दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर 156 मौतों की वजह?
दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर 156 मौतों की वजह?
180 की रफ्तार और गलत पैचवर्क बिगाड़ रहे वाहनों का बैलेंस, 15 किलोमीटर में 9 डेंजर पॉइंट
देश का सबसे बड़ा दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे राजस्थान में हादसों का हाईवे बना हुआ है। लगातार हो रही दुर्घटनाओं में अब तक 156 लोगों की मौत हो चुकी है। अकेले दौसा में ही 50 से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं।
सफर की सुगमता के लिए शुरू किया गया दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस वे काल का ग्रास बनता जा रहा है. आए दिन एक के बाद हुए सड़क हादसों में कई लोगों की जान जा चुकी है और कई लोग घायल हुए हैं.
एक्सप्रेस वे पर सड़क हादसों के कारण : एक्सप्रेस वे पर दुर्घटनाओं का बड़ा कारण वाहनों का ओवर स्पीड में चलना है. निर्माण कम्पनी की ओर से इस एक्सप्रेस वे को 120 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से वाहन चलाने के लिए तैयार किया गया है. वाहनों को इस निर्धारित स्पीड तक ही चलाने की अनुमति है, लेकिन एनएचएआई की ओर से पर्याप्त माॅनिटरिंग की व्यवस्था नहीं होने से यहां वाहन 200 किलोमीटर प्रति घंटा स्पीड तक दौड़ रहे हैं. साथ ही वाहन चलाते समय चालक को नींद की झपकी भी हादसे का कारण रही है.
सीसीटीवी कैमरे भी नहीं रोक पा रहे हादसे : एक्सप्रेस वे पर करीब हर 100 मीटर की दूरी पर हाई टेक्नोलॉजी के थर्मल कैमरे लगाए गए हैं. इनका कार्य वाहनों की ओवर स्पीड को डिटेक्ट कर यातायात पुलिस और एनएचएआई अधिकारियों को सूचना देना होता है. इस हाई टेक्नोलॉजी के कैमरों के बाद भी वाहनों की ओवर स्पीड पर नियंत्रण नहीं लग पा रहा है, जिससे सड़क हादसे बढ़ रहे हैं. एक्सप्रेस वे पर वाहनों को घूमने के लिए कई जगह कट बनाए गए हैं, लेकिन इनमें ज्यादातर कट एल शेप में बने हैं. इन पर वाहनों के घूमते समय पीछे से तेज गति से आने वाले वाहन टकरा जाते हैं, जिससे भी हादसे बढ़े हैं.
जेब्रा क्रॉसिंग की तरह एक्सप्रेस वे लाइन बनाई : एनएचएआई के पीडी (प्रोजेक्ट डायरेक्टर) मुकेश कुमार मीणा का कहना है कि एक्सप्रेस वे पर बढ़ती दुर्घटना पर रोक के लिए प्रत्येक 5 किलोमीटर की दूरी पर जेब्रा क्रॉसिंग की तरह एक्सप्रेस वे पर लाइन बनाई गई है. अब 2 से 2.5 किलोमीटर पर इस तरह की लाइन बनाई जाएंगी, जिससे गुजरने पर गाड़ी हिलेगी. ऐसे में यदि ड्राइवर को झपकी भी आ रही है तो उनकी नींद टूट जाए. साथ ही एक्सप्रेस वे पर प्लांटेशन की जगह पर अलग तरह के बोर्ड लगाने की योजना बन रही है. अगर कोई गाड़ी एक्सप्रेस वे से नीचे उतरती है तो उसकी रफ्तार धीरे हो सके. इसके अलावा एनएचएआई की सुरक्षा टीम हादसे रोकने व हादसे के कारणों का पता लगाने में जुटी है.
बार-बार टूट रही बाउंड्री वॉल : उनका कहना है कि स्थानीय रहागीरों की ओर से बाउंड्री वॉल को बार-बार तोड़ दिया जाता है. इसी के चलते आवारा पशु एक्सप्रेस वे पर पहुंच जाते हैं. टूटी हुई बाउंड्री वॉल की कई बार रिपेयरिंग भी की जा चुकी है. अब ऐसे लोगों को नोटिस दिए जा रहे हैं. साथ ही पुलिस से भी पेट्रोलिंग व्यवस्था सुचारू करने के लिए कहा जा रहा है. आने वाले समय में ऐसी दुर्घटनाओं में कमी लाने का पूरा प्रयास किया जा रहा है.
एक्सप्रेस-वे पर कुछ ऐसे पॉइंट्स हैं, जहां बार-बार एक्सीडेंट हो रहे हैं। मई और जून के महीने में सबसे ज्यादा 15 एक्सीडेंट यहीं हुए, जिनमें 23 की मौत हुई, जबकि 55 लोग घायल हुए।
खौफनाक हादसों वाले ये पॉइंट्स कौनसे हैं? आखिर यहीं सबसे ज्यादा एक्सीडेंट क्यों हो रहे हैं? क्या एक्सप्रेस-वे में इंजीनियरिंग खामियां हैं? ऐसे ही सवालों का जवाब तलाशने हम एक्सपर्ट इंजीनियर-रिसर्चर की टीम को साथ लेकर हादसे वाले पॉइंट्स पर ग्राउंड रिपोर्ट के लिए पहुंचे। 7 कारण सामने आए।
15 किलोमीटर के सर्किल में कुछ दूरी में हुए हादसे
भास्कर रिपोर्टर ने मई और जून महीने में हुए 15 बड़े एक्सीडेंट की डिटेल निकाली। इस डिटेल के आधार पर राजस्थान के सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट में से एक मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MNIT), जयपुर के एक्सपट्र्स, शोधार्थी और सीनियर प्रोफेसर की मदद से स्टडी की।
एक्सपट्र्स ने राजस्थान के 7 जिलों से गुजर रहे 373 किलोमीटर लंबे 8 लेन एक्सप्रेस-वे का पूरा नक्शा खंगाला। सबसे ज्यादा हादसे वाली जगहों को नक्शे में ही चिह्नित किया। रिसर्च में सामने आया कि भांडारेज से एंट्री करने के बाद सबसे ज्यादा एक्सीडेंट बांदीकुई इलाके के 15 किलोमीटर रेंज में ही हुए हैं।
रूट मैप तैयार होने के बाद हम एक्सपट्र्स को साथ लेकर दौसा से एक्सप्रेस-वे पर दाखिल हुए और सबसे ज्यादा हादसे वाले सभी पॉइंट्स का मौका मुआयना किया। हादसों की 7 वजहें सामने आईं…
1. जहां-जहां घुमाव, एक्सीडेंट उन्हीं के आस-पास
हम सबसे पहले दौसा के भांडारेज पर बने एंट्री पॉइंट से एक्सप्रेस-वे पर दाखिल हुए। हमने करीब 20 किलोमीटर लंबा सफर तय किया। हादसे वाले पॉइंट्स का मिलान करने के बाद MNIT के रिसर्चर अंकित गुप्ता ने बताया कि नेशनल हाईवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) ने जामरोली से लेकर सोमाड़ा गांव के बीच 15 किलोमीटर एरिया में ही 3 जगह घुमाव बना रखे हैं। करीब 90 फीसदी एक्सीडेंट घुमाव वाली जगह पर हो रहे हैं।
ये घुमाव 120 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार के पैरामीटर पर बिल्कुल सही बने हैं। लेकिन, गाड़ियां तेज रफ्तार में आती हैं और जैसे ही घुमाव को क्रॉस करने लगती हैं, बैलेंस बिगड़ने पर आगे और पीछे के वाहनों से टकरा जाती हैं।
दरअसल, एक्सप्रेस-वे को गांवों के बाहर से निकालने के लिए हाईवे अथॉरिटी ने ये घुमाव बनाए हैं। कुछ जगहों पर अरावली की पहाड़ियां भी बीच में आ रही थीं। एक्सपट्र्स का कहना है कि ऐसे घुमाव पर स्पीड लिमिट 100 या इससे भी कम करने की जरूरत है।
MNIT में सिविल डिपार्टमेंट के सीनियर प्रोफेसर महेश स्वामी ने बताया कि जहां घुमाव हैं, वहां NHAI को स्पीड कंट्रोल के साइन बोर्ड लगाने चाहिए। साथ ही चालकों को भी ऐसे घुमाव पर स्पीड बैलेंस करनी चाहिए, ताकि हादसा नहीं हो।
2. कई पॉइंट्स पर सड़क खराब, गलत पैचवर्क भी जानलेवा
भांडारेज से करीब 15 किलोमीटर आगे रेस्ट एरिया को क्रॉस करने के बाद एक अंडरपास बना हुआ है। यहां हमने देखा कि सड़क के बीच दूसरी लेन में एक लंबा पेच वर्क बना हुआ था। एक्सपर्ट अंकित गुप्ता ने गाड़ी को रुकवाया।
हम उतर कर पैचवर्क वाली जगह के करीब पहुंचे और उसके ऊपर से गुजरने वाले वाहनों को देखा। नोटिस में आया कि ज्यादातर वाहनों का बैलेंस बिगड़ रहा था। पैचवर्क के कारण वाहन अपनी लेन बदल रहे थे।
अंकित गुप्ता ने बताया- यहां पैचवर्क गलत है। NHAI के नियमों के हिसाब से एक ही लेन में इतना लंबा पैचवर्क स्क्वायर शेप में नहीं कर सकते। मान लीजिए चार लेन हैं और उसमें से एक लेन में कोई छोटा-सा भी गड्ढा हो जाए तो उतने एरिया में हटाने के बाद क्रॉस मैथड (पैरलेलग्रैम) से पैचवर्क करते हैं। यानी समानांतर चतुर्भुज बनाया जाता है।
पैचवर्क को पूरी तरह से पुरानी सड़क के लेवल तक मिलाया जाता है। वो सड़क पर बिल्कुल भी उभरा हुआ नहीं होना चाहिए, ताकि रफ्तार में आने वाली गाड़ियों का बैलेंस नहीं बिगड़े।
3. एक्सप्रेस-वे पर जहां भी अंडरपास, वहां बिगड़ रहा वाहनों का बैलेंस
एक्सप्रेस-वे पर कई जगह एनीमल पास या फिर अंडरपास बनाए गए हैं। कई अंडरपास घुमाव वाली जगहों पर भी हैं। इन्हें बनाने में पूरे पैरामीटर का ध्यान रखा गया है। लेकिन, जब कोई वाहन 120 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड को क्रॉस करते हुए इन अंडरपास के ऊपर से गुजरता है तो बैलेंस बिगड़ जाता है।
अंकित गुप्ता ने बताया कि अंडरपास पर चढ़ते समय कोई दिक्कत नहीं आती, लेकिन ढलान पर लोग स्पीड कम नहीं करते। इससे गाड़ी के सस्पेंशन और टायरों पर अचानक से प्रेशर पड़ता है। इससे गाड़ी एकदम थोड़ा-सा नीचे दब जाती है।
4. ओवर स्पीड बन रही मौत की वजह, 180 KMPH से भी क्रॉस कर रहे लोग
एक्सप्रेस-वे पर एक्सीडेंट की सबसे बड़ी वजह है वाहनों का स्पीड लिमिट क्रॉस करना। हमने एक्सप्रेस-वे की दोनों लेन पर खड़े होकर देखा। कई वाहनों की स्पीड 120 किलोमीटर प्रतिघंटा से भी कहीं अधिक थी। तेज स्पीड में ही कई गाड़ियों को ओवरटेक करते हुए भी देखा।
भांडारेज पॉइंट पर बने कंट्रोल रूम के पास पेट्रोलिंग कर रहे ऑफिसर नीरज चौहान ने बताया कि ओवर स्पीड ही एक्सीडेंट की सबसे बड़ी वजह है। पेट्रोलिंग वाहनों के जरिए हम लगातार ओवर स्पीड वाहनों को मॉनिटर कर उनके खिलाफ चालान भी कर रहे हैं। कई चालान तो ऐसे हैं जिनकी स्पीड 180 किलोमीटर प्रति घंटा की पाई गई। 90 फीसदी से ज्यादा चालान में वाहनों की स्पीड 150 किलोमीटर प्रति घंटा पाई गई है।
कंट्रोल रूम में स्पीड चेक करने के लिए कैमरे लगे हुए हैं। 120 किलोमीटर की सीमा पार करने वालों को स्पीड मीटर की फोटो के साथ चालान भेजा जाता है। किसी तरह का एक्सीडेंट होने पर 1033 की गाड़ियां और एंबुलेंस 10 से 15 मिनट में ही तुरंत मौके पर पहुंच जाती है। लेकिन, फिर भी बहुत लोग स्पीड लिमिट का पालन नहीं करते।
5. अचानक लेन बदल रही गाड़ियां, स्टीयरिंग से हाथ उठाया तो मौत!
एक्सप्रेस-वे पर हुए कुछ हादसों के सीसीटीवी फुटेज खंगालने पर सामने आया कि तेज गति से आ रही गाड़ियां अचानक से लेन बदल लेती हैं और फिर पलटते हुए हादसे का शिकार हो जाती हैं। आखिर ऐसा क्यों है?
एक्सप्रेस-वे पर 50 से ज्यादा बार दिल्ली का सफर कर चुके सुरजीत सिंह ने हमें एक्सपेरिमेंट करके दिखाया। उन्होंने हमारी कार को 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ाया। जरा सा स्टीयरिंग से हाथ हटाने पर हमारी कार अचानक ही तीसरी लेन से पहली लेन की तरफ मुड़ रही थी। सुरजीत सिंह ने बताया कि ऐसा उनके साथ कई बार हो चुका है।
एक्सपर्ट अंकित गुप्ता ने कारण जानने के लिए कार रुकवाई और कुछ देर मुआयना किया। फिर बताया कि देश के ज्यादातर हाईवे पर बरसात के पानी को निकालने के लिए लेफ्ट साइड में ढलान (स्लोप) दिया जाता है। लेकिन, दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर कुछ जगहों पर ढलान राइट हैंड (अंदर की तरफ) साइड दी गई है। यह केवल उन जगहों पर एक्सप्रेस-वे के बीच ग्रीन बेल्ट है।
इसका मकसद है बारिश का पानी सड़क पर नहीं भरे और ग्रीन बेल्ट में लगे पौधों को मिल जाए। ये ढलान बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन तेज गति से आ रहे वाहनों के लिए तब खतरनाक हो जाती है, जब कोई रिलेक्स होकर या स्टीयरिंग से हाथ हटा लेता है। गाड़ी तीसरी या चौथी लेन से अंदर की तरफ घुस जाती है और हादसे हो जाते हैं।
6. मई-जून में सबसे ज्यादा हादसे और मौतें, 50 डिग्री! का पारा बड़ा कारण
स्टडी में सामने आया कि सबसे ज्यादा हादसे मई और जून के महीने में हुए हैं। अधिकांश हादसों की वजह एक्सप्रेस-वे पर टायरों का ब्रस्ट होना यानी फटना है।
एक्सपर्ट अंकित गुप्ता ने बताया कि एक तो एक्सप्रेस-वे 300 किलोमीटर से ज्यादा लंबा है। जब गाड़ी बिना रुके इतने लंबे डामर रूट पर चलती हैं तो टायर गर्मी से काफी गर्म हो जाते हैं। टायर अगर घिसे हुए हैं तो वे लगातार चलने पर फट जाते हैं। मई-जून के महीने में इस बार कई शहरों में तापमान 48 डिग्री से ऊपर चला गया था। अधिक तापमान से सड़क भी काफी तपने लग जाती हैं।
पहले NHAI का दावा था कि एंट्री पॉइंट्स पर टायरों की कंडीशन का चेकअप किया जाएगा। अगर टायर ज्यादा कमजोर हुए तो ऐसे वाहनों को एक्सप्रेस-वे पर जाने की इजाजत नहीं दी जाएगी।
7. एंट्री पॉइंट्स पर टायरों में नाइट्रोजन का चेकअप नहीं
हम दौसा के भांडारेज में NHAI एक्सप्रेस-वे के एंट्री पॉइंट पर पहुंचे। एक्सप्रेस-वे पर चढ़ने से पहले एंट्री पाइंट पर टोल प्लाजा बना हुआ है।
एक्सपर्ट अंकित गुप्ता ने बताया- NHAI ने पहले दावा किया था कि एक्सप्रेस-वे पर चलने वाली गाड़ियों के टायरों में नाइट्रोजन हवा का चेकअप करेंगे। टायरों में नाइट्रोजन हवा होना अनिवार्य किया जाएगा।
जिन वाहनों के टायरों में नाइट्रोजन हवा नहीं होगी, उनकी एंट्री नहीं होगी। क्योंकि नाइट्रोजन गैस टायर को ठंडा रखती है। सामान्य गैस टायरों को गर्म कर देती है, जिससे टायर फट जाते हैं। लेकिन, अभी ऐसी कोई बाध्यता नहीं लगाई गई है।
एक्सप्रेस-वे पर पैदल चलते हुए वाहन से टकराए तो क्लेम भी नहीं
एक्सप्रेस-वे को पूरी तरह से पैदल आवागमन से फ्री रखा गया है। किसी तरह की क्रॉसिंग लाइन और रेड लाइट नहीं है। अगर एक्सप्रेस-वे को पार करते समय किसी व्यक्ति को स्पीड में आ रहा वाहन टक्कर मार देता है तो मौत पर भी इंश्योरेंस कंपनी से क्लेम नहीं मिल सकता है।
अंकित गुप्ता ने बताया कि एक्सप्रेस-वे को पूरी तरह से सेफ तरीके से बनाया गया है। यह देश के बेहतरीन हाईवे में से एक है। लेकिन, चालकों को अपने वाहनों की मेंटेनेंस और एक्सप्रेस-वे पर आते समय स्पीड पर कंट्रोल रखना चाहिए।
दौसा में NHAI के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डीके चौधरी से सवाल-जवाब
1. एक्सप्रेस-वे पर जहां कर्व हैं, वहां एक्सीडेंट सबसे ज्यादा हुए हैं?
जवाब : एक्सप्रेस-वे का कंस्ट्रक्शन IRCSP-99 के मानकों के अनुसार हुआ है। ऐसे में कर्व को एक्सीडेंट का कारण नहीं मान सकते। पिछले दिनों में हुए अधिकांश एक्सीडेंट में वाहन ड्राइवर को नींद आना सबसे बड़ा कारण था।
2. कई जगह अंडरपास के आगे-पीछे सड़क का लेवल डाउन होने से भी हादसे हुए हैं?
जवाब : निर्माण के दौरान कई जगह गांवों के लोगों ने उनके आवागमन की सहूलियत के लिए लेवल नहीं बढ़ाने दिया। ऐसी जगहों पर लेवल डाउन है, लेकिन उससे हादसे नहीं हो सकते।
3. एक्सप्रेस-वे पर आवारा जानवर भी हादसे का कारण हैं, जबकि सुरक्षित सफर का दावा किया गया था?
जवाब : पिछले दिनों एक एक्सीडेंट आवारा पशु की वजह से हुआ था। इसकी जांच करने पर सामने आया कि आसपास के लोग आवागमन के लिए सुरक्षा दीवार को खोल देते हैं। इससे आवारा पशु चढ़ जाते है, इन्हें रोकने के निर्देश दिए हैं।
4. वाहनों की ओवर स्पीड पर क्या कार्रवाई की जाती है?
जवाब : कमर्शियल वाहनों की स्पीड 80 किलोमीटर प्रति घंटा और फोर व्हीलर की 120KMPH तय की हुई है। इससे तेज स्पीड चलने वाले वाहनों की सीसीटीवी कैमरे से मॉनिटरिंग कर NIC के जरिए चालान की व्यवस्था की गई है। उनसे अनुबंध हो गया है, अब जल्द ही चालान शुरू किया जाएगा।
1355 किलोमीटर लंबा होगा दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे
दिल्ली से मुंबई तक 1355 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेस-वे बनाया जा रहा है। एक्सप्रेस-वे को बनाने के लिए पांच राज्यों में 1500 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया गया था। एक्सप्रेस-वे की गुजरात में लंबाई 426 किलोमीटर, राजस्थान में लंबाई 373 किलोमीटर, मध्यप्रदेश में 244 किलोमीटर, महाराष्ट्र में 171 लंबाई, हरियाणा में 129 किलोमीटर की लंबाई रहेगी। एक्सप्रेस-वे राजस्थान के 7 जिलों से होकर निकल रहा है, जिनमें अलवर, दौसा, भरतपुर, कोटा, बूंदी, सवाईमाधाेपुर और टोंक हैं।