आरएसएस और भाजपा एक ?
आरएसएस और भाजपा एक, लोगों को भम्र में डालने के लिए माेहन भागवत का बयान
ऐसा बयान उन्होंने तब दिया है जबकि सरकार चुनाव के बाद सरकार में वापस आ गई और शपथ ग्रहण का काम हो चुका है. ऐसे बयान जनता को भम्र में लाने के लिए है कि आरएसएस मोदी सरकार का समर्थक नहीं है बल्कि मोदी का विरोध करते हैं. भागवत ने कहा है कि मणिपुर में पिछले एक साल से मामला चल रहा है लेकिन मोदी वहां पर नहीं गए, देखा जाए तो मोहन भागवत भी तो वहां नहीं गए. वहां पर भाजपा की सरकार है. केंद्र में भाजपा की सरकार है. इससे पहले अभी तक मोहन भागवत ने ऐसा क्यों नहीं कहा? सभी तो कहीं न कहीं आरएसएस से ही जुड़े हुए हैं. मोदी में अहंकार आ चुका है तो सभी प्रमुख नेता तो आरएसएस से ही हैं. इसमें राजनाथ सिंह, नीतिन गडकरी, शिवराज सिंह चाैहान आदि हैं. इनमें से किसी को सरकार ने क्यों नहीं पीएम पद के लिए चुना, तो ये सब बातें जनता को भम्रित करने का प्रयास है.
आरएसएस के मुद्दे पर भाजपा
जो जनादेश आया है ये मोदी के ही नहीं बल्कि आरएसएस और भाजपा के विरोध में भी है. आरएसएस को लग गया कि भाजपा और मोदी के साथ ये विरोध आरएसएस के लिए भी है. भाजपा आरएसएस का एक राजनैतिक संगठन है. मोदी भी राजनीति में आने से पहले आरएसएस के कार्यकर्ता रहे हैं. सरकार में आने के बाद आरएसएस के विचारों को रखकर काम किया है. 370 को भाजपा ने हटाया, जम्मू कश्मीर को भाजपा ने ही विभाजित किया, हिंदू-मुस्लिम में जनता को तोड़ा, बहुसंख्यकवाद की राजनीति की, संप्रदायिकता को ये आगे लाए, मुस्लिम को दूसरे कैटेगरी की जाति बना दी, हिंदुत्व की वकालत की, हिंदू राष्ट्र भले नहीं बना लेकिन उनको जगा कर हिंदू राष्ट्र का माहौल तो कर ही दिया. ये सारे मुद्दे तो खुद आरएसएस के थे इसलिए भाजपा आरएसएस का ही राजनैतिक संगठन है. ऐसे बयानों से आरएसएस बस खुद को जनता के नजरिये में अलग दिखाना चाहती है, बाकी हर तरीके से वो भाजपा से जुड़ी है. कुछ पत्रकार ये कयास लगा रहे थे कि नरेंद्र मोदी इस बार पीएम नहीं होंगे बल्कि उनकी जगह पर नितिन गडकरी या फिर शिवराज सिह चौहान पीएम हो सकते हैं. पीएम पद के उम्मीदवार चुनने के लिए वोट आने के बाद भाजपा की संसदीय दल की बैठक भी नहीं हुई कि नेता चुना जाए, एनडीए के साथ मिलकर बैठक किया गया और पीएम के पद पर फिर से नरेंद्र मोदी आ गए. चुनाव के रिजल्ट के बाद आरएसएस के छवि भी खराब हुई है अब उसी को बचाने के लिए ऐसे बयान दिए जा रहे हैं.
जनता ने दी है चेतावनी
जनता ने भाजपा को पूरी तरह से मैंडेंट नहीं दिया है. भाजपा को कुल 240 सीटें मिली है यानी कि पूरी तरह से भाजपा को बहुमत तक का वोट नहीं मिला है. नरेंद्र मोदी के नाम पर भी बहुमत नहीं मिला है क्योंकि खुद मोदी मात्र लगभग एक लाख वोटों से चुनाव जीते हैं. भाजपा के 115 सांसद 3 लाख से अधिक वोटों से चुनाव जीते जबकि उस मामले में मोदी 116वें नबर पर रहे. आडवाणी के बाद से अब तक भाजपा का मुख्य मुद्दा तो हिंदुत्व का ही था. इस चुनाव में भी राम मंदिर का मुद्दा मुख्य रूप से था. इसके बावजूद अयोध्या में चुनाव भाजपा हार गई. स्मृति ईरानी को जो चुनाव में हार मिली वो उनके बड़बोलेपन की निशानी है. संसद में उन्होंने जिस तरह से सोनिया गांधी को लेकर भाषा का दुरुपयोग किया उसको पूरे भारत ने देखा है. इस चुनाव में भाजपा और कैंडिडेट को जनता ने चेतावनी दी है कि अपने आप में सुधार लाने की जरुरत है. इसके साथ जनता ने ये भी बता दिया कि बिना क्षेत्रीय पार्टी के सरकार केंद्र में नहीं बनायी जा सकती, इसलिए क्षेत्रीय पार्टियों को भी तरजीह देने की जरूरत है. जनता ने नेशनल और क्षेत्रीय दोनों पार्टियों के महत्व को बताया है.
धार्मिक मुद्दे पर राजनीति को नकारा
राम मंदिर के मुद्दे पर चुनाव पर जाने वाली भाजपा को मंदिर बनने के बाद ही हार का सामना करना पड़ा. जनता को राम मंदिर तो चाहिए लेकिन उसको मुद्दा बनाना पसंद नहीं आया. इसी कारण यूपी में बीजेपी को मात्र 35 सीटें मिली. यूपी में सबसे अधिक सीटों के साथ हिंदुत्व का गढ़ तो वहीं है. जनता ने ये सिर्फ वार्निंग दिया है कि धार्मिक मुद्दा पर राजनीति ना करें बल्कि राजनैतिक दृष्टि से सरकार चलाएं. ये मामला सिर्फ उतर प्रदेश के लिए रहा, बाकी कई राज्यों में तो बीजेपी को सारी सीटें जनता ने दे दी. जनता भाईचारे को महत्व देती है इसलिए वैसे जनता ने पार्टियों को नसीहत दी है अगर इस झटके से भी ये नहीं संभलते हैं तो देखना होगा कि आगे क्या होता है.
अयोध्या से हराकर, यूपी में 35 सीटों पर जिताकर और पूरे देश में 240 सीटें देकर जनता ने मोदी सरकार को वार्निंग दिया है. सरकार में कोई बदलाव नहीं है, नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू कोटा से आने वाले मंत्रियों को क्या खास मिला है? सिर्फ इस सरकार में ये बदलाव आया है कि काम करने के तरीके में थोड़ा परिर्वतन आएगा. नरेंद्र मोदी को गठबंधन सरकार चलाने का कोई अनुभव नहीं है. अपने पार्टी के आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे लोगों को साइड कर दिया तो फिर गठबंधन की सरकार चलाने में दिक्कत होगी. अब लोकसभा के स्पीकर को लेकर चुनाव होना है. इसमें दो संभावना है. या तो पहले वाले रहेंगे या फिर कोई और. स्पीकर सहयोगी दल का होता है या फिर भाजपा का ये देखने का विषय होगा. तोड़फोड़ की जो राजनीति होती है वो स्पीकर के जरिये होता है. अगर दूसरे दल के स्पीकर हुए तो तोड़फोड़ की राजनीति खत्म हो जाएगी. इसलिए स्पीकर हर हाल में भाजपा का ही होगा.
लोकसभा के स्पीकर पर सस्पेंस
अभी वर्तमान में जो भी सांसद है उसमें से 93 प्रतिशत करोड़पति है. भाजपा के ऐसे सांसद है जिनके पास 3 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति है. अगर दूसरे दल के सांसद को 100 करोड़ रुपए मिलते हैं तो निश्चित रूप से दूसरे दल की ओर रुख करेगा. ऐसे ही सांसदों ने लाखों करोड़ों रुपए बनाए है. सांसदों और कारपोरट के 18 लाख करोड़ से अधिक के लोन को माफ कर दिया गया है. अब ये देखना होगा कि स्पीकर कौन होता है उसके बाद आगे का खेल देखने को मिलेगा. ये भी हो सकता है कि नायडू की पत्नी लोकसभा की अध्यक्ष हो जाएं. भारत में कई पार्टी विभाजित हो चुकी है लेकिन जनसंघ या भाजपा कभी नहीं टूटी. भाजपा में सभी लोग ट्रेंड है क्योंकि सभी आरएसएस के है और आरएसएस में डिसिप्लिन काफी मेंटेंन रखती है. अब आरएसएस लोगों के मन और दिमाग को कंट्रोल करने के लिए कि वो भाजपा के साथ नहीं है इसलिए इस तरह के बयान दे रही है.
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