शिक्षा व स्वास्थ्य पर पैसा होने के बावजूद खर्च क्यों नहीं?
शिक्षा व स्वास्थ्य पर पैसा होने के बावजूद खर्च क्यों नहीं?
कोई भी देश तब तक समृद्ध नहीं हो सकता, जब तक कि उसके युवाओं की प्रगति न हो। भारत को अपने अच्छे शिक्षण संस्थानों के कारण दुनिया में प्रतिष्ठा मिली है, चाहे वे प्रौद्योगिकी में हों, चिकित्सा में हों या सामाजिक-विज्ञान में। तकनीकी-इनोवेशन और मेडिकल-टूरिज्म में भारतीयों की भूमिका पर देश गर्व करता है।
हमारे कृषि शिक्षा संस्थानों ने कृषि-क्रांति में अपनी भूमिका निभाई है। लेकिन आज हमें स्वास्थ्य और शिक्षा पर कम खर्च के कारण आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। दुनिया भर में स्वीकृत प्रतिशत के मुकाबले कम खर्च करने के पीछे संसाधनों की कमी का हवाला दिया जाता है। जबकि शिक्षा और स्वास्थ्य में फंडिंग के लिए किए गए व्यय पर एक विशेष ‘उपकर’ बनाया गया है, क्योंकि देश के सभी नागरिकों को सुलभ और सस्ती शिक्षा-स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना ही सुशासन का पहला दायित्व है।
ध्यान रहे कि कर और उपकर के बीच अंतर यह है कि कर देश की समेकित निधि में जाता है जिसका कोई परिभाषित अंतिम उपयोग नहीं होता, जबकि उपकर का प्रयोजन स्पष्ट होता है और उसे उसी कार्य के लिए खर्च किया जाना होता है, जिसके लिए उसे लागू किया गया था।
वित्त वर्ष 2018-19 से ही नागरिक नियमित रूप से स्वास्थ्य और शिक्षा उपकर का भुगतान कर रहे हैं। दुर्भाग्य से अलग-अलग लेखांकन के बजाय यह राशि भारत के समेकित कोश में जा रही है, विशेष प्रयोजन फंड में नहीं, ताकि यदि किसी वित्तीय वर्ष में खर्च न किया गया हो तो उसे आगे ले जाया जा सके।
प्रत्येक उपकर का संग्रह संसद द्वारा एक सक्षम कानून के माध्यम से इसके गठन को अधिकृत करने के बाद किया जाता है। कानून में उस उपकर का उद्देश्य स्पष्ट किया जाता है, जिसके लिए धन जुटाया जा रहा है।
संविधान का अनुच्छेद 270 उपकर को उन करों के पूल के दायरे से बाहर रखने की अनुमति देता है, जिन्हें केंद्र सरकार को राज्यों के साथ साझा करना होता है। इसलिए केंद्र सरकार के लिए यह अनिवार्य है कि वह एकत्रित उपकर को उसके निर्धारित उद्देश्य के लिए ही खर्च करे, ताकि उसके द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार हो सके।
वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान स्वास्थ्य और शिक्षा उपकर के लिए 52,732 करोड़ रुपए एकत्र किए गए, जिनमें से 31,788 करोड़ रुपए या 60% प्रारंभिक शिक्षा कोष में स्थानांतरित कर दिए गए। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने पाया है कि वित्त वर्ष 2021-22 के संशोधित अनुमानों के अनुसार क्रमशः 25,000 करोड़ रुपए और 21,499 करोड़ रुपए माध्यमिक एवं उच्चतर शिक्षा कोश (MUSK) और प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा निधि (PMSSN) को हस्तांतरित करने के लिए स्वीकृत किए गए थे। यहां यह न भूलें कि 52,732 करोड़ के संग्रह के मुकाबले केवल 46,499 करोड़ आवंटित किए गए थे।
संसद में वित्त मंत्री ने उपकर के लिए एकत्र इस धन को रखने के लिए विशेष प्रयोजन निधि की व्यवस्था करने की प्रतिबद्धता जताई, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसे 2022 में केवल इसके उद्देश्य के लिए ही खर्च किया जाए। लेकिन अभी तक कैग द्वारा इस मुद्दे को उठाए जाने के बावजूद ऐसा नहीं किया गया है।
वर्ष 2021-22 में 23,874 करोड़ रुपयों का हस्तांतरण न होने से उपयोग नहीं किया जा सका। कैग ने सरकारी खातों की अपनी नवीनतम लेखा-परीक्षा रिपोर्ट में पाया है कि केंद्र सरकार ने 2018-19 में विभिन्न उपकरों के माध्यम से एकत्र किए गए लगभग 2.75 लाख करोड़ रुपए में से 1.1 लाख करोड़ से अधिक भारत के समेकित कोश (सीएफआई) में रोक लिए हैं।
ऐसे में संसाधनों की कमी के कारण यह स्थिति नहीं बनी है, क्योंकि एकत्रित किया गया उपकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए गए व्यय में झलक नहीं रहा है। युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने और भारत के सभी निवासियों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने के लिए उपकर और उसके खर्च के पैटर्न की निगरानी करना सोशल ऑडिट के लिए अनिवार्य है।
मानव विकास सूचकांक में हमारे निम्न पैरामीटर आज इन कम खर्चों का ही परिणाम हैं। संविधान के अनुच्छेद 14 में कानून के समक्ष समानता अनुच्छेद 21 के तहत यह सुनिश्चित कर देती है कि किसी भी व्यक्ति को सुविधाओं आदि की कमी के कारण शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा। और यही बात रियायती दरों पर हेल्थकेयर के अधिकार पर भी लागू होती है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)