पूरी दुनिया पर छाया कर्ज का भयानक संकट … कहीं आप भी तो नहीं हैं शिकार ?

पूरी दुनिया पर छाया कर्ज का भयानक संकट, कहीं आप भी तो नहीं हैं शिकार
विकासशील देशों के लिए कर्ज लेना विकसित देशों की तुलना में बहुत महंगा है. विकासशील देशों को कर्ज पर लगने वाला ब्याज अमेरिका से 2 से 4 गुना और जर्मनी से 6 से 12 गुना ज्यादा चुकाना होता है.

दुनियाभर में सरकारी कर्ज लगातार तेजी से बढ़ रहा है. 2023 में सरकारी कर्ज 97 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया. ये 2022 के मुकाबले 5.6 ट्रिलियन डॉलर ज्यादा है. खास बात है, ये कर्ज हर जगह एक समान नहीं बढ़ रहा है. विकासशील देशों में सरकारी कर्ज विकसित देशों के मुकाबले दुगनी रफ्तार से बढ़ रहा है. 

संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास (UNCTAD) ने एक रिपोर्ट जारी की है. इसके अनुसार, 2023 में विकासशील देशों का सरकारी कर्ज 29 खरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था. यह पूरी दुनिया के सरकारी कर्ज का 30% है. यह 2010 के 16% के मुकाबले काफी ज्यादा है और ये दिखाता है कि विकासशील देशों में सरकारी कर्ज कितनी तेजी से बढ़ रहा है.

विकासशील देशों के बीच भी कर्ज का बोझ अलग-अलग है. एशिया और ओशियाना के देशों पर इस कर्ज का 75% से ज्यादा हिस्सा है, वहीं लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों पर 17% और अफ्रीका के देशों पर सिर्फ 7% कर्ज है. यह कर्ज चुका पाना देश की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है. जो देश कर्ज चुकाने में सबसे कम सक्षम हैं, उन्हें अक्सर सबसे ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ता है.

पहले समझिए दुनियाभर का कर्ज (Global Debt) से क्या है मतलब?
कर्ज वो पैसा होता है जो आप किसी से उधार लेते हैं और बाद में लौटाते हैं. दुनियाभर का कर्ज का मतलब है कि पूरी दुनिया में सरकारों, कंपनियों और लोगों पर कुल कितना कर्ज बाकी है. इसमें सरकारी और निजी दोनों तरह का कर्ज शामिल है.

सरकारी कर्ज वो पैसा है जो सरकारें घरेलू और विदेशी लेनदारों को चुकाती हैं. आमतौर पर सरकारी कर्ज को बॉन्ड, ट्रेजरी बिल जारी करके या अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज लेकर चुकाया जाता है.

निजी कर्ज वो पैसा है जो कंपनियां और लोग बैंकों, कर्जदाताओं और दूसरी वित्तीय संस्थाओं को देते हैं. इसमें घर खरीदने के लिए लिया गया लोन, कंपनियों द्वारा जारी बॉन्ड , पढ़ाई के लिए लिया गया लोन और क्रेडिट कार्ड का बकाया शामिल है.

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GDP के हिसाब से अफ्रीकी देशों पर सबसे ज्यादा कर्ज का बोझ
अफ्रीकी देशों की विकास दर दुनियाभर में सबसे कमजोर रही है, जिससे उन पर कर्ज का बोझ ज्यादा बढ़ गया है. 2023 में अफ्रीका के देशों के लिए सरकारी कर्ज और जीडीपी के बीच का औसत अनुपात 61.9% तक पहुंच गया, जो लगातार बढ़ रहा है. 

नतीजा ये हुआ है कि विकासशील देशों में जिन देशों पर कर्ज का बोझ सबसे ज्यादा है, उनमें से ज्यादातर अफ्रीका में हैं. साल 2013 से 2023 के बीच अफ्रीका में ऐसे देशों का कर्ज जीडीपी के 60% से ज्यादा है.

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54 विकासशील देशों को कर्ज के ब्याज के रूप में काफी पैसा खर्च करना पड़ रहा है …

विकासशील देशों के लिए विदेशी कर्ज की समस्या अभी भी गंभीर
दुनियाभर का वित्तीय ढांचा ऐसा है कि एक के बाद एक आने वाले संकटों का असर विकासशील देशों पर ज्यादा बुरा पड़ता है और विकास की राह में मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं. ये ढांचा असमानताओं से भरा हुआ है. इससे विकासशील देशों पर कर्ज का बोझ बढ़ जाता है.

उदाहरण के लिए, जब दुनियाभर में आर्थिक हालात बदलते हैं या विदेशी निवेशक ज्यादा जोखिम लेने से बचते हैं, तो ऐसे में कर्ज लेने का खर्च अचानक से बढ़ सकता है. इसी तरह, अगर किसी देश की मुद्रा का मूल्य गिर जाता है, तो विदेशी मुद्रा में लिए गए कर्ज का भुगतान बहुत ज्यादा बढ़ सकता है. नतीजा ये होता है कि विकास के कार्यों पर खर्च करने के लिए कम पैसा बचता है.
 
विकासशील देशों से पैसा वापस ले रही हैं निजी कंपनियां
अभी तक तो विकासशील देश दूसरे देशों की सरकारों कई देशों की संस्थाओं और निजी कंपनियों से कर्ज लेते थे, लेकिन अब चीजें बदल रही हैं. निजी कंपनियों ने विकासशील देशों से अपना पैसा वापस लेना शुरू कर दिया है. इस वजह से विकासशील देशों को करीब 50 अरब अमेरिकी डॉलर का घाटा हुआ है. 
 
2022 में सरकारी और कई देशों की संस्थाओं ने तो विकासशील देशों को कर्ज के रूप में 40 अरब अमेरिकी डॉलर दिए, लेकिन उसी साल निजी कंपनियों ने विकासशील देशों से 89 अरब अमेरिकी डॉलर वापस ले लिए. ये अब तक की सबसे बड़ी वापसी है.  2022 में कुल 52 विकासशील देशों को निजी कंपनियों ने पैसा वापस ले लिया. 2010 में ऐसे देशों की संख्या सिर्फ 32 थी. ज्यादातर प्रभावित देश अफ्रीका और एशिया-ओशियाना क्षेत्र के हैं.

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विकासशील देशों के लिए कर्ज चुकाना मुश्किल क्यों?
एक और दिक्कत ये है कि निजी कंपनियों से कर्ज लेना बहुत महंगा होता है. अमरिका से कर्ज लेने पर जो ब्याज लगता है उससे 2 से 4 गुना ज्यादा ब्याज विकासशील देशों को चुकाना पड़ता है. जर्मनी से कर्ज लेने पर लगने वाले ब्याज से तो 6 से 12 गुना ज्यादा ब्याज विकासशील देशों को देना होता है. कर्ज पर इतना ज्यादा ब्याज देने की वजह से विकासशील देशों के लिए कर्ज चुकाना मुश्किल हो जाता है और उनके पास विकास कार्यों पर खर्च करने के लिए कम पैसा बचता है.  

2022 से दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में की गई बढ़ोतरी का विकासशील देशों के सरकारी बजट पर सीधा असर पड़ रहा है. 2023 में सरकारी कर्ज पर शुद्ध ब्याज भुगतान 847 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जो 2021 की तुलना में 26% अधिक है.

अभी, आधे से ज्यादा विकासशील देश अपनी सरकारी कमाई का कम से कम 8% हिस्सा ब्याज चुकाने में लगा रहे हैं. यह आंकड़ा पिछले दस सालों में दोगुना हो गया है. ब्याज भुगतान का बढ़ता दबाव अफ्रीका और लैटिन अमेरिका व कैरिबियन में काफी ज्यादा है.

कर्ज का ब्याज विकास में डाल रहा बाधा
54 विकासशील देशों को कर्ज के ब्याज के रूप में बहुत ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ रहा है. इनमें से करीब आधे देश अफ्रीका में हैं. विकासशील देशों की परेशानी ये है कि कर्ज का ब्याज तो तेजी से बढ़ रहा है लेकिन स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे जरूरी सरकारी खर्चों में उतनी तेजी से बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है.

दरअसल, कर्ज के ब्याज में तेजी से हो रही बढ़ोतरी की वजह से विकासशील देशों के पास खर्च करने के लिए कम पैसा बच रहा है. इसका एक उदाहरण कोरोना महामारी की शुरुआत है. उस दौरान अफ्रीका और एशिया-ओशियाना (चीन को छोड़कर) के देशों ने स्वास्थ्य पर खर्च करने से ज्यादा पैसा कर्ज के ब्याज के रूप में चुकाया. 

2020 से 2022 के बीच के आंकड़ों को देखें तो, इन इलाकों में हर व्यक्ति के स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च सिर्फ 39 अमेरिकी डॉलर (अफ्रीका) और 62 अमेरिकी डॉलर (एशिया-ओशियाना) था. वहीं, इसी अवधि में हर व्यक्ति के कर्ज के ब्याज चुकाने के लिए सरकारी खर्च 70 अमेरिकी डॉलर (अफ्रीका) और 84 अमेरिकी डॉलर (एशिया-ओशियाना) तक पहुंच गया. 

2020 से 2022 के बीच 15 ऐसे देश थे, जहां उन्हें शिक्षा पर जितना खर्च करना चाहिए था, उससे ज्यादा पैसा कर्ज के ब्याज के तौर पर चुकाना पड़ा. 46 देशों में तो स्वास्थ्य पर खर्च करने से भी ज्यादा रकम कर्ज के ब्याज के रूप में देनी पड़ी. कुल मिलाकर 3.3 अरब लोग ऐसे देशों में रहते हैं, जहां सरकारें शिक्षा या स्वास्थ्य पर जितना खर्च करती हैं, उससे कहीं ज्यादा पैसा कर्ज के ब्याज के रूप में चुकाया जाता है. ये स्थिति बहुत गंभीर है और इसे बदलने की सख्त जरूरत है.

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