25 साल बाद दुनिया की आधी आबादी पहनेगी चश्मा ?

 25 साल बाद दुनिया की आधी आबादी पहनेगी चश्मा
जानिए क्या है अगला एपिडेमिक मायोपिया, बच्चों को क्यों है ज्यादा खतरा

लेकिन इस दुनिया में बहुत से लोगों की सुबह इससे बहुत अलग है। इनके सपने भले ही स्पष्ट और चमकदार होते हों, लेकिन नींद खुलते ही इनकी दुनिया ब्लर हो जाती है। सुबह उठते ही ये लोग सबसे पहले अपना चश्मा खोजते हैं। इसके बिना इनकी दुनिया ब्लर मोड में चलती है। इसकी वजह है मायोपिया।

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, साल 2050 तक इस दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी ऐसे ही ब्लर मोड में जिएगी यानी दुनिया के 50% से ज्यादा लोग मायोपिया से जूझ रहे होंगे।

आज ‘सेहतनामा’ में मायोपिया की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-

  • मायोपिया क्या होता है, इसके क्या लक्षण हैं?
  • क्यों बढ़ रहे हैं मायोपिया के मामले?
  • कैसे मायोपिया को दे सकते हैं मात?

प्रकृति ने हमें वरदान के रूप में 5 ज्ञानेंद्रियां दी हैं। इन्हीं की मदद से हम देख पाते हैं, सुन पाते हैं, सूंघ पाते और महसूस कर पाते हैं। इनसे मिली अनुभूति को हमारा दिमाग एनलाइज करता है और कोई निर्णय लेता है। हमारा जीवन इन्हीं निर्णयों का समुच्चय है। अगर इन 5 ज्ञानेंद्रियों में से एक आंखों की शक्ति कमजोर पड़ने लगे तो क्या होगा।

मायोपिया एक ऐसी ही हेल्थ कंडीशन है, जो हमारी आंखों की देखने की क्षमता को प्रभावित करती है। इसलिए बेहतर है कि मायोपिया को ठीक तरह से समझें। अगर इसकी शिकायत है तो तुरंत इलाज करवाएं। अगर अभी तक इस बीमारी से बचे हुए हैं तो अपनी आंखों की देखभाल करें।

क्या है मायोपिया?

मायोपिया यानी निकट दृष्टि दोष। यह ऐसी आई कंडीशन है, जिसमें रिफरेक्टिव एरर के कारण व्यक्ति को दूर की चीजें ब्लर दिखने लगती हैं। जबकि निकट दृष्टि दोष से जूझ रहे लोग पास की चीजें बिना चश्मे के भी स्पष्ट देख और पढ़ सकते हैं।

मायोपिया से जूझ रहे लोगों को टीवी देखने, रास्ते में साइन बोर्ड देखने या ड्राइविंग करने में दिक्कत आती है। अगर किसी बच्चे या किशोर को मायोपिया है तो उसे स्कूल में ब्लैक या ग्रीन बोर्ड देखने में दिक्कत आती है। इसके और भी सिंप्टम्स हो सकते हैं। आइए ग्राफिक में देखते हैं।

अगर मायोपिया शुरुआती स्टेज में है या माइल्ड मायोपिया है तो हो सकता है कि आपको किसी तरह के सिंप्टम्स महसूस न हों।

दुनिया के 30% लोग मायोपिया से पीड़ित
मायोपिया बेहद कॉमन बीमारी है। इंटरनेशनल मायोपिया इंस्टीट्यूट के मुताबिक करीब 40% अमेरिकन मायोपिया से जूझ रहे हैं।

जबकि दुनियाभर के करीब 30% लोग मायोपिया से पीड़ित हैं। इसके मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और अनुमान है कि साल 2050 तक दुनिया की आधी आबादी इसकी चपेट में होगी। यही कारण है कि मायोपिया को अगला एपिडेमिक माना जा रहा है।

अचानक इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहे हैं मायोपिया के केसेज
उम्र के साथ जैसे हमारे पूरे शरीर का क्षरण होता है, वैसे ही आंखों की देखने की शक्ति भी कमजोर होती है। लेकिन अगर 5 साल, 8 साल और 10 साल के बच्चों की नजर कमजोर होने लगे तो यह बिलकुल स्वाभाविक नहीं है। इसका कारण है डिजिटल स्क्रीन टाइम का बढ़ना और बाहर घूमने, खेलने, कूदने जैसी एक्टिविटीज का कम होना।

डॉ. गाबोर माते लिखते हैं कि पैरेंट्स जैसे एक साल के बच्चे को मोबाइल पकड़ा देते हैं और बच्चा घंटों स्क्रीन पर कार्टून देखता रहता है, उसके कारण डेवलपिंग स्टेज पर ही बच्चों की आंखों पर निगेटिव प्रभाव पड़ता है। इवोल्यूशन के लिहाज से हमारी आंखें हर वक्त इतने करीब से चीजों को देखने के लिए नहीं बनी हैं। वो बाहरी दुनिया में जितनी चीजों को देखती और अनुभव करती हैं, उसका 60 फीसदी हिस्सा दूर की चीजें होती हैं। अगर कोई हर वक्त सिर्फ आंखों से कुछ इंच की दूरी पर ही चीजें देख रहा है तो उसकी आंखों की दूर की चीजें देखने और पहचानने की क्षमता कमजोर हो जाएगी।

क्या हैं मायोपिया के रिस्क फैक्टर्स
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मायोपिया यूं तो किसी को भी हो सकता है, लेकिन बच्चे और टीनएजर्स को रिस्क ज्यादा है क्योंकि उनकी आंखें डेवलपिंग स्टेज में होती हैं।

किसे मायोपिया होने का खतरा ज्यादा है, आइए ग्राफिक में देखते हैं।

6 से 20 साल की उम्र
नेशनल आई इंस्टीट्यूट के मुताबिक, मायोपिया अक्सर 6 से 14 साल की उम्र के बीच शुरू होता है और 20 साल की उम्र तक इसके लक्षण बदतर हो सकते हैं। असल में इस उम्र में हमारी आंखें बढ़ रही होती हैं। इसलिए आंखों का आकार भी बदल सकता है, जो रिफरेक्टिव एरर का कारण बनता है।

डायबिटीज
क्लीवलैंड क्लिनिक के मुताबिक डायबिटीज जैसी कई हेल्थ कंडीशन के कारण वयस्कों को भी मायोपिया हो सकता है।

बार-बार विजुअल स्ट्रेस
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कंप्यूटर स्क्रीन पर लगातार समय बिताने पर टेंपरेरी मायोपिया हो सकता है। इसके लक्षण सिरदर्द के रूप में सामने आते हैं। अगर लंबे समय तक यही स्थिति बनी रहे तो निकट दृष्टि दोष का स्थायी रूप ले सकती है।

फैमिली हिस्ट्री
मायोपिया जेनेटिक कंडीशन भी हो सकती है। अगर हमारे पेरेंट्स में से किसी एक दृष्टि दोष है तो इस बात की आशंका बढ़ जाती है कि हमें भी मायोपिया होगा।

घर से बाहर कम समय बिताना
नेशनल आई इंस्टीट्यूट के मुताबिक, जो बच्चे घर के बाहर बहुत कम समय बिताते हैं, उनमें मायोपिया विकसित होने की आशंका अधिक होती है।

स्क्रीन टाइम बहुत अधिक होना
साल 2017 में दिल्ली के बच्चों पर हुई एक स्टडी के मुताबिक, जिन स्कूली बच्चों का स्क्रीन टाइम हर हफ्ते 7 घंटे या उससे अधिक है, उनमें मायोपिया विकसित होने का खतरा तीन गुना ज्यादा हो सकता है।

मायोपिया का पता लगाने के लिए ये मेडिकल टेस्ट किए जाते हैं-

  • मेडिकल हिस्ट्री
  • विजुअल एक्युटी
  • रिफरैक्शन टेस्ट
  • प्युपिल एग्जाम
  • आई मूवमेंट टेस्ट
  • आई प्रेशर टेस्ट

इसके बाद डॉक्टर आंखों की जरूरत के हिसाब से लेंस वाला चश्मा सजेस्ट करते हैं। साथ में कुछ दवाएं और आई ड्रॉप भी देते हैं।

हालांकि बेहतर यही है कि चश्मा लगाने और आई ड्रॉप इस्तेमाल करने की नौबत ही न आए। इसके लिए हमें कुछ एक्टिविटीज को अपनी दिनचर्या में शामिल करना होगा।

कैसे सुरक्षित रहें हमारी आंखें
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अपनी आंखों की सुरक्षा के लिए हमें कुछ चीजें नियमित रूप से फॉलो करनी चाहिए। आइए ग्राफिक में देखते हैं।

ग्राफिक में दिए पॉइंट्स थोड़ा विस्तार से समझते हैं।

  • मोबाइल फोन, लैपटॉप या टीवी स्क्रीन का टाइम सीमित करें।
  • 20-20-20 रूल फॉलो करें। हर 20 मिनट में 20 सेकेंड का ब्रेक लेकर 20 फीट दूरी से किसी चीज को देखें।
  • कोशिश करें कि ज्यादा-से-ज्यादा समय घर के बाहर सूरज की रोशनी वाली जगह में बिताएं।
  • कंप्यूटर पर काम करते समय या कोई किताब पढ़ते समय 12 इंच की दूरी रखने की कोशिश करें।
  • आंखों की नियमित रूप से जांच करवाएं।
  • अगर पहले से मायोपिया की शिकायत है तो नेत्र चिकित्सक द्वारा बताए गए करेक्टिव लेंस पहनें।
  • धूप में पराबैंगनी (UV) किरणों से सुरक्षा के लिए धूप का चश्मा पहनें।
  • पॉइजनस केमिकल्स का इस्तेमाल करते समय सेफ्टी ग्लासेज जरूर पहनें।
  • अगर कंप्यूटर या किसी मशीन में काम करते समय आंखों पर जोर पड़ रहा है तो नियमित रूप से ब्रेक लें।
  • हाइपरटेंशन और डायबिटीज जैसी लाइफ स्टाइल डिजीज को मैनेज करें।
  • फलों, सब्जियों और ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर भोजन करें।
  • विटामिन A और विटामिन C से भरपूर फल और सब्जियां खाएं।
  • धूम्रपान और शराब जैसी नशे की चीजों से दूरी बनाएं।

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