लोग कुछ भी कहें पर आप अपने उसूलों पर डटे रहें !

लोग कुछ भी कहें पर आप अपने उसूलों पर डटे रहें

एक  जमाना था, जब स्कूल में पनिशमेंट आम बात थी। होमवर्क नहीं किया? उठक-बैठक करो। बदतमीजी की? मास्टर जी ने बेंत उठाकर सबक सिखाया। अंग्रेजी में एक कहावत भी थी -‘स्पेयर द रॉड एंड स्पॉइल द चाइल्ड’ यानी कि थोड़ी मार पड़नी जरूरी है, बच्चे के हित में। पर आज स्थिति एकदम विपरीत है। कानूनी तौर पर बच्चे पर हाथ उठाना जुर्म है। हाल ये है कि बच्चे टीचर को अपनी अंगुलियों पर नचाते हैं। जरा सा डांट दिया तो फौरन मां-बाप शिकायत करने पहुंच जाएंंगे। आखिर बड़े-बड़े स्कूलों में बड़ी-बड़ी फीस जो दे रहे हैं।

कभी-कभी आश्चर्य होता है कि तीन दशक में समाज में कितना ज्यादा बदलाव आ गया है। जहां बड़े-बूढ़ों का राज था, आज सिर्फ नौजवानों की कीमत है। 45 के बाद प्राइवेट सेक्टर में नौकरी गई, तो नया जॉब पाना बहुत मुश्किल है। भाई, फ्रेश ग्रैजुएट्स की लाइन लगी हुई है, एक्सपीरियंस की कोई खास कद्र नहीं।

इसी तरह जहां सास, बहू पर जुल्म करती थीं, आज कई घरों में अपोजिट दिखता है। बहू राज करती है, पति चुप। मुंह पर बातें सुना देगी, सेवा तो भूल ही जाओ। सास जहर का घूंट पी लेती हैं, अपने बेटे और पोते-पोती की खुशी के लिए।

जरूर कुछ समाजशास्त्री इन चीजों का अध्ययन कर रहे होंगे। मगर देखा जाए तो ये है सिंपल फिजिक्स। आपको याद होगा जब क्लास में पेंडुलम का डेमो हुआ था। पतले से धागे से लटकी बॉल को टीचर ने दाईं ओर ऊंचा किया, हाथ से छोड़ा और अपने आप, पेंडुलम बाईं ओर उतनी ही हाइट पर पहुंच गया।

तो यही समाज में हो रहा है, एक अति से दूसरी अति की दिशा में झूल रहा है। याद है, जब एक या दो टीवी चैनल थे? 9 से 10 के बीच सीरियल चलते थे। अब इतने चैनल कि रिमोट का बटन दबाते-दबाते थक जाती हूं। देख लो, मनोरंजन की इतनी अति हो गई है।

जहां आइसक्रीम साल में एक-दो बार खाने को मिलती थी, आज मिडिल क्लास का बच्चा हर हफ्ते खा रहा है। पहले बच्चों की सेहत बढ़ाने के लिए डॉक्टर सप्लीमेंट लिख देते थे। आज सब वजन घटाने के लिए डायटीशियन की सलाह लेते हैं। क्योंकि खान-पान में भी अति हो गई है।

जहां लड़कियों की शादी जल्दी हो जाती थी, आज तीस की उम्र में भी वो सोच रही है- करूं, या ना करूं? पहले मां-बाप की मर्जी के मुताबिक रिश्ता जुड़ता था, फेविकोल वाला। आज लड़की-लड़की डेटिंग एप्स पर मिलते हैं, लेकिन पोस्ट-इट नोट वाला रिश्ता। हवा के झोंके से जमीन पर।

परिवार में 8-10 बच्चे होना आम बात थी, फिर हम दो-हमारे दो पर आ गए। आज कई कपल्स कहते हैं, हमें तो बच्चे करने ही नहीं। या फिर एक ही बस। उसे भी पढ़ने-लिखने विदेश भेजेंगे, वहीं सेटल हो जाएगा। पुश्तैनी मकान का फायदा नहीं, जब उसमें न गूंजे किसी की हंसी।

रिटायर होकर सोचा था, बस कुछ ही दिन जीना है। लेकिन अब तो 80-90 तक टैबलेट और टॉनिक पीना है। कभी ये ब्लड टेस्ट, कभी वो डॉक्टर। क्या फायदा इतनी लंबी उम्र पा कर? पैसा है, मगर पैरों में जान नहीं। गए भी तो चिंता, बाथरूम है कहीं? कोई पास बैठकर हमसे बात करे, हरे राम हरे कृष्ण हरे हरे।

खैर, प्रकृति का नियम है, पेंडुलम हिलता रहेगा, एक दिशा से दूसरी दिशा में चलता रहेगा। अति या अतिवाद से होते हैं युद्ध, तब पैदा होते हैं गौतम बुद्ध। आज जीना आसान तो नहीं, लेकिन हार मानना नहीं। शेक्सपीयर ने कहा था जीवन एक मंच है, दिलचस्प उपन्यास का खुला हुआ पेज है।

अपना रोल अदा कीजिए, दिल पर बात मत लीजिए। समाज का पेंडुलम जिस दिशा में हो, आप अपने प्रिंसिपल्स पर डटे रहो। आप ट्रेंड के विपरीत भी तो चल सकते हो, रेगिस्तान के कैक्टस जैसे फल सकते हो। अपने अंदर सोच बनाइए। लोगों की बातों में मत आइए। कोई एक विपरीत काम कीजिए, विवरण मुझे मेल कीजिए।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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