भारत में शहरीकरण की दर तेजी से बढ़ रही है !

 क्या अंधाधुंध शहरीकरण बदल पा रहा है भारत की इकोनॉमी?
शहर देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं. जीडीपी का करीब दो तिहाई हिस्सा शहरों से ही आता है. विदेशी कंपनियां FDI के जरिए ज्यादातर शहरों में ही निवेश करती हैं.

भारत में शहरों का बोलबाला तेजी से बढ़ रहा है. शहरीकरण का मतलब है गांव से शहरों की तरफ लोगों का रुझान, यानी पहले जो लोग खेती करते थे या गांव में रहते थे, वो अब शहरों में रहने लगे हैं. इस तरह शहरों में रहने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

नए शहर बन रहे हैं और पहले से मौजूद शहरों का आकार भी बढ़ रहा है. पहले छोटे से कस्बे अब बड़े शहर बन रहे हैं और हर तरफ नई बिल्डिंग खड़ी हो रही हैं. ये बदलाव समाज के लिए एक चुनौती भी है और एक मौका भी.

इस स्पेशल स्टोरी में आप अच्छे से जानेंगे कि आखिर अंधाधुंध शहरीकरण की वजह क्या है और क्या इससे भारत की इकनॉमी पर असर पड़ पा रहा है?

पहले जानिए शहरीकरण की कितनी है दर
भारत में शहरीकरण की दर तेजी से बढ़ रही है. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की शहरीकरण दर 31.2% थी, जबकि 2001 में 27.8% थी. वहीं वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2036 तक भारत में शहरों की आबादी 60 करोड़ (40 फीसदी) हो जाएगी. ये आज के 31% से बहुत ज्यादा है. यानी हर 10 में से 4 लोग शहरों में रहने लगेंगे. इतना ही नहीं, ये शहर देश की अर्थव्यवस्था का भी 70% हिस्सा संभाल लेंगे.  

क्या अंधाधुंध शहरीकरण बदल पा रहा है भारत की इकोनॉमी?

साल 2022 तक भारत की कुल आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा शहरों में रहता था. पिछले दशक में शहरीकरण 4 फीसदी से ज्यादा बढ़ा है. इसका मतलब है कि लोग गांव छोड़कर शहर की ओर जा रहे हैं. गांव छोड़ने की बड़ी वजह है रोजगार की तलाश.

आखिर इतनी तेजी से शहरीकरण क्यों?
ज्यादा से ज्यादा लोग अब शहरों में रह रहे हैं और आने वाले समय में ये आंकड़ा और बढ़ने वाला है. असल में लोग ज्यादा पैसा कमाने, अच्छी पढ़ाई और सुविधाजनक जिंदगी की तलाश में शहरों का रुख कर रहे हैं. ये बढ़ते शहर आने वाले समय में भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन सकते हैं. शहरों में कारखानों से लेकर दफ्तरों तक सबकुछ होता है जिससे देश का कुल उत्पादन (जीडीपी) बढ़ता है.

वहीं कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और आज भी भारत के लगभग आधे कार्यबल को रोजगार देती है. हालांकि भारत की जीडीपी में इसका योगदान कम हो रहा है और सर्विस सेक्टर का महत्व बढ़ रहा है.

शहर का बढ़ना और देश की तरक्की: एक सिक्के के दो पहलू!
ये बात तो जगजाहिर है कि शहरों का विकास देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाता है. लेकिन, असल में क्या होता है? क्या ज्यादा शहर होने से ही देश अमीर हो जाता है? नेचर नाम की वेबसाइट अपनी एक रिसर्च रिपोर्ट में बताया है कि किसी देश में जितने ज्यादा शहर होते हैं और उनका विकास जितना तेजी से होता है, उस देश की अर्थव्यवस्था उतनी ही मजबूत होती है, ये बात पूरी तरह से सच नहीं है.

नेचर ने दुनियाभर के देशों के आंकड़ों का अध्ययन किया है. उन्होंने देखा है कि जब कोई देश अभी विकास कर रहा होता है, तो उस वक्त उस देश में ज्यादा शहर होना और उनका विकास होना देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में मदद करता है. ऐसे देशों में नए-नए सामान बनते हैं और उनका दूसरी देशों को निर्यात होता है. लेकिन जो देश पहले से ही काफी विकसित हो चुके हैं, उन देशों में ज्यादा शहर होने का सीधा संबंध अर्थव्यवस्था के विकास से नहीं होता है. खासकर उन देशों में, जो सिर्फ कच्चे माल का निर्यात करते हैं. वहां शहरों का विकास अर्थव्यवस्था पर कोई बड़ा बदलाव नहीं लाता है.

भारत की अर्थव्यवस्था का हाल
भारत की अर्थव्यवस्था पहले से काफी बदल चुकी है. आज दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं में भारत का आकार 5वां सबसे बड़ा है, लेकिन आम लोगों की कमाई के मामले में अभी भी काफी पीछे है. 21वीं सदी की शुरुआत से भारत की अर्थव्यवस्था हर साल लगभग 6 से 7% की रफ्तार से बढ़ रही है. 

आंकड़ों के मुताबिक साल 2023 में भारत का GDP करीब 3.57 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर थी. अनुमान है कि इस दशक के अंत तक ये आंकड़ा 6 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा. यानी 2023 के मुकाबले दोगुनी हो जाएगी. 

भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है. आयात और निर्यात के मामले में भी भारत का अच्छा स्थान है. 2022 में दुनिया का 8वां सबसे बड़ा आयातक और 10वां सबसे बड़ा निर्यातक रहा. भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जहां सबसे ज्यादा अमीर लोग रहते हैं, लेकिन असमानता के कारण आम लोगों की आमदनी अभी भी कम है. 

क्या अंधाधुंध शहरीकरण बदल पा रहा है भारत की इकोनॉमी?

भारत के सामने क्या है बड़ी चुनौती
तेजी से शहरीकरण की दर का बढ़ना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है. अगर सही तरीके से इसकी योजना बनाते हैं तो शहरों का विकास देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बना सकता है. शहरों में पानी, बिजली, सफाई जैसी बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए भारी निवेश करना होगा.

रिपोर्ट के अनुसार भारत के शहरों को रहने लायक, वातावरण के अनुकूल और आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए सही बुनियादी सुविधाओं का होना बहुत जरूरी है. इसके लिए भारी भरकम निवेश करना होगा.

2036 तक भारत को हर साल औसतन 55 अरब अमेरिकी डॉलर या कुल GDP का 1.2% शहरों के विकास पर खर्च करना होगा. ये रकम करीब 840 अरब अमेरिकी डॉलर बैठती है. लेकिन अभी तक तो हाल ये है कि 2011 से 2018 के बीच सरकार ने सिर्फ GDP का 0.6% ही शहरों पर खर्च किया है. 

शहरों में कुल खर्च का अभी 72% केंद्र और राज्य सरकारें वहन कर रही हैं जबकि निजी कंपनियों का योगदान 5% से भी कम है. सरकार ने प्राइवेट कंपनियों को निवेश के लिए माहौल तो बनाया है लेकिन अभी भी बड़े पैमाने पर ऐसा नहीं हो रहा है. भविष्य में शहरों को बनाने के लिए प्राइवेट सेक्टर के पैसे की जरूरत होगी. इसके लिए शहरी निकायों को अपनी क्षमता बढ़ानी होगी और ऐसे प्रोजेक्ट बनाने होंगे, जिनमें निवेश करना कंपनियों के लिए आसान और फायदेमंद हो. साथ ही भारत को म्युनिसिपल बॉन्ड मार्केट को मजबूत करना होगा और नए तरीकों से पैसा जुटाने की तरकीबें भी सीखनी होंगी.

भारत सरकार का शहरी विकास का मास्टरप्लान!
केंद्र सरकार शहरों के विकास के लिए कई तरह की योजनाएं बनाती है. इस काम में दो मुख्य मंत्रालय अहम भूमिका निभाते हैं: पहला शहरी विकास मंत्रालय और दूसरा आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय.

सरकार का मुख्य लक्ष्य शहर को आर्थिक रूप से मजबूत करना और वहां रहने वाले सभी लोगों को बुनियादी सुविधाएं देना है. ये लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकार कुछ चीजों पर ध्यान दे रही है:

  • हर किसी को पानी, बिजली, शौचालय जैसी बुनियादी चीजें आसानी से उपलब्ध कराना
  • पूरे शहर के विकास के लिए एक मजबूत योजना बनाना और उसका पालन करना
  • सरकारी खर्च का सही हिसाब रखना और पैसों का बुद्धिमानी से इस्तेमाल करना
  • शहरों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना ताकि जरूरी कामों के लिए बाहर से पैसा लाने की जरूरत न पड़े. 
  • सरकारी कामकाज में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ाना.
  • प्रशासन में पारदर्शिता लाना और लोगों को जवाबदेह बनाना ताकि भ्रष्टाचार कम हो.
  • झुग्गी झोपड़ियों को खत्म करना और गरीबों को रहने के लिए पक्के मकान मुहैया कराना.  

वहीं भारत सरकार ने साल 2005 में ‘जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरीकरण मिशन’ (JnNURM) नाम से एक खास योजना शुरू की थी. इसका मकसद शहरों का विकास करना और वहां रहने वाले लोगों का जीवन-स्तर बेहतर बनाना है. इस मिशन के तहत 65 बड़े शहरों को चुना गया है जिनमें से कुछ की आबादी 40 लाख से भी ज्यादा है. कुछ शहरों की आबादी तो 10 लाख से ज्यादा है. इसके अलावा ऐतिहासिक, धार्मिक या पर्यटन की दृष्टि से अहम शहरों को भी इस मिशन में शामिल किया गया है.

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