खतरे में कानून के रखवाले ?
मध्य प्रदेश में अपराधी नहीं, पुलिस दहशत में… वर्दी वाले बोल रहे गुंडों को पकड़ने में डर लगने लगा
मध्य प्रदेश में एक ही दिन में चार स्थानों पर पुलिस पर हमले की घटनाएं सामने आईं। इसके बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। यदि पुलिस ही सुरक्षित नहीं है, तो आम जनता का क्या होगा? वहीं पूरे मामले पर राजनीति भी शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री मोहन यादव के पास ही गृह मंत्रालय होने के कारण विपक्ष अधिक मुखर है।

HighLights
- मध्य प्रदेश में पिटती पुलिस, पीटते अपराधी, दहशत में पुलिसकर्मी
- पुलिस ही दहशत में, तो कैसे अपराध रुके, अपराधियों पर लगाम लगे
- एक्सपर्ट ने बताया कहीं भी अपराधियों के हौसले कैसे हो जाते हैं बुलंद
ग्वालियर। एक ही दिन में मध्य प्रदेश में पुलिस टीम पर हमले की चार घटनाएं हो गईं। मऊगंज जिले के गड़रा गांव में आदिवासी दबंगों ने घेर कर एएसआई की हत्या कर दी। कई पुलिसकर्मी घायल हुए।
ग्वालियर में दो जगह पुलिस पार्टी को पीटा गया। इंदौर में भी हाई कोर्ट के सामने जाम लगा रहे वकीलों ने पुलिस कर्मियों को पीटा। इससे पहले भी हाल के कुछ महीनों में प्रदेश में पुलिस टीम पर हमले की कई घटनाएं अंजाम दी जा चुकी हैं। इससे प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं।
विपक्ष का हमला… मोहन यादव के पास गृह मंत्रालय
पुलिस पर हो रहे हमलों को लेकर अब विपक्ष सरकार पर हमलावर है। विपक्ष का कहना है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के पास गृह मंत्रालय होने के बावजूद प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ चुकी है।
पुलिस पर लगातार हो रहे हमलों के कारण पहली बार ऐसा है, जब अपराधी नहीं बल्कि पुलिस दहशत में है। दबी जुबान में पुलिसकर्मी बोल रहे हैं कि किसी भी अपराधी को पकड़ने में डर लगने लगा है। यह बेहद चिंताजनक स्थिति है।
मप्र कैडर के रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी एसएस शुक्ला का कहना है कि हत्या, हत्या के प्रयास जैसे मामलों में भी अपराधी राजनीतिक रसूखदार और अपने मददगारों के जरिये सुनियोजित तरह से कोर्ट में सीधे हाजिर हो जाते हैं।
पुलिस का डंडा नहीं चलता, तो ये बेखौफ हो जाते हैं। इसी तरह, कोई पुलिस अधिकारी लंबे समय तक एक ही जिले या सर्किल में कार्यरत रहता है तो हर तरह के संबंध बन जाते हैं। इससे अपराधियों का संपर्क थाने तक हो जाता है और अपराधियों के हौसले बुलंद हो जाते हैं। मध्य प्रदेश में लंबे समय से निरीक्षकों के जिले नहीं बदले गए हैं।
मप्र में ये हैं पुलिस पर हमले की प्रमुख घटनाएं
- अगस्त 2024 में छतरपुर में पुलिस थाने पर भीड़ ने धावा बोलकर पथराव किया था। भीड़ को पथराव के लिए उकसाने में हाजी शहजाद अली का नाम सामने आया था।
- राजगढ़ जिले के एक गांव में दिसंबर 2024 में राजस्थान पुलिस टीम पर हमला किया गया। शादी-बारातों में गहने चोरी करने वाले गिरोह के लोगों को पकड़ने पहुंची पुलिस को दबंगों ने घेर कर पीटा। पुलिसकर्मियों ने भागकर जान बचाई।
- ग्वालियर के कंपू में शनिवार को कुछ दुकानदारों ने शराब पीने से रोकने पर एक सिपाही कृष्ण कुमार को पीटा। थाना प्रभारी रुद्र पाठक पहुंचे तो उन्हें भी पीट दिया।
- ग्वालियर के गोविंदपुरी पुलिस चौकी के पास सिपाही सतेंद्र कटियार ने चेकिंग के लिए हाथ देकर रोका तो कार चालक अरविंद सिंह गुर्जर ने उन्हें पीट दिया। कार चालक ने खुद को मंत्री का रिश्तेदार बताकर वर्दी तक उतरवाने की धमकी दी।
छतरपुर के उपनिरीक्षक ने वीडियो में बयां किया दर्दछतरपुर जिले के सिविल लाइंस थाने में कार्यरत उपनिरीक्षक अवधेश कुमार दुबे ने फेसबुक पर लाइव आकर प्रदेश में पुलिस पर हो रहे हमलों को लेकर दर्द बयां किया है। सोमवार को यह वीडियो पुलिस अधिकारी और पुलिसकर्मियों ने साझा भी किया।
उपनिरीक्षक बनने से पहले सेना में कार्यरत रहे अवधेश कुमार दुबे ने इंटरनेट मीडिया पर कहा कि करीब 18 साल भारतीय सेना में रहकर दुश्मनों के दांत खट्टे किए, पुलिस में नौकरी करते उन्हें आठ साल हो गए हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों में मध्य प्रदेश पुलिस पर जो हमले हुए हैं, उससे काफी दुखी हो गए हैं, उनका मन बहुत व्यथित है। हमारे जो जवान पेट्रोलिंग करते हैं, उन्हें हम बाज या चीता नाम से जानते हैं, लेकिन आज महसूस हो रहा है कि हमारे पंजे नोच दिए गए हैं।
उपनिरीक्षक दुबे ने कहा है कि पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने हमें ये कैसे शस्त्र दिए है कि तीर भी चलाने हैं और परिंदा भी न मरे, ये भी ध्यान रखना है। मेरा मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव और डीजीपी से निवेदन है कि हमारी तरफ भी देखिए हमें जिंदा रहने दीजिए।
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छतरपुर, शहडोल, इंदौर और अब मऊगंज… MP में पुलिस पर हमलों का खतरनाक सिलसिला, खतरे में कानून के रखवाले
- एमपी में बढ़े पुलिसवालों पर हमले के मामले
- मऊगंज में देर रात मचे बवाल में 2 की मौत
- एक ASI शहीद, इलाके में भारी तनाव
रीवा: मध्य प्रदेश के मऊगंज जिले का गड़रा गांव, जो कभी अपनी शांत पहचान के लिए जाना जाता था, अब एक ऐसी दर्दनाक घटना का गवाह बन गया है, जिसने कानून व्यवस्था पर गहरे सवाल खड़े कर दिए। शनिवार को इस छोटे से गांव में हिंसा की ऐसी आग भड़की कि एक युवक और एक पुलिस अधिकारी की जान चली गई, जबकि कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।
ऐसे शुरू हुई कहानी
यह कहानी शुरू होती है एक आदिवासी परिवार और एक ब्राह्मण युवक के बीच हुए विवाद से, जो देखते ही देखते सामुदायिक संघर्ष में बदल गया। जब पुलिस ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की, तो हालात और बेकाबू हो गए—पथराव, मारपीट और एक ऐसी त्रासदी, जिसने पूरे इलाके को स्तब्ध कर दिया।
पहले भी हो चुकी हैं ऐसी घटनाएं
मध्य प्रदेश में पुलिसकर्मियों पर हमले की बढ़ती घटनाएं एक गंभीर सवाल खड़ा करती हैं। हाल ही में मऊगंज जिले के गदरा गांव में हुई दिल दहला देने वाली घटना इसका ताजा उदाहरण है। एक अपहरण की सूचना पर पहुंची पुलिस टीम पर भीड़ ने न सिर्फ पथराव किया, बल्कि इस हमले में एक एएसआई और एक नागरिक की जान चली गई। यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले एमपी में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं।
पिछले साल छतरपुर में थाने पर हमला हो या खरगोन में अवैध शराब के खिलाफ कार्रवाई के दौरान पुलिस पर डंडों से प्रहार, इसी तरह ग्वालियर में जुए की सूचना पर बदमाश ने ASI का सिर फोड़ दिया। भिंड में भी माफिया पुलिसवालों पर हमले कर देते हैं। इससे पहले शहडोल में भी ऐसी घटनाएं सामने आई हैं। ये घटनाएं बताती हैं कि प्रदेश में कानून के रखवालों की राह आसान नहीं है।
पुलिस पर हमला: अपराधियों का दुस्साहस या समाज का गुस्सा
इन घटनाओं को देखकर दो बातें सामने आती हैं। पहली, अपराधियों का बढ़ता दुस्साहस। छतरपुर में असामाजिक तत्वों ने संगठित रूप से थाने पर हमला किया। यहां तक कि थाने में आग लगाने की भी कोशिश की। भीड़ ने कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखाने की कोशिश की।
दूसरी ओर, मऊगंज जैसी घटनाएं बताती हैं कि कई बार यह हिंसा स्थानीय समुदाय के गुस्से का परिणाम होती है। लोग पुलिस को अपने खिलाफ मानते हैं, खासकर तब जब मामला उनके निजी या सामुदायिक हितों से जुड़ा हो। लेकिन क्या यह गुस्सा जायज है? पुलिस अगर अपहरण जैसे अपराध को रोकने की कोशिश कर रही है, तो उस पर पत्थर बरसाना कहां तक सही है?
पुलिस की प्रतिक्रिया भी इस बहस का हिस्सा है। मऊगंज में हवाई फायरिंग और छतरपुर में मुख्य आरोपी का मकान ढहाना जैसे कदम बताते हैं कि पुलिस अब पीछे हटने के मूड में नहीं है। यह सख्ती जरूरी भी है, क्योंकि बिना डर के अपराधी और हिंसक भीड़ कानून को खिलवाड़ समझने लगते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या बुलडोजर हर समस्या का हल हैं? यह तरीका तात्कालिक राहत दे सकता है, पर लंबे समय में पुलिस और जनता के बीच की खाई को और चौड़ा कर सकता है। मकान ढहाने जैसी कार्रवाइयों को लेकर पहले भी सवाल उठे हैं।
पुलिसकर्मी भी इंसान हैं। मऊगंज में एक एएसआई की मौत और पिछले साल छतरपुर में घायल जवानों की खबरें बताती हैं कि यह पेशा कितना जोखिम भरा है। फिर भी, उनके पास सीमित संसाधन और कई बार अपर्याप्त प्रशिक्षण होता है। सरकार को चाहिए कि पुलिस को बेहतर उपकरण, भीड़ नियंत्रण के लिए प्रशिक्षण और मानसिक समर्थन दे।
मध्य प्रदेश में पुलिस पर हमले सिर्फ अपराध की घटनाएं नहीं, बल्कि एक बड़ी सामाजिक बीमारी का लक्षण हैं। यह बीमारी है अविश्वास, अशिक्षा और हिंसा को हल मानने की मानसिकता। इसे ठीक करने के लिए पुलिस को सख्ती और संवेदनशीलता का संतुलन बनाना होगा, वहीं सरकार और समाज को मिलकर जड़ तक जाना होगा। नहीं तो हर बार पत्थरों और गोलियों के बीच कोई न कोई जान गंवाता रहेगा – चाहे वह पुलिसकर्मी हो या आम नागरिक।