नॉर्थ-ईस्ट में BJP ने पार्टियां तोड़ीं, बीफ का समर्थन !

नॉर्थ-ईस्ट में BJP ने पार्टियां तोड़ीं, बीफ का समर्थन
7 राज्यों में सरकार, 20 गुना विधायक बढ़े; कैसे किया उलटफेर, 7 बड़ी वजह

आज नॉर्थ ईस्ट के 6 राज्यों में BJP सत्ता में है। चार राज्यों में उसका मुख्यमंत्री है। कुल 182 विधायक और 14 सांसद हैं। यानी, 2014 के मुकाबले 20 गुना ज्यादा विधायक और साढ़े तीन गुना यानी, 250% ज्यादा सांसद हैं।

आज का ‘यक्ष प्रश्न’- BJP नॉर्थ ईस्ट में बड़ा उलटफेर करने में कैसे कामयाब हुई?

साल 2014, जून-जुलाई का महीना, कांग्रेस सांसद गुलाम नबी आजाद श्रीनगर में छुट्टियां बिता रहे थे। दोपहर 12 बजे, दिल्ली से अहमद पटेल ने आजाद को फोन किया- ‘मैडम आपसे बात करना चाहती हैं।’

अब टेलिफोन पर सोनिया गांधी थीं। उन्होंने आजाद से पूछा- आप कहां हो, मैं कब से ढूंढ रही हूं?

आजाद ने जवाब दिया- श्रीनगर में हूं।

सोनिया- आप अभी दिल्ली आ जाइए। अगर प्लेन नहीं मिल रहा हो, तो बोलिए मैं यहां से भेज देती हूं।

आजाद- नहीं उसकी कोई जरूरत नहीं है। यहां से हर घंटे दिल्ली के लिए प्लेन है।

सोनिया- शाम 5 बजे हम बैठक करेंगे, लेकिन उसके पहले आपको दो काम करते हुए आना है।

आजाद- क्या?

सोनिया- असम में बहुत बड़ा संकट आ गया है। हिमंत बिस्वा सरमा ने 40-50 विधायकों के साथ बगावत कर दी है। मैंने सुना है कि वो आपके करीब हैं। आप फोन करके बोलिए कि अभी वो अपना प्लान होल्ड पर रखें। राज्यपाल भी आपके करीबी हैं, उन्हें भी बोलिए कि अभी कुछ फैसला नहीं लें।

अक्टूबर 2019, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ गुलाम नबी आजाद। 2022 में आजाद ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर खुद की पार्टी बना ली।
अक्टूबर 2019, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ गुलाम नबी आजाद। 2022 में आजाद ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर खुद की पार्टी बना ली।

शाम करीब 5 बजे आजाद, दिल्ली पहुंचे और सोनिया गांधी से मिले।

सोनिया आजाद से बोलीं- आप असम जाइए और वहां लीडर चुनिए।

आजाद- मैडम मैं वहां जाने से पहले यहीं पर एक्सरसाइज करना चाहता हूं। वहां जाकर अपने मन से किसी को मुख्यमंत्री बना दूंगा, तो आप कहोगे कि इसको नहीं बनाना था।

सोनिया – प्लान लीक हो गया तो?

आजाद- कोई प्लान लीक नहीं होगा। मैं इंदिराजी के जमाने से यही काम करता आ रहा हूं।

इसके बाद आजाद ने हिमंत बिस्वा सरमा को फोन किया और कहा कि वे अलग-अलग जहाजों से अपने विधायकों को लेकर दिल्ली पहुंचें।

सरमा के साथ 40-50 विधायक दिल्ली पहुंचे। उन्हें दिल्ली में अलग-अलग होटलों में रखा गया। किसी को कहीं बयान देने से सख्त मना किया गया।

आजाद ने असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई से कहा कि आपके समर्थन में जो विधायक हैं, उन्हें दिल्ली भेजिए। गोगोई ने 7 विधायकों को दिल्ली भेजा। 10 विधायक और दिल्ली आए, जिनका कहना था कि वे आलाकमान का फैसला मानेंगे।

2001 में पहली बार विधायक बनने के बाद हिमंत बिस्वा सरमा (दाएं से दूसरे) और असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई (दाएं से तीसरे)।
2001 में पहली बार विधायक बनने के बाद हिमंत बिस्वा सरमा (दाएं से दूसरे) और असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई (दाएं से तीसरे)।

आजाद ने सभी आंकड़े नोट किए और जाकर सोनिया को बताया कि हिमंत बिस्वा सरमा के पास बहुमत है।

सोनिया आजाद से बोलीं- ठीक है…आप असम जाइए और वहां जो नेता चुना जाए, उसे CM बनाइए।

आजाद को जिस रोज असम जाना था, उससे एक दिन पहले, रात के करीब 8 बजे राहुल गांधी ने उन्हें फोन किया।

राहुल गांधी ने आजाद से कहा – मुझे पता चला है कि आप असम के मुख्यमंत्री को बदलने वाले हैं?

आजाद- हां

राहुल- आप प्लान कैंसिल करिए। कोई असम नहीं जाएगा।

इसके बाद आजाद, राहुल गांधी से मिलने उनके घर पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि राहुल के साथ तरुण गोगोई और उनके बेटे गौरव गोगोई बैठे हैं।

राहुल, आजाद से कहते हैं- मैंने सुना है आप लोग इन्हें तंग कर रहे हैं।

आजाद- मैं क्यों तंग करूंगा। मुझे जो काम दिया गया, वो कर रहा हूं। हिमंत के पास बहुमत है। आप सोचकर बताइएगा क्या करना है।

राहुल- सोचना क्या है… अभी जो मुख्यमंत्री है, वही रहेगा।

आजाद- फिर हिमंत पार्टी छोड़ देगा।

राहुल- जाने दो उसे RSS में।

गुलाम नबी आजाद ने इस पूरे किस्से का जिक्र अपनी किताब ‘आजाद’ में किया है।

साल 2016, असम के नगांव में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी, तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और उनके बेटे गौरव गोगोई।
साल 2016, असम के नगांव में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी, तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और उनके बेटे गौरव गोगोई।

हिमंत बिस्वा सरमा, नॉर्थ-ईस्ट में कांग्रेस का बड़ा चेहरा थे। वे पूर्व CM तरुण गोगोई के करीबी माने जाते थे। 2001 से 2011 तक हिमंत लगातार तीन बार कांग्रेस से विधायक रहे। गोगोई ने अपनी कैबिनेट में उन्हें अहम विभाग दिए थे।

हिमंत और तरुण गोगोई के रिश्तों में दरार की शुरुआत हुई 2013 में, जब मुख्यमंत्री अपने बेटे गौरव गोगोई को राजनीति में लेकर आए।

2014 में गौरव को लोकसभा का टिकट मिला और वे जीत भी गए। यहां से सरकार के कामकाज में भी गौरव की भूमिका रहने लगी।

कहा जाता है कि 2014 से पहले ही हिमंत बिस्वा सरमा, BJP नेता राम माधव के संपर्क में थे। RSS से BJP में आने वाले राम माधव तब असम के प्रभारी थे।

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वे राम माधव, हिमंत को BJP में लाने का ब्लू प्रिंट तैयार कर रहे थे।

2016 में असम विधानसभा में बहुमत हासिल करने के बाद खुशी जाहिर करते हिमंत बिस्वा सरमा, सर्बानंद सोनोवाल और राम माधव।
2016 में असम विधानसभा में बहुमत हासिल करने के बाद खुशी जाहिर करते हिमंत बिस्वा सरमा, सर्बानंद सोनोवाल और राम माधव।

21 जुलाई 2015, असम के BJP नेता सर्बानंद सोनोवाल और केंद्रीय राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक बुकलेट जारी कर बताया कि लुईस बर्जर घोटाले में हिमंत बिस्वा सरमा मुख्य संदिग्ध हैं।

दरअसल, ED ने दावा किया था कि 2010 में वाटर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के लिए असम और गोवा में भारतीय अधिकारियों को फर्जी कंपनियों ने रिश्वत दी है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक प्रेस कॉन्फ्रेंस के अगले दिन यानी, 22 जुलाई को हिमंत बिस्वा सरमा की BJP में एंट्री होने वाली थी, लेकिन घोटाले में नाम आने के बाद प्लान होल्ड कर दिया गया।

असम के BJP अध्यक्ष रहे सिद्धार्थ भट्टाचार्य एक मीडिया इंटरव्यू में बताते हैं- ‘सर्बानंद सोनोवाल की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद मैं, हिमंत के साथ दिल्ली में BJP अध्यक्ष अमित शाह से मिला और उन्हें बताया कि आरोप झूठे हैं। शाह ने कहा कि ये तो गलत हुआ। अब गलती सुधारिए।’

एक महीने बाद यानी 23 अगस्त 2015 को हिमंत बिस्वा सरमा ने दिल्ली में अमित शाह से मुलाकात की और उसी दिन वे BJP में शामिल हो गए।

साल 2016, असम विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान PM मोदी के साथ सर्बानंद सोनोवाल (बाएं) और हिमंत बिस्वा सरमा (दाएं)।
साल 2016, असम विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान PM मोदी के साथ सर्बानंद सोनोवाल (बाएं) और हिमंत बिस्वा सरमा (दाएं)।

असम : हिमंत के BJP में आने के 10 महीने बाद ही सरकार बनाई
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में BJP ने नॉर्थ ईस्ट में तीन मुद्दों को प्रमुखता से उठाया था। पहला- बांग्लादेशी मुस्लिम को घुसपैठिया बताकर बाहर भेजने का मुद्दा। दूसरा- नेहरू-गांधी परिवार पर नॉर्थ ईस्ट से भेदभाव का मुद्दा और तीसरा- करप्शन।

2014 लोकसभा चुनाव में BJP को असम में 7 सीटें मिलीं। उसे 36.6% वोट मिले। यानी, पिछले लोकसभा चुनाव से करीब 20% ज्यादा वोट शेयर।

वहीं, अरुणाचल प्रदेश में BJP को एक सीट मिली। उसका वोट शेयर करीब 10% बढ़ गया, लेकिन त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, नगालैंड और मिजोरम में BJP का खाता नहीं खुला। इस तरह पहली बार BJP को नॉर्थ-ईस्ट में 25 में से 8 लोकसभा सीटें मिलीं।

अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में 2014 लोकसभा चुनावों के साथ ही विधानसभा के भी चुनाव हुए। अरुणाचल में BJP को 11 सीटें और 33% वोट मिले। जबकि सिक्किम में उसे कोई सीट नहीं मिली। वोट शेयर महज 0.7% रहा।

2014 लोकसभा चुनाव के दौरान असम के गुवाहाटी में कैंपेन करते नरेंद्र मोदी।
2014 लोकसभा चुनाव के दौरान असम के गुवाहाटी में कैंपेन करते नरेंद्र मोदी।

साल 2016, असम में विधानसभा चुनाव हुए। 19 जनवरी को मोदी की असम के कोकराझार में रैली हुई। मोदी ने बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट यानी, BPF के साथ गठबंधन का ऐलान किया।

दरअसल बोडो, असम की जनजाति है, जो लंबे समय से अलग राज्य बोडोलैंड की मांग कर रही है। इसी आंदोलन से निकली BPF ने पिछला विधानसभा का चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था और उसे 11 सीटें मिली थीं।

29 जनवरी 2016, BJP ने अपने पुराने चेहरे को तवज्जो देते हुए सर्बानंद सोनोवाल को CM फेस बनाया। सोनोवाल, पहले असम गणपरिषद में थे। उन्होंने 2011 में BJP जॉइन किया था।

2 मार्च को BJP ने एक और स्थानीय दल असम गण परिषद के साथ गठबंधन की घोषणा की।

19 मई को असम विधानसभा चुनाव के नतीजे आए। 126 सीटों में से BJP को 60 और उसके सहयोगियों को 26 सीटें मिलीं। जबकि कांग्रेस 26 सीटों पर सिमट गई। आजादी के बाद पहली बार नॉर्थ ईस्ट के किसी राज्य में BJP की सरकार बनी। सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री बने।

2021 में भी असम विधानसभा चुनाव में BJP को लगातार दूसरी बार बहुमत मिला। हालांकि, इस बार पार्टी ने चेहरा बदल दिया और हिमंत बिस्वा सरमा राज्य के मुख्यमंत्री बने। जबकि, सोनोवाल को केंद्र में भेज दिया गया।

24 मई 2016, सर्बानंद सोनोवाल के शपथ ग्रहण की तस्वीर। इसमें प्रधानमंत्री भी शामिल हुए थे।
24 मई 2016, सर्बानंद सोनोवाल के शपथ ग्रहण की तस्वीर। इसमें प्रधानमंत्री भी शामिल हुए थे।

NDA की जगह NEDA, ताकि BJP बाहरी पार्टी नहीं लगे
नॉर्थ ईस्ट में BJP के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी- बाहरी पार्टी के रूप में उसकी पहचान। RSS लंबे समय से वहां काम कर रहा था, उसके बाद भी BJP के पास मजबूत कैडर नहीं था।

इसकी काट निकालने के लिए 26 मई 2016 को नॉर्थ ईस्ट की स्थानीय पार्टियों को मिलाकर एक नया गठबंधन ‘नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस’ यानी, NEDA बना।

हिमंत बिस्वा सरमा को NEDA का संयोजक बनाया गया। BJP के साथ नागा पीपुल्स फ्रंट, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल, असम गण परिषद, बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट जैसी स्थानीय पार्टियां इसमें शामिल हुईं। सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और असम के मुख्यमंत्री इसके फाउंडिंग मेंबर बने।

अरुणाचल प्रदेश : 33 विधायक तोड़कर बनाई सरकार
2014 के असम विधानसभा चुनाव में BJP को 11 सीटें मिलीं। दो साल बाद यानी, सितंबर 2016, कांग्रेस के 43 विधायक ‘पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल’ में शामिल हो गए। करीब तीन महीने बाद यानी, दिसंबर 2016 में पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश के 33 विधायक भी BJP में शामिल हो गए।

इस तरह राज्य में BJP की सरकार बन गई। पेमा खांडू मुख्यमंत्री बने, जो पहले कांग्रेस से पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल में आए और फिर BJP में शामिल हो गए थे।

2019 के विधानसभा में BJP ने 60 सीटों में से 41 सीटें जीतकर दोबारा सरकार बनाई। पेमा खांडू एक बार फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बने।

मार्च 2024, ईटानगर में प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत करते अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू।
मार्च 2024, ईटानगर में प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत करते अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू।

मणिपुर : कांग्रेस बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सरकार BJP ने बनाई
2017 में मणिपुर में चुनाव हुए। 60 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 28 और BJP को 21 सीटें मिलीं। 2011 के बाद पहली बार BJP का मणिपुर में खाता खुला। पिछले चुनाव के मुकाबले करीब 34% वोट शेयर बढ़ गया।

चुनावी नतीजों के बाद BJP ने नेशनल पीपुल्स पार्टी, नागा पीपुल्स फ्रंट और लोक जनशक्ति पार्टी के साथ मिलकर मणिपुर में सरकार बनाई। एन वीरेन सिंह मुख्यमंत्री बने, जो 2016 में कांग्रेस छोड़कर BJP में शामिल हुए थे।

2021 विधानसभा चुनाव में BJP ने 32 सीटें जीतकर दोबारा सरकार बनाई। वीरेन सिंह को फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया।

त्रिपुरा : 25 साल पुराना लेफ्ट का किला ध्वस्त किया
2018 में त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव हुए। 3 मार्च को जब नतीजे आए, तो सब हैरान रह गए। 60 सीटों में से 35 सीटें जीतकर BJP ने ना सिर्फ त्रिपुरा में पहली बार खाता खोला, बल्कि खुद के दम पर सरकार भी बनाई। लेफ्ट का 25 साल पुराना किला ध्वस्त हो गया।

BJP के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष बिप्लव देब को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन चार साल बाद यानी, मई 2022 में उन्हें हटाकर माणिक साहा को CM बना दिया गया। साहा, कांग्रेस छोड़कर 2016 में BJP में शामिल हुए थे।

2023 विधानसभा चुनाव में भी BJP ने 32 सीटें जीतकर यहां वापसी की। हालांकि, पिछले चुनाव के मुकाबले उसकी तीन सीटें कम हो गईं। वोट शेयर भी करीब 4% कम हो गया।

3 मार्च 2018, त्रिपुरा के अगरतला में जीत का जश्न मनाते हुए त्रिपुरा BJP के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष बिप्लव देब और राम माधव।
3 मार्च 2018, त्रिपुरा के अगरतला में जीत का जश्न मनाते हुए त्रिपुरा BJP के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष बिप्लव देब और राम माधव।

सिक्किम : चुनाव कोई सीट नहीं मिली, लेकिन दूसरे दल के 10 विधायक BJP में शामिल हो गए
2019 के विधानसभा चुनाव में सिक्किम विधानसभा चुनाव में BJP को कुल 5700 वोट मिले। यानी, 1.62% वोट। पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई, लेकिन आज सिक्किम में BJP के 12 विधायक हैं और वो सरकार में शामिल है।

दरअसल विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद तीन विधायकों को इस्तीफा देना पड़ा, क्योंकि वे दो-दो सीटों से लड़े थे।

इसके बाद सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के 15 में से 10 विधायक BJP में शामिल हो गए। जिन तीन सीटों पर उपचुनाव हुए, उनमें से दो सीटें BJP जीत गई। इस तरह सिक्किम में उसके 12 विधायक हो गए। और वह गठबंधन की सरकार में शामिल हो गई।

हालांकि, इस साल चुनाव से ठीक पहले BJP ने गठबंधन तोड़ लिया। फिलहाल वो विपक्ष में है।

नगालैंड पांच साल में 11 विधायक बढ़े, गठबंधन की सरकार का हिस्सा
2018 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पूर्व सीएम केएल चिशी BJP में शामिल हो गए। उनके साथ 12 नेता भी BJP में शामिल हुए। बीजेपी ने नागा पीपुल्स फ्रंट के साथ गठबंधन तोड़कर नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के साथ चुनाव में उतर गई।

2018 में BJP को 12 सीटें मिलीं, यानी पिछले चुनाव से 11 ज्यादा। 2023 विधानसभा में भी BJP को 12 सीटें मिलीं और इस बार भी वो गठबंधन की सरकार में शामिल रही।

मिजोरम : 2018 में पहली बार खाता खुला
2018 में विधानसभा चुनाव में BJP 39 सीटों पर लड़ी और एक सीट ही जीत सकी। यहां पहली बार BJP का खाता खुला। पिछले चुनाव के मुकाबले उसका वोट शेयर भी करीब 8% बढ़ गया। 2023 चुनाव में BJP को दो सीटें मिलीं। फिलहाल वो यहां विपक्ष में है।

मेघालय : लगातार दो बार से गठबंधन की सरकार में
मेघालय में BJP को 2018 और 2013 दोनों ही विधानसभा चुनावों 2-2 सीटें मिलीं। दोनों ही बार वो गठबंधन की सरकार में शामिल हुई।

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BJP नॉर्थ ईस्ट में कामयाब कैसे हुई, 

1. मुस्लिम घुसपैठिए बनाम मूल निवासी का मुद्दा : मोदी बोले- असम के युवा बेरोजगार, घुसपैठिए रोजी-रोटी कमा रहे
2014 में जब BJP नरेंद्र मोदी को PM फेस बनाकर लोकसभा चुनाव में उतरी, तब नॉर्थ ईस्ट में BJP ने बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। तकरीबन हर रैली में मोदी ने इसका जिक्र किया।

24 फरवरी 2014, जगह असम का रामनगर। मोदी ने कहा- ‘कांग्रेस सरकार ने डिटेंशन सेंटर के नाम पर मानवाधिकारों का हनन किया। घुसपैठिए आपके अधिकार छीन रहे हैं। असम के नौजवान बेरोजगार हैं और बाहर के लोग रोजी रोटी कमा रहे हैं। ये अन्याय है कि नहीं। दिल्ली में सरकार बना दीजिए, न्याय मिलने की शुरुआत हो जाएगी। सारे डिटेंशन सेंटर खत्म कर दूंगा।’

असम के साथ ही पूरे नॉर्थ ईस्ट में मूल निवासी बनाम बाहरी का मुद्दा लंबे अरसे से रहा है। 1980 के दशक में तो इसी मुद्दे पर असम में खूब हिंसा हुई। ORF वेबसाइट के मुताबिक तब 2 हजार से ज्यादा बांग्लादेशी प्रवासी मारे गए थे।

15 अगस्त 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और छात्र संगठन आसू के बीच समझौता हुआ, जिसे असम अकॉर्ड कहा जाता है। इसके बाद नागरिकता कानून में बदलाव किया गया। जो लोग मार्च 1971 के बाद असम आए, उन्हें अवैध प्रवासी माना गया।

BJP, 1980 के दशक से ही बांग्लादेशी प्रवासियों को बाहर भेजने की मांग करती रही है। हालांकि, बाद में BJP ने अपना स्टैंड बदला और बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता देने और बांग्लादेशी मुस्लिमों को घुसपैठिया बताकर बाहर भेजने की मांग करने लगी।

तारीख 15 अगस्त 1985, असम अकॉर्ड पर दस्तखत करते हुए पूर्व PM राजीव गांधी और असम के स्थानीय नेता।
तारीख 15 अगस्त 1985, असम अकॉर्ड पर दस्तखत करते हुए पूर्व PM राजीव गांधी और असम के स्थानीय नेता।

2. हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण : हिमंत बोले- मुझे ‘मियां’ वोट्स नहीं चाहिए
नॉर्थ ईस्ट के 8 राज्यों में से चार यानी त्रिपुरा, असम, सिक्किम और मणिपुर हिंदू बहुल राज्य हैं। जबकि नगालैंड, मेघालय और मिजोरम में 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी ईसाई है। असम में 34 प्रतिशत मुस्लिम हैं, जो नॉर्थ ईस्ट के बाकी किसी भी राज्य के मुकाबले बहुत ज्यादा है।

अगर पूरे नॉर्थ ईस्ट की बात करें, तो हिंदू आबादी 37 प्रतिशत, ईसाई 42.3 प्रतिशत और मुस्लिम 7.7 प्रतिशत हैं।

BJP के बड़े नेता नॉर्थ ईस्ट में हिंदू-मुस्लिम मुद्दा उछालते रहे हैं। हिमंत बिस्वा सरमा कई बार मुस्लिमों के खिलाफ बयान दे चुके हैं।

20221 में उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था- ‘मुझे मियां वोट्स नहीं चाहिए। मैं उनके पास वोट मांगने नहीं जाऊंगा और वे भी मेरे पास नहीं आएंगे।’

बांग्लादेशी मुस्लिम प्रवासियों को घुसपैठिया बताकर बाहर भेजने की बात हो या हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने की बात। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि ऐसा करके BJP नॉर्थ ईस्ट में पोलराइजेशन को मुद्दा बनाने में कामयाब रही है।

24 फरवरी 2014, जगह- रामनगर, असम। तब BJP के PM फेस रहे नरेंद्र मोदी ने कहा- ‘दुनिया के किसी देश में हिंदुओं को खदेड़ दिया जाएगा, तो उसके लिए एक ही जगह बची है, वो यहीं चला आएगा। हम नहीं चाहते कि बांग्लादेशी हिंदुओं का बोझ अकेले, असम उठाए। पूरे हिंदुस्तान को इसका बोझ उठाना चाहिए।’

3. दूसरे दलों के बड़े नेता BJP में आए, कई विधायक भी तोड़े
नॉर्थ ईस्ट में BJP की कामयाबी के पीछे दूसरी पार्टियों के बड़े नेताओं का अहम रोल रहा है। असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल, वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह, त्रिपुरा के सीएम माणिक साहा और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू सभी पहले कांग्रेसी या स्थानीय पार्टियों के बड़े नेता थे।

इसके अलावा अलग-अलग मौकों पर दूसरी पार्टियों से बड़ी संख्या में विधायक और नेता टूटकर भी BJP में शामिल हुए हैं।

2015 में हिमंत बिस्वा सरमा अपने साथ 10 से ज्यादा विधायक लेकर BJP में आए थे। 2016 में पेमा खांडू 33 विधायक लेकर BJP में शामिल हुए। सिक्किम में तो BJP ने स्थानीय पार्टी के 15 में से 10 विधायकों को पार्टी में शामिल करा लिया। इतना ही नहीं, नॉर्थ ईस्ट के हर राज्य में BJP का किसी न किसी पार्टी के साथ गठबंधन जरूर है।

4. केंद्र में BJP की सरकार का होना ताकि फंड मिलता रहे
आम तौर पर नॉर्थ ईस्ट के लोग उसी पार्टी को प्राथमिकता देते हैं, जिनकी केंद्र में सरकार होती है। नॉर्थ ईस्ट में लंबे समय से राजनीति को कवर कर रहे बिश्वेंदु भट्टाचार्य इसके पीछे की वजह भी बताते हैं।

वे कहते हैं- ‘नॉर्थ ईस्ट में ज्यादातर दल छोटे-छोटे हैं। मोटे खर्चे के लिए सरकार के फंड और ग्रांट पर निर्भर रहना इनकी मजबूरी है। केंद्र में सत्ता में आने के बाद इन दलों को BJP ने प्रलोभन दिया, राज्य में उनकी सरकार बनी, तो उन्हें पद मिलेगा, मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी। यहां के स्थानीय नेता ट्राइबल बेल्ट में जाकर बोलते थे, यदि कमल पर वोट दिया, तो हम मंत्री बनेंगे, आपका बेटा ये बनेगा। BJP को इसका बहुत फायदा भी मिला।’

5.आजादी से पहले से नॉर्थ ईस्ट में काम कर रहा है RSS

6. कल्चरल स्ट्रैटजी : यहां BJP नेता बीफ का विरोध नहीं करते
नॉर्थ इंडिया में BJP और संघ बीफ का खूब विरोध करते हैं, लेकिन नॉर्थ ईस्ट में वे ऐसा नहीं करते।

2023 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नगालैंड के BJP नेता और वर्तमान डिप्टी CM यानथुंगो पैटन ने कहा था कि नगालैंड में बीफ मुख्य भोजन है। BJP, कांग्रेस या कोई भी नेशनल पार्टी हमारे खानपान में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। बीफ खाना नगालैंड के साथ ही पूरे नॉर्थ ईस्ट में कोई इश्यू नहीं है।

7. PM मोदी 10 साल में 70 बार नॉर्थ-ईस्ट गए
मोदी पिछले 10 साल में करीब 70 बार नॉर्थ ईस्ट जा चुके हैं। मार्च 2024 में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि वे बतौर प्रधानमंत्री 70 बार नॉर्थ ईस्ट जा चुके हैं। उनके मंत्री 10 सालों में 680 बार नॉर्थ ईस्ट जा चुके हैं। मोदी ने कहा था कि अभी तक सभी प्रधानमंत्री मिलकर जितनी बार नॉर्थ ईस्ट गए होंगे, उससे कई गुना ज्यादा बार मैं अकेले गया हूं।

नॉर्थ ईस्ट में BJP की कामयाबी को लेकर स्थानीय लोग क्या सोचते हैं, इसे जानने के लिए हमने त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में कुछ लोगों से बात की…

रतन दास बताते हैं- ‘यहां 25 सालों तक लेफ्ट का शासन रहा, लेकिन डेवलपमेंट कुछ खास नहीं हुआ। 2018 में जब विधानसभा चुनाव हुए, तो हमने तय किया कि एक बार BJP को आजमा के देखते हैं। अब नई सड़कें बन रही हैं। कनेक्टिविटी पहले के मुकाबले बेहतर हुई है।’

मीना रानी पहले कम्युनिस्ट की सपोर्टर थीं। कहती हैं, ‘मोदी की हर योजना राज्य तक पहुंच रही है। फ्री राशन, आवास और किसान सम्मान निधि योजना से यहां के लोगों को बहुत सहूलियत मिली है। इसलिए लोग BJP का फेवर कर रहे हैं।’

वहीं, अब्दुल खालिक कहते हैं, ‘2014 में मोदी सरकार आने के बाद राज्य में भी BJP दिखनी शुरू हो गई। इससे पहले यहां BJP का झंडा उठाने वाला कोई नहीं था। हमारा मानना है कि दिल्ली में जिसकी सरकार होगी, वही राज्य में विकास कर पाएगी। जिस दिन केंद्र से BJP की सरकार गई। राज्य में भी ये कमजोर पड़ जाएंगे।’

नॉर्थ ईस्ट में BJP भले ही कामयाब हो गई है, लेकिन उसके सामने कई चुनौतियां भी हैं

1. मणिपुर हिंसा
पिछले एक साल से मणिपुर में दो वर्गों मैतेयी और कुकी के बीच हिंसक संघर्ष जारी है। 200 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी हैं। BJP पर आरोप है कि वह मैतेयी के साथ खड़ी है। मणिपुर के मुख्यमंत्री भी मैतेयी कम्युनिटी से ही आते हैं।

2. नगालैंड के 6 जिलों में वोटिंग का बहिष्कार
केंद्र सरकार का दावा है कि उसने नॉर्थ ईस्ट में 11 शांति समझौते किए हैं, लेकिन इसके बाद भी 2024 लोकसभा चुनाव में नगालैंड के 6 जिलों में जीरो वोटिंग हुई। 60 विधानसभा सीटों वाले नगालैंड में 20 सीटें, इन्हीं 6 जिलों से आती हैं। यहां के लोगों की मांग अलग फ्रंटियर नगालैंड टेरिटरी बनाने की है।

फ्रंटियर नगालैंड टेरिटरी की मांग को लेकर प्रदर्शन करते ईस्टर्न नगालैंड पीपुल्स ऑर्गेनाइजेशन के मेंबर्स।
फ्रंटियर नगालैंड टेरिटरी की मांग को लेकर प्रदर्शन करते ईस्टर्न नगालैंड पीपुल्स ऑर्गेनाइजेशन के मेंबर्स।

3. दूसरे दलों से आए नेताओं को पार्टी में बनाए रखना
नॉर्थ ईस्ट में BJP का कैडर बहुत हद तक दूसरी पार्टियों से आए नेताओं और कार्यकर्ताओं पर टिका है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि केंद्र में BJP की सरकार कमजोर होती है या राज्य में इन्हें दूसरी पार्टियों से बड़ा प्रलोभन मिलता है, तो ये पाला बदलने में देर नहीं करेंगे। BJP को लंबे समय तक नॉर्थ ईस्ट की सत्ता पर काबिज होना है, तो उसे खुद का कैडर बनाना होगा।

4. CAA-NRC और आर्टिकल 370
आर्टिकल 370 के तहत जैसे जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार मिले थे, उसी तरह नॉर्थ ईस्ट के राज्यों को भी आर्टिकल 371 के तहत विशेष अधिकार मिले हैं।

जम्मू-कश्मीर से 370 हटाने के बाद से ही नॉर्थ ईस्ट के लोगों के मन में शंका है कि कहीं उनके भी विशेष अधिकार तो नहीं छीन लिए जाएंगे।

पिछले साल इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी हुई थी, जिसमें केंद्र सरकार ने कहा था कि नॉर्थ ईस्ट के विशेष अधिकार नहीं छीनेंगे। CAA-NRC को लेकर भी नॉर्थ ईस्ट खास करके असम में लंबे समय से विरोध चला आ रहा है।

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