BNS 2023: लड़कियों की तस्करी रोकने और बच्चों की सुरक्षा के लिए नया कानून कितना प्रभावी?
BNS 2023: लड़कियों की तस्करी रोकने और बच्चों की सुरक्षा के लिए नया कानून कितना प्रभावी?
नए कानूनों में मानव तस्करी करने वालों को कड़ी सजा देने का प्रावधान है. बच्चों की तस्करी के मामलों में तो और भी सख्त नियम बनाए गए हैं. ‘भीख मांगना’ भी तस्करी माना जाएगा.
लड़कियों और महिलाओं की तस्करी एक गंभीर अपराध है. आमतौर पर लड़कियों और महिलाओं की तस्करी यौन शोषण के लिए की जाती है. इसमें वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी, जबरन मजदूरी (खेती और घरों में काम) या जबरन शादी कराना शामिल है. यह लड़कियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है और उनका जीवन भी खतरे में आ जाता है.
लोकसभा में सरकार से सवाल पूछा गया कि क्या नया कानून महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को ज्यादा जरूरी माना गया है? अगर हां, तो कैसे? क्या भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 में छोटी लड़कियों की तस्करी रोकने के लिए कुछ खास नियम बनाए गए हैं?
इन सवालों के जवाब में सरकार ने कहा, भारतीय न्याय संहिता (BNS) में पहली बार महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों से संबंधित प्रावधानों को प्राथमिकता दी गई है और उन्हें एक ही अध्याय के तहत रखा गया है. महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए मृत्युदंड तक की सख्त सजा का प्रावधान किया गया है.
पहले जानिए लड़कियों की तस्करी का प्रतिशत कितना?
लड़कियों की तस्करी का प्रतिशत हर साल बदलता रहा है. इसमें उतार-चढ़ाव देखे जा सकते हैं. statista की रिपोर्ट से पता चलता है कि 2016 में लड़कियों की तस्करी का प्रतिशत सबसे ज्यादा 54.36% था. इसका मतलब, तस्करी का शिकार हुए आधे से ज्यादा बच्चे लड़कियां थीं. अच्छी बात ये है कि 2022 में लड़कियों की तस्करी का प्रतिशत घटकर 36.8% हो गया. भले ही 2022 में कमी आई है, लेकिन लड़कियों की तस्करी अभी भी एक गंभीर समस्या है.
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशिया देश जैसे बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में मानव तस्करी में फंसे बच्चों की कुल संख्या सबसे ज्यादा है.
भारत में मानव तस्करी का शिकार कौन?
भारत में मानव तस्करी का शिकार वो लोग बनते हैं जो पहले से ही समाज में कमजोर हैं. इसमें निचली जाति की महिलाएं, गरीब लोग और वो लोग शामिल हैं जिन्हें धोखे से फंसाया जाता है. नेपाल और बांग्लादेश की महिलाओं और लड़कियों को अक्सर भारत में फर्जी नौकरियों का झांसा देकर धोखा दिया जाता है, और फिर उन्हें यौन तस्करी में फंसा दिया जाता है.
यौन तस्करी एक भयानक अपराध है जो महिलाओं और लड़कियों के जीवन को बर्बाद कर देता है. तस्कर उन्हें धोखे से फंसाते हैं और उनका शोषण करते हैं. ग्रामीण इलाकों में 12 साल तक की लड़कियों को यौन तस्करों को बेचा जाता है. यौन तस्करी शहर के डांस बार, बड़े शहरों में छिपी गलियों में बंद कमरों, होटलों की ऊपरी मंजिलों या यहां तक कि घरों में भी हो सकती है.
बच्चों पर हिंसा: देश की तरक्की में सबसे बड़ा रोड़ा!
बच्चों पर हिंसा सिर्फ बच्चों को ही नहीं, बल्कि पूरे देश को नुकसान पहुंचाती है. इससे समाज और देश का विकास रुक जाता है. एक अनुमान के मुताबिक, बच्चों पर शारीरिक, मानसिक और यौन हिंसा के कारण दुनिया को हर साल 7 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होता है, जो कि हमारी कुल कमाई (GDP) का लगभग 8% है.
बच्चों की देखभाल, पढ़ाई-लिखाई और इलाज पर सरकार को ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है. जिन बच्चों के साथ हिंसा होती है, वे मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर हो जाते हैं. इससे वे ठीक से पढ़-लिख नहीं पाते और आगे नहीं बढ़ पाते. स्कूलों में होने वाली हिंसा से बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर बुरा असर पड़ता है. इसका असर उनकी नौकरी और भविष्य पर भी पड़ता है, फिर ये दिक्कतें पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती हैं.
नए कानूनों में क्या है खास?
18 साल से कम उम्र की महिला के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए दोषी को आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक मिल सकता है. शादी, नौकरी या प्रमोशन दिलाने का झूठा वादा करके यौन संबंध बनाने जैसे नए अपराधों को भी BNS में शामिल किया गया है. नए कानूनों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं.
वहीं, मानव तस्करी को लेकर भी बहुत सख्त प्रावधान किए हैं. BNS 2023 की धारा 143 मानव तस्करी के अपराध के लिए आजीवन कारावास तक की सख्त सजा का प्रावधान करती है. जहां अपराध में बच्चे की तस्करी शामिल है, उसे 10 साल से कम नहीं, बल्कि आजीवन कारावास तक की सजा और जुर्माना से दंडित किया जाएगा. ‘भीख मांगना’ को तस्करी के एक रूप में पेश किया गया है और BNS 2023 की धारा 143 के तहत यह दंडनीय है.
इसके अलावा, BNS की धारा 144 (1) तस्करी किए गए बच्चों के यौन शोषण के अपराध के लिए सख्त सजा का प्रावधान करती है. ऐसे अपराधों के लिए न्यूनतम सजा पांच साल है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है.
महिलाओं और बच्चों को कैसे मिलेगा न्याय?
BNS के एक नए अध्याय-V में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को अन्य सभी अपराधों से पहले रखा गया है. साथ ही महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अलग-अलग अपराधों को लिंग-तटस्थ बनाया गया है. इसका मतलब है कि ये कानून सभी पीड़ितों और अपराधियों पर लागू होते हैं, चाहे वे किसी भी लिंग के हों. इससे कानूनों को अधिक समावेशी और न्यायसंगत बनाया गया है.
गैंगरेप के मामलों में नाबालिग पीड़ितों की उम्र के अंतर को खत्म कर दिया गया है. पहले, 16 साल से कम और 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ गैंगरेप के लिए अलग-अलग सजाएं थीं. इस प्रावधान को बदल दिया गया है. अब 18 साल से कम उम्र की महिला के साथ गैंगरेप के लिए आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा है. यह बदलाव नाबालिग पीड़ितों को अधिक सुरक्षा प्रदान करता है और अपराधियों के लिए कड़ी सजा सुनिश्चित करता है.
महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा को प्राथमिकता?
बीएनएस में महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों को बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं. पहले किसी व्यक्ति की तरफ से समन प्राप्त करने के लिए ‘किसी वयस्क पुरुष सदस्य’ का उल्लेख किया जाता था. अब इसे बदलकर ‘किसी वयस्क सदस्य’ कर दिया गया है. इससे महिलाओं को परिवार के वयस्क सदस्य के रूप में मान्यता मिली है और उन्हें समन प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है.
बलात्कार के अपराध से संबंधित जांच में पीड़ित को अधिक सुरक्षा प्रदान करने और पारदर्शिता लाने के लिए पुलिस की ओर से पीड़ित का बयान ऑडियो वीडियो माध्यम से दर्ज किया जाएगा. इससे पीड़ित को अपनी बात कहने में आसानी होगी और जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी.
महिलाओं के खिलाफ कुछ अपराधों में पीड़ित का बयान, जहां तक संभव हो, एक महिला मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाएगा. उनकी अनुपस्थिति में एक पुरुष मजिस्ट्रेट महिला की उपस्थिति में बयान दर्ज करेगा. यह प्रावधान पीड़ितों के लिए एक सहायक वातावरण बनाने के लिए किया गया है, ताकि वे बिना किसी डर के अपनी बात रख सकें.
पीड़िता को मुफ्त चिकित्सा उपचार का भी है प्रावधान?
अब डॉक्टरों को बलात्कार पीड़ित की मेडिकल रिपोर्ट 7 दिनों के भीतर जांच अधिकारी को भेजनी होगी. 15 साल से कम उम्र के पुरुष या 60 साल से अधिक आयु के पुरुष (पहले 65 साल), महिला या मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति या गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति को उनके निवास स्थान के अलावा किसी अन्य स्थान पर उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी. अगर ऐसा कोई व्यक्ति पुलिस स्टेशन आने का इच्छुक है, तो उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी जा सकती है. यह प्रावधान कमजोर लोगों को अनावश्यक परेशानी से बचाता है और उनकी गरिमा की रक्षा करता है.
नए कानून महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के पीड़ितों को सभी अस्पतालों में मुफ्त प्राथमिक चिकित्सा या चिकित्सा उपचार प्रदान करते हैं. यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि मुश्किल समय में पीड़ितों को इलाज के लिए पैसे की चिंता न करनी पड़े. इन बदलावों का उद्देश्य पीड़ितों को न्याय दिलाना और उन्हें सुरक्षित महसूस कराना है.