उम्मीदों के बोझ में कहीं गुम न हो जाए ‘कोचिंग फैक्टरी’ की रौनक
उम्मीदों के बोझ में कहीं गुम न हो जाए ‘कोचिंग फैक्टरी’ की रौनक
साल 2022 में 2.5 लाख विद्यार्थी कोटा में कोचिंग करने आए थे. इसमें 2000 से 2500 करोड़ रुपए के करीब फीस के जरिए कोचिंग संस्थानों को यहां पर मिल रहे थे.
कोट इस साल कुछ मायूस और सहमा है. जिन हॉस्टलों में किशोरावस्था अठखेलियां करती थीं और इस साल अपने नए दोस्त का इंतजार कर रहे हैं. आंकड़ों की मानें तो इस साल 35 से 40 फीसदी छात्र कम आए हैं.
लेकिन कोटा हमेशा सा ऐसा न था. इस शहर ने कई सैकड़ों की संख्या में इंजीनियर और डॉक्टर दिए हैं. यहां के कोचिंग संस्थानों से पढ़े बच्चे प्रवेश परीक्षाओं में कई बार टॉपर रह चुके हैं. बदलते वक्त के साथ ही यहांं की कोचिंग धीरे-धीरे फैक्टरियों में बदलती गईं और छात्रों की आत्महत्या की घटनाएं भी उसी हिसाब से बढ़ गईं. जैसे कोटा इन घटनाओं का गवाह बना तो कोचिंग फैक्टरियों ने भी दूसरे शहरों का रुख करना शुरू कर दिया. इसका असर यहां दिखाई देने लगा है. जब बच्चों को अपने ही शहर में पढ़ाई के अच्छे अवसर मिलेंगे तो कोई कोटा क्यों आएगा.
कोचिंग फैक्टरी से सुसाइड शहर बना कोटा
कोटा के कोचिंग केंद्र बनने से जो इकोनॉमी साल 2022 में 6500 करोड़ के आसपास पहुंच गई थी, इसमें इस साल गिरावट होकर यह आधी रह गई है. इसका असर कोटा के आम नागरिक से लेकर हर व्यक्ति पर पड़ा है.
साल 2022 में 2.5 लाख विद्यार्थी कोचिंग के लिए आए थे. इसमें 2000 से 2500 करोड़ रुपए फीस के जरिए कोचिंग संस्थानों को यहां पर मिले थे. इसके बाद 2800 से 2900 करोड़ रुपये पीजी और मेस के जरिए आए. इसके साथ ही दैनिक आवश्यकताओं की चीजों पर खर्च भी स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ाती हैं. सीधे तौर पर एक से डेढ़ लाख लोगों को रोजगार मिलता है.
250 लोगों की नौकरी गई.
कोटा में छोटे बडे कोचिंग मिलाकर इनकी संख्या 20 के करीब है. जिसमें 10 हजार से अधिक कर्मचारी अनुमानित तौर पर काम करते हैं. पहली बार ऐसा हुआ है कि कोटा के सबसे बड़े कोचिंग संस्थान ने ही कर्मचारियों को निकालना शुरू कर दिया है. वहीं 10 से लेकर 30 प्रतिशत सैलरी भी कम कर दी. ये ही नहीं संसाधनों को भी सीमित किया जा रहा है. 250 से अधिक कर्मचारियों को सीधे तौर पर निकाल दिया गया है. जिसमें फैकल्टी से लेकर, ऑफिस स्टॉफ व अन्य कर्मचारी शामिल हैं.
हॉस्टलों का किराया हुआ कम, मेस पर छात्र हुए आधे
कोटा में हॉस्टल संचालक राजू का कहना है, ‘ हर बार तीन से चार हॉस्टल चलाया करते थे इसके साथ ही कुछ लीज पर भी लिया करते थे, लेकिन इस बार लीज का काम नहीं लिया क्योंकि बच्चे कम हैं और हॉस्टल पूरा लेना पड़ता है, एक हॉस्टल में 50 से 60 प्रतिशत बच्चे हैं, किराया भी 15 से 17 हजार प्रतिमाह था वह भी 9 से 10 हजार रह गया है.’ पीजी में भी यही हाल है. जितने बच्चे आते थे, इस बार 40 प्रतिशत बच्चे कम आए हैं.
वहीं मेस संचालक प्रकाश का कहना है कि खर्चा निकालना भी भारी पड़ रहा है, जहां पहले एक मेस पर 200 बच्चे आते थे वहां 100 से 120 के करीब आ रहे हैं. जब बच्चे नहीं आए तो परिवार वाले भी नहीं आए. ऐसे में काफी समस्या आ रही है, स्टॉफ का वेतन निकालना भारी पड़ रहा है. इस समय जो भी बच्चे पढ़ रहे हैं उन्हें साल का करीब दो लाख का फायदा हो रहा है. जो खर्च चार लाख पर था वह दो लाख पर आ गया है. वहीं दूसरी और कोचिंग संस्थान ने भी अपनी फीस को कम कर दी है.
कोटा में 4 हजार हॉस्टल, आधे खाली
कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष विमल मित्तल ने बताया कि पिछले साल यहां करीब पौने दो लाख बच्चे थे, इस बार एक लाख से कुछ अधिक हैं. कोरल पार्क में 23 हजार बच्चों के रहने की क्षमता है और वहां करीब 350 हॉस्टल हैं, लेकिन इस बार वहां केवल 7500 से 8 हजार बच्चे हैं. कोटा में कुल 4500 हॉस्टल और पीजी हैं, लेकिन इस बार आधे ही भरे हैं, क्योंकि कुछ नए निर्माण तेजी से हुए हैं. लैंडमार्क सिटी और अन्य कोचिंग एरिया में छात्रों के ज्यादा रहने की वजह से दुकानों का किराया भी काफी ज्यादा था. इस एरिया के दुकानदारों को अच्छा टर्नओवर भी मिल रहा था. लेकिन इस बार यहां भी गिरावट देखने को मिल रही है.
इन लोगों पर सबसे अधिक पढ़ रहा असर
कोटा में वैसे तो कोचिंग का असर हर वर्ग पर पड़ रहा है, लेकिन जो सीधे तौर से जुड़े हुए हैं वह काफी प्रभावित हो रहे हैं. इसमें मुख्य रूप से वाहन चालक, रेस्टोरेंट, फल विक्रेता, केमिस्ट, स्टेशनरी, साइकिल, टी-स्टॉल, कपड़ों की दुकानें, फास्ट फूड, जनरल स्टोर, जूस सेंटर, हेयर सैलून, मोची, लाइब्रेरियन, जेरोक्स, मोबाइल रिपेयर, इलेक्ट्रोनिक आइटम, ऑप्टिकल शॉप, डॉक्टर, सब्जी विक्रेता, सफाईकर्मी, गार्ड, कुक, हाउस कीपिंग, ऑटो, ई-रिक्शा, धोबी, ऐसी, कूलर मेकेनिक, हेल्पर, मैकेनिक, सहित अन्य व्यापार पर सीधा असर पड़ रहा है.