हालात: उन्हें भरने हैं कई पेट, यही मजबूरी बनती है ढेंरों मुसीबतों का सबब !

हालात: उन्हें भरने हैं कई पेट, यही मजबूरी बनती है ढेंरों मुसीबतों का सबब
भारतीय मजदूरों को हसीन सपने दिखाकर खाड़ी देशों में ले जाया जाता है, लेकिन वादे के मुताबिक उन्हें वेतन और सुविधाएं नहीं दी जाती हैं। उनकी मजबूरी समझी जा सकती है कि उन्हें अपने देश की तुलना में वहां ज्यादा मजदूरी मिलती है और उन्हें अपने परिवार को भी पैसा भेजना होता है।

खाड़ी देशों में, जिनमें कुवैत समेत बहरीन, इराक, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) शामिल हैं, बड़ी संख्या में भारतीय श्रमिकों की मांग रहती है। इन श्रमिकों में ज्यादातर भवन निर्माण से जुड़े होते हैं। नर्सिंग सेवा से जुड़े लोग भी जाते हैं। कुवैत की कुल 49 लाख आबादी में दस लाख से ज्यादा भारतीय हैं, जो वहां की सबसे बड़ी प्रवासी आबादी है। भारतीय मजदूरों को हसीन सपने दिखाकर खाड़ी देशों में ले जाया जाता है, लेकिन अक्सर वादे के मुताबिक उन्हें वेतन और सुविधाएं नहीं दी जाती हैं। चूंकि उन्हें अपने देश की तुलना में वहां ज्यादा मजदूरी मिलती है, और अपने देश में रोजगार का संकट है, इसलिए वे घर-बार छोड़कर बेहतर जिंदगी की तलाश में खाड़ी देशों में जाते हैं।

वादे के मुताबिक, जब श्रमिकों को मानदेय और सुविधाएं नहीं मिलतीं, तो उनके पास दूसरा चारा नहीं होता। उनके पास इतने पैसे भी नहीं होते कि वे वापस आ सकें। कभी-कभी तो उनसे कंपनी मालिकों द्वारा उनका पासपोर्ट भी जब्त कर लिया जाता है। इसलिए मन मारकर वे वहीं काम करने लगते हैं और चुपचाप शोषण सहते रहते हैं। उनके रहने की भी उचित व्यवस्था नहीं होती, अक्सर एक कमरे में चार-पांच लोगों को रखा जाता है। 12 जून को कुवैत के दक्षिणी अहमदी प्रांत के मंगाफ में एक श्रमिक आवासीय इमारत में आग लगने से 49 लोगों की मौत हो गई, जिनमें 45 भारतीय थे। इस भवन में 196 मजदूर रखे गए थे। आग लगने पर लोग निकल भी नहीं पाए, क्योंकि उस भवन में आपातकालीन निकास और सुरक्षा उपकरण तक नहीं थे। वहां की सरकार ने खुद स्वीकार किया कि जिस भवन में आग लगी, उसमें सुरक्षा के मानकों का बिल्कुल भी पालन नहीं किया गया था। यह स्थिति कुवैत की अकेली एक इमारत की नहीं है या सिर्फ इसी देश में ऐसा नहीं होता है, बल्कि लगभग प्रत्येक खाड़ी देश में मजदूरों के साथ इसी तरह का व्यवहार होता है। खाड़ी देशों में एक से एक इमारतें हैं और उनमें सुरक्षा के उपाय भी हैं, लेकिन बात जब श्रमिकों की आती है, तो उन्हें भीड़भाड़ वाली जगहों पर अल्प सुविधाओं के साथ रहने की जगह दी जाती है। इसलिए इस तरह के हादसे होते हैं। मैंने खुद हैती में देखा है कि एक कमरे में चार-चार लोगों को रखा गया था। यह वहां के स्थानीय नियम-कानूनों का भी उल्लंघन है।

भारत में विदेशी कंपनियों के जो एजेंट हैं, वे मजदूरों को विदेश भिजवाने का इंतजाम करते हैं। उदाहरण के लिए, जब किसी मजदूर को ले जाना होता है, तो उससे वादा किया जाता है कि तुम्हें 300 डॉलर मजदूरी दी जाएगी, लेकिन वहां पहुंचने पर कम मजदूरी दी जाती है। दरअसल, यह जो एजेंटों का रैकेट है, वही सारी गड़बड़ी करता है। श्रमिक जिन कंपनियों में काम करने के लिए जाते हैं, उनके मालिक काफी अमीर होते हैं। एजेंट कंपनी मालिक से मजदूरों को देने के लिए जितनी रकम लेते हैं, उतनी मजदूरों को देते नहीं।  यही नहीं, यहां से जिस काम के लिए उन्हें ले जाया जाता है, वहां दूसरे काम में लगा दिया जाता है। हाल ही में रूस की सेना में भर्ती हुए कई भारतीयों की मौत हो गई। दरअसल उन्हें दूसरे कामों के लिए ले जाया गया था। लेकिन भेज दिया सेना में लड़ने के लिए, नतीजतन यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी।

श्रमिकों को विदेशों में कोई परेशानी न हो, इसके लिए भारत सरकार ने काफी नियम बनाए हैं और संबंधित देशों में स्थित भारतीय दूतावास भी उनकी मदद के लिए तैयार रहते हैं। अभी कुवैत में जो हादसा हुआ, उसके तत्काल बाद भारत सरकार सक्रिय हो गई। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उच्च स्तरीय बैठक करके प्रत्येक मृतक के परिजन को तत्काल दो लाख रुपये के अनुदान देने का एलान किया। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कुवैत के विदेश मंत्री से बात की और विदेश राज्यमंत्री कीर्तिवर्धन को वहां पर भेजा गया। वहां के राजदूत ने भी घटनास्थल और उन अस्पतालों का दौरा कर घायलों का हालचाल जाना, जहां उन्हें भर्ती कराया गया है। हालांकि कुवैती सरकार भी हरसंभव मदद कर रही है। खाड़ी देशों में अन्य देशों के श्रमिक भी रहते हैं। लेकिन जितना ख्याल भारत सरकार अपने लोगों का रखती है, उतना अन्य किसी देश की सरकार नहीं।

विदेशों में भारतीयों का शोषण न हो, इसके लिए भारत सरकार ने ‘मदद’ पोर्टल बनाया है, जिस पर आप सहायता ले सकते हैं। ‘ई-माइग्रेट’ नामक पोर्टल के जरिये भी मदद मिलती है। इसके अलावा, हर देश में भारतीय दूतावास खुली अदालत लगाते हैं, जहां विदेश में रहने वाला कोई भी भारतीय अपनी समस्या बताकर मदद मांग सकता है। दूतावास द्वारा उनकी हर संभव मदद का प्रयास किया जाता है। हमारी सरकार ने नियम बनाया है कि 35 साल से कम उम्र की कोई महिला खाड़ी देशों में मजदूरी या घरेलू काम करने के लिए नहीं जाएगी, क्योंकि महिलाओं के शारीरिक शोषण तक की शिकायतें मिलती रही हैं। हालांकि पहले के मुकाबले अब हालात बदले हैं। विदेश जाने वाले श्रमिकों को भाषा संबंधी प्रशिक्षण के साथ कई स्तर पर प्रशिक्षण दिया जाता है। मजदूरों को नियुक्त करने वाली नियोक्ता कंपनियों का सारा डाटा निकालकर पूरी छानबीन की जाती है।

हालांकि कई बार विदेशों में रहने वाले भारतीय दूतावासों की एडवाइजरी का पालन नहीं करने के कारण संकट में फंस जाते हैं। जब मैं लीबिया में राजदूत था, तो मैंने भारतीयों से कहा कि यहां कभी भी युद्ध हो सकता है, इसलिए जल्द से जल्द यहां से निकलो, लेकिन किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया। जब बमबारी होने लगी, तो भगदड़ मच गई। भारत में उनके परिजन सरकार से मांग करने लगे कि हमारे परिजनों को निकालो। जैसे-तैसे मैंने खुद 430 लोगों को वहां से निकलवाया। सरकार ने एयर इंडिया की फ्लाइट से उन्हें अपने वतन लौटाया।

निश्चित रूप से भारत सरकार ने विदेश जाने वाले श्रमिकों की सुरक्षा की अच्छी व्यवस्था की है, लेकिन उसे अपने तंत्र को और मजबूत करना होगा, ताकि उन देशों की कंपनियां और उन्हें भेजने वाले एजेंट मजदूरों के साथ धोखाधड़ी न करें और वादे के अनुसार उन्हें वेतन एवं सुविधाएं प्रदान करें। इसका कड़ाई से पालन होना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *