मर्दों को सब आता है, शर्म नहीं आती ?

मर्दों को सब आता है, शर्म नहीं आती …
मां की पूजा तो करते हैं, लेकिन इज्जत, प्यार, ख्याल, सेवा, मदद कुछ नहीं करते

दिन-रात मां के नाम की माला जपने, मां की पूजा का दावा करने और मां को महानता के सबसे ऊंचे शिखर पर बिठाने वाले इस देश में एक मां ने आत्महत्या कर ली। आत्महत्या करने वाली 33 साल की वी. रम्या चेन्नई में आईटी प्रोफेशनल थीं।

उस मां ने आत्महत्या इसलिए कर ली क्योंकि एक दिन अचानक ढेर सारे नैतिकता के ठेकेदार मिलकर सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया में उस मां को ट्रोल करने लगे। उसे क्रूर, नाकारा और लापरवाह कहने लगे। कहने लगे कि वो मां के नाम पर कलंक है।

और लोग ऐसा इसलिए कहने लगे कि क्योंकि एक दिन अपने घर की बालकनी में बच्ची मां की गोद से फिसलकर गिर गई और शेड में अटक गई। लोगों ने तुरंत उसकी मदद की और बच्ची को बचा लिया।

बच्ची तो बच गई, लेकिन मां नहीं बच पाई। एक महीने बाद उसने आत्महत्या कर ली क्योंकि लोगों की फब्तियों, तानों, अपशब्दों और अपमान के कारण वह डिप्रेशन में चली गई थी।

अब बजाइए ताली, उठाइए तानपूरा और मां की महानता का एक और राग गाना शुरू कर दीजिए।

दुनिया का कोई कोर्ट, कोई न्यायालय उस महिला की हत्या का दोष आपके सिर नहीं मढ़ेगा। इस समाज के, परिवार के और सोशल मीडिया के उन ट्रोलर्स के सिर, जो उस मां को दिन-रात गालियों और अपशब्दों से नवाज रहे थे। किसी न्यायालय में ये साबित नहीं हो पाएगा कि आप सब सामूहिक रूप से एक मां के हत्यारे हैं। इसलिए आपको फिक्रमंद होने की जरूरत नहीं। आप अपना महानता का राग चालू रख सकते हैं।

आपको शर्मिंदा होने की भी जरूरत नहीं है क्योंकि उसके लिए भी थोड़े ईमान की जरूरत तो पड़ती है। थोड़ा अपने गिरेबान में भी झांककर देखना पड़ता है। कुछ सवाल खुद से भी पूछने पड़ते हैं। आंखों का थोड़ा पानी, थोड़ी हया, थोड़ी शर्म बची रहनी जरूरी है शर्मिंदगी महसूस करने के लिए।

आपकी आंखों का पानी सूख चुका है। औरतों के मामले में और खासतौर पर मां की महानता के मामले में आपकी मक्कारी का आलम ये है कि खुद मक्कारी भी शर्म से चुल्लू भर पानी में डूब मरे। लेकिन आपको शर्म नहीं आएगी।

आपको शर्म बिलकुल नहीं आती, जब आप मां को महानता का दर्जा तो देते हैं, लेकिन औरत को मनुष्य होने तक की इजाजत नहीं देते। औरत को इंसान समझना तो छोड़ो, इंसान होने की मामूली सी इज्जत भी नहीं देते।

मां-बाप पहले तो लड़की को मूर्ख, डरपोक और दब्बू बनाकर पालते हैं। उसे सिर्फ डरना सिखाते हैं, अपनी इज्जत करना नहीं सिखाते। फिर अपने जाति-धर्म में कोई लड़का खोजकर उसे एक खूंटे से छुड़ाकर दूसरे खूंटे से बांध देते हैं। आदमी सेक्स करता है और औरत मां बन जाती है।

मां बनते ही वो न औरत रहती है, न इंसान। सिर्फ परिवार ही नहीं, पूरा समाज और नैतिकता के सारे ठेकेदार उसे हर क्षण याद दिलाते हैं कि अब उसके जीवन का एक ही मकसद है, अपने बच्चों को पालना। उसका अपना कुछ नहीं है। न इच्छाएं, न शौक, न वक्त, न सुख, न दुख, न पसंद-नापसंद। कुछ भी नहीं। जो है सब बच्चे के लिए है।

तुम मां हो। तुम महान हो।

और क्या मुझे यहां अलग अंडरलाइन करके आपको ये बताने की जरूरत है कि इस महान देश की ये सारी महान मांएं सबसे प्रताड़ित, सबसे वंचित, सबसे कुपोषित, सबसे ज्यादा एनीमिक और सबसे ज्यादा लात खाई, सताई, दुत्कारी गई हैं।

सॉरी, उससे क्या होता है। मां है तो महान।

मां इतनी महान है कि हर साल इस देश के लोग 5 लाख से ज्यादा भविष्य की मांओं को उनकी मां के पेट में ही मार देते हैं। ये यूएन वुमेन का डेटा है, उन बच्चियों का, जो पैदा होने से पहले मां के पेट में ही मौत के घाट उतारी जा रही हैं। मजाल है जो भविष्य के पिताओं को आप हाथ भी लगाएं। मुंह में राम, बगल में छुरी का पाठ तो कोई आपसे सीखे। पूजा भी करेंगे और हत्या भी। दोनों साथ-साथ।

मां महान तो है, लेकिन वो सरप्लस महान हो जाती है, अगर पुत्र पैदा कर दे। लड़की पैदा करने पर कितनी दुर्गति होती है मां की और उस लड़की की, जो भविष्य की मां है, आपको अलग से बताने की जरूरत है क्या। आप खुद इतने महान हैं, आपसे क्या छिपा है भला।

मां पूरी जिंदगी खुद जीना छोड़कर अपने खून-पसीने से बच्चे को पालती है और बच्चा अगर काबिल निकलता है तो बाप छाती फुलाकर इतराता है। बेटा किसका है। और गलती करता है तो ठीकरा मां के सिर फोड़ा जाता है। क्या संस्कार दिए हैं तुमने। बच्चे की किसी सफलता का क्रेडिट मां को नहीं मिलता, लेकिन उसकी सारी असफलताओं का दोष मांं के ही सिर मढ़ा जाता है।

   

आपने कभी देखा या सुना कि इस समाज ने कभी मर्द को इस बात के लिए ट्रोल किया हो कि वो बुरा बाप है। और इस ट्रोलिंग से घबराकर मर्द ने आत्महत्या कर ली हो। कभी नहीं।

आप सिर्फ औरतों को ट्रोल करते हैं। औरतों को गाली देते हैं। औरतों के एमएमएस बनाते हैं। औरतों के पोर्न वीडियो बनाकर व्हॉट्सएप पर फॉरवर्ड करते हैं। औरतों के कपड़े उतारते हैं। औरतों को अपमानित करते हैं। मर्दों से आपकी कोई दुश्मनी नहीं। आपके निशाने पर हर वक्त सिर्फ औरत है।

इस देश में मर्द होने का मतलब है सात खून माफ और औरत होने का मतलब कि न जीते हुए चैन, न मरकर चैन।

तभी तो ट्रोलर्स ने मरने के बाद भी रम्या की जान नहीं बख्शी। कहने लगे कि एक मां होकर वो ऐसा कैसे कर सकती है। दूध पीती बच्ची को छोड़कर आत्महत्या कैसे कर सकती है। तो औरत न चैन से जिंदा रह सकती है, न मर सकती है।

हम ऐसा समाज हैं, ऐसे लोग हैं, जो मां की सिर्फ पूजा करते हैं, मां की मदद नहीं करते, उसकी जरूरतों का ख्याल नहीं रखते। मां को मैटरनिटी लीव देने में हमें मियादी बुखार जकड़ लेता है। नवजात को घर छोड़कर आई मां की छाती से रिस रहा दूध उसके कुर्ते पर लगा दिख जाए तो मर्दों की लार टपकने लगती है। मजाल है, जो हम इस बात को स्वीकार भी करें कि नौ महीने अपने पेट में एक नए इंसान को धारण कर रही, पैदा कर रही औरत को ख्याल की, प्यार की, सेवा की, मदद की जरूरत है।

मां तो महान है। उसके तो चार हाथ हैं। एक से बच्चा पालेगी, दूसरे से घर संभालेगी, तीसरे से दफ्तर के काम करेगी, चौथे से पति की सेवा करेगी। उसकी सेवा कोई नहीं करेगा।

मैं दस हजार शब्द अभी और लिख सकती हूं जो इस देश की, समाज की और मर्दों की मक्कारियों का सबसे ऑथेंटिक दस्तावेज होगा, लेकिन एक ही बात दोहराते रहने का कोई फायदा नहीं।

बस मां की महानता की ये आखिरी कहानी सुन लीजिए।

मुझे एक बार दिल्ली के जंगपुरा मेट्रो स्‍टेशन पर एक औरत मिली। वो मेटल डिटेक्‍टर के सामने कुर्सी पर बैठी हुई थी। मैं पहुंची तो वह कुर्सी से उठ गई और डिटेक्‍टर लगाकर मेरी चेकिंग करने लगी। मैं आगे बढ़ी और वो फिर धीरे से बैठ गई। अभी 30 सेकेंड भी नहीं हुए थे कि एक दूसरी औरत आ गई। वो फिर खड़ी हो गई। वो महिला जरा सा बैठने की कोशिश करती कि कोई आ जाता और उसे फिर उठकर चेकिंग करनी पड़ती। वो ऐसे ही दिन मैं सैकड़ों-हजारों बार खड़ी होती, बैठती होगी। वो चाहकर भी पांच मिनट चैन से बैठ नहीं पा रही थी।

आप सोच रहे होंगे कि इसमें अजीब क्‍या है। बैठना क्‍या इतना जरूरी है।

जी, जरूरी है। सामान्‍य स्थितियों में न भी हो तो वहां उस वक्‍त उस औरत के लिए बैठना बहुत जरूरी था। वजह थी उसका फूला हुआ पेट।

वो सेवन मंथ्‍स प्रेग्‍नेंट थी।

मैं काफी देर तक वहां खड़े होकर उसे देखती रही। फिर उससे पूछा, “आप छुट्टी क्‍यों नहीं ले लेतीं।”

“सिर्फ तीन महीने की छुट्टी मिलती है। डिलिवरी के बाद लूंगी।” (ये तब की बात है, जब इस देश में सरकारी मैटरनिटी लीव सिर्फ तीन महीने की हुआ करती थी।)

“लेकिन आप ऐसा काम क्‍यों कर रही हैं, जिसमें पूरा दिन खड़े रहना पड़ता है। आपके ऑफिस वाले आपको आराम का काम भी तो दे सकते हैं, जहां आप कुर्सी-मेज पर बैठकर काम कर सकें।”

वो हंसने लगी। बोली, “ऐसा नहीं होता मैडम। काम है तो करना ही पड़ेगा। अभी कश्‍मीरी गेट स्‍टेशन पर तीन लड़कियां हैं। वो भी प्रेग्‍नेंट हैं। हमारे बॉस लोग ये सब बात नहीं सुनते। कुछ बोला तो उल्टे मजाक उड़ाते हैं।”

जी हां, यही हैं आप लोग। प्रेग्नेंट औरत कुर्सी-मेज का काम मांगे तो मजाक उड़ाते हैं। मैटरनिटी लीव मांगे तो कुढ़ जाते हैं। उसके हाथ से गलती से बच्चा फिसल जाए तो उसे इतना अपमानित करते हैं कि वो आत्महत्या कर ले।

और ये सब करने के बाद आप मां की महानता और मां की पूजा का ढोंग करते हुए एक लंबा आलाप लेते हैं।

लेकिन शर्म है कि आपको नहीं आती।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *