बिहार में पुल गिरने की घटना सबूत है आपराधिक लापरवाही का…

11 दिन 5 पुल, हरेक के साथ ढहती गयी बिहार की प्रशासनिक, राजनीतिक और सामाजिक छवि

बिहार एक बार फिर से सुर्खियों में है. इस बार किसी सकारात्मक पहलू के साथ नहीं बल्कि नकारात्मक कारणों से ऐसा हुआ. प्री-मॉनसून की बारिश में ही वहां के पांच बड़े पुल धराशायी  हो गए. पुल गिरने के बाद हालांकि इसकी उस सघनता और विस्तार से उतनी चर्चा नहीं हो रही है जितनी होनी चाहिए. हां, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में एमएसएमई मंत्री जीतन राम मांझी ने बिहार लौटते ही एक नया एंगल जरूर दिया.

उन्होंने कहा कि पुल गिरने के मामले को शक की निगाह से देखना चाहिए, क्योंकि चुनाव के बाद ही अचानक एक-एक करके पुल कैसे गिरने लगे? आखिरकार इस तरह के मामले की जांच की जानी चाहिए. सियासी लिहाज से आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है. बोलनेवाले भले बदल गए हों, लेकिन बातें वही हैं. 

बिहार की बदनामी

पिछली बार पुल गिरने की घटना हुई थी तो उस समय तेजस्वी यादव सरकार में शामिल थे, लेकिन अब वो नेता प्रतिपक्ष हैं. दोनों समय के बयानों को देखा जाए तो काफी अंतर दिख रहा है. इन पंक्तियों के लेखक के किए एक छोटे सर्वे में लोगों का ये मानना है कि पुल गिरने की घटना के प्रति सबसे अधिक जिम्मेदारी भ्रष्ट नौकरशाहों की है. भ्रष्टाचार को देखकर आंख मूंद लेने वाली जनता को भी लोग आरोपी मान रहे हैं और मजे की बात है कि उनका और राजनेताओं का प्रतिशत बराबर है, जहां तक जिम्मेदारी का सवाल है.

ज्यादातर लोग ये मानते हैं कि भ्रष्टाचार को बढ़ावा भ्रष्ट नौकरशाह ही देते हैं, जिनका हरेक निर्माण पर कमीशन सेट होता है. इस कारण पुल गिरने की घटनाएं और निर्माणाधीन संरचना के गिरने की घटनाएं सामने आते रहती है. हालांकि, इस मामले में बिहार के सीएम नीतीश कुमार की चुप्पी सबको परेशान कर रही है.   

राज्य और केंद्र दोनों जिम्मेदार 

जो बयान भी आ रहे हैं वो लीपापोती वाले और एक रूटीन किस्म के हैं. केंद्र और बिहार दोनों ही जगहों पर एनडीए की सरकार चल रही है, लेकिन अभी तक किसी भी बड़े नेता और मंत्री का बयान इस पर स्पष्ट रूप से नहीं आया है. इसके पीछे का कारण ये है कि जो पुल गिरे हैं वो सिर्फ राज्य सरकार के अंतर्गत काम करनेवाली संस्था के नहीं बनाए हैं, बल्कि 77 मीटर वाले जिस पुल का स्लैब ऊपर से गिरा है, वो करीब तीन करोड़ की लागत से प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत निर्माणाधीन है. इसके गिरने के बाद संवेदक का कहना है कि तेज बारिश और बहाव के कारण पुल गिरा है, उसको जिम्मेदार माना जा रहा है.

किशनगंज और महाराजगंज में जो पुल गिरे हैं वो रेलवे स्टेशन से जुड़े हुए थे. ऐसे ब्रिज केंद्र सरकार के अंतर्गत आते हैं जबकि कुछ पुल ऐसे हैं जो राज्य सरकार के विभाग के अंतर्गत आते हैं. पुल गिरने की घटना को ध्यान में रखते हुए विभागों से पूछताछ के साथ ही रिपोर्ट भी मांग ली गयी है.  दो-चार अधिकारियों को सस्पेंड कर देने से इसका हल नहीं निकल पाएगा.  जो देश में व्यवस्था है, भ्रष्टाचार की, जो एक सिस्टम है, उसको बदलने में भाजपा भी दस सालों के कार्यकाल में पूरी तरह से नाकाम रही है.

कार्य के प्रति नौकरशाही या जिम्मेदारी में काफी अभाव देखा गया है. आखिरकार ये किसका कर्तव्य था जिसने अपना कार्य पूरा नहीं किया,  जिसकी वजह से ये घटना हुई. इस विषय की जांच करने के लिए कोई व्यवस्था ही नहीं है. अधिकार तो अधिकारियों के पास खूब है, लेकिन वो कर्तव्य किसका था ये तय नहीं किया गया. चाहे वो नौकरशाही की बात हो या फिर न्याय व्यवस्था, इन सबको बदलने में भाजपा भी नाकाम हुई है.

सीएम चुप, अधिकारी चुप, जनता चुप

बिहार में जो फिलहाल सरकार है भाजपा उसमें शामिल है. नीतीश कुमार से जब ये सवाल पूछे गए तो उन्होंने कुछ और बोलने के बजाए ये कहा कि विभाग से इसके बारे में रिपोर्ट मांगी गई है. इसके अलावा वो राजनीतिक बयानबाजी में व्यस्त हैं और जनता में राजनीतिक बयान और उसमें हो रही हलचल को देखने में मग्न है. कमाल है कि हमारा राष्ट्रीय चरित्र है वो एक जैसा ही है. बिहार में जहां 11 दिनों में कुल पांच पुल गिर गए तो दक्षिण भारत के तमिलनाडु में जहरीली शराब से करीब पांच दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. सैकड़ों लोग जिंदगी और मौत के बीच अस्पताल में जूझ रहे हैं. वहां के स्थानीय सरकार की भी चुप्पी देखी जा सकती है उसी प्रकार पुल की घटना में बिहार में भी चुप्पी है.   

विधानसभा चुनाव  का रंग 

नीतीश कुमार के बारे में ये कहा जा रहा है कि वो आखिरी पारी राजनीति में खेल रहे हैं . बिहार में राजनीतिक विकल्प काफी तेजी से बदल रहे हैं. चिराग पासवान एक युवा, साफ सुथरे और स्वच्छ छवि के नेता के रूप में उभर रहे हैं. वो विकास के प्रति झुकाव रखते हैं और जाति से हटकर अलग प्रकार की राजनीति करते हैं. इन सब से अलग प्रशांत किशोर भी अलग रूप से उभर कर आ रहे हैं.

चुनाव में हम बिहार  में राजद, जदयू और भाजपा को देखते हैं, कांग्रेस अपना अस्तित्व लगभग बिहार में खो चुकी है लेकिन अब इस बार हम ये पाएंगे कि वामपंथियों को फिर से पुनर्जीवन सा मिल गया है. इसके अलावा नये दल भी अपना अस्तित्व दिखाएंगे. रामविलास वाली लोजपा के दो खेमे हो गए और चिराग पासवान वाला खेमा इस चुनाव में मजबूत रूप से उभरकर सामने आया है. चिराग पासवान के पास पांच सांसद हो गए है और वो अब उभर कर भी सामने आ रहे हैं. युवा नेतृत्व के साथ राजद के कुछ आक्रामकता रहने वाले लोग सामने आ रहे हैं. इस वजह से लोकसभा चुनाव में कुछ सीटें भी मिली है. इस बार बिहार में चुनाव कई भागों में बंटा हुआ दिखेगा.

इस बार विधानसभा के चुनाव में नये खिलाड़ी के तौर पर प्रशांत किशोर होंगे तो दूसरी ओर से चिराग पासवान भी जोर दिखाने का काम करेंगे. इससे साफ तौर पर भाजपा को नुकसान होगा. कांग्रेस का तो बिहार में अस्तित्व नहीं है. सीटें उसको मिलेगी या नहीं ये भी देखना होगा. राजद को कोई खास नुकसान नहीं होगा, युवा नेतृत्व के राजद अगर आगे बढ़ेगा तो उसका नुकसान जदयू और भाजपा का होगा. नीतीश कुमार को इस लोकसभा चुनाव में जिस प्रकार से वोट मिला है तो ये भी सच है कि वो अलग प्रकार की रणनीति के साथ चुनाव में आएंगे. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि …. न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *