रूप बदलते आतंकवाद से कैसे निपटेगा भारत?

 रियासी जैसी घटनाएं आखिर कब तक… रूप बदलते आतंकवाद से कैसे निपटेगा भारत?
आतंकवाद बहुत बड़ा खतरा है, पर दुनिया के देश अभी तक ये तय नहीं कर पाए हैं कि मिलकर इस बुराई से कैसे लड़ें. वहीं आतंकी अपना मकसद पूरा करने के लिए लगातार अपने हमलों के तरीके बदलते रहते हैं.

जम्मू कश्मीर में आज भी आतंकवाद का साया बरकरार है. 9 जून की शाम जिस वक्त प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्रिपरिषद दिल्ली में शपथ ले रहे थे, उसी समय जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में श्रद्धालुओं को ले जा रही एक बस पर आतंकवादी हमला हुआ. हमले में 10 की मौत जबकि 33 से ज्यादा लोग घायल हो गए. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर ऐसी घटनाएं कब तक होती रहेंगी?

इससे पहले रियासी में आतंकवादियों ने मई 2022 में हमला किया था. तब एक बम हमले में वैष्णो देवी माता के चार तीर्थयात्री मारे गए थे और 20 से ज्यादा घायल हुए थे.

1990 के दशक में जम्मू और कश्मीर के तीन जिलों (रियासी, राजौरी और पुंछ) में आतंकवाद चरम पर था. यहां के लोग काफी परेशान थे. इसके बाद धीरे-धीरे आतंकवाद कम हो गया, मगर राजौरी और पुंछ में 2021 से फिर से आतंकी हमले बढ़ गए.

इस बार रियासी में ही हमला क्यों?
राजौरी और पुंछ दोनों जिले सीमा (LOC) से सटे हुए हैं. जबकि रियासी जिला सीमा से सीधा नहीं जुड़ा है. 2021 से आतंकवाद जब फिर बढ़ गया, तो वहां की सुरक्षा भी सख्त कर दी गई. संभव है कि इसलिए आतंकियों ने हमले के लिए नई जगह तलाशी है. 

जम्मू और कश्मीर को अलग करने वाली पीर पंजाल की पहाड़ियां इन तीनों जिलों से होकर गुजरती हैं. इन पहाड़ियों में कुछ रास्ते कभी-कभी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर तक ले जाते हैं. ये इलाका घना जंगल और ऊबड़-खाबड़ होने के कारण आतंकियों को छिपने और हमला करने में मदद करता है. 

रियासी पर हमला भी इसी का सबूत है, जब 9 जून को जंगल में छिपे आतंकियों ने श्रद्धालुओं से भरी बस पर घात लगाकर हमला कर दिया. फिलहाल इस आतंकी हमले की जांच गृह मंत्रालय ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के हाथ सौंप दी है.

रियासी जैसी घटनाएं आखिर कब तक... रूप बदलते आतंकवाद से कैसे निपटेगा भारत?

भारत में आतंकवाद से जुड़ी मुश्किलें
सबसे बड़ी चुनौती आतंकवाद की एकमत परिभाषा न होना है. दुनियाभर में ये पूरी तरह साफ नहीं है कि असल में आतंकवाद किसे कहते हैं? इसकी वजह से किसी खास घटना को आतंकी हमला बताना मुश्किल हो जाता है. इससे आतंकियों को फायदा होता है और कुछ देश चुप रहकर यूनाइटेड नेशन (UN) जैसी वैश्विक संस्थाओं में किसी भी कार्रवाई का विरोध कर सकते हैं.

वहीं इंटरनेट एक ऐसी जगह है जहां बहुत ज्यादा नियम नहीं होते. इसका फायदा आतंकी उठाते हैं. वो अपनी बात फैलाने के लिए वेबसाइट और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर सकते हैं. वो अपने हिसाब से पैगाम तैयार कर हजारों लोगों को अपने संगठन में शामिल करने की कोशिश कर सकते हैं.

आतंकवाद का बदलता रूप
आजकल आतंकवादियों को खतरनाक हथियार और नई टेक्नॉलजी आसानी से मिल जाती है. खासकर इंटरनेट की दुनिया उनकी पहचान छुपाने में मदद करती है. इससे वो आपस में बातचीत कर पाते हैं, पैसे भेज और मंगवा सकते हैं. बम बनाने से लेकर सर कलम करने तक हर चीज की जानकारी ऑनलाइन मिल जाती है.

इन्हीं सब चीजों की वजह से आतंकवाद आजकल युद्ध छेड़ने का सबसे पसंदीदा तरीका बन गया है. ये बहुत बड़ा खतरा है, पर दुनिया के देश अभी तक ये तय नहीं कर पाए हैं कि मिलकर इस बुराई से कैसे लड़ें. ये समस्या इतनी गंभीर है कि आतंकवाद और हिंसा को परिभाषित करने पर भी सभी देश सहमत नहीं हो पा रहे हैं. वहीं आतंकी अपना मकसद पूरा करने के लिए लगातार अपने हमलों के तरीके बदलते रहते हैं.

भारत में आतंकवाद का इतिहास
भारत में आतंकवाद और हिंसा की कहानी 1947 के विभाजन से ही शुरू हो जाती है. उस वक्त धर्म के आधार पर हिंदुस्तान दो टुकड़ों में बंट गया- भारत और पाकिस्तान. ये बंटवारा इतिहास का सबसे खौफनाक सांप्रदायिक दंगा था. इसमें बहुत हिंसा और आतंकी हमले हुए. 

बंटवारे के बाद जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने थोड़े समय के लिए तटस्थ रहने के बाद भारत में शामिल होने का फैसला किया. मगर, पाकिस्तान इस फैसले को आज तक नहीं स्वीकार नहीं कर पाया है. वो जम्मू-कश्मीर को अपना हिस्सा बताता है क्योंकि वहां ज्यादातर लोग मुसलमान हैं. ये झगड़ा ही असल में दोनों मुल्कों के बीच की सबसे बड़ी लड़ाई की वजह है. दोनों ही देश एक-दूसरे के दावे को मानने से साफ इनकार कर देते हैं.

भारत आतंकवाद से कैसे लड़ रहा है?
26/11 के भयानक हमले के बाद से भारत सरकार आतंकवाद से लड़ने के लिए कई कदम उठा रही है. सबसे पहले तो भारत में एक सख्त कानून है, जिसे ‘गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन अधिनियम’ कहा जाता है. ये देश की सुरक्षा और उन लोगों को सजा देने के लिए बनाया गया था जो देश या उसके लोगों के खिलाफ गतिविधियों में शामिल हैं. ये कानून पुलिस को ये शक्ति देता है कि वो आतंकवादियों की मदद करने, उन्हें पैसे देने, देश के खिलाफ लोगों को भड़काने जैसी गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल लोगों को पकड़ सके. 

रियासी जैसी घटनाएं आखिर कब तक... रूप बदलते आतंकवाद से कैसे निपटेगा भारत?

 

गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1967 का मुख्य मकसद देश विरोधी ताकतों को खत्म करना है जो देश में अशांति फैलाने की कोशिश करती हैं. ये कानून पुलिस के लिए एक अहम हथियार है जिससे वो किसी भी बड़े हमले को रोकने के लिए संदिग्ध लोगों को हिरासत में ले सकती है.

ऐसे ही आतंकी मामलों की जांच के लिए 31 दिसंबर 2008 को NIA एक्ट बनाया गया और उसी के साथ नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) अस्तित्व में आई. ये आतंकवाद के खिलाफ लड़ने वाली केंद्रीय एजेंसी है. ये एजेंसी सिर्फ आतंकी गतिविधियों की जांच करती है और सबूत जुटाती है.

वहीं आतंकवादियों की योजनाओं का पता लगाने के लिए भारत सरकार ने ‘राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड (NATGRID)’ बनाया है. ये एजेंसी देशभर की अलग-अलग जांच एजेंसियों से डेटाबेस इकट्ठा करती है और उनका एनालिसिस करके आतंकी खतरों का पता लगाती है. ये डेटाबेस टैक्स, बैंक अकाउंट्स, क्रेडिट-डेबिट कार्ड ट्रांजैक्शन, वीजा, पासपोर्ट रिकॉर्ड्स, रेल और हवाई यात्रा की जानकारी जैसी चीजें हो सकती हैं.

इसके इलावा एनएसजी (NSG) भारत की एक खास फोर्स है, जिसे दुनिया में बेस्ट माना जाता है. ये आतंकवाद से किसी भी रूप में लड़ने के लिए तैयार रहती है. इस फोर्स के जवानों को खास ट्रेनिंग दी जाती है और उन्हें ऐसे हथियार और समान दिए जाते हैं जो किसी और फोर्स के पास नहीं होते. एनएसजी का इस्तेमाल सिर्फ बहुत ही खास और गंभीर आतंकी घटनाओं को रोकने के लिए ही किया जाता है.

दुनिया के देश आतंकवाद से कैसे लड़ रहे हैं?
आतंकवाद सिर्फ भारत की समस्या नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया को इससे खतरा है. इसीलिए दुनियाभर के देश कई तरीकों से आतंकवाद से लड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

यूनाइटेड नेशन्स ऑफिस ऑफ काउंटर टेररिज्म (UNOCT): ये संगठन आतंकवाद से लड़ने की वैश्विक कोशिशों में अहम भूमिका निभाता है. UNOCT आतंकवाद से लड़ने की कोशिशों को लोगों के सामने लाता है और देशों को आतंकवाद रोकने के लिए फंड देने के लिए राजी करता है.

टेररिज्म प्रिवेंशन ब्रांच (TPB): ये भी संयुक्त राष्ट्र संघ के तहत आने वाला एक संगठन है. ये खासतौर पर आतंकवाद को रोकने के लिए बनाई गई रणनीतियों और कार्यक्रमों पर काम करता है.

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF): ये एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसका मकसद आतंकवाद को फंडिंग करने पर रोक लगाना है. ये संगठन अलग-अलग देशों के साथ मिलकर काम करता है ताकि आतंकवादियों को पैसा मिलने के रास्ते बंद किए जा सकें.

भारत हर साल संयुक्त राष्ट्र संघ में आतंकवाद के खिलाफ एक प्रस्ताव पेश करता है. इस प्रस्ताव में आतंकवाद से लड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की मांग की जाती है. 

आतंकवाद से निपटने की मोदी सरकार की क्या है सोच
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इसी साल अप्रैल में एक कार्यक्रम में कहा था कि 2014 के बाद से भारत की विदेश नीति में बदलाव आया है और आतंकवाद से निपटने का तरीका भी बदल गया है. उनसे सवाल पूछा गया था कि भारत को किन देशों के साथ संबंध बनाए रखने में मुश्किल होती है? इस पर विदेश मंत्री ने कहा था कि उनमें से एक पाकिस्तान है, जो पड़ोस में है और इसके लिए हम अकेले जिम्मेदार हैं.

उन्होंने जोर देकर कहा कि आतंकवाद किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं है. देश की विदेश नीति में निरंतरता के बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा था, “मेरा जवाब हां है. 50 फीसदी निरंतरता है और 50 फीसदी बदलाव है. वह एक बदलाव आतंकवाद पर है. मुंबई हमले के बाद एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं था जिसे लगा कि हमें जवाबी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए थी. लेकिन उस समय ऐसा लगा कि पाकिस्तान पर हमला करने की कीमत पाकिस्तान पर हमला न करने से कहीं ज्यादा है. अगर मुंबई आतंकी हमला (26/11) जैसी कोई घटना अब होती है और अगर उस पर कुछ प्रतिक्रिया नहीं करते हैं तो कोई अगला हमला कैसे रोका जा सकता है?”

विदेश मंत्री ने आगे कहा था, “आतंकवादियों को यह नहीं लगना चाहिए कि वे सीमा पार हैं, इसलिए कोई उन्हें छू नहीं सकता. आतंकवादी किसी नियम से नहीं चलते, इसलिए आतंकवादियों को जवाब देने के लिए कोई नियम नहीं हो सकता.”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *