ध्यान और अंतर्ध्यान के बीच देश !

ध्यान और अंतर्ध्यान के बीच देश

इस देश में कुछ भी हो या न हो लेकिन बकलोल जरूर होती है । आजकल देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के ध्यान को लेकर समूचा विपक्ष और हमारे जैसे दिहाड़ी लेखक विचलित हैं। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए । 74 साल का एक थका-हारा आदमी दो महीने के अथक श्रम के बाद यदि ध्यानस्थ हो गया है तो ,बवाल क्यों ? लेकिन बवाल की जड़ में खुद योगी नरेंद्र दामोदर मोदी हैं ,इसलिए जो हो रहा है वो होकर रहेगा। उसे टाला नहीं जा सकता।

ध्यान कोई ऐसी चीज है कि जिस पर बहस की जाये । ध्यान भारतीय तकनीक है ,प्रामाणिक है । इसके ऊपर किसी का एकाधिकार नहीं है । कोई भी,कहीं भी ध्यानमग्न हो सकता है। ध्यानमग्न होने के लिए एकाग्रता और संकल्प की जरूरत है। ध्यान के लिए चीनी योगा मेट भी नहीं चाहिये । कैमरे तो बिलकुल नहीं चाहिए। ये सब चीजें ध्यानमग्न होने में बाधक होतीं है। ध्यान एकांत चाहता है। इसलिए ध्यान चाहे आप विवेकानद स्मारक शिला पर जाकर करें या अपने घर की छत पर ,इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क तब पड़ता है जब आप इस ध्यान को आत्मशोधन के बजाय आत्मप्रचार का जरिया बनाने की कोशिश करते हैं।
ध्यान केवल मनुष्य ही नहीं करता ,पशु-पक्षी भी करते है। ध्यान और योग की तमाम मुद्राएं हमने पशु-पक्षियों से ही सीखी है। बज्रासन बंदरों से सीखा,मयूरासन मोरों से, भुजंगासन सर्प से ,कुकरासन कुत्तों से ,मंडूक आसन मेढकों से ,शशकासन खरगोशों से ,भ्रामरी मधुमख्खियों से। ऐसे अनेक आसन हैं जो मनुष्य के अपने नहीं है। लेकिन मनुष्य सबसे सीखता है और अहसान नहीं मानता। ध्यान में भी यही बात है। मनुष्य की तरह वकासन भी बहुत चर्चित आसन है । वकासन या वकधयान को लेकर लोग अक्सर परेशान हो जाते हैं ,क्योंकि इस ध्यान मुद्रा में बैठकर ही बगुला मछलियों का शिकार करता है। मकरासन में भी यही होता है। मगरमच्छ अपने शिकार से पहले काष्ठ दंड की तरह निश्चेत पड़ा रहता है।
मेरा गोत्र समाधिया है इसलिए मै थोड़ा-बहुत समाधि के बारे में भी जानता हूँ किन्तु इस विषय पर ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहता। योग को लेकर पतंजलि ने फूटी कौड़ी नहीं कमाई, लेकिन उनके अनुयायी कलियुग के सुषेन बाबा रामदेव आज हजारों करोड़ रूपये के आसामी बन गए हैं। वे योगाचार्य हैं या कारोबारी तय करना कठिन है। चूंकि जनता ने योग को बिकते देखा है इसलिए शायद उसे ध्यान के घातक सियासी परिणामों की आशंका बनी हुयी है। चुनाव के लिए होने वाले अंतिम मतदान के पहले माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर मोदी के योग का सीधा प्रसारण इसीलिए विपक्ष को खतरनाक लगता है।
हर युद्ध के पहले यानि नतीजे आने के पहले योग लगाने की अनंत कहानियां हैं। देव् -असुर संग्राम में भी और राम-रावण संग्राम में भी। योग युद्ध में क्षीण हुई शक्ति को दोबारा वापस लौटा देता है । योग से आप सिद्धियां भी हासिल कर सकते है। इसीलिए योग और यज्ञ को भंग करने की चेष्टा,कुचेष्टा की जाती रही है। मोदी जी के ध्यान से विपक्ष का ध्यान भंग हो रहा है। लेकिन विपक्ष भूल जाता है कि ध्यानस्थ मोदी जी के मन में तीसरी बार पद और 400 सीटें जीतने के अलावा कुछ और है ही नहीं। 4 जून को उनकी इस अभीष्ट इच्छा पर जनादेश की मुहर लगना है। विपक्ष को भी जनादेश चाहिए। बेहतर हो कि विपक्ष के नेता भी देश के अलग-अलग हिस्सों में बैठकर मोदी जी की तरह ही योग करते। यदि योग से जनादेश प्रभावित हो सकते हैं तो विपक्ष को भी नहीं चूकना चाहिए।
विपक्ष भूल जाता है कि मोदी जी अविनाशी हैं,गंगापुत्र है। कामरूप हैं। वे ध्यान भी लगा सकते हैं और जब चाहे तब अंतर्ध्यान भी हो सकते है। वे सही मायने में साधक हैं। उन्होंने अपनी साधना को कभी परदे में नहीं रखा । दर्जनों कैमरे लगाकर देश और दुनिया को हमेशा दिखाया है । किसी राष्ट्र सेवक के जीवन में इतनी पारदर्शिता आपने और किसी देश में देखी है । गनीमत ये है कि माननीय ने शिष्टाचारवश अपने गुसलखाने से सीधे प्रसारण की अनुमति का अधिकार किसी को अब तक नहीं दिया। अन्यथा आप वो सब देख सकते थे जो असम्भव है।
कोई माने या न माने लेकिन मै माननीय मोदी जी को वीतरागी मानता हूँ । वे सुख में ,दुःख में हमेशा स्थितप्रज्ञ रहते हैं। वे दिल्ली में विधानसभा चुनाव हारें या तेलंगाना में ,बंगाल में हारें या ओडिशा में ,बिहार में हारें या झारखण्ड में कभी उदिग्न नजर नहीं आते। वे अटल जी की कविता -‘ हार में क्या जीत में ,किंचित नहीं भयभीत मै ‘ के सिद्धांत पर चलते दिखाई देते है। वे सत्ता पाने के लिए ऑपरेशन लोटस या ऑपरेशन झाड़ू चला लेते हैं। वे रोज दो किलो गालियां खाकर भीख़ुश हैं। गालियां न मिलें तो मुमकिन है कि वे बीमार हो जाएँ ।
आपको बता दूँ कि ध्यान के बाद अगला चरण अंतरध्यान होने का होता है। देश को ये नजारा देखना है तो ४ जून की तारीख पर नजर रखना होगी । मुमकिन है कि मोदी जी या तो खुद अंतरध्यान हो जाएँ और ये भी मुमकिन हैं है कि अपने विरोधियों को ही अंतरध्यान कर दें । ‘ जानि न जाये मोदी जी की माया । मोदी जी को जातुधनु भी कहा जा सकता है ,क्योंकि ध्यान से अंतरध्यान होने कि कला केवल सुरों के और असुरों के पास ही नहीं हमारे मोदी जी के पास भी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *