कैसे मिला कांग्रेस को ‘हाथ’ और बीजेपी को ‘कमल’?

चुनाव चिह्नों की कहानी… कैसे मिला कांग्रेस को ‘हाथ’ और बीजेपी को ‘कमल’?

Symbols in Indian Elections: चुनाव चिह्न किसी भी चुनाव का एक महत्वपूर्ण अंग है. चुनाव चिह्न ही किसी भी पार्टी की पहचान होती है. इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जब पार्टियों में फूट होती हैं तो चुनाव चिह्न पर दावेदारी के लिए मारामारी होती है

History of Indian Election Symbol: चुनाव चिह्न किसी भी पार्टी के लिए भी बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे मतदाताओं को अपने पसंद के उम्मीदवार को पहचानने में मदद मिलती है. आइए एक नजर डालते हैं कि भारत में चुनाव चिह्नों की जरूरत क्यों पड़ी? साथ ही हम यह भी जानेंगे कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस और सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को क्रमशः हाथ और कमल का चुनाव चिह्न कब और कैसे मिला?

साल 1951-52 के पहले लोकसभा चुनाव कराने से पहले भारत के चुनाव आयोग ने यह महसूस किया कि ऐसे देश में चुनाव चिह्न बहुत ही महत्वूर्ण है जहां की साक्षरता 20 फीसदी से भी कम है. चुनाव आयोग ने फैसला किया कि चुनाव चिह्न में ऐसे प्रतीकों का इस्तेमाल किया जाएगा जो लोगों में जाना-बूझा हो और जिसे आसानी से पहचाना जा सके. चुनाव आयोग ने यह भी निर्णय लिया कि चुनाव चिह्न के रूप में किसी भी धार्मिक या भावनात्मक जुड़ाव वाली वस्तु जैसे गाय, मंदिर, राष्ट्रीय ध्वज, और चरखा जैसे प्रतीकों का इस्तेमाल नहीं होगा. इस तरह चुनाव आयोग ने पहले लोकसभा चुनाव के वक्त कुल 26 प्रतीकों को चुनाव चिह्न के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी.

पहले लोकसभा चुनाव से पहले जिन पार्टियों को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के रूप में मान्यता दी गई. उन्हें चुनाव आयोग ने इन 26 प्रतीकों में से पसंद का चुनाव चिह्न चुनने के लिए कहा.

1951-52 के लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव चिह्न के रूप में कांग्रेस पार्टी की पहली पसंद ‘बैलों वाला हल’ और उसके बाद ‘चरखा वाला कांग्रेस’ ध्वज था. लेकिन 17 अगस्त 1951 को चुनाव आयोग ने कांग्रेस को चुनाव चिह्न के रूप ‘जुए के साथ दो बैलों की जोड़ी’ आवंटित किया. बैलों की गर्दन पर रखी जाने वाली लकड़ी की शहतीर को जुए कहते हैं.

दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस पार्टी का वर्तमान चुनाव चिह्न ‘हाथ’ उस समय ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक (रुइकर ग्रुप) को दिया गया था.  पहले लोकसभा चुनाव से लेकर 1969 तक कांग्रेस इसी चुनाव चिह्नों पर चुनाव लड़ी. लेकिन 1969 में कांग्रेस पार्टी में टूट हो गई. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी दो भागों में विभाजित हो गई. एक कांग्रेस (ओ) और दूसरा कांग्रेस (आर). कांग्रेस (ओ) का नेतृत्व तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा कर रहे थे जबकि कांग्रेस (आर) का नेतृत्व जगजीवन राम कर रहे थे. जगजीवन राम को इंदिरा गांधी का समर्थन प्राप्त था.

कांग्रेस को गाय और बछड़े

11 जनवरी 1971 को चुनाव आयोग ने कहा कि जगजीवन राम की कांग्रेस यानी कांग्रेस (आर) ही असली कांग्रेस है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के इस फैसले पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों में से किसी भी ग्रुप को ‘जुए के साथ दो बैलों की जोड़ी’ आवंटित नहीं किया जाए. जिसके बाद चुनाव आयोग ने 25 जनवरी 1971 को कांग्रेस (ओ) को ‘चरखा चलाती हुई महिला’ तो कांग्रेस (आर) को ‘गाय और बछड़े’ चुनाव चिह्न के रूप में आवंटित किया. 

चुनाव आयोग द्वारा कांग्रेस (आर) को गाय और बछड़े आवंटित करने पर कई पार्टियों ने आपत्ति जताते हुए कहा कि यह धार्मिक भावनाओं से संबंधित है. लेकिन चुनाव आयोग ने इन आपत्तियों को खारिज कर दिया.

कांग्रेस को हाथ चुनाव चिह्न कैसे मिला?

सत्तर के दशक के अंत में इंदिरा-जगजीवन राम की कांग्रेस में एक और विभाजन हुआ. 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को हरा दिया. इसके बाद इंदिरा के विरोध में कांग्रेस में एक और गुट खड़ा हुआ. इस गुट का नेतृत्व देवराज उर्स और के ब्रह्मानंद रेड्डी कर रहे थे. 

2 जनवरी 1978 को इंदिरा गांधी कांग्रेस (आई) की अध्यक्ष बनीं. इसके बाद उन्होंने चुनाव आयोग से कांग्रेस का चुनाव चिह्न गाय और बछड़ा रिटने करने की गुजारिश की. चुनाव आयोग ने इंदिरा के अनुरोध को खारिज कर दिया. जिसके बाद इंदिरा गांधी सुप्रीम कोर्ट गईं. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने भी इसमें दखल देने से इनकार कर दिया.

2 फरवरी 1978 को चुनाव आयोग ने कांग्रेस (आई) को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता देते हुए इसे ‘हाथ’ चुनाव चिह्न आवंटित किया. बाद में चुनाव आयोग ने ‘बछड़ा और गाय’ चुनाव चिह्न को रद्द कर दिया और देवराज उर्स और के ब्रह्नानंद रेड्डी वाले कांग्रेस गुट कांग्रेस (यू0 ) को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता देते हुए ‘चरखा’ चुनाव चिह्न आवंटित किया. चुनाव आयोग ने बाद में कहा कि कांग्रेस (आई) ही असली कांग्रेस थी. 1984 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस (आई) ‘हाथ’ चुनाव चिह्न के साथ कांग्रेस पार्टी बन गई.

बीजेएस से बीजेपी और लैंप से लोटस तक का सफर

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पहले भारतीय जनसंघ (बीजेएस) हुआ करती थी. पहले आम चुनाव में बीजेएस को दीपक (लैंप) आवंटित किया गया था. 1951 से 1977 तक बीजेएस का चुनाव चिह्न दीपक ही रहा. लेकिन 1977 के चुनाव में बीजेएस का अनौपचारिक रूप से जनता पार्टी में विलय हो गया. इस समय जनता पार्टी का चुनाव चिह्न ‘हलधर किसान’ हुआ करता था जो एक पहिए के भीतर था.

1977 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी को हराने के बाद जनता पार्टी में भी टूट होनी शुरू हो गई. 6 अप्रैल 1980 को नेताओं का एक समूह जो पहले जनसंघ के साथ थे, उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को अपना नेता घोषित कर दिया. दोनों समूहों ने चुनाव आयोग के सामने जनसंघ पार्टी पर अपनी-अपनी दावेदारी ठोकी. लेकिन चुनाव आयोग ने फैसला सुनाया कि अंतिम निर्णय तक कोई भी गुट इस नाम का इस्तेमाल नहीं करेगा. 

24 अप्रैल 1980 को चुनाव आयोग ने जनता पार्टी के चुनाव चिह्न टहलधर किसानट को जब्त कर लिया और वाजपेयी के गुट को भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी. भारतीय जनता पार्टी को चुनाव चिह्न के रूप में कमल का फूल आवंटित हुआ. 

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