18वीं लोकसभा: पक्ष और विपक्ष का क्या रिश्ता बनेगा?

18वीं लोकसभा: पक्ष और विपक्ष का क्या रिश्ता बनेगा?, नौकरियों के एजेंडे को आगे लाना जरूरी
2024 के लोकसभा चुनाव ने एक बार फिर सत्ता पक्ष और विपक्ष को संसद की गौरवमयी परंपराओं को जीवित रखने का मौका दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि कम बहुमत वाली भाजपा का इस नए विपक्ष के साथ किस तरह का रिश्ता बनता है।

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भारतीय संसद –

अठारहवीं लोकसभा के परिणाम ने एक मजबूत विपक्ष खड़ा किया है, जो 16वीं और 17वीं लोकसभा में नहीं के बराबर था । 2014 और 2019 में हुए पिछले दो लोक सभा चुनावों में कांग्रेस 44 और 52 सीटें लेकर मुख्य विपक्षी पार्टी थी, लेकिन वह विपक्ष के नेता का पद भी नहीं जीत सकी। भाजपा को छोड़कर अन्य सभी पार्टियों के पास बहुत कम सीट थी। भाजपा और उसके चुनाव पूर्व सहयोगियों और अघोषित सहयोगियों (वाईएसआरसीपी और बीजेडी) की आवाज के सामने विपक्ष की आवाज दब गई।

भारतीय जनता पार्टी ने इस बात पर विचार करने की जरूरत नहीं समझी कि संख्या बल में कम होने के बाद भी संसद की परंपराओं को किस तरह से बनाए रखा जा सकता है। विपक्षी पार्टियों बार-बार शिकायत करती रही कि संसद की परंपराओं का पालन नहीं किया गया। कई निष्पक्ष पर्यवेक्षक ने भी यह माना था कि दोनों सदन ठंडे पड़ गए।

2024 के लोकसभा चुनाव ने सत्ता दल और विपक्ष दोनों को संसद की गौरवमयी परंपराओं को जीवित रखने का एक बार फिर से मौका दिया है। यही लोकतंत्र का स्वरूप भी है और सार भी। इस बार विपक्ष सवा दो सौ से अधिक सीटों के साथ मजबूती से खड़ा है।

उल्लेखनीय वादे
विपक्ष कांग्रेस के 2024 के मेनिफेस्टो ‘न्याय पत्र’ से शुरु कर सकता है, जिसमें निम्नलिखित वादों को शामिल किया गया था :

  • हम यह वादा करते हैं कि संसद के दोनों सदन साल में 100 दिनों तक चलेंगे और संसद की प्राचीन परंपराओं को उसी तरह ईमानदारी से निभाया जाएगा।
  • हम यह वादा करते हैं कि सप्ताह में एक दिन, विपक्षी बेंच द्वारा सुझाए गए एजेंडे पर बहस करने के लिए समर्पित होगा।
  • हम वादा करते हैं कि दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी चाहे वह किसी भी राजनीतिक दल के हों, उन्हें राजनीतिक दलों से अपने संबंध तोड़ने होंगे, उन्हें तटस्थ रहना होगा और संसद की बरसों पुरानी परंपरा ‘स्पीकर को नहीं बोलना चाहिए’ को स्वीकार करना होगा।
  • इंडिया ब्लॉक इस बात को अपनाने और उसे पूरा करने के लिए मजबूती से लड़ता रहेगा।

भारतीय जनता पार्टी को इस 100 दिनों की बैठक, सप्ताह में एक दिन विपक्ष के एजेंडे पर बहस और निष्पक्ष पीठासीन अधिकारी वाले मामले पर कोई वैध आपत्ति नहीं हो सकती है।

दल-बदल रोका जाए
नरेंद्र मोदी की तरह भाजपा भी अब 240 सीट के आंकड़ों से उबर चुकी होगी। हालांकि भाजपा का लक्ष्य 370 का था और एनडीए का 400 से ज्यादा का था। उन्होंने जश्न मनाने की कोशिश तो की, लेकिन सीटों की संख्या उन्हें यह इजाजत नीं दे रहा था।  ‘कम संख्या’  का टैग भाजपा नेतृत्व को सताता रहेगा और वह इससे पार करने की हर संभव कोशिश करेगी। जिन्हें वह अपने पक्ष में कर सकती है, उनमें वाईएसआरसीपी-4, आप-3, आरएलडी- 2, जेडीएस-2, एजीपी – 1, आजसू -1 एचएएम-1 और एसकेएम- 1 शामिल हैं। यहां तक की जेडीयू अपनी 12 सीटों के साथ भी सुरक्षित नहीं है। इनमें से कुछ पार्टियां तो पहले से ही एनडीए का हिस्सा रही हैं, लेकिन भाजपा यहीं नहीं रूकेगी । याद रखें कि शिवसेना के साथ क्या हुआ था।  संविधान की दसवीं अनुसूची में अनेक खामियां हैं, जिससे छोटी पार्टियों के सांसद हट सकते हैं या गायब हो सकते हैं। कांग्रेस के 2024 के घोषणा पत्र में एक ऐसा फॉर्मूला था, जो भाजपा की योजना को ध्वस्त कर सकता है :

  • हम संविधान की दसवीं अनुसूची में संशोधन करने का वादा करते हैं और दलबदल (जिस मूल पार्टी से विधायक या सांसद चुने गए थे, उसे छोड़ कर किसी और पार्टी में जाना) को विधानसभा या संसद की सदस्यता के लिए स्वतः अयोग्य घोषित करने का प्रावधान करेंगे।

नौकरियों के एजेंडे को आगे लाएं
अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के मामले में भाजपा की स्थिति काफी कमजोर है। हालांकि बुनियादी ढांचे के विकास के मुद्दे पर कोई झगड़ा नहीं हो सकता है। सभी आर्थिक नीतियों का उद्देश्य हजारों रोजगार पैदा करना और मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने जैसे दोहरे लक्ष्यों को प्राप्त करना होना चाहिए।

भाजपा-एनडीए दो मौकों पर असफल हुई, जिसका खामियाजा उसे लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ा। क्या भाजपा का नेतृत्व अपनी रणनीति में बदलाव लाएगा, यह तो  राष्ट्रपति के भाषण और बजट में ही पता चलेगा। जबकि कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक को अपने 2024 के घोषणा पत्र में किए गए नौकरियों वाले निम्नलिखित एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहिए। उनका घोषणा पत्र कहता है :

  • हम एकाधिकार, अल्पाधिकार और सांठ-गांठ वाले पूंजीवाद के विरोधी हैं।
  • हम यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई भी कंपनी या व्यक्ति अपने लिए वित्तीय या भौतिक संसाधनों या व्यावसायिक अवसरों के लिए रियायत न पाए , सभी उद्यमियों को समान अवसर मिलने चाहिए।
  • हमारी नीतिगत प्राथमिकता उन व्यावसायिक उद्यमों के पक्ष में होगी, जो बड़ी संख्या में नौकरियां पैदा करते हैं।
  • केंद्र सरकार में विभिन्न स्तरों पर स्वीकृत पदों की लगभग 30 लाख रिक्तियों को भरेंगे।
  • नियमित गुणवत्ता वाली नौकरियों में अतिरिक्त भर्ती, टैक्स क्रेडिट का लाभ लेने और कॉरपोरेट्स के लिए एक नई रोजगार-लिंक्ड प्रोत्साहन (ईएलआई) योजना बनाई जाएगी।
  • हम शहरी बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण और नवीनीकरण के लिए शहरी रोजगार गारंटी योजना शुरू करेंगे।
  • जल निकाय पुनरुद्धार कार्यक्रम और बंजर भूमि पुनरुद्धार कार्यक्रम शुरू करके कम शिक्षा और कम कौशल वाले युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा, जिसे ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं के माध्यम से क्रियान्वित किया जाएगा।

विपक्षी दलों को अवसरों को ध्यान में रखते हुए एक नैरेटिव तय करना चाहिए। यह देखना मजेदार होगा कि कम संख्या वाली भाजपा का इस नए विपक्ष के साथ किस तरह का रिश्ता बनता है।

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