राष्ट्रवाद के लिए होना होगा एक !
वामपंथ के इतर भी जेएनयू चल सकता है बेहतरीन तरीके से…हिंदू स्टडीज भारतीय ज्ञान परंपरा का हिस्सा
जेएनयू में बदलाव की बयार
विकसित भारत के लिए ये तीन नये संस्थान चाहिए थे. नयी शिक्षा नीति के आधार पर ही इनका आयोजन किया गया है. आधुनिक शिक्षा को आज प्राचीन शिक्षा से जोड़कर आगे बढ़ने की जरूरत है. 1998 में संस्कृत विभाग जेएनयू में शुरू हुआ था. इसके जरिये हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के लिए बड़ी भूमिका ये तीन सेंटर निभाएंगे. बौद्ध धर्म में पुराने समय के नागार्जुन और धर्मकीर्ति के विचार को आज के समय से जोड़कर देखने का प्रयास किया जा रहा है. भारतीय ज्ञान और प्राचीन व्यवस्था बहुत ही समृद्ध है, इसलिए उसे हटाने की नहीं, समेटने की जरूरत है. हम उसी को ध्यान में रखकर चल रहे हैं. सनातन को और उसके अंगों-उपांगों को आज के संदर्भ में समझने की आवश्यकता है, जिसे ये केंद्र पूरा करेंगे.
जहां तक बात जेएनयू की हवा बदलने की है, तो हां यह बदलाव की बयार चल रही है क्योंकि जेएनयू एक मुख्य और न्याय संस्थान (एपिस्टेमिक सेंटर) है. जब न्याय संस्थान होता है तो फिर उसके विचार को न्याय से जोड़ने के लिए काम किया जाता है. इसके बाद प्रोफेसर, प्रधानाध्यापक और अन्य के साथ छात्र इस पर चर्चा करेंगे और यहां पर बहस करना सबको पसंद है. पिछली बार की बहस से ये बात सामने आई कि जो जेएनयू की ओर से निर्णय लिया गया वो दुनिया और भारत के लिए ठीक है. जेएनयू के न्याय समुदाय, जिसे हम अंग्रेजी में epistemic community कहते हैं, ने नए तीन संस्थाओं को खोलने की बात को भी मान लिया है. अक्सर बदलते विचार को मानना भी चाहिए.
राष्ट्रवाद के लिए एकता जरूरी
स्पेशल सेंटर फॉर नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज की संस्थान पांच साल पहले ही हुई है. उसके तहत नये- नये प्राध्यापक आए हैं. उस में इंटरनल सिक्योरिटी और भारत की बाहरी सुरक्षा को लेकर ज्यादा जोर देने की जरूरत है. इसके लिए निर्देश दे दिया गया है. उनकी थोड़ी दिशा को बदलने की जरूरत है और यही राय मैंने दी भी है. ये सेंटर सिर्फ बाहरी सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि अंदर की सुरक्षा को लेकर भी है. आज आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस और सोशल मीडिया का युग है. इसके अंतर्गत बाहर और अंदर दोनों में फर्क काफी कम हो गया है. भारत की सुरक्षा और पॉलिसी को लेकर संशोधित कर के किस प्रकार से मदद की जा सकती है, इसके लिए भी काम किया जाता है. वहां पर सिर्फ रिसर्च स्टूडेंट हैं. अभी तक वहां पर मास्टर के लिए पढ़ाई शुरू नहीं हो पाई है, लेकिन वहां पर मास्टर की पढ़ाई जल्द ही शुरू की जा सकेगी.
संघ की पृष्ठभूमि और पहचान
किसी भी शैक्षणिक परिसर में सभी विचारधारा की जगह होनी चाहिए. जेएनयू में जब मैं आयी, तो पहले दिन ही ये कहा था कि किसी एक विचार धारा का वर्चस्व नहीं रहेगा. सच्चाई से मुझे बताना तो पड़ेगा ही न कि संघ की सेविका समिति से मैं जुड़ी रही हूं. जब मैं छोटी थी, तब से वहां से जुड़ कर काम करती रही हूं और जो भी संस्कार लिए हैं, वो वहीं से मिले हैं. आज जेएनयू को इस लिए ढ़ंग से चला पा रही हूं, क्योंकि समावेशी संस्कृति, विविधता में एकता और भारत की राष्ट्रवादी विचारधारा के बारे में उन्होंने (यानी संघ ने) बहुत कुछ सिखाया, भारत को एक जुट रखने के लिए काफी कुछ सिखाया गया है. लोगों की विचारधारा अलग हो सकती है, इसमें कोई परेशानी नहीं है, लेकिन सबसे पहले उसका राष्ट्र होना चाहिए. आज जेएनयू में विविधता में भी एकता है. विचारधारा भले ही अलग हो लेकिन राष्ट्रवाद के नाम पर सभी एक होकर जुड़े रहते हैं.
हिंसा नहीं होगी बर्दाश्त
अब मेरे कार्यकाल के दो साल हो चुके हैं. इन दो सालों के कार्यकाल में छात्रों ने मुझे और मैंने उनको समझा है. यहां कोई बड़ी लड़ाई नहीं है जिसके लिए पुलिस को अंदर बुलाना पड़े. मैं यह समझती हूं कि बच्चे यहां पढ़ने आये हैं, मां सरस्वती का आशीष लेने आए हैं. यही मुख्य काम है. तो, विचारधारा आपकी कोई भी हो, विचार आप अलग रख सकते हैं, लेकिन कोई भी हिंसा करे, यह ठीक नहीं है. हिंसक पद्धति में राजनीतिक विचार नहीं रखे जा सकते हैं. बहस, विवाद और विचार-विमर्श हम कर सकते हैं, लेकिन वह सब कुछ अहिंसक तरीके से करना होगा. जो जेएनयू की परंपरा अब तक रही है, उसी को वापस लाने की हमारी कोशिश है. बहुत से बच्चों ने इस कार्य में सहयोग भी किया है. छात्र-छात्राओं के अलग विचार हो सकते हैं इससे इंकार नहीं किया जा सकता है. इसमें भी विविधता में एकता रखने की कोशिश किया जाना चाहिए.
कुछ अड़चनें, पर जेएनयू प्रगति-पथ पर
कुछ समस्याएं तो हैं कुछ स्कूल में. एक स्कूल ऑफ मैनेजमेंट है. उसमें कुछ समस्या है, जिस वजह से नामांकन नहीं हो पाया, इसके साथ ही कुछ स्कूलों में कुछ दिक्कतें है जिसको सुलझाने का प्रयास किया जा रहा है. वह हम लोग जल्द सुलझा भी लेंगे. मेरा टर्म जब से शुरू हुआ है, तब से राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय कोई भी स्तर हो, जेएनयू की रैंकिंग में सुधार लाने का काम जारी है. इस कार्य की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तारीफ कर चुके हैं. यूएस की ओर से जारी रैंकिंग में आईआईएम अहमदाबाद और आईआईटी को पीछे छोड़कर विश्व में 20वें स्थान पर जेएनयू आया है. हमारा विजन यही है कि जो जवाहरलाल नेहरू विश्ववद्यालय है, उसमें हम जो दूसरी विचारधारा से आते हैं, वह भी वामपंथी विचार धारा से हटाकर जेएनयू को और बेहतर ढंग से भी चला सकते हैं.
यह भारतीय न्याय परंपरा है. आधुनिक काल में जेएनयू को और आगे ले जाने के लिए हम काम करें, यही इच्छा है. इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारने का काम किया जा रहा है. जेएनयू की रैंकिंग में और सुधार करने की कोशिश की जा रही है. जेएनयू आधुनिक शिक्षा के साथ प्रगति करने की रास्ते पर है. कम शुल्क में बेहतर शिक्षा जेएनयू देती है, केंद्रीय सरकार की बजट पर जेएनयू चल रही है. नये कोर्स के साथ नयी विचारधारा भी सामने आना चाहिए इसके लिए तीन नये सेंटर खोले जा रहे हैं. दूसरे विश्वविद्यालयों से अलग शिक्षा यहां पर दी जाएगी.