अलग मोड़ पर दक्षिण की सियासत ?

राजनीति: अलग मोड़ पर दक्षिण की सियासत, केंद्र सरकार को सोच-समझकर उठाना होगा कदम
दक्षिण के कई सांसदों को लगता है कि मोदी सरकार उत्तर भारतीयों के लिए है। इस तरह का नैरेटिव कई नेता प्रचारित कर रहे हैं, जो खतरनाक है। साथ ही, हिंदुत्व के विकास को रोकने के लिए युवाओं में बदले की भावना के साथ द्रविड़ विचारधारा को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे तमिलनाडु में सामाजिक विभाजन चरम पर है।

South India politics different turning point central government will have to think carefully and take steps
डीएमके का प्रदर्शन …

दक्षिण भारत की राजनीति एक अलग मोड़ ले रही है। क्या इसके फलस्वरूप मोदी सरकार को दक्षिण में आक्रामक रुख अपनाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा? जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, उससे लगता है कि आंध्र प्रदेश से प्रतिस्पर्धा करते हुए माकपा, द्रमुक और कांग्रेस केरल एवं तमिलनाडु के लिए विशेष वित्तीय दर्जे की मांग कर सकती हैं। चूंकि तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का हिस्सा बन गई है, इसलिए हो सकता है कि उसकी मांग को केंद्र सरकार से समर्थन मिल जाए। इस तरह का विशेष वित्तीय दर्जा उत्तरी राज्य, खासकर बिहार भी मांग रहा है। इसलिए केंद्र सरकार को सोच-समझकर कदम उठाना होगा।

तमिलनाडु में द्रमुक सरकार को फिलहाल सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि अभी हाल ही में कल्लाकुरिची में अवैध जहरीली शराब पीने से 57 लोगों की मौत हो चुकी है और बहुत से लोगों की हालत गंभीर बनी हुई है। मद्रास उच्च न्यायालय ने भी राज्य सरकार को इसके लिए कड़ी फटकार लगाई।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष भी राज्य में शराब त्रासदी की घटना हुई थी, जिसमें 22 लोगों की मौत हुई थी। लेकिन राज्य सरकार ने उसे अवैध शराब नहीं, बल्कि मेथनॉल बताया था। इस घटना पर अन्नाद्रमुक और भाजपा ने राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया है। एमके स्टालिन के नेतृत्व में द्रमुक सरकार के खराब प्रदर्शन के कारण जयललिता की मौत के बाद अन्नाद्रमुक के मरणासन्न अलग-अलग गुटों को जीवनदान मिल रहा है। दक्षिण भारत से 130 सांसद चुनकर लोकसभा में पहुंचते हैं, उनमें से अधिकांश सांसदों को लगता है कि मोदी सरकार उत्तर भारतीयों के लिए है। इस तरह का नैरेटिव (आख्यान) कई नेताओं द्वारा प्रभावी ढंग से प्रचारित किया जा रहा है, जो कि लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।  

आग में घी डालने का काम करते हुए तमिलनाडु की द्रमुक सरकार ने जस्टिस चंद्रू की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त कमेटी गठित की, जिसने राज्य के स्कूलों में दूरगामी सुधारों की सिफारिश की। मोदी के नेतृत्व वाले हिंदुत्व के विकास को रोकने के लिए युवाओं के मन में बदले की भावना के साथ द्रविड़ विचारधारा को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे तमिलनाडु में सामाजिक विभाजन चरम पर है। चंद्रू समिति ने सिफारिश की कि तमिलनाडु सरकार जातिगत भेदभाव खत्म करने के लिए स्कूलों में छात्रों को उनकी जातीय पहचान बताने वाले रंगीन कलाई बैंड या अंगूठी पहनने तथा माथे पर तिलक लगाने से रोके। कमेटी ने स्कूलों के नामों में से जातिसूचक शब्द हटाने की भी सिफारिश की है। इसमें कहा गया है कि माथे से तिलक हटाओ, कुंकुम चंदन नहीं। स्कूली छात्रों को अपने लंबे बालों को गुच्छे की तरह बांधना चाहिए।

न्यायमूर्ति चंद्रू की रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण सिफारिशें हैं। हालांकि इस बीच सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि समाज में बदलाव की जरूरत है। उदाहरण के लिए, स्कूलों के नाम से जाति उपसर्ग जैसे ‘कल्लर रिक्लेमेशन’ और ‘आदि द्रविड़ वेलफेयर’ को हटाने और उन्हें सरकारी स्कूल बताने की सिफारिश महत्वपूर्ण है। लेकिन केवल नाम बदलने से वास्तविकता नहीं बदल जाएगी। द्रमुक ने 2021 में काफी चुनावी वादा किया था, लेकिन सरकार के स्तर पर उन्हें लागू करने का कोई संकेत नहीं दिख रहा है। कांग्रेस पार्टी की कर्नाटक एवं तेलंगाना में सरकार है, इसके बावजूद भाजपा ने कांग्रेस को वहां बुरी तरह से पराजित किया। आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी ने 95 प्रतिशत सीटों के साथ विधानसभा में जीत हासिल की। भाजपा वहां तेदेपा और पवन कल्याण की जनकल्याण सेना के साथ गठबंधन में थी। तमिलनाडु में भाजपा ने अपना वोट शेयर बढ़ाया, लेकिन लोकसभा में एक भी सीट हासिल करने में विफल रही। जगन रेड्डी का कहना है कि तेदेपा आंध्र प्रदेश में उनके पार्टी कार्यालयों और निजी आवासों को ध्वस्त करके वाईएसआर कांग्रेस से राजनीतिक बदला ले रही है।

जाहिर है, भाजपा को उसकी ‘लुक साउथ पॉलिसी’ से फायदा मिला है। केरल में पहली बार भाजपा का एक सांसद चुना गया है। लाल दुर्ग में भगवा ने सेंध लगा दी है। संभवतः इसी कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 2024 के लोकसभा चुनाव में हिंदुत्व की हार की समीक्षा करने के लिए केरल के पलक्कड़ में बैठक बुला रहा है। अगर हम विश्लेषण करें, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह दक्षिण में लोकप्रिय चेहरे हैं। इसी तरह राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव को भी लोग अच्छी तरह जानते हैं। यही वजह है कि प्रियंका गांधी ने वायनाड लोकसभा को चुना। और इसमें कोई संदेह नहीं है कि अल्पसंख्यकों के वर्चस्व वाली आबादी के कारण प्रियंका गांधी वहां आसानी से जीत भी जाएंगी।

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने खुलेआम अपने राज्य के लिए अलग झंडा और राष्ट्र गान ‘जन गण मन’ को दरकिनार करके राज्य गान घोषित कर दिया है। दक्षिण में जो कुछ भी हो रहा है, वह गंभीर अध्ययन का विषय है। लेकिन सुधार का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। ऐसे में डर है कि कहीं अलगाववादी मानसिकता सिर न उठा ले। लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान दक्षिण भारतीय नेताओं के भाषणों का विश्लेषण करने पर ऐसा लगता है कि अलग दक्षिण आवाज के पीछे कुछ विदेशी शक्तियां हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों को इस उभार पर विचार करना चाहिए और इसका गंभीरता से अध्ययन करना चाहिए, अन्यथा राष्ट्र विरोधी ताकतें हावी हो जाएंगी। ऐसी स्थिति राष्ट्रवाद के लिए गंभीर खतरे की चेतावनी है। दक्षिण भारत के छह राज्यों की कहानी से यही सीख मिलती है। अब देखना होगा कि क्या मोदी सरकार इस तरह की मानसिकता को कुचलने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति रखती है!

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