मध्य प्रदेश BJP अध्यक्ष पद के लिए ‘पसंद’ पर फंसा पेंच, इन नामों की है चर्चा

भोपाल: भारतीय जनता पार्टी (BJP) में मध्यप्रदेश इकाई के नए अध्यक्ष के चयन को लेकर खींचतान मची हुई है. पार्टी के राज्य के नेता और राष्ट्रीय नेतृत्व अपनी-अपनी पसंद के व्यक्ति को अध्यक्ष की कमान सौंपना चाहते हैं, इसी के चलते नाम पर मुहर नहीं लग पा रही है. पार्टी राज्य के नेताओं में समन्वय बनाकर ऐसे नेता को कमान सौंपना चाहती है जो राष्ट्रीय नेतृत्व और राज्य के नेताओं को स्वीकार्य हो.

पार्टी सूत्रों का कहना है कि राज्य में भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व ऐसे नेता को कमान सौंपा चाह रही है, जो जनाधार वाला तो हो ही साथ में संगठन की भी बेहतर समझ हो और सभी को साथ लेकर चल सके, इतना ही नही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भी पसंद हो.

‘एक अनार सौ बीमार’
फिलहाल भाजपा में ‘एक अनार सौ बीमार’ जैसी स्थिति है. प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए वर्तमान अध्यक्ष राकेश सिंह के अलावा केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा, भूपेंद्र सिंह, विश्वास सारंग, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा, सांसद वी.डी. शर्मा और पूर्व विधायक हेमंत खंडेलवाल हैं.

तोमर और शिवराज का दखल
भाजपा राज्य की सत्ता में नहीं है, लिहाजा राज्य के सभी नेता संगठन पर अपना प्रभाव बनाए रखना चाहते हैं. राज्य के सबसे ताकतवर नेताओं में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शुमार हैं. ये दोनों नेता अपनी पसंद का नया अध्यक्ष चाहते हैं. यही कारण है कि पिछले दिनों चौहान की तोमर और वर्तमान अध्यक्ष राकेश सिंह से मुलाकात हुई और उसे नए अध्यक्ष के नाम से जोड़कर देखा जा रहा है.

नाम रास नहीं आ रहा है
पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के सूत्रों का कहना है कि हाईकमान नए और युवा चेहरे को कमान सौंपना चाहता है, मगर राज्य के दिग्गज नेताओं को वह नाम रास नहीं आ रहा है. इस स्थिति में दिग्गज नेता चाहते हैं कि वर्तमान अध्यक्ष राकेश सिंह को फिर जिम्मेदारी सौंपी जाए. दावेदारों के जातीय गणित को भी हाईकमान के सामने रखा गया है.

पार्टी के भीतर बढ़ती खींचतान
पार्टी के भीतर बढ़ती खींचतान के चलते नेतृत्व ने आगामी दो दिनों अर्थात 24 और 25 दिसंबर को समन्वय बनाने के मकसद से कुछ चुनिंदा नेताओं की जबलपुर में बैठक बुलाई है. इस बैठक में सर्वमान्य नेता के नाम पर विचार होना है.

सवाल तो खड़ा कर ही दिया
राजनीति के जानकारों की मानें तो झारखंड के नतीजों ने भाजपा के सामने एक सवाल तो खड़ा कर ही दिया है कि दूसरे राज्यों में संगठन को कैसे मजबूत रखा जाए, इसके लिए जरूरी है कि ऐसे व्यक्ति को नेतृत्व को कमान सौंपी जानी चाहिए जो पार्टी को आक्रामकता के साथ आगे बढ़ाने के लिए काम कर सके.

भाजपा को खड़ी रखना बड़ी चुनौती
राजनीतिक विश्लेषक शिवअनुराग पटेरिया का मानना है कि राज्य में भाजपा को खड़ी रखना बड़ी चुनौती है, क्योंकि राज्य में भाजपा सत्ता से बाहर है. नेता प्रतिपक्ष ब्राह्मण जाति से हैं, इसलिए इस जाति के व्यक्ति का अध्यक्ष बनना आसान नहीं है. वहीं, पार्टी के अंदर बड़े नेताओं में खींचतान है, ऐसे में भाजपा संगठन के लिए संगठनकर्ता, सभी को साथ लेकर चलने वाले नेता का चयन आसान नहीं होगा.

अबूझ पहेली बनी
राज्य में पार्टी के भीतर चलने वाली खींचतान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि संगठनात्मक 56 जिलाध्यक्षों में से सिर्फ 33 जिलाध्यक्षों के ही चुनाव हो पाए हैं. वहीं मंडल अध्यक्ष 900 ही चुने जा सके हैं. इस स्थिति में नया अध्यक्ष किसकी पसंद का होगा, यह अबूझ पहेली बनी हुई है.

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