोज मिल जाएंगे, जिनमें मोटिवेशन के लिए पत्थर से पानी निकालने जैसी बातें कही जाती हैं। लेकिन बाल-मन पर ऐसे वीडियोज का ज्यादा असर नहीं होता। वे इस कवायद को कौतूहल या मनोरंजन के बतौर ले सकते हैं।

ऐसी स्थिति में एजुकेशनल साइकोलॉजिस्ट के बीच पॉपुलर ‘एक्सपेक्टेंसी मोटिवेशन थ्योरी’ काम की हो सकती है।

साल 1964 कनाडाई मनोवैज्ञानिक विक्टर व्रूम ने मोटिवेशन के लिए इस थ्योरी को डेवलप किया। इसमें आंतरिक प्रेरणा बढ़ाने के लिए एक पूरा प्रॉसेस समझाया गया है। इस थ्योरी में सराहना, लक्ष्य निर्धारण और पर्सनल एंटरटेनमेंट के सहारे मोटिवेट करने की राह दिखाई गई है।

दुनिया भर में टीचर और काउंसलर इस थ्योरी का इस्तेमाल बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करने और उनमें नैतिक शिक्षा विकसित करने के लिए करते हैं।

पढ़ाई को जिंदगी से जोड़ने का तरीका है एक्सपेक्टेंसी थ्योरी

कहने को तो यह साइकोलॉजी की एक साइंटिफिक थ्योरी है। लेकिन इसमें ऐसी कोई गहन साइंटिफिक बात नहीं है, जो हमारे-आपके समझ के बाहर हो। आसान भाषा में कहें तो विक्टर व्रूम की थ्योरी बताती है कि मोटिवेशन के लिए एक सपना और रोडमैप का होना जरूरी है। अगर पढ़ाई को बच्चे की जिंदगी से रिलेट कर दें तो वह खुद-ब-खुद अपनी जिम्मेदारी समझने लगेगा।

एजुकेशनल काउंसलर लहर कुसरे बताते हैं कि बच्चों को पढ़ाई के लिए मोटिवेट करते हुए मां-बाप और टीचर इस बात का ध्यान रखें कि सिर्फ उनके कहने मात्र से बच्चे पढ़ाई को अपनी जिंदगी का उद्देश्य नहीं बनाएंगे। इसके लिए पढ़ाई, उससे जुड़े सपने और रोडमैप को बच्चे की जिंदगी से जोड़ना होगा। तभी बच्चे लर्निंग प्रोसेस में खुद को इन्वॉल्व कर पाएंगे, नहीं तो वे पढ़ाई को टीचर और घर वालों द्वारा थोपा हुआ एक टास्क समझते रहेंगे। एक्सपेक्टेंसी थ्योरी की 4 बातें इसी काम में पेरेंट्स और टीचर की मदद करती हैं।

मोटिवेशन प्लान बनाते हुए इन बातों का रखें ख्याल

‘अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन’ के एक रिव्यू में एजुकेशनल साइकोलॉजिस्ट और टेक्सस स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर कार्लटन जे. फोंग बताते हैं कि किसी भी स्टूडेंट के लिए मोटिवेशन प्लान बनाते हुए पहली प्राथमिकता बच्चों की इच्छा और स्वभाव को देना चाहिए। कई बार मां-बाप या टीचर अपनी इच्छा से बच्चों का लक्ष्य और सपना निर्धारित कर देते हैं और फिर बच्चों को मोटिवेट करने की कोशिश करते हैं। लेकिन ऐसी स्थिति में बच्चा पूरे प्रोसेस को इंजॉय नहीं कर पाएगा। मोटिवेशन का सबसे जरूरी पार्ट अधूरा रह जाएगा यानी वह पढ़ाई को अपनी जिंदगी से जोड़ नहीं पाएगा।

ऐसे में जरूरी है कि मोटिवेशन प्लान बनाते ही किसी भी नियम को बच्चे पर थोपने से पहले उसकी इच्छा और आकांक्षाओं की पड़ताल कर लें।

बच्चों को समझने और उनसे बात करने के लिए क्या करें

हमने यह तो जान लिया कि बच्चों के लिए मोटिवेशन प्लान बनाते हुए उनसे खुलकर बात करनी जरूरी है। लेकिन इसे करेंगे कैसे? साइकोलॉजिकल काउंसलर लहर कुसरे बताते हैं कि इसके लिए छोटी शुरुआत करनी चाहिए। मसलन-

  • उनके साथ खाना खाएं, उनकी बातें सुनें।
  • उनसे पूछें कि उन्हें किस काम में मजा आता है।
  • वे बड़े होकर क्या बनना पसंद करेंगे।
  • कोई फिल्म उनके साथ देखें, उसके बारे में उनसे बात करें।
  • घूमने जाने और फैमिली टाइम के लिए एक दिन रखें।

एक बार जब छोटी बातों से शुरुआत हो जाए तो धीरे-धीरे बच्चे पेरेंट्स के सामने सहज होंगे और अपनी जिंदगी की परेशानियां भी साझा करने लगेंगे। इसके बाद पेरेंट्स उनके सपने और लक्ष्य को बेहतर तरीके से जान पाएंगे। फिर उन्हें मोटिवेट करना भी मुश्किल नहीं रह जाएगा।

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