उत्तराधिकार को लेकर स्वजनों में सत्ता संघर्ष के बीच मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को बाहर का रास्ता दिखाते हुए अपने भाई आनंद कुमार तथा राज्यसभा सदस्य रामजी गौतम को नेशनल कोआर्डिनेटर नियुक्त किया, पर फिर आनंद कुमार की जगह सहारनपुर निवासी रणधीर बेनीवाल को नेशनल कोआर्डिनेटर बना दिया।

2 मार्च को आकाश आनंद को सभी पदों और जिम्मेदारियों से मुक्त कर आनंद कुमार और रामजी गौतम को नेशनल कोआर्डिनेटर नियुक्त करते हुए मायावती ने स्पष्ट किया कि मेरा कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा। सभी पदों और जिम्मेदारियों से मुक्त करने पर प्रतिक्रिया में आकाश ने ‘एक्स’ हैंडल पर जो पोस्ट किया, उससे खफा होकर मायावती ने उन्हें बसपा से ही निकाल दिया और कहा कि ‘आकाश को पश्चाताप करके अपनी परिपक्वता दिखानी थी, लेकिन उसने जो प्रतिक्रिया दी, वह राजनीतिक मैच्योरिटी नहीं है। वह अपने ससुर के प्रभाव में स्वार्थी और अहंकारी हो गया है।’

आकाश ने टिप्पणी की थी कि ‘बहन जी का हर फैसला मेरे लिए पत्थर की लकीर जैसा है। मैं उनके हर फैसले के साथ खड़ा हूं। परीक्षा कठिन और लड़ाई लंबी है। बहुजन मिशन और मूवमेंट के एक सच्चे कार्यकर्ता की तरह मैं पार्टी और मिशन के लिए पूरी निष्ठा से काम करता रहूंगा। आखिरी सांस तक अपने समाज के हक की लड़ाई लड़ता रहूंगा।’ इस टिप्पणी में मायावती को चुनौती के तेवर दिखे।

मायावती की अस्थिर राजनीति के मद्देनजर भविष्य का आकलन आसान नहीं, पर घटनाक्रम बताता है कि कभी बहुजन के नाम पर शुरू राजनीति अब स्वजनों की महत्वाकांक्षा और सत्ता संघर्ष में फंस गई है। बेशक मायावती ने दावा किया कि उनके लिए पार्टी और आंदोलन सबसे पहले है, परिवार और रिश्ते बाद में, लेकिन अभी तक का उनका आचरण उसके उलट ही नजर आता है।

सत्ता-गलियारों में प्रवेश करने वाली बसपा ने शायद ही कोई दल हो, जिससे दोस्ती न की हो। बाकी दल भी सत्ता के खेल में पाक दामन नहीं है, लेकिन वे ‘मूवमेंट’ होने का दावा भी नहीं करते। उत्तर प्रदेश में सत्ता की मुख्य खिलाड़ी रही बसपा कई राज्यों में सत्ता के समीकरण बनाने-बिगाड़ने की हैसियत में पहुंच गई थी, लेकिन फिर वह लगातार सिकुड़ती गई।

बसपा में कभी किसी नेता को ‘नंबर दो’ की हैसियत नहीं मिली। किसी ने वैसी गलतफहमी पाली तो उसे बाहर का रास्ता देखना पड़ा। सतीश चंद्र मिश्र इस मामले में अपवाद नजर आते हैं, पर पुराने दिग्गज बसपा की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण उन्हें ही मानते हैं। कभी कांशीराम या मायावती के विश्वस्त माने गए आरके चौधरी, नसीमुद्दीन, स्वामी प्रसाद मौर्य और इंद्रजीत सरोज सरीखे नेता, जो अब दूसरे दलों में हैं, बसपा के पतन का कारण बहुजन से भटक कर ‘धनवानों’ और ‘स्वजनों’ की पार्टी बन जाना भी मानते हैं।

मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार काफी समय से बसपा में सक्रिय हैं, लेकिन भतीजे आकाश पहली बार 2017 में सहारनपुर की रैली में अपनी बुआ के साथ दिखे। 2019 में आकाश को नेशनल कोआर्डिनेटर बना दिया गया। तब 2019 के लोकसभा चुनाव में हुआ सपा और बसपा का गठबंधन टूट गया था। लंदन से एमबीए करने वाले आकाश की शादी बसपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य अशोक सिद्धार्थ की बेटी प्रज्ञा से हुई है।

मायावती ने 12 फरवरी को अशोक सिद्धार्थ और उनके करीबी नितिन सिंह को अनुशासनहीनता और गुटबाजी के आरोप में बसपा से निकाल दिया था। उन्होंने 16 फरवरी को आकाश को भी अल्टीमेटम दिया था कि बसपा का वास्तविक उत्तराधिकारी वही होगा, जो कांशीराम की तरह हर दुख-तकलीफ उठा कर पार्टी के लिए आखिरी सांस तक जी-जान लगा कर लड़े और पार्टी ‘मूवमेंट’ को आगे बढ़ाता रहे।

आकाश को मायावती ने लगभग सवा साल में दो बार अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और हटाया। सबसे पहले 10 दिसंबर, 2023 को आकाश को उत्तराधिकारी बनाया गया, लेकिन भाजपा के विरुद्ध एक तीखे बयान के चलते लोकसभा चुनाव के बीच ही मई, 2024 में उनसे सभी जिम्मेदारियां वापस ले लीं। लोकसभा चुनाव समाप्त होने पर आकाश को फिर से नेशनल कोऑर्डिनेटर नियुक्त करते हुए उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया, लेकिन दो मार्च को फिर सभी पदों से मुक्त कर तीन मार्च को बसपा से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

पूरा घटनाक्रम यही संकेत दे रहा है कि बसपा पर वर्चस्व को लेकर उनके स्वजनों में सत्ता संघर्ष चल रहा है। कहना मुश्किल है कि इस सत्ता संघर्ष में कितने मोड़ आएंगे और आखिर में हाथी की राजनीति किस करवट बैठेगी, लेकिन बहुजन को गोलबंद कर भारतीय राजनीति का नक्शा बदलने का कांशीराम का सपना बिखरता नजर आ रहा है। पुराने नेताओं के साथ ही वोट बैंक भी बिखर कर भाजपा, सपा और कांग्रेस की ओर जा रहा है। इन दलों ने बसपा के वोट बैंक पर निगाह भी जमा दी है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)