सेनाओं के शौर्य की गाथा कारगिल युद्ध, भारतीय सेना के तीनों अंगों ने लिखी अद्भुत गाथा !
सेनाओं के शौर्य की गाथा कारगिल युद्ध, भारतीय सेना के तीनों अंगों ने लिखी अद्भुत गाथा
कारगिल युद्ध के समय नौसेना प्रमुख रहे एडमिरल सुशील कुमार अपने संस्मरण ‘ए प्राइम मिनिस्टर टू रिमेंबर-मेमोरीज आफ ए मिलिट्री चीफ’ में लिखते हैं कि ‘जून 1999 की शुरुआत में ही भारतीय नौसेना के पश्चिमी बेड़े ने उत्तरी अरब सागर में तेजी से तैनाती और कब्जा कर बड़ी पहल की। इस परिप्रेक्ष्य में आपरेशन तलवार के तहत पाकिस्तान के विरुद्ध हमारी क्षमता प्रदर्शन के इरादे बिल्कुल साफ थे।
…. देश कारगिल युद्ध विजय की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है। यह युद्ध हजारों फुट ऊंची बर्फीली पहाड़ियों पर मई-जून 1999 में लड़ा गया। इस युद्ध में जहां हमारे राजनीतिक, कूटनीतिक और प्रशासनिक तंत्र ने अपनी-अपनी अहम भूमिका निभाई, वहीं सशस्त्र सेनाओं ने एक सुनियोजित संयुक्त अभियान में पाकिस्तान के नापाक इरादों को धराशायी करने में सफलता हासिल की। बेहद कठिन हालात में लड़े गए इस युद्ध में भारतीय सेना के तीनों अंगों ने शौर्य की अद्भुत गाथा लिखी। कारगिल युद्ध में भारतीय सशस्त्र सेनाएं अपनी-अपनी भूमिका में संयुक्त आपरेशन में शामिल थीं। ये तीन आपरेशन थे- थल सेना द्वारा आपरेशन विजय, वायु सेना द्वारा आपरेशन सफेद सागर और नौसेना द्वारा आपरेशन तलवार। जहां थल सेना और वायु सेना के बहुमूल्य योगदान को अच्छी तरह से रेखांकित किया गया, वहीं नौसेना द्वारा समुद्री क्षेत्र में की गईं महत्वपूर्ण कार्रवाइयां काफी कम लोगों को मालूम हैं।
नियंत्रण रेखा को पार न करते हुए कारगिल क्षेत्र की ऊंची चोटियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों के ठिकानों को निशाना बनाने के लिए वायु सेना के लड़ाकू विमानों और थल सेना की तोपों का सटीक उपयोग कर अंततः सेना के शूरवीरों ने उन चोटियों पर विजय प्राप्त की। जबकि समुद्र में नौसेना नियंत्रण रेखा को पार न करने की बाध्यता से मुक्त और पूरी ताकत से सक्रिय रूप से तैनात की गई थी, ताकि पाकिस्तान को संकेत दिया जा सके कि युद्ध के किसी भी विस्तार के परिणामस्वरूप भारतीय नौसेना पाकिस्तान पर हावी हो जाएगी। यह योजना भारत के उस रणनीतिक संयम से हटकर थी, जो आम तौर पर पाकिस्तान के पारंपरिक उकसावों के खिलाफ दिखता रहा है।
कारगिल युद्ध के समय नौसेना प्रमुख रहे एडमिरल सुशील कुमार अपने संस्मरण ‘ए प्राइम मिनिस्टर टू रिमेंबर-मेमोरीज आफ ए मिलिट्री चीफ’ में लिखते हैं कि ‘जून 1999 की शुरुआत में ही भारतीय नौसेना के पश्चिमी बेड़े ने उत्तरी अरब सागर में तेजी से तैनाती और कब्जा कर बड़ी पहल की। इस परिप्रेक्ष्य में आपरेशन तलवार के तहत पाकिस्तान के विरुद्ध हमारी क्षमता प्रदर्शन के इरादे बिल्कुल साफ थे। नौसैना के सभी युद्धक तत्वों को कार्रवाई में लगाया गया। इसके अंतर्गत पाकिस्तानी नौसेना की वर्तमान स्थिति का पता लगाना और यह सुनिश्चित करना था कि समुद्री क्षेत्र, बांबे हाई का तेल इंस्टालेशन, तटीय क्षेत्र और गुजरात में सामरिक महत्व की सभी संपत्तियां अच्छी तरह संरक्षित रहें। इससे पीछे यह रणनीति थी कि पाकिस्तान को कोई अवसर न दिया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि अगर पाकिस्तान कारगिल क्षेत्र से लड़ाई का विस्तार करने के बारे में सोचने की हिम्मत करता है, तो नौसेना दक्षिण में एक ओर से युद्ध का एक और मोर्चा खोलेगी।’
वास्तव में आपरेशन तलवार में उत्तरी अरब सागर में भारतीय नौसेना के जहाजों की अब तक की सबसे बड़ी तैनाती हुई थी। पश्चिमी बेड़े को पूर्वी बेड़े के जहाजों द्वारा अतिरिक्त रूप से बढ़ाया गया था, जो अपने आप में पाकिस्तानी नौसेना से निपटने के लिए पर्याप्त था। साथ ही नौ-सैनिक विमान, पनडुब्बियां, लैंडिंग जहाज और तटरक्षक जहाजों को भी खास मिशनों के लिए शामिल किया था। इसके अलावा जब पाकिस्तानी अधिकारियों ने परमाणु बम की धमकी देनी शुरू की तो भारतीय जहाजों को पाकिस्तान तट के करीब ले जाकर जवाब दिया गया। यह एक स्पष्ट संकेत था कि हम परमाणु बम की धमकी के आगे भी नहीं झुकेंगे। तब पाकिस्तानी मीडिया में यह भी बताया गया था कि उत्तरी अरब सागर में लगभग 30 भारतीय युद्धक जहाज कराची के दरवाजे पर पहुंच गए हैं, जिससे पाकिस्तान के लिए युद्धक आपूर्ति अवरुद्ध होने की आंशका बढ़ गई है। भारतीय नौसेना के हमले के डर से पाकिस्तान को अपने जहाजों को स्थानांतरित करने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
नौसेना इतिहासकार रहे वाइस एडमिरल जीएम हीरानंदानी ने अपनी पुस्तक ‘ट्रांजिशन टू गार्जियनशिप’ में कारगिल युद्ध के बारे में लिखा है कि पाकिस्तानी नौसेना मुख्यालय ने अपने जहाजों को भारतीय नौसेना से दूर रहने और युद्धपोतों को बंदरगाहों पर बने रहने का संकेत दिया। पाकिस्तान की कमजोरी तब ओर प्रदर्शित हुई, जब उसने अपने तेल टैंकरों को फारस की खाड़ी से मकरान तट तक ले जाना शुरू कर दिया। साथ ही यह पता चला कि कराची की नाकाबंदी और फारस की खाड़ी से तेल की आपूर्ति में रुकावट पाकिस्तान के लिए युद्ध को जारी रखने के लिए गंभीर समस्या पैदा कर सकती है। भारतीय नौसेना की इस रणनीति से थल सेना और वायु सेना को अपनी बढ़त हासिल करने और शुरुआती झटके को यादगार जीत में बदलने का समय मिल गया।
तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कारगिल संघर्ष के बाद कहा था कि भारतीय नौसेना ने कराची को एक तरह से घेर लिया था, जिससे पाकिस्तान के पास युद्ध के लिए केवल छह दिनों के लिए ईंधन की आपूर्ति शेष रह गई थी। हमारी नौसेना ने एक उत्तर कोरियाई जहाज को भी कराची जाने से रोका और गिरफ्तार किया, जो मिसाइल घटकों को पाकिस्तान ले जा रहा था और उनके युद्ध प्रयासों में सहायता कर रहा था। इस तरह अगर सही अर्थों में देखा जाए, तो भारतीय नौसेना की साहसिक तैनाती और संकल्प के पर्याप्त संकेत के साथ प्रदर्शित तत्परता का कारगिल संघर्ष पर काफी प्रभाव पड़ा। जैसा कि एडमिरल सुशील कुमार भी कहते हैं, ‘हमारी नौसेना की अत्यधिक श्रेष्ठता का पाकिस्तान पर गंभीर प्रभाव पड़ा।’ कारगिल युद्ध में भारतीय नौसेना ने भी पाकिस्तान को निरंतर दबाव में रखकर उसे अपनी नौसेना को प्रयोग न करने के लिए मजबूर किया और भारत को विजयश्री प्राप्त करने में सहायक बनी।
(रियर एडमिरल रहे लेखक नौसेना आयुध निरीक्षण के पूर्व महानिदेशक हैं)