लाल रंग के लिफाफे में भेजा जाता है डेथ वारंट, फिर ऐसे पूरी होती है फांसी की प्रक्रिया

नई दिल्ली: निर्भया के साथ साल 2012 में चलती बस में गैंगरेप (Nirbhaya Gang Rape) और उसकी मौत के गुनहगारों के खिलाफ दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को ‘डेथ वारंट’ जारी किया. पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सतीश कुमार अरोड़ा ने डेथ वारंट जारी करते हुए दोषियों को 22 जनवरी की सुबह 7 बजे दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी देने का आदेश दिया है. आइए जानते हैं फांसी से जुड़ी पूरी प्रक्रिया…

फांसी घर के बाहर कैदी को रोका जाता है और उसे काले रंग का नकाब पहनाया जाता है, ताकि फांसी घर के अंदर का कोई दृश्य वह देख न पाए, यानी डरे-घबराए नहीं. यह जेल के कानून का हिस्सा है

जल्लाद उसके दोनों पैर रस्सी से बांध देता है
इसके बाद जैसे ही कैदी को फांसी के तख्ते पर खड़ा किया जाता है तो जल्लाद उसके दोनों पैर रस्सी से बांध देता है. जल्लाद कैदी के गले में फांसी का फंदा डालता है. फंदा पहले ढीला रखा जाता है और उसके बाद मेडिकल टीम रस्सी चेक करती है. सब कुछ हो जाने के बाद जल्लाद और कैदी के अलावा फांसी के तख्ते पर मौजूद सभी को नीचे आने के आदेश दिए जाते हैं. जल्लाद फांसी के फंदे को कसता है और लीवर खींच देता है.

करीब आधे घंटे तक कैदी को फांसी पर लटकाया जाता है, फिर मेडिकल टीम जब तय कर लेती है कि मर चुका है, तो फिर उसका डेथ सर्टिफिकेट जारी कर सुपरिटेंडेंट को देती है. जिसे जेल की तरफ से ब्लैक वारंट के साथ अटैच कर वापस कोर्ट भेज दिया जाता है.

जेल मैन्युअल के हिसाब से शव को पूरे सम्मान के साथ कैदी के परिजनों तक एंबुलेंस के जरिए भिजवाया जाता है. अगर सुपरिटेंडेंट को लगता है कि परिवार को शव देने के बाद माहौल बिगड़ सकता है तो वह उसकी सुपुर्दगी करने के लिए बाध्य नहीं हैं. जेल में भी अंतिम संस्कार कर सकते हैं.

फांसी से पहले दौड़ लगाता है जेलर
जेलर, फांसी देने से पहले फांसीघर से लेकर अपने दफ्तर और अपने दफ्तर से लेकर फांसीघर तक दौड़ लगाता है. असल में फांसी की सभी तैयारियों के बाद जेलर फांसीघर से भागकर अपने दफ्तर यह देखने आता है कि कहीं कोई सरकारी आदेश या रुकावट फांसी के खिलाफ तो नहीं आई है. अगर कोई आदेश आता है तो वो फांसी रुकवाता है. वरना फांसीघर जाकर जल्लाद को लीवर खींचने का हुक्म देता है और फांसी दे दी जाती है.

कैदी को सूरज निकलते ही जगाया जाता है
जिस दिन फांसी दी जाती है, उस दिन जेल मैन्युअल के हिसाब से कैदी को सूरज निकलते ही उठाया जाता है. साथ ही, सुपरिटेंडेंट उस दिन आए सभी ई-मेल, डाक जांचता है कि कहीं कोई फांसी को लेकर नया फरमान तो नहीं आया. तीन तरह के फट्टे होते हैं यानी टेबल, जिनपर फांसी दी जाती है, यह कैदियों के वजन के हिसाब से होता है.

कैदी के डेढ़ गुना वजन की डमी से टेस्ट भी होता है. रस्सी और फांसीघर को चेक किया जाता है. जेल मैन्युअल में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि रस्सी नई ही होनी चाहिए, लेकिन ये जरूर लिखा है कि रस्सी कैसी होगी? कितनी लंबी होगी? इसमें डॉक्टर की सलाह भी ली जाती है.

कैदी से काम करवाना बंद करवाया
डेथ वारंट जारी होने के बाद से ही कैदी से काम करवाना बंद कर दिया जाता है. उस पर 24 घंटे पैनी निगाह होती है. उसका दिन में 2 बार मेडिकल चेकअप भी होता है. कोर्ट से ब्लैक वारन्ट जारी होने के बाद उसे लाल रंग के एनवल्प या फ़ाइल में रखकर तिहाड़ जेल पहुचाया जाता है जिसकी एंट्री की जाती है और कैदी और उसके परिवार को सूचित किया जाता है.

ब्लैक वारंट कोर्ट जारी करता है, इसे ही आम भाषा में डेथ वारंट भी कहते हैं. यही कानून की भाषा में फॉर्म नंबर-44 होता है. यह ब्लैक वारंट जेल सुपरिटेंडेंट को भेजा जाता है. उसके बाद सुपरिटेंडेंट वक़्त तय करके कोर्ट को बताता है.

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