भारत की बढ़ती अमीरी में गरीबों को कितना फायदा हो रहा है?

भारत की बढ़ती अमीरी में गरीबों को कितना फायदा हो रहा है?
GDP ग्रोथ से ही पता चलता है कि देश की अर्थव्यवस्था ने सालभर में कितना अच्छा प्रदर्शन किया है. अगर किसी साल जीडीपी डेटा में सुस्ती दिखी तो समझ जाइये की उस वित्तीय वर्ष भारत की अर्थव्यवस्था सुस्त रही है

22 जुलाई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 पेश कर दिया है. इस सर्वेक्षण की मानें तो तमाम चुनौतियों के बावजूद भारत की सकल घरेलू उत्पाद दर यानी GDP दर 8.2 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ी है. 

इतना ही नहीं इस सर्वेक्षण में साल 2025 में भी जीडीपी के तेजी से ग्रोथ का अनुमान लगाया गया है. आर्थिक सर्वेक्षण की मानें तो वित्त वर्ष 2024-25 में भारत के जीडीपी में 6.5-7 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है. सर्वे में देश की मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत कम होने का अनुमान लगाया गया है. 

ऐसे में एक सवाल ये उठता है कि भारत की जीडीपी ग्रोथ या आसान भाषा में कहें तो बढ़ती अमीरी में देश के गरीबों का कितना फायदा हो रहा है? 

किसी देश की GDP की रफ्तार बढ़ने का क्या मतलब है 

देश में एक साल में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं के कुल वैल्यू को ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) कहते हैं. रिसर्च और रेटिंग फर्म केयर रेटिंग्स के अर्थशास्त्री सुशांत हेगड़े का कहते हैं कि जीडीपी ठीक वैसी ही होती है, जैसे ‘किसी छात्र की मार्कशीट’ होती है.

अर्थशास्त्री सुशांत हेगड़े कहते हैं कि जिस तरह किसी छात्र के सालभर का प्रदर्शन देखने के लिए मार्कशीट की जरूरत पड़ती है. ठीक उसी तरह जीडीपी भारत के आर्थिक गतिविधियों के स्तर को दिखाता है. जीडीपी रिपोर्ट से हमें पता चलता है कि भारत के किस सेक्टर के कारण देश की अर्थव्यवस्था में तेजी या गिरावट आई है.

जीडीपी ग्रोथ से ही पता चलता है कि देश की अर्थव्यवस्था ने सालभर में कितना अच्छा प्रदर्शन किया है. अगर किसी साल जीडीपी डेटा में सुस्ती दिखी तो समझ जाइये की उस वित्तीय वर्ष भारत की अर्थव्यवस्था सुस्त रही है और भारत ने इससे पिछले साल के मुक़ाबले पर्याप्त सामान का उत्पादन नहीं किया और सेवा क्षेत्र में भी गिरावट रही.

साल में चार बार किया जाता है जीडीपी का आकलन 

भारत में जीडीपी का आकलन साल में चार बार किया जाता है और ये आकलन करते हैं सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफ़िस (सीएसओ). यानी इस देश में हर तिमाही में जीडीपी का आकलन किया जाता है. हर साल यह सालाना जीडीपी ग्रोथ के आंकड़े जारी करता है.

भारत की बढ़ती अमीरी में गरीबों को कितना फायदा हो रहा है?

कैसे किया जाता है जीडीपी का आकलन 

भारत में जीडीपी का आकलन कंजम्पशन एक्सपेंडिचर, गवर्नमेंट एक्सपेंडिचर, इन्वेस्टमेंट एक्सपेंडिचर, नेट एक्सपोर्ट्स, इस चार घटकों के जरिए किया जाता है. इतना ही नहीं जीडीपी का आकलन नॉमिनल और रियल टर्म में होता है.

नॉमिनल जीडीपी– जब एक साल में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों की गणना मार्केट प्राइस या करंट प्राइस की जाती है तो और इससे जो GDP की वैल्यू प्राप्त होती है उसे नॉमिनल जीडीपी कहा जाता है. नॉमिनल GDP में भारत की जीडीपी ज्यादा होती है क्योंकि इसमें महंगाई की वैल्यू जुड़ी होती है.  

रियल जीडीपी- जब एक साल में उत्पादित सामानों और सेवाओं के मूल्य की गणना आधार वर्ष के मूल्य या स्थिर प्राइस पर की जाती है. और इसके बाद जो GDP की वैल्यू प्राप्त होती है उसे रियल जीडीपी कहते हैं. 

आसान भाषा में समझें तो जीडीपी के डेटा को आठ सेक्टरों से इकट्ठा किया जाता है. इन सेक्टरों में कृषि, मैन्युफैक्चरिंग, इलेक्ट्रिसिटी, गैस सप्लाई, माइनिंग, क्वैरीइंग, वानिकी और मत्स्य, होटल, कंस्ट्रक्शन, ट्रेड और कम्युनिकेशन, फाइनेंसिंग, रियल एस्टेट और इंश्योरेंस, बिजनेस सर्विसेज और कम्युनिटी, सोशल और सार्वजनिक सेक्टर शामिल हैं.

जीडीपी के ग्रोथ का क्या मतलब है 

भारत में GDP ग्रोथ का मतलब है कि इस देश की आर्थिक गतिविधियां और उत्पादन की मात्रा बढ़ रही है. GDP ग्रोथ एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक है जो यह दर्शाता है कि एक तिमाही या एक वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था में कितना विकास हो रहा है. 

आर्थिक विकास: जीडीपी ग्रोथ आर्थिक विकास का संकेतक है. अगर भारत में जीडीपी की वृद्धि हो रही है, तो इसका मतलब है कि भारत की अर्थव्यवस्था का कुल उत्पादन और सेवाओं का मूल्य बढ़ रहा है. 

रोजगार का अवसर:  GDP में वृद्धि से रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं. जब उत्पादन बढ़ता है, तो अधिक श्रमिकों की जरूरत पड़ती है, जिससे बेरोजगारी दर घटती है.

आय और जीवन स्तर में सुधार: जीडीपी के ग्रोथ से लोगों की आय में बढ़त होती है, जिससे लोगों की खरीदने की शक्ति बढ़ती है और जीवन स्तर में सुधार होता है.

सरकारी राजस्व में वृद्धि: ज्यादा आर्थिक गतिविधियों और आय के कारण सरकार को ज्यादा कर राजस्व प्राप्त होता है, जिससे विकास परियोजनाओं और सामाजिक कल्याण योजनाओं में निवेश बढ़ सकता है.

व्यापार और निवेश में वृद्धि: GDP ग्रोथ के साथ ही देश में व्यापार और निवेश के अवसर बढ़ते हैं. विदेशी निवेशक भी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में निवेश करने के इच्छुक होते हैं.

बुनियादी ढांचे का विकास: GDP ग्रोथ से सड़कों, बिजली, पानी, परिवहन आदि के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए निवेश में वृद्धि होती है, जो आगे चलकर आर्थिक विकास को और बढ़ावा देता है.

निवेशक विश्वास: एक स्थिर और बढ़ती हुई GDP निवेशकों का विश्वास बढ़ाती है, जिससे देश में अधिक घरेलू और विदेशी निवेश आकर्षित होते हैं. इतना ही नहीं देश के आर्थिक विकास से उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ता है, जिससे उनकी खर्च करने की क्षमता और इच्छा दोनों ही बढ़ती है.

वित्तीय स्थिरता: जीडीपी ग्रोथ आर्थिक स्थिरता का संकेत देती है, जिससे देश की वित्तीय प्रणाली मजबूत होती है और अर्थव्यवस्था बाहरी झटकों से अधिक प्रभावी ढंग से निपट सकती है.

भारत की बढ़ती अमीरी में गरीबों को कितना फायदा हो रहा है?

अब समझिये भारत की बढ़ती अमीरी में गरीबों को कितना फायदा हो रहा है?

अर्थशास्त्री सुशांत हेगड़े ने एबीपी से बात करते हुए कहा कि जब किसी भी देश की अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन करती है, तो कारोबारी और ज्यादा पैसा निवेश करते हैं और उत्पादन को बढ़ाते हैं क्योंकि भविष्य को लेकर वे आशावादी होते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि भारत का जीडीपी ग्रोथ आम जनता के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न सिर्फ सरकार बल्कि आम लोगों के लिए भी फैसले करने का एक अहम फैक्टर साबित होता है. भारत के अमीर होने से यहां के आम लोगों को काफी अलग अलग तरीकों से फायदा हो रहा है. इससे देश में रोजगार के अवसर बढ़ते हैं. जिससे आम लोगों के आय और जीवन स्तर में सुधार आता है. 

1. रोजगार के अवसर: आर्थिक समृद्धि के कारण देश में विभिन्न उद्योगों, व्यवसायों, और परियोजनाओं में निवेश बढ़ रहा है, जिससे नए रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं. इसके अलावा सेवा क्षेत्र, जैसे- बैंकिंग, आईटी, स्वास्थ्य, शिक्षा, और पर्यटन जैसे सेवा क्षेत्रों का विस्तार हो रहा है, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं.

2. आय और जीवन स्तर में सुधार: कंपनियों और व्यवसायों की आय बढ़ने से कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि हो रही है. इतना ही नहीं लोगों की आय बढ़ने से वे बेहतर जीवन यापन के साधनों का उपयोग कर सकते हैं, जैसे बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, और उपभोक्ता वस्तुएं.

3. सरकारी राजस्व में वृद्धि और सामाजिक कल्याण: उच्च आर्थिक वृद्धि के कारण केंद्र सरकार को कर राजस्व ज्यादा प्राप्त होता है, जिससे वह कई  सामाजिक कल्याण योजनाओं, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, और गरीबी उन्मूलन में निवेश करते हैं.

4. बुनियादी ढांचे का विकास: जीडीपी में ग्रोथ का मतलब है कि उस देश की सड़कों, रेलवे, हवाई अड्डों, और बंदरगाहों का विकास हो रहा है, जिससे परिवहन की सुविधाएं बढ़ रही हैं और लोग आसानी से आवाजाही कर सकते हैं. इतना ही नहीं स्मार्ट सिटी, ग्रामीण विद्युतीकरण, और जल आपूर्ति जैसी परियोजनाओं में निवेश बढ़े हैं, जिससे आम लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हुआ है. 

5. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार: किसी भी देश के अमीर होने का मतलब है कि सरकारी और निजी निवेश से नए स्कूल, कॉलेज, और विश्वविद्यालय खोले जा रहे हैं, जिससे वहां के आम लोगों की शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार हो रहा है. इसके अलावा अस्पतालों, क्लीनिकों, और चिकित्सा सुविधाओं का भी विस्तार हो रहा है, जिससे लोग बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त कर सकते हैं.

फायदे से ज्यादा नुकसान 

हालांकि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की रिपोर्ट तो कुछ और ही बताती है. दरअसल 28 फरवरी को एनएसओ द्वारा जारी राष्ट्रीय आय और व्यय के दूसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार, 2011-12 के स्थिर मूल्यों पर प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय 2014-15 में 72,805 रुपये की तुलना में 2022-23 में बढ़कर 98,118 रुपये हो जाने का अनुमान है, जो लगभग 35 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है. 

प्रति व्यक्ति आय दोगुनी होने पर अर्थशास्त्री जयति घोष ने पीटीआई से कहा, ”आप मौजूदा कीमतों में जीडीपी को देख रहे हैं, लेकिन अगर आप मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हैं, तो वृद्धि बहुत कम है.’

उन्होंने आगे कहा, “इस वृद्धि का अधिकांश हिस्सा आबादी के शीर्ष 10% तक पहुंच रहा है. वहीं इसके उलट आम लोगों का औसत वेतन भी गिर रहा है, और संभवतः वास्तविक रूप से और भी कम हो गया है.’

ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में भारत में शीर्ष 1% आबादी के पास कुल संपत्ति का 40.5% से अधिक हिस्सा था, जबकि निचले 50% या 700 मिलियन लोगों के पास कुल संपत्ति का लगभग 3% था. इसके अतिरिक्त, महामारी के दौरान अमीर और भी अमीर हो गए, और उनकी संपत्ति में 121% या वास्तविक रूप से प्रति दिन 3,608 करोड़ रुपये की वृद्धि देखी गई.

इसलिए, जैसा कि पहले बताया गया है, यदि किसी देश की प्रति व्यक्ति आय बढ़ी है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि पूरी आबादी की आय भी बढ़ गई है.

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